भारत में विकलांगों विशेष आवश्यकता वाले बालकों की शिक्षा के विकास पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के योगदान पर चर्चा करें।

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स्वतंत्रता के पूर्व विभिन्न प्रकार के विकलांग बालकों के लिए शिक्षा की हालत बड़ी दयनीय थी। इस समय जो भी प्रयास किये जा रहे थे वे केवल मानव सेवा संघ या संस्थाओं द्वारा ही किये जा रहे थे सरकारी क्षेत्र इनके प्रति उदासीन थे। इस समय मानसिक न्यूनता से त बालकों की शिक्षा के लिए बंगाल में दो विद्यालय थे– (i) झारग्राम में, (ii) कुरस्यांग में ।

इसके अतिरिक्त एक विद्यालय बम्बई में था। इस प्रकार स्वतंत्रता के पूर्व देश में मानसिक न्यूनता वाले बालकों हेतु उनकी शिक्षा हेतु केवल तीन विद्यालय थे।

स्वतंत्रता के पश्चात् विकलांगों की शिक्षा

स्वतंत्रता के पश्चात् शिक्षा विभाग तथा समाज कल्याण विभागों को विकलांगों की शिक्षा का भार सौंपा गया। सन् 1941 में अन्धों के लिए ब्रेल– लिपि का आविर्भाव हो चुका था परन्तु भारत में उसका प्रचलन 1949 में किया गया। इसके पहले शिक्षा कुछ हस्तशिल्पों के प्रशिक्षण तक ही सीमित थी। दृष्टि बाधित बालकों के लिए भारत में देहरादून में एक विद्यालय खोला गया व धीरे– धीरे इसका विकास किया गया। धीरे– धीरे इसे केन्द्रीय विद्यालय का रूप प्रदान किया गया। इनके लिए केन्द्रीय पुस्तकालय व मुद्रण प्रेस की स्थापना की गयी जिससे दष्टि बाधित विद्यार्थियों के लिये साहित्य का प्रकाशन किया गया। इसके बाद दिल्ली में श्रवण व वाणी बाधित विद्यार्थियों के लिये लेडी नीयस क्लब की स्थापना की गयी। 1989 में देहरादून के विद्यालय के साथ एक आदर्श विद्यालय सम्बन्धित किया 1955 में ब्रेल प्रेस का निर्माण किया गया साथ ही नवीन प्रकाशन व इनका पुनर्मुद्रण भी किया।

1952 में भारतीय बाल कल्याण बोर्ड की स्थापना की गयी, यह बोर्ड विभिन्न प्रकार के विकलांगों की अनेक शैक्षिक व व्यावसायिक समस्याओं का समाधान करता है। समाज कल्याण बोर्ड द्वारा भी विकलांगों की कल्याणकारी योजना का कार्य सफलतापूर्वक किया गया। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन शिक्षा प्रशिक्षण तथा नियोग संबंधी मामलों पर परामर्श प्रदान करने हेतु किया गया विकलांगों की रोजगार सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने हेतु दिल्ली, हैदराबाद, मद्रास,जालन्धर,कानपुर, अहमदाबाद, बंगलौर और कलकत्ता आदि में विशेष नियोजन कार्यालय स्थापित किये गये

मानसिक रूप से दुर्बल बालकों की शिक्षा व्यवस्था

मानसिक रूप से दुर्बल बालकों की शिक्षा व्यवस्था के लिए बंगाल के दोनों विद्यालयों का विकास किया गया, इन बालकों की बुद्धि का स्तर का पता लगाने के लिये इलाहाबाद की मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला ने अनेक मनोवैज्ञानिक परीक्षण तैयार किये 1952 के बाद इन बालकों को विशेष छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था की गई। 1955– 56 तक विकलांगों की शिक्षा पर किये जाने वाले व्यय का 50 प्रतिशत भार केन्द्रीय सरकार तथा शेष राज्य सरकार वहन करती थी किन्तु इसके बाद समस्त भार केन्द्रीय सरकार वहन करने लगी।

राज्य सरकारों के प्रयास

केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त अनेक राज्य सरकारें तथा मानव सेवा संघ इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही थीं। पंजाब में चण्डीगढ़ में विकलांगों के लिए एक गृह की स्थापना का गया। उत्तर प्रदेश ब्यरो ऑफ साइकोलोजी की व्यवस्था की गयी। लगभग प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा रैन– बसेरे तथा बाल अवकाश गृह की स्थापना की गयी। देहरादून स्थिति विद्यालय हा तरह हैदराबाद में बहरे व गँगों के लिए विद्यालय का विकास किया गया। इन बालकों की शक्षा तथा प्रशिक्षण व्यवस्था में अनेक परमार्थ सेवा संघों ने भी सराहनीय कार्य किया जिसमें पानरासह राव शिवाजी धर्मजी इण्डस्ट्रियल होम फॉर द ब्लाइंड आदि की स्थापना प्रमुख हैं।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति व विशिष्ट शिक्षा

एक सामान्य अनुमान लगाया जाये तो लगभग एक करोड़ पचास हजार बालक– बालिकाओं को विशेष प्रकार के शैक्षिक प्रावधानों की आवश्यकता है जिनमें एक करोड बालक– बालिका मानसिक व शारीरिक रूप से विकलांग हैं जिनके लिये विशेष प्रकार से शिक्षा व्यवस्था करना आवश्यक है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति– 1986 में जहाँ श्रेष्ठ बालकों के लिये नवोदय विद्यालयों की संकल्पना की थी वहीं दूसरी ओर शारीरिक व मानसिक दृष्टि से विकलांगों को विशेष प्रावधान देने का संकल्प किया गया था। उद्देश्य यह है कि शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से विकलांग को सामान्य वृद्धि के लिए तैयार करने तथा अपने जीवन को साहस तथा विश्वास से जीने योग्य बनाने के लिए सामान्य समुदाय के साथ समान सम्भाजी के रूप में एकीकृत किया जाये।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इस दिशा में निम्न उपाय किये जाने का संकल्प लिया।

(1) जहाँ तक संभव होगा अंग संचालन विकलागों तथा अन्य विकलांगों की शिक्षा अन्यों के समान होगी।

(2) जटिल विकलांग बालकों के लिए जहाँ तक सम्भव हो सके जनपद केन्द्रों पर छात्रावासों सहित विशेष विद्यालय खोले जायेंगे।

(3) विकलांगों के व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जायेगी।

(4) अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अभिनवीकरण विकलांग बच्चों की विशेष आवश्यकताओं की दृष्टि से किया जायेगा।

(5) प्रत्येक सम्भव ढंग से विकलांगों की शिक्षा में स्वैच्छिक प्रयासों को प्रोत्साहित किया जायेगा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के क्रियान्वयन के लिये वर्ष 1992 में संशोधित किये कार्यान्वयन कार्यक्रम (POA) में विकलांगों की शिक्षा के लिये अनेक प्रावधानों को रखा गया इनमें से कुछ निम्न हैं–

(i) विकलांग बच्चों के लिये एकीकृत शिक्षा

(ii) विशेष विद्यालय

(iii) व्यावसायिक प्रशिक्षण

(iv) अध्यापकों का अभिनवीकरण व प्रशिक्षण

(v) शैक्षिक प्रशासकों का प्रशिक्षण

(vi) विशिष्ट अध्यापक

(vii) शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशनकर्मी

(viii) पाठ्यवस्तु तथा प्रक्रिया

(ix) जनसंचार का उपयोग

(x) विशिष्ट अधिगम सामग्री तथा उपकरण

वर्तमान में अनेक विशेष आवश्यता वाले बालक विशेष प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं भविष्य में भी विशेष कार्यक्रमों व विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाता रहेगा।

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