व्यवहार संशोधन पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

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अधिगम (सीखना) को परिभाषित करते हुए अनेक शिक्षाविदों ने इसे व्यवहार में हए परिवर्तन का नाम दिया है। स्किनर के अनुसार सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है । मार्गन एवं गिली लैंड के शब्दों में, “सीखना अनुभव के कारण प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है |”

अधिगम बाधित विशेष बालकों में यद्यपि मंदबुद्धि बालकों के समान कम बुद्धि की समस्या नहीं होती परन्तु वे सीखने में असमर्थता का अनुभव करते हैं। हैमिल मेथ, मैकनट और लारसन ने अधिगम असमर्थता को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ऐसे बालक श्रवण, वाचन, अध्ययन, लेखन,तर्क और गणित जैसी योग्यताओं में कठिनाई का अनुभव करते हैं जो सांवेगिक अस्थिरता, अवधान समस्या, तांत्रिकीय या मस्तिष्क की तरंगों में असमरूपता, स्मृति व चिंतन में कमी आदि कारणों से संभव है। अधिगम असमर्थताओं के निवारण के उपायों में एक उपाय व्यवहार संशोधन है।

व्यवहार संशोधन (बिहेवियर मॉडिफिकेशन) के रूप में अधिगम अमसर्थता वाले बालकों की – (1) संवेगशीलता को कम करना, (2) लक्ष्योन्मुख व्यवहार पर बल देना, (3) गणितीय क्रियाओं के समाधान की ओर उन्मुख होना, (4) अध्ययन शैली पर सक्रिय बल देना,(5) लेखन के विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण देना आदि उपाय किये जा सकते हैं । अधिगम असमर्थ बालक की संवेगशीलता को कम करना कठिन अवश्य है परन्तु असंभव नहीं। यदि ऐसे बालकों के कार्य निष्पादन की प्रवृत्ति में जल्दबाजी दिखाई दे तो उसे उन्हें लक्ष्य उन्मुख व्यवहार का प्रशिक्षण देना चाहिए। गणित, लेखन, पठन या वाचन में असमर्थता वाले या भूल करने वाले बालकों में अभ्यास प्रशिक्षण द्वारा उनमें व्यवहार परिमार्जन किया जा सकता है।

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