मंदबुद्धि बालकों के मनोसामाजिक व शैक्षणिक लक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

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जब किसी बालक के बौद्धिक विकास की गति अन्य बालकों की तुलना में मंद होती है तो उसे मंदबुद्धि बालक कहा जाता है । बुद्धिलब्धि की दृष्टि से ऐसे बालकों की 70 से कम बुद्धिलब्धि पाई जाती है। शून्य से 24 तक बुद्धिलब्धि वाले बालक जड़ बुद्धि (इडियट) तथा 25 से 49 तक बुद्धि लब्धि वाले बालक मूढ़ बुद्धि कहलाते हैं। इन्हें शिक्षित करना कठिन होता है परन्तु 50 से 70 तक बुद्धिलब्धि वाले बालकों को मंदबुद्धि के बाद भी शिक्षा पाने योग्य माना जाता है।

मनोसामाजिक रूप से मंदबुद्धि बालकों में ये लक्षण प्रायः पाए जाते वेगात्मक तथा सामाजिक असमायोजन, (2) आत्म विश्वास में कमी, (3) बहुधा भावावेशपूर्ण व्यवहार, (4) विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रेम, भय, मौन, चिंता, विरोध, आकलन का व्यवहार, (5) व्यवहार कुशलता का अभाव,(6) अति भावुकता,(7) अपनी मान्यताओं पर अटल विश्वास, (8) निराशा, हताशापूर्ण व्यवहार।

मंदबुद्धि बालकों के प्रमुख शैक्षिक लक्षण ये हैं- (1) 50 से 70-75 तक बुद्धिलब्धि, (2) धीमी गति से अधिगम, (3) अमूर्त चिंतन का अभाव, (4) शैक्षिक क्षमता अपने आयु समूह से बहुत नीचे, (5) परीक्षा में बार-बार अनुत्तीर्ण होना तथा उससे निराशा, (6) गणित विज्ञान, व्याकरण आदि सूक्ष्म विषयों में अरुचि ।

उक्त मनोसामाजिक व शैक्षिक लक्षणों के निराकरण हेतु मंदबुद्धि बालकों को खेलकूद, पर्यटन, पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सामाजिक प्रशिक्षण देना, हस्तशिल्प व्यवसाय की शिक्षा देना, छोटे समूह में विशिष्ट कक्षा आयोजन, स्थूल त्रिआयामी वस्तु मॉडल आदि सहायक सामग्री से शिक्षण देना, प्रेमपूर्वक व्यवहार करना, धीमी गति से शिक्षण देना, अनेक प्रयासों से समझाना आदि सुधारात्मक उपाय अपनाए जाने चाहिए।


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