शारीरिक रूप से विकलांग बालकों की शिक्षा व्यवस्था कैसे की जानी चाहिये? व्याख्या करें।

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शारीरिक न्यूनता से ग्रसित बालकों को अधिगम व समायोजन की विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं के कारण बालकों में हीन भावना का विकास होता है यह बालक सामान्य बालकों से अलग है इसलिए इन्हें विशेष शैक्षणिक सुविधा प्रदान किया जाना आवश्यक है । उचित प्रयासों द्वारा इन बालकों को कुछ हद तक शिक्षित किया जा सकता है। शिक्षा की निम्न सुविधा द्वारा इन्हें शिक्षित व कभी– कभी भी किया जा सकता है।

(1) विशेष कक्षा– सामान्य कक्षा व विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला शिक्षक विकलांग विद्यार्थियों की विशेष आवश्यकताओं से पूरी तरह परिचित नहीं होता है इसलिए इन विद्यार्थियों को एक ऐसे शिक्षक की आवश्यकता होती है जो इनके मनोविज्ञान को समझते हुए न केवल इन्हें शिक्षित करें बल्कि इनके सामाजिक, संवेगात्मक व शारीरिक विकास की तरफ भी ध्यान दें। इस स्थिति में हर विद्यालय में एक विशेष प्रशिक्षित अध्यापक होना चाहिये इसके अलावा विशेष विजिटिंग अध्यापक की भी नियुक्ति की जा सकती है जो सभी विद्यालयों में भ्रमण कर विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों हेतु कार्य कर सकते हैं इस तरह से विजिटिंग अध्यापक द्वारा विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों को भी विशिष्ट बालकों की आवश्यकताएं, समस्याओं व शैक्षिक प्रावधानों के बारे में जानने समझने का मौका मिलता रहेगा।

(2) विशेष कक्षा– कुछ विद्यार्थी या विशेष बालक इस तरह के होते हैं कि उन्हें सामान्य बालकों के साथ पढ़ाना मुश्किल हो जाता है उस स्थिति में विद्यालय में एक अलग कक्ष तैयार किया जाता है जहाँ कुछ समय के लिये विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। धीरे– धीरे उन्हें सामान्य कक्षाओं हेत तैयार किया जाता है, व सामान्य विद्यार्थियों के साथ पढ़ने योग्य हो जाते हैं।

(3) अतिरिक्त कक्षा– ऐसे विकलांग बालक जो नियमित कक्षाओं से पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो पाते हैं इस प्रकार के विद्यार्थियों के लिये अतिरिक्त कक्षा का आयोजन किया जा सकता है। इस प्रकार के विद्यार्थियों को सामान्य कक्षा के साथ कुछ अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है अतः इन बालकों के लिये स्कूल के उपरान्त या छुट्टियों के दिन भी थोड़े समय के लिये कक्षा का आयोजन करना चाहिये जिससे शिक्षक बालकों की व्यक्तिगत, सामाजिक, संवेगात्मक समस्याओं को समझ कर उन्हें हल कर सकेगा।

(4) विशेष विद्यालय– कुछ विकलांगिक अक्षम बालकों को विशेष कक्षाएं व अतिरिक्त कक्षाएं भी उन्हं लाभ नहीं पहुंचा पातीं। ऐसी स्थिति में विशेष विद्यालय इन बालकों को शिक्षित करने में सहायक होते हैं । इन विद्यालयों में निम्न सुविधाएं होनी चाहिये जिससे कि इन बालकों का विकास किया जा सके–

(i) शारीरिक उपचार कक्ष; (ii) व्यायामशाला; (iii) कार्यशाला; (iv) पहियेदार कुर्सियाँ, बड़े दरवाजे, एलिवेटर; (v) कक्षा– कक्ष व्यवस्थायें; (vi) विश्राम कक्ष; (vii) पानी की व्यवस्था; (viii) छात्रावास (आवश्यकतानुसार); (ix) कुशल व प्रशिक्षित अध्यापक; (x) पुस्तकालय।

(5) विशेष पाठ्यक्रम – विकलांगिक अक्षम बालकों के लिये पाठ्यक्रम में कुछ परिवर्तन लाना अति अनिवार्य है। चूंकि इन बालकों के कुछ अंग ढंग से कार्य नहीं करते इसलिये वे इनका प्रयोग नहीं करते अतः पाठ्यक्रम में उन भागों को नहीं डालना चाहिये जिसके लिये कुछ खास अंगों की आवश्यकता पड़े। यदि बालक का हाथ नहीं है तो लिखने हेतु समस्या का सामना करना पड़ता है । तब उसे पैर से लिखने हेतु तैयार किया जा सकता है । पाठ्यक्रम ऐसा हो जिससे विद्यार्थी को स्वावलम्बी बनाया जाये व उसे रोजगार प्राप्त करने के अवसर प्राप्त हो सकें।

(6) उपचार सुविधा– इन बालकों के लिये उपचार की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिये योग्य व कुशल चिकित्सक द्वारा समय– समय पर इनकी जाँच की जाना आवश्यक है। इन बालकों को समय– समय पर चिकित्सालय में भर्ती करने की आवश्यकता भी पड़ सकती है ऐसी स्थिति में उन्हें विद्यालय से समय– समय पर अनुपस्थित होना पड़ सकता है अत: उन्हें उपस्थिति संबंधित छूट दी जानी चाहिए। इन बालकों की सफलता के लिए मापदण्ड सामान्य बालकों की तरह नहीं बनाना चाहिए ये मापदण्ड बालक का अक्षमता, रोग की गम्भीरता के अनुसार तय किये जाने चाहिये । इन बालकों की समुचित विकास जैसे सामाजिक, संवेगात्मक की ओर ध्यान देना भी शिक्षक का कर्तव्य बन जाता है। इसके लिए सामान्य बालकों में इन बालकों के लिये एक समझ व जागरुकता का विकास किया जाना चाहिये जिससे उन पर सकारात्मक प्रभाव डाला जा सके।

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