मानसिक रूप से मंद बालकों का वर्गीकरण करते हुए मानसिक मंदता के कारकों का उल्लेख करें।

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मानसिक रूप से मंद बच्चे– मानसिक रूप से मंद बच्चे वह होते हैं जो मानसिक क्षेत्र में सामान्य बच्चों के नकारात्मक पक्ष में चले जाते हैं। दूसरे शब्दों में,उनमें मानसिक कमी होती है |

मानसिक कमी को अपर्याप्त बौद्धिक कार्य से पहचाना जा सकता है जिससे व्यवहार, अपनाने, साहचर्य में कमी तथा अधिगम शक्ति में कमी होती है, लेकिन उनमें पर्याप्त बुद्धि लब्धि होती है जो 50 से ऊपर हो सकती है जिससे वे सामाजिक रूप से उचित तथा व्यावसायिक रूप से प्रवीण बन सकते हैं यदि उन्हें विशेष शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराये जायें।

मानसिक रूप से मंद बच्चे मानसिक विकास में पीछे होते हैं तथा कम बुद्धि लब्धि रखते हैं। सामान्य रूप से उनकी बुद्धि लब्धि 75 से कम होती है लेकिन 50 से अधिक होती है |

मानसिक रूप से मंद बच्चों की पहचान– मानसिक रूप से मंद बच्चों की पहचान के लिए हम निम्न विधियों को सावधानी से अपना सकते हैं–

1. अध्यापकों द्वारा छात्रों के सामान्य कार्य का निरीक्षण।

2. अविधिक परीक्षण द्वारा।

3. बच्चे के पूर्ण परिणाम का निरीक्षण कर।

4. अध्यापकों, माता– पिता तथा मित्रों आदि से मूल्यांकन कराकर।

5. समाजमिति परीक्षण प्रशासित कर।

6. बुद्धि परीक्षण को प्रकाशित कर।

7. अन्य चिकित्सीय, सामान्य व्यवहार, सामाजिक समायोजन तथा शैक्षिक निष्पत्ति प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण देकर।

शिक्षा योग्य या मूर्ख

1. बुद्धि लब्धि 50 से 75 |

2. पूर्णतः निर्भर

3. औसत बालक का (1 )/(2 ) या (1 )/(3 ) विकास।

4. शिक्षा संभव है यदि वे प्रयास करें।

5. दूसरी या तीसरी कक्षा की शिक्षा 15/16 वर्ष की आयु में।

6. बुद्धि तथा विकास की दर कम होती है तथा धीमे अधिगम करने वाले।

7. निर्णय करने तथा अमूर्त चिन्तन करने की क्षमता बिल्कुल नहीं होती।

8. प्लेटफॉर्म, सड़कों पर भीख माँगते पाये जाते हैं।

9. हस्तकला तथा शिक्षा की समस्याओं से अनभिज्ञ ।

10. विशेष विद्यालयों में शिक्षा संभव है जिसमें स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता की भावना न हो। प्रशिक्षण के योग्य हैं, शिक्षा के योग्य हैं, विकास में देरी होती है, बिना निरीक्षण के कुछ उपयोगी कार्य कर सकते हैं, वातावरण से समायोजन की कमी, पढ़ना, लिखना तथा गणित सीख सकते हैं।

प्रशिक्षण योग्य या कुछ निर्भर या कुछ मूर्ख

1. बुद्धि लब्धि 25 से 50

2. हस्ताक्षर करना सीख सकते हैं।

3. माता– पिता पर निर्भर लेकिन जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित किया जा सकता है।

4. औसत बालंक का 1/4 या, 1/2 विकास।

5. प्रशिक्षण के अयोग्य बालक से कुछ बेहतर।

6. उन्हें शारीरिक या हस्तकला आदि में प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

7. औसत बच्चों के साथ नहीं रखना चाहिए।

8. बोलने, शाब्दिक अभिव्यक्ति का अभाव ।

9. प्रशिक्षण के योग्य लेकिन शिक्षण के नहीं। विकास में विशेष देरी, बोले हुए शब्द को समझते हैं, खतरे में स्वयं को बचाते हैं, निरीक्षण के अंतर्गत दैनिक कार्य करते हैं।

प्रशिक्षण के अयोग्य या जड़ बुद्धि

1. बुद्धि लब्धि 25 से कम ।

2. पशु की तरह रहते हैं।

3. बोल, समझ नहीं सकते, न ही अपनी रक्षा तक कर सकते हैं।

4. घर में रखे जाने चाहिए।

5. विद्यालय में नहीं पाये जाते।

6. कुछ भी अधिगम नहीं कर सकते।

7. प्रशिक्षण तथा शिक्षा के अयोग्य, अनेक प्रकार की रचनात्मक असामान्यतायें व ‘ कमियाँ, स्व– सुरक्षा की सुरक्षा का अभाव, हर समय देखभाल की आवश्यकता ।
मानसिक मंदना को योगदान देते कारक :

(अ) वंशानुक्रम या आंतरिक कारक

(ब) वतावरणीय या बाहरी कारक

विदेशों में जन्म पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म पश्चात् केन्द्र हैं। यदि मस्तिष्क को किसी भी समय कोई रोग हो जाता है या चोट पहुँचती है तो लोग इन केन्द्रों में उपचार के लिए जा सकते हैं। यहाँ सभी प्रकार की शल्य तथा दूसरे प्रकार के उपचार किये जाते हैं।

(अ) वंशानुक्रम कारक

1. यह जन्म से पहले विकसित होते हैं।

2. यदि माता– पिता के मस्तिष्क का विकास उचित नहीं है तो यह उनके पुत्रों व पुत्रियों द्वारा भी वंशानुक्रम में ग्रहण किया जा सकता है।

गोडार्ड का अध्ययन– 40 जड़ बुद्धि माता– पिता के 100 बच्चों में से केवल 6 ही सामान्य पाये गये थे।

3. तंत्रिका– विकृति– इसका संबंध तंत्रिका की बीमारियों से होता है, जैसे– मिर्गी, मंदबुद्धिता आदि । यदि यह माता– पिता में होती है तो यह बच्चों में भी हो सकती है।

(क) विकासात्मक विकार

4. खोपड़ी कुरूपता– मोक्सीसीफेलिक, एक्रोसीफेलिक, स्केफोसीफेलिक मन्दबुद्धिता।

5. चारित्रिक कल्पनायें– मंगोलियन, मंदबुद्धिता।

6. अंत:स्रावी ग्रंथि संबंधी– हाइपोथायराइड, हाइपोपिशुअरी मंदबुद्धिता।

(ख) चयापचय विकार

7. जातीय अंत:कला संबंधी विकार– शैशवता, बाल– अपराध, गौचर की मंदबुद्धिआदि।

8. त्वचा रोग।

(ग) तंत्रिका– गति विकार

9. आपेक्ष संबंधी विकार, मिर्गी, मंदबुद्धि आदि। ,

10. अनैच्छिक गति।

11. गत्य पक्षाघात ।

(घ) मनोवैज्ञानिक विकार

मस्तिष्कीय आघात मंदबुद्धि आदि ।

12. स्नायविक विकार– श्रव्य– मनो– मंदबुद्धि आदि ।

13. मानसिक विकार– कुपोषण आदि ।

(ब) वातावरणीय कारक

1. जन्म के बाद विकसित होते हैं।

2. यदि गर्भकाल के दौरान माता जहर लेती है या गर्भापात करा देती है तो मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। यह सभी जन्म पूर्व परिस्थितियाँ हैं।

3. जन्म के दौरान की परिस्थितियाँ– यदि बच्चे के जन्म के दौरान माता को कोई बीमारी हो जाती है या चोट लग जाती है तो बच्चे का मस्तिष्क प्रभावित होता है।

4. जन्म पश्चात परिस्थितियाँ– सिर को सीधे आघात, जिसमें मस्तिष्क को हानि होती है या रीढ की हड्डी की बीमारी हो जाती है या मस्तिष्क को कोई रोग हो जाता है तो मानसिक मंदबुद्धिता हो जाती है।

5. (क) विकासात्मक विकार, (ख) चयापचय विकार, (ग) तंत्रिका– गत्य विकार (घ) मनोवैज्ञानिक विकार

प्रशिक्षण तथा शिक्षा योग्य बालकों के लिए शिक्षा के उद्देश्य

1. उनके शारीरिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए।

2. दर्घटनाओं आदि से बचने के लिए सुरक्षा विधियाँ सीखना।

3. उनको विचारों के संचार के योग्य बनाना।

4. उनको अपने रिक्त समय को धोने या बागवानी करने जैसी गतिविधियों में उपयोग सिखाना।

5. उन्हें स्वयं को समझने के योग्य बनाना ।

6. उन्हें परिवार में समायोजित होना सिखाना।

7. उन्हें यात्रा तथा यहाँ वहाँ जाने में योग्य बनाना।

8. उन्हें कुछ आम करना सिखाना।

9. उन्हें कला, चित्रकला, संगीत, खेल– कूद गतिविधियों की प्रशंसा करना सिखाना आदि।

10. धन का प्रबंध करना सिखाना।

11. उन्हें स्नायु अंतरण में प्रशिक्षण करना जैसे बोलने में।

इन बालकों को शिक्षित करने के प्राथमिक सिद्धान्त

1. करने से शारीरिक परिपक्वता को प्रोत्साहित करना।

2. अभिप्रेरणा से भावनात्मक परिपक्वता को प्रोत्साहित करना।

3. बौद्धिक परिपक्वता को प्रोत्साहित करने के लिए मूर्त चीजें देना जैसे– खेल सामग्री आदि।

4. अध्यापन का आरंभ करने से पहले अधिगम के लिए तैयारी के चिह्न देखो तथा उन्हे पढ़ाओ, अन्यथा उनमें भ्रम तथा व्यग्रता हो सकती है।

5. उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार पढ़ाओ । यदि उन्हें खाना चाहिए तो खाने की विधि बताओ। यदि उन्हें बाजार जाने की आवश्यकता है तो उन्हें गणित के बारे में बताओ।

6. उन्हें आंशिक अध्यापन विधि के अनुसार तथा स्थान विधि के अनुसार पढ़ाओ।

7. उन्हें आंशिक अध्यापन विधि के अनुसार तथा स्थान विधि के अनुसार पढ़ाओ।

8. उन्हें उचित प्रशंसा, पहचान, स्तर, सम्मान तथा अधिगम के लिए स्वतंत्रता प्रदान करो।

9. उन्हें अपनी सहायता करना, स्वतंत्र कार्य करना व आत्म अभिव्यक्ति सिखाओ। साथ ही उत्तरदायित्व भी सिखाओ।

10. उन्हें खेल गतिविधियाँ उपलब्ध कराओ तथा प्रयोग करने दो।

मानसिक रूप से मंद बालकों की सहायता

(अ) पुरातन विधियाँ

1. अलग कक्षायें।

2. प्रशासनिक विधि– विशेष कक्षायें तथा विशेष विद्यालय। .

3. व्यावसायिक निदान विद्यालय– उनके लिए विशेष विधियाँ तथा पाठ्यक्रम का प्रयोग करो।

(ब) आधुनिक विद्यालय

उन्हें कक्षा के साथ पढ़ाओ, सादे प्रश्नों का प्रयोग करो तथा उन्हें अलग से अतिरिक्त सहायता दो यदि किसी प्रकार की विशेष कमी है। लेकिन प्रशिक्षण के योग्य तथा अयोग्य बालकों को विशेष विद्यालयों में प्रवेश दिलाना चाहिए।

अध्यापक को माता– पिता को सुझाव देना होता है तथा बालकों को इस प्रकार के विद्यालयों में प्रवेश दिलाने के लिए सहायता करनी होती है। इनका पाठ्यक्रम निम्न विषयों में प्रशिक्षण के योग्य होना चाहिए–

1. हाथ का कार्य जैसे चित्रण तथा चित्रकला आदि।

2. लकड़ी का कार्य जैसे कृषि, बागवानी आदि ।

3. कुटीर कार्य जैसे चमड़े का कार्य आदि ।

4. लांडरी आदि।

निम्न कार्यों के लिए भी प्रावधान होना चाहिए–

1. दैनिक कार्यों में प्रशिक्षण ।

2. अच्छी आदतों में प्रशिक्षण ।

3. प्रायोगिक विषयों में प्रशिक्षण ।

4. व्यावसायिक कार्यों में प्रशिक्षण।

जब यह बच्चे इन सब प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त कर लेते हैं तो वे स्वतंत्र रूप से तथा आर्थिक रूप से रह सकते हैं जिसमें वह परिवार, समाज तथा संसार के साथ खुशी बाँट सकते है |

मंदबुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए अतिरिक्त चरण

माता– पिता को तैयार करना

याद रखो– माता– पिता अपने बच्चों की मंदबुद्धिता को स्वीकार नहीं करते, उससे उनके अहं को चोट लगती है तथा वे अपना अवमूल्यन कर लेते हैं । वे अपने बच्चे के मानसिक विकार के बारे में किसी को नहीं बताते हैं। माता– पिता को इस बात का ज्ञान कराना चाहिए ताकि वे बच्चे की उचित प्रकार से देखभाल कर सके।

1. आयु के अनुसार विकासात्मक कार्यों में प्रशिक्षण ।

2. दैनिक कार्यों में प्रशिक्षण जो अच्छी आदतों को बनाने के लिए हो ।

3. पेटं के नियंत्रण के लिए जिसमें शौच प्रशिक्षण हो ।

4. पेशाब, मूत्र में प्रशिक्षण ।

5. व्यक्तिगत देखभाल में प्रशिक्षण।

6. सर्जनात्मक अनुशासन में प्रशिक्षण ।

7. नैतिक कार्यों, सिद्धान्तों में प्रशिक्षण कि क्या गलत तथा क्या सही है।

8. समाजीकरण में प्रशिक्षण।

9. स्वस्थ व्यक्तिगत में प्रशिक्षण ।

उनकी सहायता किस प्रकार करें

1. उन्हें सामान्य कक्षा में रखे तथा कुछ व्यक्तिगत मार्गदर्शन दें।

2. विशेष अध्यापन विधियों का प्रयोग करें, जैसे–

(क) मूर्त विधि,

(ख) गतिविधि विधि,

(ग) शब्दों का अभ्यास,

(घ) दृश्य– श्रव्य उपकरणों का प्रयोग।

3. सादी अधिगम सामग्री।

4. पाठ्यक्रम को विशेष प्रकार से संगठित करना।

5. विशेष प्रकार की अतिरिक्त शैक्षिक गतिविधियों का आयोजन ।

6. बौद्धिक गतिविधियाँ कम दो या न दो।

7. उचित योग्यता की पुस्तकों का चयन ।

8. मन्द सीखने वाले की प्रशंसा करनी चाहिए यदि वह अपना गृहकार्य आदि सही प्रकार से करते हैं।

9. मन्द अधिगम कर्ता की रुचियों को खोजा जाना चाहिए।

10. उनके अधिगम को सुविधाजनक बनाने के लिए दृश्य– श्रव्य उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

11. निदानात्मक प्रशिक्षण ।

12. पाठ्यक्रम को व्यवसाय– केन्द्रित बना सकते हैं लेकिन व्यवसाय कार्यक्रम को उन पर लादा नहीं जाना चाहिए।

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