तुलनात्मक अधिगम पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

Estimated reading: 1 minute 79 views

अधिगम अर्थात् सीखना शैक्षिक अनुभवों से लाभ उठाने की प्रक्रिया है। विद्यार्थी के अनुभव एवं प्रशिक्षण के द्वारा उनमें होने वाले व्यवहार परिवर्तन को सीखना कहते हैं। मूल्यांकन के द्वारा यह ज्ञात होता है कि अधिगम से बालक कितना लाभान्वित हुआ है । मूल्यांकन से बालक की निष्पत्ति या उपलब्धि का स्तर ज्ञात होने पर उस स्तर की तुलना दूसरे बालक की निष्पत्ति या उपलब्धि से करना तुलनात्मक अधिगम कहलाता है । यह तुलनात्मक अधिगम निम्नलिखित स्वरूप के हो सकते हैं-

(1) एक ही छात्र के विभिन्न क्षेत्रों (जैसे विभिन्न विषयों) के अधिगम के मूल्यांकन में प्राप्त प्राप्तांकों की तुलना।

(2) एक छात्र की निष्पत्ति की किसी दूसरे छात्र की निष्पत्ति से तुलना ।

(3) दो छात्र समूहों के निष्पत्ति की तुलना।

(4) दो या दो से अधिक कक्षाओं या विद्यालयों के निष्पत्ति स्तर के मध्य तुलना ।

(5) छात्र की निश्चित तथा विशिष्ट समयावधि की उसी छात्र की विगत समयावधि के साथ तुलना।

विशेष बालकों के अधिगम स्तर का सामान्य बालक के अधिगम स्तर से तुलना उचित नहीं है क्योंकि विशेष बालक की सीखने की गति सामान्य बालक से प्रायः धीमी रहती है इसका . कारण यह है कि विशेष बालक अपनी ज्ञानेन्द्रियों या मस्तिष्क का पूर्ण उपयोग करने में असमर्थ रहते हैं । अतः विशेष बालकों के तुलनात्मक अधिगम का प्रयोग उस बालक विशेष की पूर्व की उपलब्धि या निष्पत्ति के साथ ही किया जाना चाहिए ताकि यह ज्ञात हो सके कि पिछली निष्पत्ति की तुलना में बालक ने अधिगम के क्षेत्र में कितनी प्रगति की है। दो समान निःशक्त बालक (जैसे दोनों श्रवण बाधित हों तो) की आपस में अधिगम स्तर की या निष्पत्ति की तुलना की जा सकती है।

तुलनात्मक अधिगम भविष्य में बालकों के शिक्षण तथा अधिगम स्तर में सुधार लाने, कमजोर निष्पत्ति वाले छात्र की विशेष कक्षा या उपचारात्मक शिक्षण देने, उन क्षेत्रों या विषयों के शिक्षण पर अधिक बल देने जिसमें बालक की उपलब्धि कम है आदि कार्यों में उपयोगी है ।

Leave a Comment

CONTENTS