संगी साथी शिक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी (शॉर्ट नोट) लिखिए-

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संगी साथी शिक्षण से आशय सहपाठी द्वारा अपने से कम बुद्धिलब्धि वाले अपनी कक्षा के बालकों को शिक्षण देने से है। इसमें किसी प्रतिभाशाली छात्र को शिक्षक द्वारा यह कार्य सौंपा जाता है कि वह मंदगति से सीखने वाले छात्रों को पढ़ाए । परन्तु इसे बारी-बारी से हर माह बढ़ाते रहना चाहिए ताकि शिक्षण देने वाले छात्र में घमंड उत्पन्न न हो । एल. वैगनर ने अपनी पुस्तक ‘पियर टीचिंग’ में संगी-साथ शिक्षण के निम्नलिखित लाभ बताए हैं-

(1) संगी साथी शिक्षक उन बच्चों को कारगर ढंग से पढ़ाते हैं जो वयस्क शिक्षक को समुचित उत्तर नहीं देते।

(2) इससे सहपाठी शिक्षक तथा अन्य छात्रों में दोस्ती (मित्रता) हो जाती है जिससे समूह के मंदबुद्धि बालकों का एकीकरण होता है ।

(3) इससे शिक्षक का बोझ कम हो जाता है।”

निःशक्त बालकों में कक्षा-शिक्षण के समय अपनी निःशक्तताओं के कारण शिक्षक द्वारा पढ़ाए गई बहुत सी बातें समझ में नहीं आती हैं। कम सुनाई देने वाले बच्चों को जब शिक्षक द्वारा समझाई जाने वाली बातें समझ में न आएं तो शिक्षक को निःशक्त बालक के साथ बैठने वाले छात्र विशेष को उस श्रवण बाधित बालक की सहायता हेतु निर्दिष्ट करना चाहिए। इसी प्रकार कम दृष्टि वाले निःशक्त बालक की या मंदबुद्धि वाले या धीमे अधिगमकर्ता निःशक्त बालक के साथ बैठने वाले सामान्य बालक को इन निःशक्त बालकों की सहायता के लिए नियुक्त कर देना चाहिए। इससे शिक्षक की सभी बालकों को एक साथ शिक्षा देने में होने वाले वैयक्तिक शिक्षण से थोड़ा राहत मिल जाएगी तथा निःशक्त बालकों की शिक्षा में आने वाली कठिनाइयाँ दूर हो सकेंगी। यह व्यवस्था भी संगी साथी शिक्षण का ही एक रूप है। समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत ऐसी शिक्षण व्यवस्था उपयोगी सिद्ध होती है।

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