श्रवण क्षतियुक्त बालकों की शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिये? विस्तृत व्याख्या करें।

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बालक के श्रवण क्षतियुक्त होने के परिणामस्वरूप कई कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं बालक में भाषा या बोलने का विकास नहीं हो पाता है, जिसके कारण इन्हें सामान्य कक्षा में सामान्य बालकों के साथ पढ़ाना या शिक्षा देना मुश्किल हो जाता है अतः कई प्रविधियों की सहायता से इन्हें शिक्षित किया जा सकता है यह विधियाँ/प्रविधियाँ निम्न हैं –


(I) सम्प्रेषण तकनीकें

(1) चिन्ह भाषा– अत्यधिक ऊंचा सुनने वाले व बधिर बालकों के लिये चिह्न भाषाओं का प्रचलन है जैसे –

(i) चिह्नित अंग्रेजी

(ii) अमेरिकन चिह्न भाषा

(iii) अंगुली वर्णमाला आदि यह चिह्न भाषाएं एक दूसरे से भिन्न होती हैं अब विशेषज्ञ चिह्न भाषा को प्रमाणित कर रहे हैं ताकि उसे अधिकतर स्कूलों में बोला जा सके।

(2) ओष्ठ पठन– ओष्ठ पठन में बालकों को होठों के हिलने और गति के आधार पर वर्णों व शब्दों को पढ़ने की शिक्षा दी जाती है । ओष्ठ पठन की अपनी कुछ समस्यायें हैं–

(i) एक बधिर बालक एक सामान्य गति से बोले गये वाक्य को केवल 25% ही समझ सकता है।

(ii) कुछ ध्वनियों को जैसे P, b, m व Ka, F को उच्चारण करते समय ओठ लगभग समान गति से हिलते हैं जिससे समझने में कठिनाई होती है।

(iii) बालक का ध्यान विभाजित हो जाता है क्योंकि भाषा ध्यान ओठों की गतियों पर आधा ध्यान कही गयी बात पर केन्द्रित करता है फलस्वरूप वह सम्पूर्ण बात को नहीं समझता है।

(3) संकेत भाषा– संकेत भाषा में ओठों को पढ़ने के साथ– साथ से मुँह के पास ही संकेत दिये जाते हैं संकेत उसी भाषा के होते हैं जिसमें कि बोला जाता है इस भाषा के निम्न लाभ हैं–

(i) इसमें उसी व्याकरण का प्रयोग होता है जो बोली जाती है।

(ii) इसमें बालक आसानी से सुनने वाले भागों के साथ सम्प्रेषण कर सकता है।

संकेत भाषा के लिए छोटे– छोटे वाक्य,मुहावरे,धीरे– धीरे व साफ बोलना चाहिए जिससे बालक शीघ्र ही बोली गयी बात समझना सीखेगा।

(4) गति विधि– इसमें बालकों की सम्प्रेषण हेतु शरीर की विभिन्न गतियाँ करवा कर सहायता दी जाती है।

(5) स्पर्श विधि– इसमें बालकों की स्पर्श के द्वारा बात समझाने का प्रयास किया जाता है |

(6) प्रवर्धक प्रयोग– सम्प्रेषण के लिए ध्वनि प्रवर्धक यंत्रों का प्रयोग किया जाता है यह केवल उन बालकों के लिए उपयुक्त है जो ऊंचा सुनते हैं जो बालक बधिर हैं उनके लिए यह उपयुक्त नहीं है सम्प्रेषण की इन विधियों या प्रकारों का प्रयोग इस बात पर निर्भर करता है कि बालक का श्रवण दोष कितना है व किन परिस्थितियों में रह रहा है । इन बालकों की कक्षा में कुर्सी सामान्य बालकों से ऊंची होनी चाहिए जिससे वह अध्यापक के होठों की गति पढ़ सके । कक्षा को गोलाकार भी बैठाया जा सकता है ।

(II) शिक्षण तकनीकें

श्रवण क्षतियुक्त बालक के लिये निम्नलिखित विधियों का प्रयोग उनके शिक्षण हेतु किया जा सकता है।

(1) शिक्षण सहायक सामग्री द्वारा विभिन्न सहायक सामग्री जैसे– चार्ट, मॉडल, आवृत्तियाँ, चित्र, श्यामपट, संकेत, इशारे, प्रयोग आदि द्वारा विषय वस्तु को प्रभावकारी रूप में पढ़ाया जा सकता है जिसके बधिर/ऊंचा सुनने वाले बालकों की मदद हो सकती है।

(2) कम्प्यूटर सहायता प्राप्त अनुदेशन द्वारा– आजकल श्रवण क्षतियुक्त बालक के लिये कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है इनका प्रयोग परीक्षण और पुनर्वास के लिये सफलतापूर्वक किया जा सकता है इनका प्रयोग कम्प्यूटर सहायता प्राप्त अनुदेशन के लिये भी किया जाता है ।

(3) तकनीकी प्रोग्राम्स द्वारा– श्रवण क्षतियुक्त बालकों की शिक्षा हेतु कुछ तकनीकी कार्यक्रम बनाये जाते हैं जो इनको सिखाने में मदद करते हैं। रोचेस्टर तकनीकी विधान संस्था में स्थित बधिर राष्ट्रीय तकनीकी संस्था में इस प्रकार के प्रोग्राम उपलब्ध हैं। इन्हें भारतीय संदर्भ में परिवर्तित करके नवीन प्रोग्राम बनाये जा सकते हैं।

(4) विशेष शिक्षक की सहायता द्वारा– इन बालकों के लिये एक विशेष शिक्षक को नियुक्त किया जाना आवश्यक है यह विशेष शिक्षक श्रवण क्षतियुक्त बालकों हेतु उनके शिक्षण हेत प्रशिक्षित हो ऐसा आवश्यक होना चाहिए । इनके लिए अन्य शिक्षकों व माता– पिता का सहयोग आवश्यक है। शिक्षक यह सुनिश्चित करता है कि बालकों की अधिगम की कमियाँ क्या– क्या हैं। ये बालक शब्द को ठीक तरीके लिखते या बोलते हैं या नहीं। यदि शिक्षक प्रारम्भिक स्तर पर ही सुधार कर लेता है तब बालक में सही समझ विकसित होती जाती है। शिक्षक द्वारा बीच– बीच में प्रश्न पूछना अनिवार्य है जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि बालक को कितना समझ आया है।

इन बालकों को एक नोट लेने वाले व्यक्ति की सहायता प्राप्त होनी चाहिये ताकि शिक्षक द्वारा कही बातों को वह गेट कर सके अन्यथा बालक के सहपाठी द्वारा नोट्स की कार्बन कॉपी की जा सकती है जिससे श्रवण क्षतियुक्त छात्र की मदद हो सकती है।

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