विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किन शिक्षण प्रविधियों का उपयोग प्रभावशाली होगा?

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शिक्षण प्रविधियाँ शिक्षण की प्रक्रिया में आवश्यक कड़ी के रूप में प्रयुक्त होती है। अध्यापक अपनी शिक्षण विधि के आधार पर शिक्षण का एक व्यापक स्वरूप निश्चित कर लेता है किन्तु शिक्षण उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसे अनेक शिक्षण प्रविधियों को अविलम्ब ग्रहण करना पड़ता है। वास्तव में शिक्षण प्रविधियाँ ऐसे साधन हैं जिनका प्रयोग शिक्षण करते समय छात्रों को पाठ में रुचि लेने, पाठ–सामग्री को नष्ट करने तथा उसे छात्रों को हृदयंगम कराने के लिए किया जाता है। शिक्षण प्रविधियों का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि शिक्षण रोचक प्रभावशाली तथा सफल बन जाये।

विभिन्न विशिष्ट बालकों की शिक्षा के लिए शिक्षण की विभिन्न प्रविधियाँ निम्नांकित है –

1. मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– मानसिक रूप से पिछडे बालकों की तरफ शिक्षक का विशेष ध्यान होना चाहिए। ऐसे बच्चों का उपचार मानसिक चिकित्सा से किया जाना चाहिए । सुधार विद्यालयों का होना भी लाभदायक है । ऐसे बच्चों को उतनी शिक्षा दी जाए जितना करने में वे समर्थ हों। इस प्रकार के बालकों के लिए निर्मित शैक्षिक कार्यक्रमों के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए–

(i) व्यक्तिगत एवं संवेगात्मक समायोजन

(ii) सामाजिक समायोजन

(iii) आर्थिक समायोजन

इन बालों की शिक्षण–विधियाँ इस प्रकार होनी चाहिए कि उपर्युक्त तीनों लक्ष्यों की पति हो सके। ऐसे बच्चों को प्रशिक्षित अध्यापकों के माध्यम से शिक्षित करना चाहिए।

शिक्षण विधियों में वैयक्तिक शिक्षण विधि ऐसे बालकों के लिए उपयोगी होती है। खेल विधि जो एक रचनात्मक प्रवृत्ति की द्योतक है, उनकी शिक्षा के लिये उपयुक्त मानी जाती है । इसके द्वारा उन्हें स्वतंत्रता, स्वाभाविकता तथा सुख आदि का अनुभव होता है और वे आसानी से सीख जाते हैं। किसी भी विषय की शिक्षा देने समय उसका खेल से सम्बन्ध स्थापित कर देना चाहिए। बुनियादी शिक्षा की सह सम्बन्ध विधि भी इनकी शिक्षा के लिए उपयोगी होती है |

2. प्रतिभावान बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ – प्रतिभावान बालक अपनी विलक्षण बुद्धि तथा क्षमताओं के कारण सामान्य परिस्थितियों में समायोजित नहीं हो पाते हैं। इन बालकों को बुद्धिलब्धि 120 से 140 के मध्य मानी गई है। इन वालकों की शिक्षण विधियाँ सामान्य बालकों से अलग होगी।

प्रतिभावान बालकों को अवसरों की समानता, तीव्र प्रोन्नति तथा उनके सर्वांगीण विकास पर बल देना चाहिए। उनकी सृजनात्मक शक्ति का उचित प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसे बालकों के लिए वैयक्तिक विधि से शिक्षा दी जानी चाहिए । इसमें शिक्षक विशेष हस्तक्षेप नहीं करता और निरीक्षण मात्र करता है। बालक को एक निश्चित अवधि में कोई कार्य करने को दे दिया जाता है और शिक्षक उसकी प्रगति का ध्यान रखते हुए उनको नये–नये कार्य देता रहता है । शिक्षा की यह विधि प्रतिभावान बालकों के लिये अधिक उत्तम सिद्ध हुई है।

प्रतिभावान बालकों के लिए समूह चर्चा तथा खोज विधि उपयोगी शिक्षण विधियाँ हैं। क्योंकि ये बालक अपनी बुद्धि व तर्क का अधिक प्रयोग करके सीखना चाहते हैं। समस्या समाधान विधि भी विशेष लाभकारी है।

3. पिछड़े बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– कुछ बालक मानसिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं। ऐसे बालकों को विशेष प्रकार से शिक्षा देने की आवश्यकता होती है । इन बालकों की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि ये बालक सामान्य बालकों से बहुत पीछे रह जाते हैं। साथ ही अध्यापक के निर्देशन को समझ नहीं पाते। पिछड़े बालकों की शिक्षा के लिए विशेष स्कूलों या विशेष कक्षाओं की व्यवस्था से भी नियन्त्रण पाया जा सकता है ।

ऐसे बच्चों के लिये विशेष शिक्षण विधि होनी चाहिए। जिसमें पढ़ाने की गति धीमी हो, पाठ को बार–बार दुहराया जाये। अध्ययन का कार्यक्रम अधिक बड़ा न हो । शारीरिक क्रियाओं पर बल दिया जाये।

पिछड़े बालकों के लिए निरीक्षित अध्ययन प्रविधि का प्रयोग विशेष लाभदायक है । यह विधि वैयक्तिक विभिन्नता तथा क्रियाशीलता के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस प्रविधि के अन्तर्गत छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए प्रत्येक विद्यार्थी को अपना–अपना अध्ययन करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं तथा शिक्षक एक मित्र, सहायक एवं पथ–प्रदर्शक के रूप में उनके कार्यों का निरीक्षण करके उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करता है | इस प्रविधि में विद्यार्थी तथा शिक्षक दोनों ही क्रियाशील रहते हैं।

इस योजना में समय–समय पर सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं तथा छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को परस्पर विचार–विमर्श द्वारा दूर किया जाता है। साथ विशिष्ट शिक्षक छात्रों की कठिनाइयों, त्रुटियों तथा भ्रान्त धारणाओं को दूर करते हैं। वैयक्तिक विधि का ऐसे बच्चों के लिए विशेष महत्त्व है।

4. सुविधा वंचित बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– सुविधा वंचित बालकों को वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं जो उसे मिलनी चाहिए जबकि वे सुविधाएं उसके अन्य साथियों से मिल रही होती हैं । ये सुविधाएं उसे अपने परिवार में स्वयं की कमियों तथा सामाजिक दृष्टि से नहीं मिल पातीं। इन सुविधाओं के अभाव में वह शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं। उनकी पढ़ने में रुचि नहीं रहती। साथ उनकी विचारपूर्ण गतिविधियों में भाग लेने की इच्छा नहीं होती। ऐसे बच्चों के लिए पाठ्यक्रम अलग व विविधता लिए हुए होना चाहिए। सुविधा वंचित बालकों की आवश्यकताओं तथा उनकी असुविधाओं का पता लगाकर उनकी शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसे बच्चों की अनुदेशन सामग्री ऐसी हो जिसे छात्र स्वयं पढ़कर समझ सकें और उसका लाभ उठा सकें । जैसे अभिक्रमित अनुदेशन, इसमें छात्र स्वयं अध्ययन के द्वारा सीखता है । छात्रों को व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार सीखने का अवसर प्राप्त होता है। छात्र सर्वदा .’ तत्पर रहते हैं। छात्र अपनी अनुक्रिया की स्वयं जाँच कर लेते हैं तथा सही अनुक्रिया की स्वयं जाँच कर लेते हैं तथा सही अनुक्रिया से उन्हें पुनर्बलन मिलता है | अभिक्रमित सामग्री के प्रत्येक पद विषयवस्तु में छोटे–छोटे अंश के रूप में रखे जाते हैं। ऐसे बच्चों पर कोई बात थोपी नहीं जाये और गृहकार्य भी उनकी क्षमताओं तथा योग्यताओं को ध्यान में रखकर दिया जाये। कहानी . कथन प्रविधि में ऐसे बच्चों के लिए विशेष लाभकारी हो सकती है।

5. समस्यात्मक बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– समस्यात्मक बालक घर, विद्यालय तथा समाज में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करते हैं। उसका व्यवहार कुछ इस प्रकार का हो जाता है कि जिसे असामान्य कहते हैं । उनके व्यवहार सम्बन्धी असामान्यताओं में चोरी करना, झूठ बोलना, गृहकार्य न करना, स्कूल से भाग जाना, कक्षा में देर से आना । कक्षा में अनुशासनहीनता पैदा करना आदि।

समस्यात्मक बालकों की शिक्षण प्रविधि शिक्षण प्रविधि शिक्षक का प्रेम, सहानुभूति, मित्रता का व्यवहार ही है। शिक्षक उन्हें झूठ बोलने, चोरी करने आदि कार्यों के नुकसान के बारे में बता सकता है तथा बालक से उसका अपराध स्वीकार करवा कर उससे फिर कभी गलत कार्य न करने की प्रतिज्ञा करवानी चाहिए। शिक्षक को सत्य बोलने वाले, चोरी न करने वाले तथा कक्षा में सही समय पर आने वाले बालक की प्रशंसा करनी चाहिए।

समस्यात्मक बालकों के शिक्षण में उदाहरण प्रविधि का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है। निर्देशन सामग्री की सहायता से पाठ्य सामग्री को रोचक, बोधगम्य तथा स्पष्ट किया जाता है । उदाहरण शाब्दिक तथा प्रदर्शनात्मक होते हैं । शाब्दिक उदाहरणों के अन्तर्गत दष्टान्त कहानी. लोकोक्ति, नीति–श्लोक, उपमा, रूपक तथा उत्प्रेक्षा आदि को सम्मिलित किया जाता है।

प्रदर्शनात्मक उदाहरणों के अन्तर्गत प्रतिरूप चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, चार्ट,ग्राफ आदि उपकरणों को सम्मिलित किया जाता है।

ऐसे बच्चों के लिए सेल द्वारा शिक्षा भी विशेष महत्त्व रखती है। खेल द्वारा शिक्षा रूचिपूर्ण सीखने की विधि होती है । इस विधि के प्रयोग से बालक प्रत्येक कार्य को स्वेच्छा से रुचिपूर्वक करते हैं। यह विधि क्रिया प्रधान विधि है। इसमें क्रिया को प्रधानता मिलती है तथा शिक्षक का कथन गौण होता है। साथ ही इस विधि में स्वानुभव द्वारा सीखने के अवसर मिलते हैं।

6. बाल अपराधी बालक एवं शिक्षण–प्रविधियाँ– ऐसा बालक जो व्यवहार में सामाजिक मापदण्ड से विचलित हो जाता है या भटक जाता है, बाल–अपराधी कहलाता है । बाल अपराध वास्तव में निर्धारित मूल्यों एवं मान्यताओं के विरुद्ध व्यवहार है जिसे बालक छोटी आयु में ही प्रदर्शित कर देते हैं।

बाल–अपराध की रोकथाम के लिए घर, विद्यालय तथा समाज के वातावरण में सुधार करना आवश्यक है। इनका स्वच्छ वातावरण बालक के संवेगात्मक विकास को स्थिर करेगा, जो बाल अपराध की रोकथाम के लिए आवश्यक है।

बाल अपराधी की शिक्षा के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण विधि मनोविश्लेषण विधि है । इस विधि में मनोविश्लेषक द्वारा अपराधी बालक के अचेतन मन का विश्लेषण किया जाता है । इसके अध्ययन से उसके दमित संवेगों तथा इच्छाओं का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसके पश्चात् यह इनका विश्लेषण करके बालक द्वारा अपराध किये जाने के कारणों को जानने का प्रयास करता है। इस विधि की सफलता बालक के सहयोग पर निर्भर रहती है।

एक अन्य विधि खेल द्वारा चिकित्सा है। बालक को अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति को अभिव्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता है। अतः इस प्रवृत्ति का दमन हो जाता है जो अवसर मिलने पर विनाशकारी कार्यों के रूप में प्रकट होती है । खेल द्वारा चिकित्सा में बालक को अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति के अनुसार कोई भी वस्तु बनाने का अवसर दिया जाता है। इससे बालक की रचनात्मक प्रवृत्ति सन्तुष्ट हो जाती है और उसके मन का विकार दूर हो जाता है।

7. अधिगम निर्योग्यता बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– अधिगम निर्योग्यता की शिक्षा प्रविधियों में प्रमुख हैं–

(i) व्यावहारिक निर्देशन विधि

(ii) संज्ञानात्मक व्यवहार विधि

(iii) कम्प्यूटर निर्देशन विधि

8. शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालक/विकलांग बालक और शिक्षण प्रविधियाँ – शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालकों को अधिगम और समायोजन की विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अत: उनके लिए विशेष शिक्षण प्रविधियों को अपनाना पड़ता है । ऐसे बालकों का वर्णन प्रविधि से किसी घटना, दृश्य एवं नियम का विस्तारपूर्वक वर्णन करना चाहिए। इस प्रकार वर्णन में विषय का सांगोपांग विवेचन एवं प्रस्तुतिकरण किया जाता है । यदि वर्णन में उतार–चढ़ाव, शब्दों का प्रयोग, वाक्यों का गठन, सरल भाषा का प्रयोग किया जाये तो ऐसे बालक अपने शारीरिक दोषों को भूलकर अध्ययन में रुचि लेंगे । वर्णन से छात्रों की क्रियाशीलता जाग्रत होती है । वर्णन में विषय–वस्तु बालक के सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवेश से सम्बन्धित होनी चाहिए।

ऐसे बालकों को विशेष व्यवसायों का प्रशिक्षण भी मिलना चाहिए ताकि वे दूसरों पर बोझ न बन सकें। इसके लिए उनके शारीरिक दोषों का ध्यान रखना चाहिए । उनके लिए कृत्रिम अंगों की व्यवस्था होनी चाहिए।

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