विशिष्ट बालकों हेतु माता– पिता में किस प्रकार के कौशल होना आवश्यक है ? इन कौशलों का विकास कैसे किया जा सकता है ? चर्चा करें।

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माता– पिता में कौशल का विकास :

माता– पिता में अपने बालकों के प्रति कुछ महत्त्वपूर्ण व्यवहारों को सीखने के लिए इस विषय से सम्बन्धित कौशल उत्पन्न किया जाना चाहिए। बहुत से माता– पिता, जिनकी समझ तो ठीक होती है तथा व्यवहार भी ठीक होता है वे अपने बालकों को किस प्रकार सहायता दी जाये, यह नहीं समझ पाते । अतः इस सम्बन्ध में उनके कौशल का विकास अनिवार्य है । इसमें बालक की संवेगात्मक सुरक्षा, शारीरिक स्वास्थ्य भाषा का विकास व अधिगम की प्रेरणा का विशेष रूप से प्रयास करना चाहिए । निम्नलिखित क्षेत्रों में विकास इस प्रकार किया जा सकता है–

(1) बालक की संवेगात्मक सुरक्षा– अध्यापक तथा शिक्षाशास्त्रियों को समझना चाहिए कि वे क्या घटक हैं जो बालक में सुरक्षा के भाव को नहीं आने देते। इन घटकों का पता माता– पिता के साथ अनौपचारिक सम्मेलनों का आयोजित करके, प्रश्नावलियों और साक्षात्कार द्वारा लगाया जा सकता है । माता– पिता को उस हानि से भी अवगत होना चाहिए जो लड़ने– झगड़ने व अनुशासनहीनता से उत्पन्न हो सकती है। माता– पिता द्वारा किसी एक बच्चे को अपना प्रिय बना लेना भी बच्चे के मन पर बुरा प्रभाव डालता है । यदि विशिष्ट बालक के साथ ऐसा किया जाता है तो उसका और भी बुरा होगा। माता– पिता को यह जानना चाहिए कि बालक में यह भावना कैसी लायी जाये कि वह अपने परिवार को एक महत्त्वपूर्ण सदस्य समझे । बालक अपने को माता– पिता की कठिनाई का विषय न समझे इस बात का ध्यान रखना माता– पिता का कर्तव्य है यदि माता– पिता बात– बात पर अपने भारी उत्तरदायित्व का बखान बालकों के समक्ष करेंगे तो उसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्हें विशिष्ट बालकों के समक्ष करेंगे तो इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्हें विशिष्ट बालकों के साथ बोलना चाहिए, खेलना चाहिए, उन्हें घूमने के लिए ले जाना चाहिए।

(2) बालक का शारीरिक स्वास्थ्य– विशिष्ट बालकों के शारीरिक विकास के लिए उचित प्रबन्ध करना चाहिए। यह बात अन्धे, बहरे, संवेगात्मक रूप से पिछड़े हुए बालकों के साथ भी सत्य है । एक अच्छा स्वास्थ्य ऐसे बालकों के विकास में अत्यन्त सहायक होगा। विद्यालय माता– पिता को बता सकते हैं कि कैसे अच्छा और संतुलित आहार बच्चों को दिया जा सकता है । विशिष्ट बालकों को कितना आराम, नींद और खेलने का समय दिया जाये, यह ज्ञान देना चाहिए। उसकी विभिन्न बीमारियों जैसे– फ्लू, जुकाम, टॉन्सिल्स आदि को दूर करने की विधियों से अवगत कराना चाहिये । इस प्रकार माता– पिता को यह शिक्षा देनी चाहिए कि बालक के स्वास्थ्य की रक्षा किस प्रकार की जाये।

(3) बालक का गामक विकास– बालक के शारीरिक तथा व्यक्तित्व विकास के लिए गामक विकास अनिवार्य है। विशिष्ट बालकों के सम्बन्ध में यह और भी महत्त्वपूर्ण है। गामक विकास में गति की समस्या प्रमुख है। हाथों और पैरों की गति की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए । मानसिक रूप से पिछड़े बालक चलने में सहायता माँगते हैं । इस प्रकार अक्षम बालकों को गामक नियंत्रण में माता– पिता की सहायता की आवश्यकता होती है अतः माता– पिता को इस बात की शिक्षा देनी चाहिए कि किस प्रकार वे अपने बच्चों को ऊपर– नीचे उतरने, कपड़े पहनने, बटन लगाने, जूते के लेस बाँधने आदि की शिक्षा दें। मेनीसोटा दैनिकी में माता– पिता को इस सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं। मेनीसोटा दैनिकी द्वारा सुझाव देने के बाद माता– पिता को इस बात की भी शिक्षा देनी चाहिए कि कैसे गामक प्रतिक्रियाओं को सिखाते समय उन्हें नियंत्रित् रहना चाहिए। प्रमस्तिष्कीय पालसी वाले बालक के सम्बन्ध में माता– पिता का उत्तरदायित्व और अधिक हो जाता है। ग्राटबी के अनुसार यदि माता– पिता अपने बालकों को किसी उपचार संस्था में ले जाते हैं तो भी उनके विकास के प्रति अधिक उत्तरदायित्व उन्हें ही वहन करना पड़ता है। सेन्ट जेम्स के अनुसार प्रमस्तष्कीय पाल्सी वाले बालकों के माता– पिता का उनके पुनर्स्थापन में अत्यधिक हाथ होता है। चिकित्सक उपचारक, व्यावसायिक उपचारक तथा वाणी उपचारक के निर्देशन के अनुसार माता– पिता ऐसे बालकों का में ही उपचार कर सकते हैं। यह प्रभावशाली भी होगा। उन्हें विभिन्न प्रकार के कसरतों और कार्यक्रमों का ज्ञान होना चाहिए, जैसे– प्रमस्तिष्कीय पालसी वाले बालकों के माता– पिता को जब यह ज्ञात हो जाता है तब उन्हें उसका प्रयोग, किसलिए होना चाहिए इसका भी ज्ञान होना चाहिए। विशिष्ट बालकों के माता– पिता को यह ज्ञात होना चाहिए कि विशेष प्रकार के सामान कब प्रयोग होने चाहिए और किस प्रकार प्रयोग होने चाहिए। विशिष्ट बालकों के संबंध में कुछ विशेष सामान इस प्रकार है– विशेष प्रकार की कुर्सी,खड़े होने की मेज,तीन पहिये की साइकिल स्टेबलाइजर,स्कीज आदि । अध्यापक, निरीक्षक तथा चिकित्सक को विलक्षण बालकों के माता– पिता को अपने बालकों में गामक कौशल उत्पन्न करने की समता उत्पन्न करने में सहायक होना चाहिए। इससे न केवल बालक चलना– फिरना सीखता है बल्कि वह स्वतन्त्रता, आत्म– सम्मान आदि बातों को जानता है।

(4) भाषा का विकास– किसी भी बालक के विकास में भाषा का विकास आवश्यक है। यह अहम बालक के विषय में और भी अधिक सत्य है । अध्यापक तथा समाज– सेवक को माता– पिता को इस विषय में सहायता करनी चाहिए। बहरे बालकों के सम्बन्ध में माता– पिता की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है उनकी भूमिका बालकों के जन्म से आरम्भ हो जाती है बहरे बालक को ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जहाँ लोग अत्यधिक बोलते हों । सुनने वाले अर्थात सामान्य बालकों के माता– पिता अपने बच्चों से तब तक बोलते रहते हैं जब तक कि वे बोलना सीख नहीं जाते । बहरे. बालकों के माता– पिता को भी अपने बच्चों से अधिक से अधिक बोलना चाहिए। माता– पिता को इस सम्बन्ध में ट्रेसी ने ये सुझाव दिये हैं–

(i) बालक को लोगों को बोलते दिखाना।

(ii) बोलने वालों का मुँह प्रकाश में होना।

(iii) बोलने वालों का मुंह बालक के बहुत पास तथा एक स्तर पर होना।

(iv) पूरे– पूरे वाक्यों का प्रयोग करना।

(v) साफ– साफ और प्राकृतिक ढंग से बोलना।

(vi) धीरे– धीरे बोलना।

(vii) बोलने वाले के द्वारा सिर और हाथ न हिलाना।

(viii) उन घटनाओं के सम्बन्ध में बोलना जो घट चुकी हैं या सामने घट रही हैं या अभी घटने वाली हैं।

अन्धे बालकों के माता– पिता को भी अपने बालकों से बीती हुई घटनाओं के बारे में बात करनी चाहिए। उन्हें संवेदनात्मक अनुभव देना चाहिए जैसे– छूने का, सुनने का । प्रमस्तिष्कीय पाल्सी वाले बालकों के सम्बन्ध में प्रेरक का माता– पिता को सुझाव है–

“If your child is working on mouth closure, lip use or breathing exercise in his speech training you can offer much help to the speech therapist thus speed up rehabilitation.”

(5) अधिगम की प्रेरणा– सीखने के लिए प्रेरणा अति आवश्यक है। यह बात विशिष्ट बालकों पर भी लागू होती है । मानव– इतिहास में अनेक ऐसी कहानियाँ हैं जिनसे यह पता चलता है कि अक्षम व्यक्ति भी उचित प्रेरणा द्वारा महान कार्य कर.सकता है। अधिगम की प्रेरणा के लिए आवश्यक है कि–

(i) घर में सुरक्षा की भावना होनी चाहिए।

(ii) माता– पिता को बालकों की सम्भावनाओं पर विश्वास करना चाहिए।

(iii) माता को बालकों को उत्साहित करना चाहिए तथा उनके कार्यों की प्रशंसा करनी चाहिए।

(iv) माता– पिता के पास बालकों की ओर ध्यान देने के लिए काफी समय होना चाहिए अधिगम को प्रेरणात्मक बनाना एक समस्या अध्यापकों द्वारा अनुभव की जाती है। माता– पिता इसे एक जटिल समस्या मान सकते हैं। अक्सर यह भी देखा गया है कि बालकों के मन की इच्छा विद्यालय जाने पर समाप्त हो जाती है। विशिष्ट बालकों के माता– पिता को यह पता होना चाहिए कि कैसे बालकों को हर समय प्रेरित रखना चाहिए । इस सम्बन्ध में उन्हें अध्यापकों से सहायता लेनी चाहिए । सम्मेलन द्वारा भी इस सम्बन्ध में सहायता ली जा सकती है।

(6) पूर्ण संवेगात्मक विकास– माता– पिता में बालकों के पूर्ण संवेगात्मक विकास की क्षमता होनी चाहिए। संवेगात्मक विकास से तात्पर्य है कि किसी भी असफलता का बालक पर गहरा प्रभाव न पड़े। इसके लिए अनुशासन होना आवश्यक है। उनमें सुरक्षा की भावना, स्वतंत्रता, आत्म– सम्मान का विकास करना चाहिए। कभी– कभी विशिष्ट बालक संवेगात्मक समस्याओं से घिरे रहते हैं। ये समस्याएं माता– पिता की स्वयं की समस्याओं के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इनका कारण माता– पिता का बालकों के प्रति व्यवहार भी हो सकता है । ऐसी दशा में स्कूलों को सर्वप्रथम माता– पिता की समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए तथा उन्हें बालकों के संवेगात्मक विकास से परिचित कराकर इस विषय में शिक्षित करना चाहिए। सम्मेलनों तथा सुझाव द्वारा भी उनकी सहायता की जा सकती है । मनोवैज्ञानिक से भी सहायता लेनी चाहिए ।

(7) सामाजिक विकास– विशिष्ट बालकों के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आय– वर्ग के बालकों के साथ अधिक से अधिक सम्बन्ध रखे। माता– पिता को यह सिखाना चहिए | कि वे कैसे अपने बच्चों को सिखायें कि अन्य बालकों से मधुर सम्बन्ध कैसे स्थापित किए जाते हैं। माता– पिता को अन्य बालकों को अपने घर पर खेलने के लिए बुलाना चाहिए। उन्हें खेलने में होने वाले छोटे– छोटे झगड़ों से दूर रखना चाहिए । बालकों को यह बताना चाहिए कि मेजबान के रूप में कैसे अपनी भूमिका निभायी जा सकती है। सामाजिक विकास विशिष्ट बालकों के भविष्य की सामंजस्य के लिए अनिवार्य है। इस विकास में माता– पिता ही अधिक सहायक हो सकते हैं स्कूल का कर्तव्य है कि इसके लिए वे माता– पिता को हर प्रकार से सहायता करें।

(8) बुद्धि का विकास– यद्यपि बुद्धि जन्मजात होती है तथापि माता– पिता इस क्षेत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं । वे बालकों में कुछ योग्यताओं, क्षमताओं, आदतों का विकास कर सकते हैं । जन्मजात गुणों के विकास के लिए वातावरण प्रदान कर सकते हैं। विशिष्ट बालकों की अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को तार्किक ढंग से कैसे सुलझाया जा सकता है, इसका ज्ञान माता– पिता दे सकते हैं । इस प्रकार समस्याओं को सुलझाने से बुद्धि का विकास भी होगा।

विशिष्ट बालकों के लिए व्यावसायिक निर्देशन

विशिष्ट बालकों के माता– पिता को यह ज्ञात होना चाहिए कि व्यावसायिक निर्देशन क्या है और इसे प्रदान करने में वे विद्यालयों की क्या सहायता कर सकते हैं। वे स्कूल को व्यावसायिक निर्देशन हेतु अपने बालकों के विशिष्ट गुणों से अवगत करा सकते हैं। विद्यालय का भी कर्तव्य है कि वह समय– समय पर माता– पिता से परामर्श लेता रहे और उन्हें सलाह देता रहे । इसके लिए विद्यालयों को (1) शैक्षिक, (2) व्यावसायिक परामर्शदाता की स्थायी व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही प्रतिभाशाली से लेकर अक्षम बालकों के लिए अलग से व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम दे–

(1) प्रतिभाशाली बालकों के लिए तकनीकी इंजीनियरिंग चिकित्सा आदि क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाये।

(2) शारीरिक रूप से अक्षम बालकों के लिए हाथ से करने वाले कार्य, बैठकर करने वाले कार्य जैसे तकनीकी, बिजली के कार्य या कोई शिल्प आदि का प्रशिक्षण ।

(3) अंधे व बहरे– गूंगे बच्चों के लिए किसी शिल्पकला, मूर्तिकला, वस्तुकला, मोमबत्ती की कलाओं, संगीत या नृत्यकला का प्रशिक्षण दिया जाये जिससे वे भविष्य में उत्तम व्यावसायिक प्रयास सफल कर सकें।

(4) इसके अतिरिक्त मानसिक रूप से अक्षम मंदबुद्धि व धीमे सीखने वाले बच्चों के लिए इलेक्ट्रॉनिक सर्किट व वायर के कार्य या छोटे– छोटे तकनीकी कार्य सिखाये जायें, धीरे– धीरे ये बालक सीखे गये कार्य में सक्षम हो जाते हैं और भविष्य में यही इनके जीविकोपार्जन का साधन बनते हैं।

(5) इसके अतिरिक्त कुसमायोजित, संवेदनशील, पिछड़े सांस्कृतिक रूप से पिछड़े बालकों के लिए इनकी रुचि व तकनीकी शिक्षा के आधार पर पाठ्यक्रम पढ़ाया जाये जिससे वे किसी भी तकनीकी या कलात्मक कौशल में दक्ष होकर अपना जीविकोपार्जन कर सकें।

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