समावेशी विद्यालय में मूल्यांकन तथा शिक्षण रणनीतियों का वर्णन करो।

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मूल्यांकन की नयी अवधारणा के अनुरूप समावेशी विद्यालय में भी केवल पाठ्य विषयों की परीक्षाओं के स्थान पर सतत व समग्र मूल्यांकन को अपनाना चाहिए। सतत या निरंतर मूल्यांकन का आशय निःशक्त बालक का मूल्यांकन प्रतिदिन कक्षा शिक्षण तथा अन्य शालेय गतिविधियों का होने रहना चाहिए। मासिक परीक्षाओं का आयोजन भी सतत इकाई मूल्यांकन का रूप है । मूल्यांकन के समग्र होने से आशय निःशक्त बालक के शारीरिक विकास, मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक स्थिरता, शैक्षिक व क्रियात्मक निपुणता का आकलन है। यह बालक के सर्वांगीण विकास हेतु आवश्यक है । प्रत्येक सामान्य तथा विशिष्ट बालक का मूल्यांकन का अभिलेख या पोर्टफोलियो भी विद्यालय में रखा जाना चाहिए।

शिक्षण रणनीतियों में शिक्षक द्वारा अपनाई गई विभिन्न शिक्षण विधियाँ, शिक्षण सूत्र, शिक्षण कौशल, अभ्यास कार्य व गृह कार्य, सहायक शिक्षण सामग्रियों का शिक्षण में उपयोग आदि तथ्य आते हैं। समावेशी विद्यालय की शिक्षण रणनीतियाँ विशेष बालकों की विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बनाई जानी चाहिए तथा शिक्षण कार्य में अनुकूलन (एडॉप्टेशन) अर्थात् शिक्षण को बाधित बालकों के अनुकूल बनाना आवश्यक है। निःशक्त बालकों हेतु शिक्षण में प्रोत्साहन,शाबाशी देना, पीठ थपथपाना, पृष्ठपोषण करना आदि का उपयोग भी निःशक्त बालकों हेतु लाभप्रद है । क्योंकि समावेशी विद्यालय में सामान्य तथा विशेष बालक दोनों प्रकार के विद्यार्थी अध्ययन करते हैं अतः शिक्षण रणनीतियों को दोनों के अनुकूल बनाकर शिक्षण करना चाहिए । इसी प्रकार निशक्तता से ग्रसित बालक भी कई प्रकार के होते हैं उनका ध्यान शिक्षण में रखकर शिक्षण करना उपयुक्त है। आवश्यकतानुसार पिछड़े, मंदबुद्धि या श्रवण बाधित, दृष्टिबाधित, बालकों को विशेष कक्षाएं तथा निदानात्मक उपचारात्मक कक्षाएं भी आयोजित की जानी चाहिए।

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