समावेशी शिक्षा का अर्थ व परिभाषाओं की विस्तृत चर्चा करें।

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प्रत्येक बालक के मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए उसके अन्दर छिपी योग्यता को उभारना शिक्षा का उद्देश्य है इसलिए हर बच्चे को संवैधानिक शिक्षा का अधिकार प्राप्त है।

छियालीसवें संविधान संशोधन 1976 में यह प्रावधान किया गया है कि शिक्षा बच्चे का नैसर्गिक अधिकार है, जिसे उसे मिलना चाहिए। मनोवैज्ञानिक सोच व प्रजातांत्रिक पहल से समावेशी शिक्षा के स्वरूप को प्रकाश में लाया गया।

समावेशी शिक्षा का अर्थ– समावेशी शिक्षा का सामान्य अर्थ है विकास की धारा में सबको शामिल करना। शिक्षा के क्षेत्र में समावेशी का अर्थ विशिष्ट बालकों को सामान्य बालकों के साथ, जहाँ तक संभव हो सामान्य कक्षा में ही पढ़ाना । उनको सामान्य बालकों के साथ विशेष सेवाएं प्रदान करना, विद्यालय की गतिविधियों जैसे म्यूजिक, कला, भ्रमण, व्यायाम, खेल, पुस्तकालय आदि में शामिल करने का प्रयास करना जिससे असमर्थ बालक को यह अहसास हो सके कि वह भी इसी समाज का हिस्सा है। पहले यह माना जाता था कि असमर्थ बालकों को अलग से विशिष्ट शिक्षा प्रदान करनी चाहिये। उनकी आवश्यकताएं सामान्य बालकों से अलग हैं दोनों को सामान्य कक्षा में शिक्षा देना संभव नहीं है। समावेशी शिक्षा ने इस धारणा का खंडन करते हुए यह सिद्ध किया कि सभी बच्चों की सामान्य कक्षाओं से शिक्षा की गुणवत्ता में कोई असर नहीं पड़ता तथा सभी बच्चे अपनी क्षमता व रुचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण करते हैं। सिर्फ प्रतिभावान बालकों को ही शिक्षा देना न्याय नहीं है। समावेशी शिक्षा यह कहती है कि प्रतिभावान बच्चों के साथ– साथ सामान्य या असामान्य से कम की तरफ भी ध्यान दिया जाये जिससे वे भी अपनी प्रतिभा का विकास कर देश की उन्नति में योगदान दे सकें।

समावेशी शिक्षा भारत के संदर्भ में

भारत के संदर्भ में समावेशी शिक्षा व्यापक समावेशन की माँग करती है जहाँ समाज के सभी वर्गों, अनुसूचित जाति, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों, महिलाओं, अभिवंचितों, दलितों एवं भौगोलिक, क्षेत्रीय एवं जेंडर विषमताओं की खाई को पाटते हुए विशिष्ट बालकों को समेकित शिक्षा प्रणाली द्वारा सामान्य विद्यालयों की कक्षा में समावेशित कर शिक्षा के समान अवसर सुनिश्चित करने से है, इसमें विद्यालय से अपेक्षा की जाती है कि यथासंभव शिक्षा को समावेशी बनाने का प्रयास करें।

परिभाषायें– एन.सी.एफ. 2005 समावेशन की प्रक्रिया में बच्चे को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी के लिये सक्षम बनाया जा सकता है बल्कि यह सीखने एवं विश्वास करने के लिये भी सक्षम बनाया जा सकता है कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए दूसरों के साथ रिश्ते बनाना, अन्तःक्रिया करना भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है (एन.सीई.आर.टी. 2005) मित्तल (2006) के अनुसार, “समावेशित, शिक्षा बालकों में विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं एवं योग्यताओं (सीखने की गति एवं विधि में अन्तर को ध्यान में रखते हुए) की पहचान करती है तथा उनकी ओर जवाबदेही सुनिश्चित करती है।”

स्मिथ, पाँबेल, पैटॉप तथा डॉवड़ी

(2011) के अनुसार, “समावेशी शिक्षा एक ऐसी शैक्षिक व्यवस्था एवं अभ्यास से संबंधित है,जो सभी बालकों

(उनकी क्षमता स्तर से हटकर) को समान शैक्षिक एवं सामाजिक अवसर प्रदान करने के लिये स्वतः प्रयास करती है।”

एन.सीई.आर.टी. समावेशन शैक्षिक अभ्यास के साथ– साथ दर्शन भी है। समावेशन शब्द अपने आप में कुछ खास अर्थ नहीं होता है समावेशन के चारों तरफ जो वैचारिक, दार्शनिक, शैक्षिक ढाँचा होता है वही समावेशन को परिभाषित करता है।

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