दृष्टि अक्षम बालकों की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए इनकी शैक्षिक सुविधाओं की व्याख्या करें।

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दृष्टि अक्षमता या कम दिखाई देना बाल विकास में एक स्पष्ट अवरोध है । शारीरिक व मानसिक विकास के साथ– साथ ज्ञानेन्द्रिय विकास में दृष्टि की भूमिका सर्वोपरि है । यह बालक के व्यक्तित्व के कई क्षेत्रों को प्रभावित करती है जो कि निम्न है।

(1) गतिहीनता– प्रारम्भिक अवस्था में जब बालक विभिन्न सांसारिक वस्तुओं, रीति रिवाज, रहन– सहन के तरीकों, खेलकूद आदि में परिचित होता है लेकिन दुर्घटना के भय से इन बालकों को इन सबसे अलग रखा जाता है । जिसका परिणाम यह होता है कि यह बालक गतिहीन हो जाता है हालांकि यह बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ हो सकता है लेकिन कम दिखाई देने के कारण या नहीं दिखाई देने से उसमें गतिहीनता आ जाती है।

(2) निष्क्रियता– सामुदायिक व औपचारिक विकास में यह बालक पीछे रह जाते हैं जिसके कारण घर, विद्यालय या समाज की किसी भी क्रियाओं में भागीदारी करने में भी पीछे रह जाते हैं जिससे निष्क्रियता उनके स्वभाव का अंग बन जाती है। यह निष्क्रियता उन्हें साथी बालकों में सम्मिलित नहीं होने देती है।

(3) संवेदनशीलता– दृष्टि अक्षम्य बालकों का विकास सामान्य बालकों की तरह ही होता है शारीरिक क्षमता या विकास वातावरण या अभ्यास पर निर्भर करता है इनमें वाणी विकास कुछ विलम्ब से होता है। किन्तु अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा श्रवण व स्पर्श ज्ञानेन्द्रियाँ अधिक चेतन होती है। यह अपनी संवेदी– प्रतिबोध शक्ति के कारण सीखने की प्रक्रिया में गति से उन्नति करते हैं । वाचन क्षमता,कौशल कार्य ध्वनि– संगीत,गायन आदि में यह वर्ग संवेदनशील होता है।

(4) तीव्र स्मरण शक्ति– प्रायः इन बालकों की स्मरण शक्ति तीव्र होती है। इनमें एकाग्रचित्तता अधिक होती है इसके कारण वह सुनी हुई बातों को आसानी से समझ लेते हैं। इसके साथ इन बातों को ग्रहण भी किये रहते हैं।

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