विशेष बालकों हेतु बोधात्मक रणनीति तथा प्रणाली उपागम की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

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विशेष बालकों में ज्ञानेन्द्रिय संबंधी क्षमताएं कम होती हैं। आंख, कान, नाक, मुँह, त्वचा, मस्तिष्क आदि मानव की ज्ञानेन्द्रियाँ हैं जिनकी सहायता से ज्ञान अर्जित होता है । सुनकर देखकर, छूकर हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। विशेष बालकों या निःशक्त बालकों में ज्ञानेन्द्रिय की क्षमता की कमी के कारण बोधात्मक क्षमता कम होती है अतः ऐसे बालकों को शिक्षण देते समय शिक्षक को उनकी बोध क्षमता के अनुसार शिक्षण की रणनीतियाँ तैयार करनी चाहिए। बोधात्मक

रणनीति में निम्नलिखित बातें सम्मिलित होती हैं-

(1) विशेष बालकों की देखने, सुनने, स्पर्श करने, सोचने, अनुभव करने, स्मरण रखने, विश्लेषण करने, अमूर्त बातों को समझने की योग्यता की व्यक्तिशः पहचान,

(2) शिक्षण विधि, शिक्षण सूत्र, शिक्षण कौशल आदि का युद्ध कौशल में अपनाई जाने वाली विविध रणनीतियों के अनुरूप शिक्षण में प्रयोग,

(3) ज्ञानेन्द्रिय क्षमता के अनुरूप दृश्य-श्रव्य सामग्री का उपयोग,

(4) आकलन या बोध के मापन हेतु प्रश्नोत्तर विधि, अभ्यास कार्य, गृह कार्य आदि का इस्तेमाल।

प्रणाली उपागम के अंतर्गत विशेष बालकों की ज्ञानेन्द्रिय क्षमताओं के अनुरूप दृश्य श्रव्य साधनों का प्रयोग, अधुनातन शिक्षोपकरण ओवरहेड प्रोजेक्टर, डिजिटल स्मार्ट रूम,कम्प्यूटर, वीडियो, फिल्म, दूरदर्शन, इंटरनेट आदि का पाठ्य विषय तथा छात्रों की बोध क्षमता के अनुरूप प्रयोग करना है । प्रणाली उपागम को परिभाषित करते हुए अनविन ने लिखा है.”प्रणाली विभिन्न अंगों का वह योग है जो स्वतंत्र और सामूहिक रूप से कार्य करते हुए अपनी आवश्यकताओं पर आधारित वांछित परिणामों को प्राप्त कर सके।”

विशेष बालकों की क्षमताओं तथा शिक्षण के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को शिक्षण की जटिल समस्याओं का निराकरण प्रणाली आगम से करना चाहिए तथा मूल्यांकन द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई इसका पता लगाना चाहिए।

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