वाणी विकार या वाणी दोष वाले बालक पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

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पूर्ण वाणी बाधिता मूक (गूंगे) बालक/व्यक्ति की ओर संकेत करती है। आंशिक रूप से वाणी विकार/दोष वाले बालक या तो ठीक प्रकार से बोल नहीं पाते या उनके द्वारा बोली गई बात को श्रोता भली-भांति समझ नहीं पाते अथवा देर से समझते हैं । परकिंस के अनुसार वाणी बाधिता तब मानी जाती है जब वाणी व्याकरणिक दृष्टि से सांस्कृतिक रूप से असंतोषजनक हो क्योंकि वाणी अंग क्षतिग्रस्त है उनका संप्रेषण दोष युक्त होता है।“ राइपर के मतानुसार, “बालक जिनको संप्रेषण की समस्या होती है और उनका स्तर या वाणी अन्य सामान्य बालकों से भिन्न प्रकार की होती है । वह स्वयं भी सजग होता है कि वह अपनी बात कहने में असमर्थ है, उसकी वाणी मधुर नहीं होती।”

प्रस्तुत वाणी दोष या वाणी विकार इस प्रकार है-

(1) उच्चारण दोष-एक शब्द के एक दो अक्षर ही बोल पाना, त को ट कहना।

(2) देर से बोलना।

(3) हकलाना या तुतलाना-हकलाने वाले बालक धाराप्रवाह न ही बोल पाते, कुछ ध्वनि या शब्दों की पुनरावृत्ति करते हैं और कुछ वर्णों पर रुक जाते हैं । तुतलाने वाले बालक रोटी को रोती आदि कहते हैं।

(4) ओष्ठ विकृति- ओष्ठ विकृति के कारण प, फ, ब, भ का सही उच्चारण नहीं हो पाता। सर्जरी द्वारा ओष्ठों का उपचार कर दोष का निवारण किया जा सकता है |

(5) ध्वनि विकास- नासिका से बोलना, ऊंचा या धीमे बोलना।

(6) श्रवण विकृति- प्रायः बधिर बालक मूक (गूंगे) भी रहते हैं।

बहुत से दोष मनोवैज्ञज्ञनिक अभ्यास द्वारा दूर हो जाती है। स्वर यंत्रों की खराबी के दोष भी चिकित्सक के उपचार से ठीक हो सकते हैं।

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