विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों के आकलन तथा पहचान हेतु मूल्यांकन के संप्रत्यय तथा प्रविधियों (टेक्निक्स) का वर्णन कीजिए।

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आकलन या मूल्यांकन समावेशी शिक्षा की प्रक्रिया का अभिन्न भाग है। विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों की पहचान करने तथा उन्हें दिये गये शिक्षण से कितना वे समझे हैं इन दोनों के लिए उनके मूल्यांकन या आकलन की आवश्यकता पड़ती है। आकलन में मापन भी सम्मिलित है । विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों की क्षमताएं (शारीरिक व मानसिक) ज्ञात करने के लिए पहले हम मापन करते हैं फिर मूल्यांकन द्वारा बालक के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों (डायमेंसंस) का पता कर व्यवहारगत परिवर्तन करते हैं । ये आयाम शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक, सामाजिक तथा नैतिक क्षेत्रों से संबंधित हो सकते हैं। विशिष्ट बालक या विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालक भी इन्हीं शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक व सामाजिक दृष्टि से सामान्य बालक से भिन्न होते हैं। वे किस दृष्टि से कितना भिन्न हैं इसकी पहचान मूल्यांकन की प्रविधियों (टेक्नीक्स) के प्रयोग द्वारा संभव है ।

मूल्यांकन शब्द मूल्य और अंकन इन दो अंकों की संधि से बना है । इस प्रकार मूल्य को आंकना मूल्यांकन कहलाता है। शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन एक तकनीकी शब्द है। इसमें न केवल छात्र की विषयगत उपलब्धि का आकलन किया जाता है बल्कि उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का आकलन भी किया जाता है ।

विभिन्न शिक्षाविदों द्वारा दी गई मूल्यांकन की परिभाषाएं मूल्यांकन के संप्रत्यय (कान्सेप्ट) को समझने में सहायक है– वारगर्सन व एडम्स के अनुसार, मूल्यांकन का अर्थ है किसी वस्तु या प्रक्रिया का मूल्य निश्चित करना। इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन से तात्पर्य है–शिक्षण प्रक्रिया तथा सीखने की प्रक्रियाओं से उत्पन्न अनुभवों की उपयोगिता के विषय में निर्णय देना।”

स्विलिन व हुन्ना– “छात्रों के व्यवहार में शिक्षालय द्वारा किए गए परिवर्तनों के विषय में प्रमाणों को एकत्रित करना एवं उनकी व्याख्या करना ही मूल्यांकन है।”

जेडब्ल्यू. राइटस्टोन के अनुसार– मूल्यांकन सापेक्षिक रूप से नवीन प्राविधिक पद है जिसका प्रयोग मापन की धारणा को परम्परागत जाँचों एवं परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक व्यापक रूप में व्यक्त करने के लिए किया जाता है। मूल्यांकन में व्यक्तित्व संबंधी परिवर्तन एवं शैक्षिक कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों पर बल दिया जाता है । इसमें केवल पाठ्यपुस्तक की निष्पत्ति ही नहीं, वरन् वृत्तियों, रुचियों, आदर्शों,सोचने के ढंग,कार्य करने की आदतों तथा वैयक्तिक एवं सामाजिक अनुकूलन भी निहित है।”

के.पी. पांडे– “मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक, शिक्षार्थी तथा शिक्षा के अन्य सभी पक्षों की पारस्परिक निर्भरता तथा उनकी उपयोगिता की जाँच होती है । इसके अंतर्गत विद्यार्थी की उपलब्धि के आधार पर केवल विद्यार्थी की ही जाँच नहीं होती बल्कि शिक्षण, शिक्षण पद्धति, पाठ्य पुस्तक तथा अन्य शैक्षणिक साधनों की उपयोगिता की जाँच भी होती है। इस मूल्यांकन प्रक्रिया में इन सभी का पारस्परिक योगदान मालूम किया जाता है और शिक्षण क्रिया को शिक्षार्थी की दृष्टि से और अधिक महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी बनाने की कोशिश की जाती है |

विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं वाले बालकों के आकलन व पहचान हेतु मूल्यांकन में निम्नलिखित पक्षों का समावेश रहता है–

(1) शारीरिक स्वास्थ्य– विशेष बालकों की शारीरिक क्षमताओं का आकलन निरीक्षण या अवलोकन विधि, साक्षात्कार विधि, प्रश्नावली विधि, जाँच सूची, क्रियात्मक परीक्षा विधि, अभियोग्यता (एप्टीट्यूड) प्रविधि व उपकरणों द्वारा किया जाता है । क्या बालक स्वयं उठ बैठ या चल सकता है? क्या उसके हाथ उंगलियाँ सही काम करते हैं ? उसे देखने व सुनने में कितनी कठिनाई है ? उसे वाणि (ध्वनि) संबंधी क्या परेशानी है, यह सब शारीरिक स्वास्थ्य पक्ष की जाँच से स्पष्ट होता है । (शारीरिक स्वास्थ्य या शारीरिक अंग कितने प्रतिशत स्वस्थ हैं यह चिकित्सक जाँच से स्पष्ट होता है।)

(2) बुद्धि– मंदबुद्धि बालकों की पहचान हेतु बुद्धि परीक्षण का प्रयोग कर बुद्धिलब्धि ज्ञात की जाती है।

(3) ज्ञान– विशेष छात्र ने विषयों का कितना ज्ञान अर्जित किया इसकी जाँच निष्पत्ति या उपलब्धि परीक्षण से की जाती है।

(4) व्यक्तित्व– विशेष छात्र के संवेगात्मक बोध की जाँच उसके व्यक्तित्व परीक्षण प्रविधि से होती है।

(5) रुचि– बालक की रुचि परीक्षण द्वारा रुचियाँ ज्ञात की जाती हैं।

(6) कुशलता– कुशलताओं का परीक्षण अभियोग्यता परीक्षण द्वारा किया जाता है ।

(7) अवबोध– इससे यह ज्ञात किया जाता है कि छात्र सीखी हुई सामग्री की कितने प्रकार से व्याख्या करने में समर्थ हैं।

(8) वैयक्तिक विभिन्नताएं – विशिष्ट बालकों में अन्य सामान्य बालकों की अपेक्षा कौनसी शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक विभिन्नताएं हैं इसका पता निरीक्षण, साक्षात्कार, जाँच सूची आदि प्रविधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

मूल्यांकन/आकलन की प्रविधियाँ (टेक्नीक्स) – मूल्यांकन प्रविधि से तात्पर्य उस रीति से है जिसके द्वारा शिक्षक छात्र के ज्ञान और व्यवहार में हुए परिवर्तनों और छात्र की व्यक्तिगत विशेषताओं का मूल्यांकन करता है। बालक के समस्त व्यावहारिक परिवर्तनों का किसी एक प्रविधि के द्वारा मूल्यांकन संभव नहीं है अलग–अलग अनेक प्रविधियों के द्वारा बालक के अलग–अलग पक्षों का मूल्यांकन होता है ।

मूल्यांकन हेतु जो भी प्रविधि अपनाई जाए उसमें निम्नलिखित तत्त्वों का समावेश होना आवश्यक है–

(1) स्पष्टता– मूल्यांकन की प्रविधि स्पष्ट होनी चाहिए। वह अपने उद्देश्य को पूर्ण करने वाली होनी चाहिए। उस प्रविधि की समुचित व्याख्या संभव होनी चाहिए। उसमें भी व अर्थ समझने की कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए।

(2) वस्तुनिष्ठता– मूल्यांकन प्रविधि वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए। उसमें अंक देने में पक्षपात व भावनाओं का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। व्यक्तिनिष्ठ न होकर प्रविधि को वस्तुनिष्ठ होना चाहिए ताकि सही मापन संभव हो ।

(3) वैधता (वैलिडिटी) – जिसके लिए प्रविधि का निर्माण किया गया है वह प्रविधि उसका सही मापन करती हो तो उसे वैध कहा जाएगा।

(4) विश्वसनीयता (रिलायबिलिटी) – यदि किसी प्रविधि को बार–बार प्रयुक्त किया जाए तो बार–बार समान प्राप्तांक प्राप्त होने चाहिए तभी वह प्रविधि विश्वसनीय कही जाएगी।

(5) मानकीकरण (स्टैण्डर्डाइजेशन) – मानकीकृत प्रविधियाँ वे होती हैं जिन्हें मानकों के आधार पर बनाया तथा उसका बार–बार परीक्षण कर उसे शुद्ध परिणाम देने वाला बनाया गया हो । आधुनिक विशेषज्ञों, अनुसंधानकर्ताओं द्वारा निर्मित प्रविधियाँ मानकीकृत होती हैं।

प्रमुख मूल्यांकन/आकलन की प्रविधियाँ– मूल्यांकन की प्रविधियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है–अमानकीकृत प्रविधियाँ तथा मानकीकृत प्रविधियाँ। इनमें निम्नलिखित प्रविधियाँ आती हैं–

मूल्यांकन की प्रविधियाँ

 (अ) अमानकीकृत प्रविधियाँ(ब) मानकीकृत प्रविधियाँ
1. निरीक्षण/अवलोकन प्रविधि1. बुद्धि मापन प्रविधि
2. साक्षात्कार प्रविधि2. निष्पत्ति परीक्षण प्रविधि
3. प्रश्नावली प्रविधि3. रुचिमापन प्रविधि
4. जाँचसूची प्रविधि4. व्यक्तित्व मापन प्रविधि
5. मापनी (रेटिंग स्केल) प्रविधि5. अभियोग्यता (एप्टीट्यूड) प्रविधि
6. अभिलेख प्रविधि6. अभिवृत्ति (एप्टीट्यूड) प्रविधि
7. परीक्षा प्रविधि 
8. व्यक्ति अध्ययन (केस स्टडी) प्रविधि 
9. समाजमिति (सोशियोमेट्रिक) प्रविधि 

 

अमानकीकृत प्रविधियाँ प्रायः शिक्षा के प्रारंभिक स्तरों पर प्रयुक्त होती है तथा मानकीकृत प्रविधियाँ अधिक गहन अध्ययन, अनुसंधान और प्रायः उच्च शिक्षा स्तर पर प्रयुक्त होती है। नीचे इन प्रविधियों के द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बालकों के आकलन में किए प्रकार सहायता मिलती है इसका वर्णन किया जा रहा है–

(अ) अमानकीकृत प्रविधियाँ

(1) अवलोकन/निरीक्षण प्रविधि– विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं वाले बालकों का शिक्षकों द्वारा निरंतर पूर्वाग्रह रहित अवलोकन किया जाना चाहिए। इससे निःशक्त बालकों की शारीरिक व मानसिक गतिविधियों उनके विशेष लक्षणों का पता चलता है । अवलोकन कक्षा में तथा कक्षा के बाहर शाला में किया जाना चाहिए । पृथक–पृथक निःशक्त बालकों की गतिविधियों का अलग अभिलेख तैयार किया जाना चाहिए यह निरीक्षण इन बालकों की सामाजिक व संवेगात्मक स्थिति ज्ञात करने के लिए भी किया जाना चाहिए। कक्षा शिक्षण में प्रश्नों के उत्तर पूछते हुए, गृह कार्य व कक्षा कार्य चेक करते हुए, पाठ का वाचन कराते समय सभी विषयों के ज्ञान व अवबोध का पता लगाने हेतु अवलोकन व निरीक्षण अत्यन्त सरल किन्तु अधिक प्रभावी प्रविधि है।

(2) साक्षात्कार प्रविधि– शिक्षक, शाला प्रशासक, स्रोत शिक्षक इस प्रविधि में छात्र से पूर्व निर्धारित प्रश्न पूछकर इसके अन्तर्मन, मस्तिष्क का अध्ययन करते हैं। साक्षात्कार सहानुभूतिपूर्ण तथा सहयोगात्मक रूप में होना चाहिए। साक्षात्कार को टेप रिकॉर्डर द्वारा या अभिलिखित कर रखा जाना चाहिए। साक्षात्कार से निःशक्त वालकों की रुचि,मनोवृत्ति, दृष्टिकोण व मानसिकता को समझने में सहायता मिलती है । इस मूल्यांकन प्रविधि में व्यक्तिशः निःशक्त. वालक को आमने–सामने विठाकर उसकी समस्याओं को समझने में सहायता मिलती है। बालक की रुचि, दृष्टिकोण का ज्ञान तथा वह विद्यालय/शाला में क्या अपेक्षा करता है इसका पता चलता है। साक्षात्कार से प्राप्त जानकारी का उपयोग शिक्षण आदि में किया जा सकता है।

(3) प्रश्नावली प्रविधि– प्रश्नों की वह क्रमिक श्रृंखला जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिए की जाती है प्रश्नावली कहलाती है। यह प्रायः छपी होती है तथा इसमें वस्तुनिष्ठ व संक्षिप्त उत्तर वाले उपयोगी प्रश्न रखे जाते हैं। यदि निःशक्त छात्र विशेष का मनोसंवेगात्मक अध्ययन करना हो तो ऐसे मनोसंवेगों से युक्त जानकारी देने वाले प्रश्न रखे जाते है । छात्र को प्राय: निशान  या (x) लगाकर प्रश्नों का उत्तर देना होता है ताकि अधिक समय न लगे। प्रश्नावली का संक्षिप्त होना उसका गुण माना जाता है ।

(4) जाँचसूची प्रविधि– ब्राइट स्टोन ने जाँचसूची के संबंध में लिखा है, “जाँच सूची, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है, कुछ चुने हुए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों अथवा अनुच्छेदों की एक सूची होती है जिसके समक्ष निरीक्षक (, ×) इस प्रकार के चिन्ह अंकित कर देता है जो निरीक्षण की जानकारी का सूचक होता है।” निःशक्त छात्र के ज्ञान, कौशल,रुचि, अभिवृत्ति तथा उसके व्यक्तित्व के अन्य सामाजिक,संवेगात्मक,शारीरिक, मानसिक आदि पक्षों की जानकारी जंक्स सूची से ज्ञात होती है। एक साथ अनेक निःशक्त बालकों को बैठाकर भी उनसे जाँच सूचियाँ भराई जा सकती हैं। अंत में छात्र का नाम व हस्ताक्षर मय दिनांक के करा लेना चाहिए। ऐसी जाँच सूची का बालक के व्यक्तिगत पोस्टर में उपयोग रहित सुरक्षित रख देना चाहिए।

(5) मापनी (रेटिंग स्केल) प्रविधि – इसे निर्धारण मापनी भी कहते हैं यह जाँच सूची के समान होती है परन्तु इसमें उत्तरदाता किसी तथ्य के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया मूल्य या क्रम के रूप में देता है। निर्धारण मापनी पाँच से नौ बिन्दुओं तक की हो सकती है तथा उत्तरदाता को किसी एक बिन्दु पर सही का निशान लगाना होता है । उदाहरण के लिए श्रवण बाधित बालक हेतु मापनी आप कितना सुन पाते हैं–

(1) बिल्कुल नहीं, (2) बहुत कम, (3) सामान्य, (4) पूर्णत: (5) कभी–कभी ही पूर्णतः।

(6) अभिलेख प्रविधि– शालाओं में छात्रों की योग्यताओं, प्रगतियों, उपलब्धियों, विभिन्न परीक्षा में प्राप्तांकों, विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के परिणामों,उसकी शारीरिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक,बौद्धिक, संवेगात्मक सभी बातों को संचित अभिलेख पत्र (जिसे प्रगति रिपोर्ट भी कहते हैं) में रखा जाता है । विभिन्न व्याधियों,कमियों,मनोविकारों,शारीरिक विकारों से ग्रस्त विशेष आवश्यकता वाले कक्षा में पढ़ने वाले विभिन्न छात्रों की यह जानकारी शिक्षक द्वारा अभिलेख के रूप में बालक के पोर्टफोलियो में रखा जाता है ताकि इन जानकारी का उपयोग किया जा सके।

(7) परीक्षा प्रविधि– इसके अंतर्गत शिक्षकों द्वारा छात्रों की विभिन्न प्रकार की लिखित, मौखिक तथा प्रायोगिक (प्रेक्टिकल) परीक्षाओं के प्राप्तांकों का लेखा जोखा रखा जाता है जिसे बालक की कक्षोन्नति हेतु उपयोग में लाया जाता है । कक्षा दर कक्षा इसका नवीनीकरण होता रहता है। विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों की उपलब्धियों–विषयगत ज्ञान, अवबोध, कौशल आदि की जानकारी इस प्रविधि द्वारा सुलभ हो जाती है।

(8) व्यक्ति अध्ययन (केस स्टडी) प्रविधि– किसी समस्या बालक, स्कल से भागने वाले या अपराधी बालक या नशाखोरी करने वाले विशिष्ट बालक के घरेलू पास–पड़ोस.संबंधियों पूर्व इतिहास (बीमारी.दुर्घटनाएं) आदि के अध्ययन की इस विधि में उसकी समस्याओं को समझने में सहायता मिलती है। साथ ही उसे सुधारने हेतु समस्या के कारणों तक पहुँचने में सहायता मिलती है।

(9) समाजमिति प्रविधि– समाजमिति (सोशियोमेटी) प्रविधि के द्वारा निःशक्त बालकों के समाजीकरण को ज्ञात किया जाता है। बालक के अन्य से तथा अन्य के बालक के सामाजिक संबंधों को ज्ञात कर उसमें अपेक्षित सुधार लाया जा सकता है । एण्ड्यू तथा विली ने समाजमिति की परिभाषा देते हुए लिखा है, “समाजमिति एक रेखाचित्र है जिसमें कुछ चिन्ह और अंग किसी सामाजिक समूह के सदस्यों द्वारा सामाजिक स्वीकृति या अस्वीकृति का ढंग प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। इस प्रविधि से कक्षा के बालकों के साथ विशेष बालक के संबंध में तथा विशेष बालक के अन्य बालकों के बाद में इन बातों को ज्ञात कर सकते हैं–

(1) तटस्थता, (2) नेतृत्व गुण, (3) गुटबंदी, (4) तिरस्कृत।

(ब) मानकीकृत प्रविधियाँ

अध्यापक अपने छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों का सामान्य रूप से माप करने के लिए जो प्रविधियाँ प्रयुक्त करता व निर्मित करता है वे प्राय: अमानकीकृत होती हैं। इन प्रविधियों से वैध व विश्वसनीय परिणाम प्राप्त नहीं होते। जब विशेषज्ञ समूह के अनेक बालकों/व्यक्तियों पर उपकरण का बार–बार प्रयोग कर उसमें वैधता व विश्वसनीयता लाते हैं तो मानकीकृत उपकरण या प्रविधियाँ तैयार होती हैं। गुड ने मानकीकृत परीक्षणों की परिभाषा इस प्रकार दी है, “एक प्रमाणीकृत परीक्षण वह है जिसके लिए विषयवस्तु का चयन एवं जाँच प्रयोगसिद्ध आधार पर की गई हो, जिसके मानक (नॉर्स) स्थापित किये जा चुके हों, जिसके प्रशासन तथा फलांकन (स्कोरिंग) की समरूप विधियों का विकास किया जा चुका हो तथा जिसका फलांकन उच्च स्तरीय वस्तुनिष्ठता के साथ किया जा सके।” नॉल के अनुसार, “एक प्रमापीकृत परीक्षण वह है जिसका निर्माण मान्य उद्देश्यों तथा प्रविधियों के संदर्भ में सावधानीपूर्वक विशेषज्ञों ने किया है, जिसके प्रशासन, फलांकन तथा विवेचन की प्रविधि विस्तारपूर्वक उल्लिखित हो, जिससे परीक्षार्थी के परिणाम तुलनीय हों तथा जिसमें विभिन्न आयु वर्गों तथा स्तरों के लिए मानक पूर्व निर्धारित हों।

नीचे विशेष आवश्यकता वाले बालकों के आकलन हेतु उपयोगी मानकीकृत परीक्षण या प्रविधियों को स्पष्ट किया गया है–

(1) बुद्धि परीक्षण प्रविधि – इस प्रविधि द्वारा बालक की बुद्धिलब्धि कितनी है इसका पता लगाया जाता है । बुद्धिलब्धि बुद्धि का मापन है। डॉ. कामथ ने भारतीय परिस्थितियों के अन्तर्गत निम्नलिखित बुद्धिलब्धि वाले छात्रों का वर्ग/श्रेणी निर्धारित की है– 140 बुद्धिलब्धि से ऊपर प्रतिभाशाली, 130 से 139.5 वु.ल. के असामान्य, 120 से 129.5 अत्यन्त उच्च तथा 110 से 119.5 उच्च बुद्धि वाले, 90 से 109.5 सामान्य बुद्धि,80 से 99.5 पिछड़े,70 से 79.5 अत्यन्त पिछड़े, 60 से 69.5 सीमा पर, 50 से 59.5 मूर्ख,40 से 39.5 मंदबुद्धि, 30 से नीचे जड़ बुद्धि। बुद्धिलब्धि ज्ञात करने के लिए मानसिक आयु में वास्तविक आयु से भाग देकर 100 से गुणा किया जाता है।

मंदबुद्धि बालक या प्रतिभाशाली विशेष बालक का पता उनकी बुद्धिलब्धि ज्ञात कर किया जाता है।

(2) निष्पत्ति या उपलब्धि परीक्षण प्रविधि– अध्ययनरत छात्रों की विषय संबंधी अर्जित ज्ञान के परीक्षण उस विषय–विशेष द्वारा बनाए गए प्रमाणित या मानकीकृत उपलब्धि परीक्षण से संभव है। हाक्स, लिंडस्विस्ट तथा मान के अनुसार, “एक सामान्य निष्पत्ति परीक्षण वह है जो

निष्पत्ति या उपलब्धि के क्षेत्र विशेष में छात्र को सापेक्ष निष्पत्ति को एक फलांक (स्कोर) के द्वारा अभिव्यक्त करता है। भाषा, अंकगणित, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों के विभिन्न कक्षा-स्तर के निष्पत्ति परीक्षण से उस कक्षा के बालक की विषयगत निष्पत्ति ज्ञात होती है । निःशक्त छात्रों को भी विषयगत उपलब्धि के अंक इस प्रविधि से ज्ञात कर सकते हैं । कक्षोन्नति में अथवा अन्य छात्रों से तुलना में प्राप्तांकों के आधार पर राय कायम की जाती है।

(3) रुचि मापन विधि- बिंघम ने रुचि की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “रूचि (इंटरेस्ट) किसी अनुभव में लिप्त हो जाने तथा उसे चालू रखने की प्रवृत्ति है। संगीत, वादन, गायन,कविता लेखक आदि रुचियाँ हैं। किसी बालक की रुचि पढ़ने के स्थान पर व्यवसाय करने की होती है । रुचियाँ बालक के व्यक्तित्व निर्माण तथा भविष्य में रुचि के क्षेत्र में आजीविका का संकेत देती है। रुचि मापन प्रविधि में निःशक्त बालक की रुचि जानकर उसके अनुसार वैकल्पिक विषय चयन अथवा व्यावसायिक शिक्षा में व्यवसाय या कार्यानुभव या शिल्प के क्षेत्र को चुनने में सहायता मिलती है।“

(4) व्यक्तित्व मापन प्रविधि- मन के अनुसार, “व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे बड़ा संगठन है। वुडवर्थ के अनुसार, व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार के समस्त गुणों को कहते हैं ।” निःशक्त बालकों की शारीरिक संरचना, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिकता समायोजन शक्ति का पता उनपर व्यक्तित्व मापन प्रविधि का उपयोग कर किया जाता है । बालक अन्तर्मुखी स्वभाव का है या बहिर्मुखी,बालक समायोजित व्यक्तित्व का है या कुसमायोजित, बालक के व्यक्तित्व में कौनसे गुण हैं इनका पता व्यक्तित्व मापन प्रविधियों से होता है। प्रक्षेपण विधि, व्यक्तित्व सूची विधि, शब्द साहचर्य विधि, समाजमिति विधि, साक्षात्कार आदि व्यक्तित्व मापन की विभिन्न विधियाँ हैं।

(5) अभियोग्यता मापन प्रविधि- अभियोग्यता या अभिरुचि (एप्टीट्यूड) से बालक की क्षमता या योग्यता का पता चलता है। कुछ बालक एक प्रकार के काम सीखने की क्षमता रखते हैं तथा अन्य बालक दूसरे प्रकार के कार्य सीखने की क्षमता रखते हैं। यही अभियोग्यता है। ग्रीनलीफ के अनुसार, “अभियोग्यता कुछ विशिष्ट कार्य कर सकने की आपकी स्वाभाविक योग्यता है।” बिंघम के शब्दों में,”अभिरुचि वह वर्तमान दशा है जिसका संबंध भविष्य से होता है। यह ठस दमा या लक्षणों का समुच्चय है जिसे संभाव्यताओं की ओर संकेत करने वाला चिन्ह माना जाता है ।” कोई निःशक्त छात्र मशीनों का प्रयोग करने में योग्य है या नहीं किसी बालक को कोनसा व्यवसाय करना अनुकूल होगा, यह सब अभियोग्यता परीक्षण के मापन से संभव है । स्किनर के अनुसार विशिष्ट योग्यताओं की संभावित मात्रा मापने का प्रयल करते हैं ।

(6) अभिवृत्ति (एटीट्यूड) मापन प्रविधि – थर्स्टन ने अभिवृत्ति के संबंध में लिखा है कि ये किसी विशेष विपय के प्रति व्यक्ति की प्रवृत्तियों, पूर्वाग्रहों, पूर्व निर्धारित विचारों एवं आतंकों का योग है। अभिवृद्धियाँ स्थायी भावों (सेंटिमेंट्स), भावना ग्रंथियों तथा भावनात्मक साधनों का मिला-जुला रूप है | अभिवृत्तियाँ सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार की हो सकती है | घणा नकारात्मक अभिवृत्ति है, सहानुभूति सकारात्मक। अभिवृत्ति बालक के व्यवहार को निर्धारित करती है। निःशक्त बालकों की तथा उनके अभिभावकों की शिक्षा अर्जित करने के प्रति क्या दृष्टिकोण है इसका मापन अभिवृत्ति मापन प्रविधि से होता है । शिक्षकों या सामान्य बालकों की विशेप बालकों के प्रति अभिवृत्ति का नकारात्मक मापन सुधारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है |


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