विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों की शिक्षा हेतु नीतियाँ, योजनाओं तथा विधानों (कानूनों) पर प्रकाश डालिए।

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विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों में मुख्यतः ये दो प्रकार के विशिष्ट बालक आते हैं–

(1) प्रतिभाशाली सृजनशील बालक तथा (2) बाधित व वंचित बालक । बाधित या वंचित बालकों में मंद बुद्धि बालक, धीमी गति से सीखने वाले बालक, श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित,वाणि बाधित तथा अस्थि बाधित बालक आते हैं। इन बालकों की क्षमताओं, विशेषताओं, कमियों आदि की पहचान कर इनके लिए शिक्षा की व्यवस्था आवश्यकतानुसार विशेष विद्यालयों या समावेशी विद्यालयों में की जाती है। परन्तु यह जागृति बीसवीं व इक्कीसवीं शताब्दी की देन है। इसके पूर्व बाधित बालक घर परिवार तथा समाज द्वारा उपेक्षित किये जाते हैं तथा उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं के बराबर थी। बाधित व वंचित बालकों को चिढ़ाया जाता था उनका मजाक बनाया जाता था तथा उन्हें दूसरों की दया पर या भिक्षा माँगकर जीवनयापन के लिए विवश कर दिया जाता था। मानवतावादी दृष्टिकोण के विकास तथा वैश्विक जागृति से ऐसे बालकों की शिक्षा तथा उनके विकास के प्रयास प्रारंभ हुए। भारतीय संविधान में किसी से भी भेदभाव न करने,समानता का व्यवहार करने,दुर्बल,दलित व बाधित वर्ग के लिए भी अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किये जाने के बाद केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने उपेक्षित वर्ग के बालकों के लिए शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराने के प्रयास आरंभ किये। इन्हीं प्रयासों के कारण कुछ नीतियाँ, योजनाएं तथा विधान (अधिनियम) निर्मित किए हैं। नीचे इन पर प्रकाश डाला जा रहा है–

(1) विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों की शिक्षा हेतु नीतियाँ– राज्य द्वारा बनाई गई नीतियाँ प्रस्तावित कार्य योजना होती हैं। विशेष बालकों की शिक्षा से संबंधित ये दो प्रमुख राष्ट्रीय (राष्ट्रव्यापी) नीतियाँ हैं–

(अ) राष्ट्रीय अक्षमता नीति 2006 तथा

(ब) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 व कार्य योजना 1986 ।

(अ) राष्ट्रीय अक्षमता नीति 2006 – इस नीति में अधिगम अक्षमता से युक्त बालकों की शिक्षा पर विचार कर उन्हें शिक्षा व समाज की मुख्य धारा से जोड़ने हेतु निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण नीति या प्रस्तावित की गई–

(i) अक्षम बालकों हेतु अनिवार्य वाल शिक्षा,

(ii) शाला जाना त्याग चुके अक्षम बालकों के लिए अनौपचारिक शिक्षा व प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र,

(iii) सर्वशिक्षा अभियान में अक्षम बालकों के लिए वैकल्पिक विद्यालय, समावेशी विद्यालयों में रैंप निर्माण, उपकरणों का निःशुल्क वितरण, प्रत्येक 1 किलोमीटर पर प्राथमिक शिक्षा,

(iv) अक्षमता युक्त बालकों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षित करने हेतु समावेशी विद्यालयों हेतु वित्तीय सहायता, पाठ्य पुस्तक, स्टेशनरी की निःशुल्क व्यवस्था, आवासीय छात्रावासी सुविधा, प्रशिक्षित शिक्षकों की व्यवस्था, संसाधन विकास आदि ।

(v) सभी बालकों का शत प्रतिशत नामांकन,

(vi) गैर सरकारी संगठनों को विशेष बालकों की शिक्षा हेतु सहायता व प्रोत्साहन,

(vii) आश्रम बालकों की क्षमताओं अनुसार व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था,

(viii) सर्वेक्षण कार्य अक्षमता वाले बालकों की संख्या का पता लगाकर कल्याणकारी योजना का लाभ देने हेतु।

(ब) राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं कार्य योजना 1986–

(i) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में यह दृढ़ता के साथ प्रस्तावित किया गया कि यथासंभव शारीरिक रूप से बाधित तथा अन्य सामान्य बालकों को एक साथ शिक्षा दी जानी चाहिए। केवल जिला मुख्यालयों में गंभीर रूप से बाधितों की शिक्षा हेतु विशिष्ट शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश दिया जाए।

(ii) बाधितों हेतु शैक्षिक कार्यक्रमों में संख्यात्मक अंतराल को पाटने तथा गुणात्मक पहलू में सुधार लाने की आवश्यकता है । अधिकांश संस्थाएं स्वैच्छिक संगठनों द्वारा चलाई जाती हैं जिनमें कुछ बहुत अच्छी हैं परन्तु अनेक संस्थाओं में प्रशिक्षित स्टाफ, पर्याप्त स्थान तथा आवश्यक उपस्कर व सामग्री नहीं हैं। इनमें से कुछ संस्थाएं शैक्षिक संस्थाओं की बजाय आश्रम गृहों जैसी हैं इनमें सुधार अपेक्षित हैं ।

(iii) नीति में यह माना है कि बीस लाख विकलांग बच्चों की विशिष्ट स्कूलों में शिक्षा देने की आवश्यकता होगी तथा इनके लिए 150 से 200 बालक प्रति स्कूल के मान से 10,000 विशेष स्कूल आवश्यक होंगे। क्योंकि विशेष स्कूलों में शिक्षा व्यय साध्य है अत: यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इन स्कूलों में उन्हीं बालकों को प्रवेश दिया जाये जिनकी जरूरतें सामान्य स्कूलों में पूरी नहीं की जा सकतीं। जैसे ही विशेष स्कूलों में नामांकित अपंग बालक सम्प्रेषण दक्षताएं तथा अध्ययन दक्षताएं प्राप्त कर लेंगे,उन्हें सामान्य स्कूलों के बच्चों के साथ मिला दिया जाएगा।

(iv) समावेशी शालाओं हेतु विशाल शिक्षण प्रशिक्षण कार्यरूप आयोजित किया जाए।

(v) बाधित बालकों हेतु विभिन्न व्यवसायों में क्षमता अनुसार व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था हो।

(vi) मनोवैज्ञानिक शैक्षिक अनुसंधान केन्द्रों द्वारा बाधितों हेतु निदान उपकरण विकसित हों।

(vii) विशेष विद्यालय मिले– जुले हों किन्तु जब बाधिता से ग्रस्त बालकों की संख्या 60– 70 हो जाए तो विशिष्ट विकलांग वर्ग हेतु पृथक विशिष्ट विद्यालय खोला जाए।

(viii) बाधित छात्र व छात्राओं हेतु पृथक– पृथक छात्रावास बालकों हेतु 40 सीट क्षमता व बालिकाओं हेतु 20 सीट क्षमता के हो । इनमें आवास तथा खाने की व्यवस्था हो ।

(ix) वांछित छात्रों के मूल्यांकन प्रणाली में लचीलापन हो। विद्यालयों को मूल्यांकन संदर्शिकाएं एवं उपकरण उपलब्ध कराए जाएं ।

(x) भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण में बाधितों की शिक्षा में अनुसंधान कार्य राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद एवं विश्वविद्यालयों द्वारा प्रारंभ किए जाएं।

(2) विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों की शिक्षा हेतु योजनाएं/कार्यक्रम – सामान्य विकलांग व्यक्तियों के लिए सरकार द्वारा प्रतिमाह पेंशन 125/– रु. प्रतिमाह दी जाती है । उन्हें कृत्रिम अंग या उपकरण क्रय करने हेतु सहायता सुलभ है । स्वरोजगार अंतर्गत विकलांग उद्यमी को 20,000/– रु. राशि जिसमें अनदान व ऋण सम्मिलित हैं दकान हेत दी जाती है। विकलांग लड़के या लड़की से विवाह करने वाले सामान्य व्यक्ति को पुरस्कार स्वरूप राशि दी जाती है।

शिक्षा हेतु विद्यार्थियों को निःशुल्क शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध है । उनकी अक्षमता के अनुसार उन्हें समेकित विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ शिक्षा का अवसर सुलभ है । जो अधिक मात्रा में या पूर्णतः विकलांग है उनके लिए शिक्षा हेतु शासन द्वारा विशेष विद्यालय स्थापित हैं। उनके लिए विशेष कक्षा की व्यवस्था है।

विकलांगों के कल्याण हेतु निर्मित निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 के प्रावधान धारा 27 से 31 के अंतर्गत शिक्षा हेतु निम्न योजनाओं व कार्यक्रमों का निर्देशन है–

धारा 26– प्रत्येक निःशुल्क बालक को 18 वर्ष की आयु तक उचित वातावरण में निःशुल्क शिक्षा, निःशक्त छात्रों हेतु निःशुल्क व्यावसायिक प्रशिक्षण ।

धारा 27– शाला त्यागी बालकों की शिक्षा पूरी करने हेतु अंशकालीन कक्षाओं की व्यवस्था, 16 वर्ष व उससे अधिक आयु समूह के बालकों हेतु क्रियात्मक साक्षरता को विशेष अंशकालीन शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, क्रियात्मक इलेक्ट्रॉनिक या अन्य संचार साधनों के माध्यम से कक्षाओं व परिचर्चाओं का संचालन, विशेष पुस्तकों व उपस्करों का निःशुल्क प्रदाय ।

धारा 28– निःशक्त बालकों की शिक्षा से संबंधित सहायक मंत्रों व विशेष शिक्षण सामग्री की डिजाइन आदि के विकास हेतु अनुसंधान को प्रोत्साहन ।

धारा 29– शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना तथा निःशक्तता में विशेषज्ञता वाले कार्यक्रमों के विकास के लिए स्वैच्छिक संगठनों को सहायता।

धारा 30– निःशक्त छात्रों हेतु परिवहन सुविधाएं या उनके अभिभावकों को वित्तीय प्रोत्साहन, व्यावसायिक और वृत्तिक प्रशिक्षण देने वाले विद्यालयों, महाविद्यालयों या अन्य संस्थाओं में वास्तुविद्या संबंधी बाधाओं को हटाना, विद्यालय जाने वाले निःशक्त बालकों के लिए पुस्तकों, कर्मियों और अन्य सामग्री का प्रदाय, निःशक्त छात्रों को छात्रवृत्ति, उनके पुनर्वास बाबत उनके माता– पिता की शिकायतों को दूर करने हेतु समुचित मंच उपलब्ध कराना, दृष्टिहीन विद्यार्थियों और कम दृष्टि वाले बालकों के लाभ हेतु पूर्णतः गणित संबंधी प्रश्नों को हटाने के लिए परीक्षा पद्धति में परिवर्तन करना, निःशक्त बालकों हेतु पाठ्यक्रम की पुनर्रचना।

धारा 31 – सभी शिक्षा संख्याएं नेत्रहीन विद्यार्थी के लिए लेखक के रूप में सुनकर लिखने वाले एक अन्य व्यक्ति की व्यवस्था।

उक्त अधिनियम के प्रावधानों के अतिरिक्त सरकार द्वारा निःशक्त छात्रों के लिए बालक– बालिकाओं हेतु पृथक– पृथक छात्रावास स्थापित किए जाते हैं जहाँ भोजन, शयन सामग्री, भोजन सामग्री, प्रात:कालीन कलेवा उपलब्ध होता है। पढ़ने योग्य टेबल कुर्सी, पर्याप्त रोशनी, सफाई, स्नानागार व शौचालय तथा रसोइया, चौकीदार आदि की नियुक्ति रहती है । शालाओं में मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के अंतर्गत स्वल्पाहार उपलब्ध कराया जाता है। प्रतिभावान विशेष बालक हेतु मेधावी छात्रवृत्ति का प्रावधान है। विकलांगों हेतु स्थापित विद्यालय में निदेशन व परामर्शदाता की निःशुल्क सेवाएं भी छात्रों को प्राप्त होती हैं। दृष्टि बाधित छात्रों हेतु चश्मा, श्रवण बाधित हेतु श्रवण यंत्र, चलने में असमर्थ बालक हेतु बैसाखी तथा ट्रायसिकल, व्हील चेयर आदि उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं। विद्यालय के पुस्तकालय में ब्रेल लिपि में पुस्तकें,खेल सामग्री, आधुनिक शिक्षोपकरण भी विद्यालय में निःशक्त छात्रों की शिक्षा के हितार्थ उपलब्ध होते है |

विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं वाले बालकों की शिक्षा हेतु विधान (कानून) – सरकारों द्वारा विधान इसलिये बनाए जाते हैं ताकि जिन उद्देश्यों के लिए वे बनाए गए हैं उनका सफल क्रियान्वयन हो। जो विधान संसद या विधानसभाओं द्वारा बनाए जाते हैं वे राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षरित होने पर अधिनियम (एक्ट) बन जाते हैं। अधिनियमों में प्रावधानों के कार्यान्वयन की वैधानिक बाध्यता होती है तथा उनका उल्लंघन सक्षम न्यायालय द्वारा दंडनीय हो जाता है। सरकारें अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन के विस्तारं व्याख्या तथा प्रक्रिया हेतु नियम बनाती है जिनका कानूनी दर्जा अधिनियम से निम्न होता है । विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों को शिक्षा हेतु केन्द्र शासन/राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए उल्लेखनीय विधान इस प्रकार हैं– (1) निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, (2) निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का नियम 2010, (3) निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 (मप्र.हेतु), (4) निःशक्तजन (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995, (5) बाल अधिनियम । नीचे इन पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है–

(1) नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 – यह 7 से 14 वर्ष की आयु के सभी बालकों (बेशक इसमें निःशक्तजन भी आते हैं) को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा देने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा दिनांक 1– 4– 2010 से (जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर) संपूर्ण भारत में प्रभावशील है। इसका पालन सभी शासकीय तथा अनुदान प्राप्त गैर सरकारी विद्यालयों हेतु आवश्यक है । इसके अंतर्गत किसी बालक से किसी भी प्रकार की फीस या शुल्क वर्जित है तथा बालक को प्रवेश देने से इंकार नहीं किया जा सकता। इस अधिनियम की धारा 10 में प्रत्येक माता– पिता या संरक्षक का कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वे अपने बालक या प्रतिपाल्यों का प्रवेश कराएं । अधिनियम की धारा 17 के अधीन किसी बालक को शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीड़न निषिद्ध है । इस अधिनियम की धारा 24 में शिक्षकों के कर्त्तव्य भी निर्धारित हैं । इस अधिनियम में बाधा रहित पहुँच का निर्माण शाला भवन में आवश्यक है जो निःशक्त बालकों हेतु जरूरी है।

(2) नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार नियम 2010– यह नियम अधिनियम 2009 के परिचालन हेतु केन्द्र शासन द्वारा बनाए गए हैं। इसकी नियम 7(ब) के अनुसार विद्यालय की प्रबंध समिति की जिम्मेदारी होगी कि वे निःशक्तताग्रस्त बालकों की पहचान और नामांकन तथा उनकी शिक्षा की सुविधाओं को मॉनिटर करें तथा प्राथमिक शिक्षा में उनके भाग लेने और उसे पूरा करने को सुनिश्चित करें। नियम 7 (– – ) के अनुसार प्रबंध समिति की जिम्मेदारी विद्यालयों में दोपहर के भोजन (MDM) के कार्यान्वयन को मॉनीटर करने की है।

नियम 7 (भाग 4) के नियम 1 के अनुसार सरकार या स्थानीय प्राधिकारी का कर्तव्य और उत्तरदायित्व है. कि वह कक्षा 1 से 5 के बालकों के संबंध में विद्यालय आसपास की 1 किलोमीटर की पैदल दूरी के भीतर स्थापित करे तथा कक्षा 6 से 8 के बालकों के संबंध में 3 कि.मी. की पैदल दूरी के भीतर स्थापित करे। यह प्रावधान निःशक्त छात्रों हेतु भी उपयुक्त है। नियम 7(4) में यह भी व्यवस्था है कि समुचित सरकार या प्राधिकारी यह पता लगाए कि ऐसे लघु पुरखों (हेमलेट्स) के बालकों के लिए यदि निर्धारित दूरी के भीतर कोई विद्यालय नहीं है तो वह निःशुल्क परिवहन और आवासीय सुविधाओं की व्यवस्था करे। नियम 6(7) के अनुसार ऐसी निःशक्तता से ग्रस्त बालकों के संबंध में, जो उन्हें विद्यालय में पहुँचने से रोकती है प्राधिकारी उन्हें विद्यालय में उपस्थित होने और प्रारंभिक शिक्षा पूरा करने में समर्थ बनाने के लिए समुचित और सुरक्षित परिवहन व्यवस्थाएं करने का प्रयास करेगा। नियम 9(4) के अनुसार किसी कमजोर वर्ग के किसी बालक और अलाभप्रद समूह के बालक को कक्षा में, दोपहर के भोजन के दौरान, खेल के मैदानों में, सामान्य पेयजल और प्रसाधन सुविधाओं के उपयोग में तथा शौचालयों या कक्षाओं की सफाई में अलग न रखने और भेदभाव न करने का उल्लेख है। निःशक्त बालकों से सामाजिक भेदभाव न हो इस हेतु यह प्रावधान शिक्षा प्राप्त कर रहे बालकों हेतु महत्त्वपूर्ण है । नियम 11 में भी यह प्रावधान है कि ऐसे बालकों को अन्य बालकों से कक्षा से पथक न किया जाए तथा उनकी कक्षाएं अन्य बालकों के लिए आयोजित कक्षाओं से भिन्न स्थानों और समयों पर न आयोजित की जाएं। नियम 11(3) में उन्हें पाठ्यपुस्तकों, वर्दियों, पुस्तकालय और सूचना, संसूचुना और प्रौद्योगिकी की सुविधाओं, अतिरिक्त पाठ्यचर्या और खेलकूद जैसी हक़दारियों और सुविधाओं के संबंध में किसी भी रीति से शेष बालकों से विभेद न करने के निर्देश हैं।

(3) मध्यप्रदेश का नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम 2011 – मध्यप्रदेश राज्य का शिक्षा के अधिकार का नियम दिनांक 27– 3– 2011 से संपूर्ण मप्र. में लागू है। इसके विकलांगों की शिक्षा से संबंधित प्रावधान 4(7) में लेख हैं कि बालक जिसका निःशक्तता के कारण स्कूल पहुँचना बाधित होता है के संबंध में राज्य सरकार/स्थानीय प्राधिकारी उनके लिए समुचित तथा सुरक्षित परिवहन व्यवस्था का प्रयास करेगी जिससे वे स्कूल में उपस्थित हो सकें तथा प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर सके। 4(8) के अनुसार इन बालकों का स्कूल में पहुंचना सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारणों से बाधित न हो यह भी सुनिश्चित किया जाएगा। नियम 7 में निःशक्त बालकों से कक्षा में भेदभाव का निषेध है। नियम 28 में राज्य सलाहकार परिषद के गठन में विशेष आवश्यकता वाले बालकों की शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान एवं व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति में से कम से कम एक सदस्य की नियुक्ति का प्रावधान है।

(4) नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण तथा पूर्ण भागीदारी) – अधिनियम 1995 की धारा 26 से 31 में दिये गये प्रावधानों के अनुसार 18 वर्ष की उम्र तक प्रत्येक नि:शक्त छात्र को निःशुल्क और समुचित शिक्षा की व्यवस्था है। अध्ययन बीच में छोड़ देने वाले विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों को अनौपचारिक शिक्षा तथा अंशकालीन शिक्षा की व्यवस्था इस अधिनियम में है। इन बालकों को अवरोध रहित समुचित शिक्षा प्रदान करने की दृष्टि से उन्हें विशेष पुस्तकों एवं उपकरणों आदि को मुफ्त दिये जाने की व्यवस्था है।

(5) बाल अधिनियम – राज्य सरकारों ने अपनी परिस्थितियों के अनुसार बाल अधिनियम बनाए हैं इनमें विकलांग, मंदित बालक, उपेक्षित बालकों के विशेष वर्गों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण तथा पुनर्वास की दृष्टि से अनेक प्रावधान किये हैं। विभिन्न राज्यों के बाल अधिनियम नैतिक दृष्टि से तो समान हैं परन्तु उनमें एक राज्य से दूसरे राज्य में कुछ भिन्नताएं दृष्टिगोचर होती है।

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