विशेष आवश्यकता वाले बालकों की शिक्षा हेतु अधिगमकर्ता आधारित कौनसी प्रविधियाँ उपयोग की जानी चाहिए? वर्णन करें।

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शिक्षण प्रविधियाँ शिक्षण की प्रक्रिया में आवश्यक कड़ी के रूप में प्रयुक्त होती हैं। अध्यापक अपनी शिक्षण विधि के आधार पर शिक्षण का एक व्यापक स्वरूप निश्चित कर लेता है किन्तु शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उसे अनेक शिक्षण प्रविधियों को ग्रहण करना पड़ता है, शिक्षण प्रविधियाँ वे साधन हैं जिनका प्रयोग शिक्षण करते समय छात्रों को पाठ में रुचि लेने, पाठ्य सामग्री स्पष्ट करने उसे छात्रों को आत्मसात कराने के लिए किया जाता है। शिक्षण को रोचक प्रभावशाली व सफल बनाने हेतु शिक्षण प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है।

(1) शारीरिक दृष्टि से ग्रसित विकलांग बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालकों को अधिगम व समायोजन की विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण उनके शिक्षण हेतु विशेष शिक्षण विधियों को अपनाना पड़ता है इन बालकों को वर्णन प्रविधि में किसी घटना, दृश्य या नियम का विस्तारपूर्वक वर्णन करना चाहिये । प्रस्तुतीकरण को प्रभावपूर्ण बनाने के लिये वर्णन में उतार– चढ़ाव, शब्दों का प्रयोग, वाक्यों का गठन, सरल भाषा का प्रयोग किया जाये तो यह बालक अपने शारीरिक दोषों को भूल कर अध्ययन में रुचि लेंगे। छात्रों में क्रियाशीलता जाग्रत होगी। वर्णन में विषय वस्तु बालक के सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवेश से संबंधित होनी चाहिये।

(i) ऐसे बालकों को विशेष व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे स्वयं रोजगार कर सकें व आत्मनिर्भर हो सकें । इनके कृत्रिम अंगों की व्यवस्था उनके शारीरिक दोषों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिये।

(ii) दृष्टि बाधित बालकों को सामान्य शिक्षण पद्धति से नहीं पढ़ाया जा सकता है इनके लिए शिक्षा की विशेष विधियों का प्रयोग किया जाता है।

(iii) श्रवण बाधित बालकों को विशेष विद्यालयों में भेजना चाहिये, इन विद्यालयों में विशेष प्रविधियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है।

(iv) हकलाने वाले बालकों में शल्य क्रिया द्वारा दोषों को या विभिन्न प्रयासों द्वारा दूर किया जाता है।

(2) मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक एवं शिक्षण विधियाँ– मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की तरफ शिक्षक का विशेष ध्यान होना चाहिये। इन बालकों को उतनी ही शिक्षा दी जा सकती है जितना सीखने में समर्थ हो । इनके लिये निम्न उद्देश्यों के साथ शैक्षिक कार्यक्रम निर्धारित किये जाने चाहिये–

(i) व्यक्तिगत एवं संवेगात्मक समायोजन

(ii) सामाजिक समायोजन

(iii) आर्थिक समायोजन

इन बालकों की शिक्षण विधियाँ इस प्रकार की होनी चाहिये कि उपर्युक्त तीनों लक्ष्यों की पूर्ति हो सके। इनके लिए प्रशिक्षित अध्यापकों के माध्यम से शिक्षित किया जाना आवश्यक है । निम्न शिक्षण विधियों की सहायता से प्रभावशाली रूप में शिक्षण दिया जा सकता है:

(i) वैयक्तिक शिक्षण विधि

(ii) खेल विधि

(iii) सह– सम्बन्ध विधि

इन शिक्षण विधियों की सहायता से ये बालक स्वतन्त्रता, स्वाभाविकता तथा सुख का अनुभव करते हैं व आसानी से सीख जाते हैं। हर विषय का शिक्षण करते समय उसे खेल से जोड़ना चाहिये।

(3) प्रतिभावान बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– प्रतिभावान बालक अपनी विलक्षण बुद्धि तथा क्षमताओं के कारण सामान्य परिस्थितियों में समायोजित नहीं हो पाते हैं। इन बालकों की बुद्धिलब्धि 120 से 140 के मध्य मानी गयी है। इनकी शिक्षण विधियाँ सामान्य बालकों की शिक्षण विधियों से अलग होती हैं । इन बालकों को अवसरों की समानता, जीव प्रोन्नति तथा सर्वांगीण विकास पर बल देना चाहिये उनकी सृजनात्मक शक्ति का उचित प्रयोग किया जाना चाहिये । वैयक्तिक विधि से इनके बालकों को शिक्षा दी जानी चाहिये। शिक्षक को चाहिये कि उसकी प्रगति के लिए नये– नये कार्य देता रहे । निम्न विधियाँ इनके लिये ज्यादा उपयुक्त हैं–

(i) समूह चर्चा

(ii) खोज विधि

(iii) समस्या समाधान विधि

(4) पिछड़े बालक एवं शिक्षण विधियाँ– कुछ बालक मानसिक दृष्टि से पिछड़े हुये होते हैं ऐसे बालकों को विशेष प्रकार की शिक्षा देने की आवश्यकता होती है। चूँकि यह पढ़ाई व अन्य कार्यों में सामान्य बालकों से पीछे रह जाते हैं इन बालकों को पढ़ाने की गति धीमी हो व पाठ को बार– बार दोहराया जाये तो इन्हें सीखने में सहायता मिल सकती है। निरीक्षण अध्ययन प्रविधि का प्रयोग पिछड़े बालकों के लिये लाभदायक है। इस प्रविधि में छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान रखते हुए प्रत्येक विद्यार्थी को अपना– अपना अध्ययन करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं तथा शिक्षक एक मित्र, सहायक, पथ– प्रदर्शक के रूप में उनके कार्यों का निरीक्षण करके उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करता है। इस प्रविधि में शिक्षक व विद्यार्थी दोनों ही क्रियाशील रहते हैं। वैयक्तिक विधि द्वारा ऐसे बच्चों की कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है।

(5) सुविधा वंचित बालक एवं शिक्षण विधियाँ– सुविधा वंचित बालक को वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं जो सुविधायें उनके अन्य साथियों को मिल रही होती हैं। ये सुविधायें उन्हें अपनी कमी के कारण, परिवार के कारण या सामाजिक कुरीतियों के कारण नहीं मिल पाती हैं जिससे वह शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं। सुविधावंचित बालकों की आवश्यकता तथा. असुविधाओं का पता लगा कर उनकी शिक्षा व्यवस्था की जानी चाहिये । ऐसे बच्चों की अनुदेशन सामग्री ऐसी हो जिसे छात्र स्वयं पढ़ कर समझ कर लाभ उठा सकें छात्र अपनी अनुक्रिया की जाँच स्वयं कर लेते हैं तथा सही अनुक्रिया से उन्हें पुनर्बलन मिलता है । इस सामग्री के प्रत्येक पद विषयवस्तु में छोटे– छोटे अंश के रूप में रखे जाते हैं। कहानी कथन विधि ऐसे विद्यार्थियों के लिये लाभकारी है।

(6) समस्यात्मक बालक एवं शिक्षण विधियाँ– समस्यात्मक बालक घर, विद्यालय, समाज में विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न करते हैं उनके व्यवहार में झूठ बोलना, चोरी करना, गृह कार्य न करना, स्कूल से भाग जाना, कक्षा में देर से आना अनुशासनहीनता आदि। इन बालकों को प्रेम, सहानुभूति मित्रता का व्यवहार किया जाना चाहिए। इनके शिक्षण में उदाहरण प्रविधि का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है । निर्देशन सामग्री की सहायता से पाठ्य सामग्री को रोचक, बोधगम्य व स्पष्ट किया जाता है। शाब्दिक व प्रदर्शनात्मक उदाहरण का उपयोग प्रभावकारी होता है। शाब्दिक उदाहरणों के अन्तर्गत दृष्टान्त, कहानी, लोकोक्ति, नीति– श्लोक, उपमा, रूपक तथा उत्प्रेक्षा आदि को सम्मिलित किया जाता है। इसके अलावा मॉडल, चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, चार्ट,ग्राफ आदि उपकरणों को भी सम्मिलित किया जाता है। निम्न विधियों का उपयोग प्रभावशाली रूप से किया जा सकता है–

(ii) खेल द्वारा शिक्षा, (ii) रुचिपूर्ण सीखने की विधि, (iii) क्रिया प्रधान विधि, (iv) उदाहरण विधि ।

(7) बाल अपराधी बालक व शिक्षण प्रविधियाँ– ऐसा बालक जो व्यवहार में सामाजिक मापदण्ड से विचलित हो जाता है या भटक जाता है बाल अपराधी कहलाता है। वास्तव में बाल अपराध निर्धारित मूल्यों एवं मान्यताओं के विरुद्ध व्यवहार है जिसे बालक छोटी आयु में ही प्रदर्शित कर देते हैं। बाल– अपराध की रोकथाम के लिये घर, विद्यालय, समाज के वातावरण में सुधार करना आवश्यक है। स्वच्छ वातावरण बालक के संवेगात्मक विकास को स्थिर करेगा जो बालक को अपराध की ओर जाने से रोकने में मदद करेगा निम्न विधियों का प्रयोग शिक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण होगा–

(i) मनोविश्लेषण विधि, (ii) खेल द्वारा चिकित्सा।

मनोविश्लेषण विधि द्वारा अपराधी बालक के अचेतन मन का विश्लेषण किया जाता है। इसके अध्ययन से उसके दमित संवेगों व इच्छाओं का ज्ञान प्राप्त किया जाता है । खेल द्वारा बालक को अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति को अभिव्यक्त करने का मौका मिलता है । उसके मन का विकार दूर हो जाता है।

(8) अधिगम निर्योग्यता बालक एवं शिक्षण प्रविधियाँ– अधिगम निर्योग्य बालक के लिये निम्न शिक्षा प्रविधियाँ प्रमुख हैं–

(i) व्यावहारिक निर्देशन विधि

(ii) संज्ञानात्मक व्यवहार विधि

(iii) कम्प्यूटर निर्देशन विधि

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