विविधता समायोजन का वर्णन कीजिए।

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विशेष बालकों (नि:शक्त बालकों) को शिक्षा दो प्रकार के विद्यालयों में होती है- (1) विशेष विद्यालय जहाँ प्रायः शत प्रतिशत या अत्यधिक निःशक्त से ग्रस्त अंध,मूक बधिर, मंदबुद्धि बालकों को विशेष शिक्षा में प्रशिक्षित अनुदेशकों द्वारा विशेष विधि से शिक्षा दी जाती है, (2) समावेशी विद्यालय जिसमें सामान्य बालकों के साथ-साथ आंशिक निःशक्तता से प्रसित दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, अस्थिबाधित तथा मंदबुद्धि बालकों को समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित करने हेतु शिक्षित किया जाता है। पूर्व में विशेष विद्यालय महानगरों, नगरों में प्रारंभ हुए जहाँ समाज की मुख्य धारा से अलग निशक्त बालकों के गृह से दूर छात्रावासों में रहकर बालक शिक्षा प्राप्त करते थे। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2000 में समावेशी शिक्षा वाले विद्यालयों की स्थापना की अनुशंसा को गई । विशेष विद्यालयों की अपेक्षा सामान्य समावेशी विद्यालय में नि:शक्त बालक घर के समीप स्थित शाला में ही अन्य सामान्य बालकों के साथ सामान्य पाठ्यक्रम का अध्ययन समाज व शिक्षा को मुख्य धारा से जुड़े रहकर शाला व कक्षा शिक्षण में कुछ विशेष प्रयास करने पर प्राप्त कर सकते हैं।

निश्चय ही आंशिक रूप से निशक्त बालकों को विशेष विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के स्थान पर समावेशी शिक्षा प्राप्त करना निम्नलिखित दृष्टि से व्यावहारिक है-

(1) नि:शक्त बालकों को मीलों दूर स्थित विशेष विद्यालय में जाकर शिक्षा प्राप्त करने में होने वाली आवासीय व यातायात संबंधी असुविधा से बचाव होता है तथा घर में रहकर वे समावेशी शाला में जाकर शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।

(2) समावेशी शिक्षा अलगाव व पृथक्करण के विपरीत एकीकरण तथा समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का प्रयास है।

(3) समावेशी शाला में पूर्ण विकलांगता (100 प्रतिशत निःशक्तता) वाले बालकों की शिक्षा के स्थान पर कम विकलांगता वाले विद्यार्थियों को शिक्षा देने में मूलभूत कठिनाई नहीं आती।

(4) देश में करोड़ से अधिक शिक्षा, प्राप्त करने की आयु के निःशक्त बालक हैं जिन्हें विशेष विद्यालयों व आवासीय छात्रावासों की सीमित संख्या देखते हुए प्रवेश देना व्यावहारिक नहीं होता। अतः सार्वभौमिक शिक्षा तथा सर्व शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु इन्हें समावेशी विद्यालयों में शिक्षित करना अधिक व्यावहारिक तथा अधिक उपयोगी है।

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