श्रवण क्षतियुक्त बालक कौन हैं श्रवण क्षतियुक्तता के कारणों का उल्लेख करें।

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श्रवण क्षतियुक्त बालक वे हैं जिन्होंने बोलने से पहले ही श्रवण शक्ति खो दी है या जिन्होंने बोलने के साथ श्रवण शक्ति खो दी हो इस प्रकार के छात्रों के लिये विशेष प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। विद्यालय में कुछ बालक ऐसे होते हैं जिन्हें किसी न किसी प्रकार का व किसी न किसी स्तर का श्रवण दोष होता है। नेत्र व कान दो ऐसे तन्त्र हैं जिनके बिना शिक्षा देने व ग्रहण करने दोनों में बड़ी कठिनाई उत्पन्न होती है। श्रवण शक्ति बालक को अध्यापक द्वारा कही, समझायी बातों को समझने में सहायता करती है। श्रवण शक्ति मौखिक संदेशवाहकता अधिगम, मानसिक विकास, भाषा विकास का सबसे सशक्त माध्यम है । कक्षा में बेठे ऐसे बालक जो श्रवण क्षतियुक्त है को उनकी विधियों से शिक्षा या तो दी ही नहीं जा सकती है जिनसे हम सामान्य श्रेवण योग्यता वाले बालकों को शिक्षा देते हैं अतः इन बालकों की आवश्यकताओं तथा समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उनकी उचित शिक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए।

श्रवण क्षतियुक्तता के कारण

बालकों के विकास को जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के पश्चात् विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं श्रवण क्षतियुक्तता के निम्न कारण हैं–

(I) जन्म से पूर्व और जन्म के समय के कारण

(1) जाननिक कारण– 
आनुवंशिकता श्रवण संबंधित दोषों का प्रमुख कारण है। साधारणतया यह देखा गया है कि जिन बालकों के माता– पिता बहरे होते हैं उन्हें श्रवण दोष देखने को मिलता है। यदि अत्यन्त निकट संबंधी आपस में विवाह करते हैं तब इस तरह के दोष की सम्भावना रहती है । जन्मजात श्रवण दोष का कारण जाननिक तब भी हो सकता है जब माता– पिता और अन्य भाई बहनों में यह दोष न हो क्योंकि यहाँ श्रवण दोष का कारण माँ या पिता या दोनों में विद्यमान जीन्स हो सकते हैं। श्रवण दोष जीन्स की निम्न विशेषताओं के कारण होती है:

(i) माता और पिता दोनों में विद्यमान एक अपगामी जीन्स

(ii) माता और पिता दोनों में से किसी में विद्यमान प्रबल जीन्स

(iii) लिंग संबंधी जीन्स जो केवल माँ में होता है और केवल पुत्र को प्रभावित करता है |

(2) जर्मन खसरा– 1980 में जर्मन खसरा एक महामारी के रूप में फैला यह देखा गया कि जो गर्भवती माताएं इस बीमारी से पीड़ित हुई उनकी सन्ताने श्रवण क्षतियुक्त हुई। तब यह निष्कर्ष निकाला गया कि जर्मन खसरा भी श्रवण विकलांगता का एक कारण है।

(3) गर्भावस्था में श्रवण क्षतियुक्तता– जब बालक गर्भ में होता है तब उस समय श्रवण दोष होने की सम्भावना होती है। इसके निम्न कारण हो सकते हैं–

(i) माँ कोई जहरीले पदार्थ का सेवन कर ले।

(ii) शराब का सेवन करे।

(iii) असन्तुलित भोजन ग्रहण करे।

(iv) दूषित भोजन करे।

(v) बीमार रहे।

(4) असामयिक प्रसव– असामयिक प्रसव भी श्रवण दोष उत्पनन करता है हालांकि यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। कभी– कभी इससे उत्पन्न बालक में श्रवण दोष दिखाई पड़ता है।

(5) असुरक्षित प्रसव– यदि प्रसव के समय रक्त प्रवाह अधिक हो जाये या रक्त का विकृत संचार हो ऑक्सीजन का अभाव हो तब बालक के श्रवण यंत्र कुप्रभावित हो जाते हैं।

(II) जन्म के पश्चात

अधिकतर ऐसा देखने में आता है कि जन्म के समय बालक सामान्य होता है परन्तु विकास के दौरान उसका श्रवण यंत्र प्रभावित हो जाता है जिसके निम्न कारण हो सकते हैं।

(1) बीमारी– कुछ बीमारियाँ इस प्रकार की होती हैं जो कि कभी– कभी श्रवण दोष उत्पन्न करती हैं। जैसे– (i) कनफड़ा, (ii) खसरा, (iii) चेचक, (iv) मोतीझरा, (v) कुकर खाँसी, (vi) कान में मवाद ।

(2) दुर्घटना– कोई दुर्घटना भी व्यक्ति के श्रवण यंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है जिससे कि श्रवण दोष हो सकता है। किसी लकड़ी या पिन से कान का मेल निकालते समय भी बालक अन्जाने में कर्ण पटल को नुकसान पहुँचा देते हैं जिससे कभी– कभी श्रवण दोष हो सकता है।

(3) उच्च ध्वनि– कभी– कभी जोर का धमाका कर्ण पटल को फाड़ देता है इसी प्रकार निरन्तर उच्च ध्वनि को सुनते रहने से कान केवल उच्च ध्वनि को ही पकड़ पाते हैं। सामान्य व धीमी गति से बोले गये शब्द वह भली प्रकार से नहीं सुन पाते हैं। इस प्रकार उच्च ध्वनि भी श्रवण दोष उत्पन्न करती है।

(4) आयु– वृद्धावस्था में शारीरिक तन्त्र कमजोर पड़ने लगते हैं अतः सुनाई कम पड़ने लगता है। अतः उम्र के साथ– साथ व्यक्ति का श्रवण यंत्र प्रभावित होता जाता है।

(5) असंतुलित आहार– यदि बालक को संतुलित आहार नहीं मिलता तब उसकी श्रवण शक्ति ऋणात्मक रूप से प्रभावित होती है । इसका कारण यह है कि बालक के श्रवण यंत्र के कोमल तन्तुओं को जिन्दा रहने व विकास करने के लिए ऊर्जा नहीं मिलती है।

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