कृषि जलवायु प्रदेश

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षि प्रदेशों का निर्धारण तकनीकी विषय है। अनेक कृषि वैज्ञानिकों व कृषि भूगोलविदों ने फसलों के प्रारूप, शस्य संयोजन, उत्पादकता, जल की उपलब्धता, कृषि पद्धति आदि के आधार पर कृषि प्रदेशों का निर्धारण किया है। इसी आधार पर राजस्थान को 10 कृषि जलवायु प्रदेशों में बाँटा गया है :-

प्रदेशशामिल जिलेविशेषता
शुष्क मैदानी पश्चिमी क्षेत्र (I-A)जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर का कुछ हिस्सा* विस्तार :- 124.37 लाख हैक्टेयरबालुका स्तूपों की प्रधानता।मिट्‌टी :- बारीक बलुई दोमट से मोटी रेतीली तकवर्षा :- 200 से 370 मि.मी.उच्च तापमान व ग्रीष्म काल में धूलभरी आँधियाँ चलती हैं।फसलें :- बाजरा, ग्वार, मोठ, मूंग आदि।क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा कृषि जलवायु प्रदेश
सिंचित उत्तरी – पश्चिमी मैदान (I-B)गंगानगर व हनुमानगढ़चिकनी दोमट मृदा व लवणीयता युक्तवर्षा :- 100-350 मि.मी.फसलें :- कपास, गन्ना, गेहूँ, जौ, सरसों, चनाराजस्थान का 10.67% क्षेत्र शामिल।कुछ भागों में “सेम समस्या का प्रभाव’
सिंचित मैदानी उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र (I-C)जैसलमेर, बीकानेर और चूरूमरुस्थलीय मृदावर्षा :- 100-350 मि.मी.फसलें :- बाजरा, ग्वार, दालें, गेहूँ, जौ, चनासीमित सिंचाई सुविधा
अन्त: प्रवाह शुष्क प्रदेश (II-A)नागौर, झुंझुनूं, सीकरमृदा :- रेतीली, चूना युक्त एवं उथली लाल मृदावर्षा :- 300-500 मि.मी.उच्च तापमान, अन्त:स्थलीय जलोत्सरण का क्षेत्रफसलें :- बाजरा, तिल, मोठ, मूंगफली, गेहूँ, जौ, चना, तारामीरा
लूणी नदी का अंतरवर्ती मैदानी क्षेत्र (II-B)जालौर, पाली, सिरोही व पूर्वी जोधपुरमृदा :- लाल मरुस्थली मृदा, चिरोजम मृदावर्षा :- 300-500 मि.मी.कुओं द्वारा सिंचाईफसलें :- बाजरा, मक्का, तिल, मोठ, मूंग, गेहूँ, सरसों, चना।जीरा एवं इसबगोल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध
अर्द्धशुष्क पूर्वी मैदान (III-A)अजमेर, जयपुर, दौसा, टोंकमृदा :- चिरोजम एवं चूनी मृदावर्षा :- 500-700 मि.मी.फसलें :- बाजरा, मूंग, चौला, मूंगफली, ग्वार, ज्वार, गेहूँ, चना, मटर, सरसों, तारामीरा, बेर, अमरूद, आँवला, नींबू, अनार व सब्जियों की कृषि भी की जाती है।
बाढ़ प्रवण पूर्वी मैदान (III-B)अलवर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुरमृदा :- जलोढ़ मृदा व कच्छारी मृदावर्षा :- 500-700 मि.मी.सामान्य तापमान।बीहड़ों की अधिकता।फसलें :- बाजरा, अरहर, मूंगफली, ज्वार, मक्का, गेहूँ, जौ, सरसों, चना, तारामीरा, सौंफ
अर्द्ध-आर्द्र दक्षिणी मैदान (IV-A)राजसमन्द, भीलवाड़ा, चित्तौड़मृदा :- जलोढ़ व पर्वत पदीय मृदावर्षा :- 500 से 900 मि.मी.ग्रीष्म व शीत ऋतु में सामान्य तापमानफसलें :- मक्का, ज्वार, मूंगफली, कपास, उड़द, अरहर, गेहूँ, जौ, धनिया आदि
आर्द्र दक्षिणी मैदान (IV-B)डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़मृदा :- लाल पर्वतीय मृदाकुओं, तालाब से सिंचाई (चूना युक्त)वर्षा :- 500-1100 मि.मी.फसलें :- मक्का, धान, कपास, ज्वार, बाजरा, मूंग, गेहूँ, जौ, धनिया, जीरा, चनाफल :- नींबू, पपीता, केला, टमाटर
आर्द्र दक्षिणी-पूर्वी मैदान (V)कोटा, बूँदी, झालावाड़, बारांमृदा :- दोमट एवं काली मृदावर्षा :- 650 से 1100 मि. मी.शीतकाल – सामान्य व ग्रीष्म तापमान 45° C तकफसलें :- चावल, ज्वार, मक्का, गन्ना, कपास, सोयाबीन, अफीम, अरहर, अलसी आदि।

कृषि 

हरित क्रान्ति –

  • हरित क्रान्ति का संस्थापक डॉ. नॉर्मन ई. बॉरलॉग को माना जाता है।
  • बॉरलॉग मूलतः मैक्सिको (अमेरिका) का निवासी था।
  • हरित क्रान्ति की शुरूआत 1966-67 में हुई।
  • द्वितीय हरित क्रान्ति की शुरूआत 1983-84 में हुई।
  • हरित क्रान्ति की शुरूआत गेहूँ व चावल की फसल हेतु की गई।
  • हरित क्रान्ति का सर्वाधिक प्रभाव गेहूँ की फसल पर पड़ा।
  • भारत में हरित क्रान्ति का संस्थापक एम.एस. स्वामीनाथन को माना जाता है।

श्वेत क्रान्ति –

  • इसका सम्बन्ध दुग्ध उत्पादन से है- श्वेत क्रान्ति का संस्थापक डॉ. वर्गीज कुरियन को माना जाता है।
  • डॉ. कुरियन ने 1970 में 10 जिलों में दुध में उत्पादकता बढ़ाने के लिए ऑपरेशन फ्लड की शुरूआत की।
  • लाल क्रान्ति – टमाटर तथा मांस से सम्बन्धित
  • काली क्रान्ति – पेट्रोलियम उत्पादन से
  • पीली क्रान्ति – सरसों तथा तिल से
  • नीली क्रान्ति – मत्स्य उत्पादन से
  • भूरी क्रान्ति – खाद्यान्न प्रसंकरण से
  • बादामी क्रान्ति – मसाले के उत्पादन से
  • गुलाबी क्रान्ति – झींगा मछली से
  • हरित सोना क्रान्ति – बाँस से
  • रजत क्रान्ति – अंडों के उत्पादन से
  • सिल्वर क्रान्ति – कपास से
  • सुनहरी क्रान्ति – फल-फूल तथा बागवानी से
  • गोल क्रान्ति – आलू उत्पादन से
  • इन्द्रधनुष क्रान्ति – इसका प्रमुख कार्य सभी क्रान्तियों पर निगरानी का है।
  • खरीफ ऋतु एवं फसलें – वे फसलें जो जुलाई माह में बोई जाती है और नवम्बर माह में काट ली जाती है खरीफ की फसलें कहलाती है इन्हें स्यालु या सावणु के नाम से जाना जाता है।

प्रमुख फसलें- 1. चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास, मूंग, मूंगफली इत्यादि।

  • रबी ऋतु एवं फसलें – वे फसलें जो दिसम्बर माह में बोई जाती है और मार्च माह में काट ली जाती है रबी की फसलें कहलाती है इन्हें उनालु के नाम से जाना जाता है। प्रमुख फसलें- गेहूँ, जौ, चना, सरसों, जीरा, मैथी, तारामीरा, मटर, मसूर इत्यादि।
  • जायद ऋतु एवं फसलें – वे फसलें जो मार्च-अप्रैल माह में बोई जाती है और मई-जून माह में काट ली जाती है। जायद फसलें कहलाती है।

प्रमुख फसलें – तरबूज, खरबूजा और सब्जियाँ।

कृषि सम्बन्धी विशेषतायें –

  • मिश्रित कृषि – इसमें कृषि व पशुपालन को साथ-साथ किया जाता है।
  • बारानी कृषि – ऐसी कृषि जो वर्षा पर आधारित हो।

नोट – राजस्थान की अधिकांश कृषि बारानी कृषि है।

  • व्यापारिक कृषि – जिन फसलों को उगाने का उद्देश्य व्यापार करके धन अर्जित करना हो जैसे- चाय, कॉफी, कपास, तम्बाकू इत्यादि।
  • स्थानांतरी कृषि – किसान द्वारा स्थान बदल-बदल कर की गयी कृषि।

नोट – भारत में इसका प्रचलित नाम – झूमिंग कृषि

– राजस्थान में इसका प्रचलित नाम – वालरा/वात्रा

  • भील जनजाति द्वारा पहाड़ों के ऊपरी भागों में की गयी स्थानांतरी कृषि चिमाता कहलाती है।
  • भील जनजाति द्वारा पहाड़ों के निचले भागों में की गयी स्थानांतरी कृषि दाजिया कहलाती है।
फसलसर्वाधिक उत्पादन जिला वाला जिलासर्वाधिक क्षे. वाला जिलाअन्य प्रमुख उत्पादक जिलेजलवायु व मिट्टीविशेष विवरण
चावलहनुमानगढ़बूंदीबूंदी, गंगानगर, कोटा, बांसवाड़ा, डूंगरपुरउष्ण व नम जलवायु उपयुक्त। वर्षा-50 से 200 सेमी. वार्षिक। तापमान-20º से 30º सेन्टीग्रेड। मिट्टी-काली व चिकनी दोमट।भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश। सर्वाधिक चावल उत्पादन पश्चिमी बंगाल व उत्तर प्रदेश में होता है खरीफ की फसल।
बाजराअलवरबाड़मेरजोधपुर, जयपुर, अलवर, जालौर, चूरूनम व उष्ण मौसम उपयुक्त। मिट्टी-रेतीली दोमट।देश के उत्पादन का लगभग 49.64% से अधिक राजस्थान में। प्रदेश का देश में प्रथम स्थान (उत्पादन व क्षेत्रफल दोनों में)। राज्य के सर्वाधिक कृषि क्षेत्र (लगभग 1/4 भाग) में बाजरा बोया जाता है।
मक्काचितौड़गढ़उदयपुरउदयपुर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, राजसमंद, झालावाड़, चित्तौड़गढ़24º से 30º सेन्टीग्रेड तापमान। यह गर्म मौसम का पौधा है। जल की प्रचुर आपूर्ति उपयोगी। दोमट मिट्टी उपयुक्त।देश के कुल मक्का उत्पादन का 6.17 प्रतिशत राज्य में उत्पादित। राज्य का सम्पूर्ण देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम एवं उत्पादन की दृष्टि से छठा स्थान (2014), सर्वाधिक उत्पादन आन्ध्रप्रदेश में स्थान है। माही कंचन माही धवल व सविता, मेघा मक्का की मुख्य किस्में है। मक्का की पत्तियों से साईलेज नामक चारा बनाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मक्का का 80 प्रतिशत विकास रात को होता है। मक्का को ‘अनाजो की रानी’ कहा जाता है।
ज्वारअजमेरअजमेरटोंक, पाली, अलवर, भरतपुर, जयपुर, नागौरगर्म जलवायु की फसल। औसत तापमान-26º-30º डिगी। वर्षा-35 से 150 सेमी.। मिट्टी-बलुई व चिकनी दोमट।देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से राजथान का तीसरा व उत्पादन की दृष्टि से पांचवां स्थान। सर्वाधिक उत्पादन-महाराष्ट्र में ज्वार से अल्कोहल व बीयर तैयार की जाती है। ‘क्रोप केमल’ फसल की उपमा।ज्वार को सोरगम/गरीब की रोटी /ऊँट की फसल (‘क्रोप केमल’ फसल की उपमा।)   
गेहूँगंगानगरगंगानगरहनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, जयपुर, बूंदी, चित्तौड़गढ़शीतोष्ण जलवायु, आर्द्रता-50 से 60%, मिट्टी-दोमट।देश के कुल गेहूँ उत्पादन का लगभग 10-16% राजस्थान में होता है। उत्पादन की दृष्टि से उत्तरप्रदेश का प्रथम व पंजाब का द्वितीय व राज्य का 5वां स्थान है। गेहूँ राज्य में सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होने वाली फसल है।
जौजयपुरगंगानगरजयपुर, अलवर, सीकर, नागौर, भीलवाड़ा, अजमेरशीतोष्ण जलवायु। मिट्टी-दोमट व बलुई दोमट।बोये गए क्षेत्र एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि से उत्तरप्रदेश के बाद राजस्थान का दूसरा स्थान। राज्य में देश के कुल उत्पादन का लगभग 29% जौ उत्पादित होता है। ‘माल्ट‘ बनाने के लिए जौ एक प्रमुख खाद्यान्न है। रबी की फसल।
चनाबीकानेरबीकानेरझुन्झुनूं, हनुमानगढ़, चुरू, गंगानगर, सीकरठण्डी व शुष्क जलवायु। वर्षा-मध्यम, मिट्टी-हल्की दोमट।देश में उत्पादन की दृष्टि से राज्य का द्वितीय स्थान है। प्रथम स्थान मध्यप्रदेश का है। चना एक ऐसी दलहन फसल है जो राज्य के सभी जिलों में उत्पन्न की जाती है।
मौठबीकानेरचुरूचुरु, बाड़मेर, जोधपुर
मूँगनागौरनागौरजयपुर, जोधपुर, जालौर, अजमेर, टोंक, पालीशुष्क व गर्म जलवायु। वर्षा- 25 से 40 सेमी. वार्षिक। मिट्टी-दोमट।देश में राजस्थान प्रथम स्थान पर
उड़दबूंदी बूंदीझालावाड़, बांसवाड़ा, टोंक, बूंदी, कोटाउष्ण कटिबंधीय आर्द्र व गर्म जल- वायु। वर्षा- 40 से 60 सेमी. वार्षिक। मिट्टी-दोमट व चिकनी दोमट।
चँवलासीकर/झुंझुनूंसीकरझुन्झुनूं, नागौर, जयपुर, बूंदी
मसूरबूँदी बूंदीझालावाड़, भरतपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़
कुल दलहननागौरचुरुझुन्झुनूं, सीकर, बीकानेरदेश में उत्पादन की दृष्टि से राज्य का दूसरा स्थान है यहां देश की 11.34% दाले उत्पादित होती है। सवाधिक दलहन उत्पादन मध्यप्रदेश में होता है। सर्वाधिक कृषिक्षेत्र (दलहन) महाराष्ट्र में है।
कुल खाद्यान्नअलवरनागौरअलवर, गंगानगर, सीकरसर्वाधिक उत्पादन उत्तरप्रदेश व पंजाब में। राजस्थान का चतुर्थ स्थान।
राई व सरसोंअलवर  टोंकभरतपुर, बारां, कोटा, टोंक, सवाई माधोपुरशुष्क व ठण्डी जलवायु। मिट्टी-बलुई व दोमट।देश के कुल उत्पादन का एक तिहाई से अधिक अकेले राजस्थान में। राजस्थान का प्रथम स्थान। विश्व में सरसों उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है।
मूंगफलीबीकानेरबीकानेरसीकर, चूरू, जोधपुर, चित्तौड़गढ़उष्ण कटिबंधीय जलवायु। तापमान-25°-30° से.ग्रे। वर्षा- 50 – 100 सेमी.ए मिट्टी-बलुई व दोमट।भारत में संसार की सर्वाधिक मूंगफली उत्पादित होती है। देश में सर्वाधिक उत्पादन गुजरात व आन्ध्रप्रदेश में होता है। राजस्थान का दूसरा स्थान।
अरण्डीजालौरजालौरपाली, बाड़मेर, सिरोहीदेश में उत्पादन में राज्य का तीसरा स्थान। प्रथम-गुजरात, भारत का विश्व में ब्राजील के बाद दूसरा स्थान। सर्वाधिक तेल अरण्ड़ी के बीजों में पाया जाता है।
तारामीरानागौरनागौरबीकानेर, भरतपुर, टोंक, नागौर भीलवाड़ा
तिलपालीपालीभीलवाड़ा, जोधपुर, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, हनुमानगढ़, करौलीउष्ण व समोष्ण जलवायु। तापमान-25º-27º से.ग्रे., वर्षा-30-100 सेमी। मिट्टी-हल्की बलुई दोमट।राजस्थान का सम्पूर्ण भारत में तिल के कृषित क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा स्थान है एवं उत्पादन में पांचवां स्थान है।

राज्य में प्रमुख फसलों की स्थिति (अंतिम आँकड़े)

फसलसर्वाधिक उत्पादन जिला वाला जिलासर्वाधिक क्षे. वाला जिलाअन्य प्रमुख उत्पादक जिलेजलवायु व मिट्टीविशेष विवरण
सोयाबीनबांराबारांझालावाड़, चित्तौड़गढ़, कोटा,बूंदी, बांसवाड़ा (हाड़ौती भाग)तापमान-15º-35º से.ग्रे., वर्षा-75 से 125 सेमी. वार्षिक। मिट्टी-गहरी दामट, चिकनी दोमट।तिलम संघ द्वारा कोटा सोयाबीन परियोजना शुरू करने के बाद पूरा हाड़ौती क्षेत्र सोयाबीन उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाने लगा है। सोयाबीन में सर्वाधिक मात्रा में प्रोटीन (43%) तथा तेल 20% है। यह दलहनी फसल है।
अलसीअलवरटोंकचित्तौड़, झालावाड़,बारां, बूंदी,हनुमानगढ़, नागौरसमशीतोष्ण व शीतोष्ण जलवायु।मिट्टी-दोमट।भारत रूस व कनाडा के बाद तीसरा बड़ा उत्पादक देश। मध्यप्रदेश में सर्वाधिक उत्पादन। इसके रेशे से लिनेन वस्त्र बुने जाते हैं।
कपासहनुमानगढ़हनुमानगढ़गंगानगर, जोधपुर, भीलवाड़ा, अलवर, बांसवाड़ा, नागौरउष्णकटिबंधीय फसल, तापमान-15º-25º से.गे., वर्षा-न्यूनतम 50 सेमी.। मिट्टी-काली, अलुवियल जलोढ़ व गहरी दोमट।विश्व में भारत उत्पादन एवं क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम स्थान पर है। राजस्थान का देश में छठा स्थान है। राज्य में कपास का अधिकांश उत्पादन नहरी सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में होता है। देश का सर्वाधिक कपास गुजरात में उत्पन्न होता है। राजस्थान में तीन तरह की कपास होती है।1. देशी कपास (राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, झालावाड़) 2. अमेरिकन कपास (गंगानगर, बांसवाड़ा)3. मालवी कपास (कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़)। जैसलमेर, चुरू दो ऐसे जिले हैं जहां कपास का उत्पादन बिल्कुल नहीं होता है।
गन्नागंगानगरगंगानगरचित्तौड़गढ़, उदयपुर, बूँदी ,बांसवाड़ा, राजसमंदउष्णकटिबंधीय जलवायु, मिट्टी- बलुई दोमट। तापमान-20º-35º से.ग्रे.।भारत विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। देश में सर्वाधिक गन्ना उत्तरप्रदेश व महाराष्ट्र में होता है।
धनियाझालावाड़झालावाड़कोटा, बूंदी, चित्तौड़
इसबगोलजालौरबाड़मेरबाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर,जालौरभारत में प्रथम स्थान पर
जीराजोधपुरबाड़मेरबाड़मेर, नागौर, अजमेरछाछिया, झुलसा व उकटा जीरा के प्रमुख रोग  पूर्व में जीरा सर्वाधिक जालौर में होता था।
हरी मैथीनागौरनागौरझालावाड़, सीकर, जयपुरनागौर का ताउसर गांव हरी मैथी (पान मैथी) अपनी खुशबू के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।
तम्बाकूजालौरजालौरअलवर, झुंझुनूं, कोटा तम्बाकू की दो किस्में निकोटिना टुबेकम और निकोटिना रस्ट्रिका मुख्य है।
ग्वारबीकानेरबीकानेर

राजस्थान में बागवानी फसलों के प्रमुख उत्पादक जिले (2015-16)-:

सर्वाधिक फलोत्पादन -: झालावाड़ 2. गंगानगर

फसल         प्रमुख उत्पादक जिले  फसल प्रमुख उत्पादक जिले
आम   बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, डूंगरपुर         मौसमी, माल्टा, कीनूश्रीगंगानगर
संतरा   झालावाड़(राज. के नागपुर की उपमा), कोटा, भीलवाड़ानींबू    भरतपुर, करौली
अमरूदसवाईमाधोपुर, कोटा, बूँदी         पपीता  सिरोही, टोंक, भरतपुर
हरी मैथी         नागौर  टमाटर, मटर    जयपुर, जालौर
तम्बाकूअलवर, झुन्झुनूं ईसबगोल        जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर
जीरा   जोधपुर, जालौर, बाड़मेर,सौंफ   नागौर, सिरोही, टोंक
केला   सिरोही, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़    बेर तथा आँवलानागौर, जयपुर, जोधपुर
अंगूर   श्रीगंगानगर, सवाईमाधोपुर         सीताफल        राजसमंद, चित्तौड़गढ़
अनार  पाली, जालौर, चित्तौड़, हनुमानगढ़    शहतूत जयपुर, बांसवाड़ा
खरबूजापाली, टोंक      मेंहदी   सोजत (पाली)
प्याज   सीकर, जोधपुर, अलवर आलू   धौलपुर, कोटा, भरतपुर
अफीम चित्तौड़गढ़, बारां झालावाड़         लाल मिर्च      सवाईमाधोपुर, जोधपुर (मथानियां)
धनियाँ झालावाड़, कोटा, बारां  मैथी    नागौर, कोटा, झालावाड़
आंवलाअजमेर, चितौडगढ़, दौसा, जयपुर।  

राजस्थान के कृषि विकास हेतु प्रयासरत संस्थाएँ

क्र.सं. नाम   स्थापना वर्ष उद्देश्य व अन्य विवरण
1.केन्द्रीय कृषि फार्म, सूरतगढ़ (गंगानगर)     अगस्त, 1956         एशिया का सबसे बड़ा फार्म। सोवियत रूस के सहयोग से स्थापित किया गया।
2.केन्द्रीय कृषि फार्म, जैतसर (गंगानगर)                कनाडा देश के सहयोग से स्थापित किया गया।
3.काजरी (Central Arid Zone Research Institute-CAZARI), जोधपुर1959  काजरी की स्थापना 1959 में मरूस्थल वनीकरण शोध केन्द्र का पुनर्गठन कर भारत सरकार द्वारा की गई। 1966 में इसे ICAR के अधीन किया गया। काजरी का मुख्य उद्देश्य शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वन सम्पदा व कृषि का विकास करने हेतु पेड़-पौधों, मिट्टी, हल व भूमि के संबंध में व्यापक सर्वेक्षण, शोध एवं अध्ययन करना है। काजरी के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र-जैसलमेर, बीकानेर, पाली व भुज (गुजरात) में है, कृषि विज्ञान केन्द्र पाली व जोधपुर में तथा क्षेत्रीय प्रबंध व मृदा संरक्षण क्षेत्र-चाँदन गाँव (जैसलमेर) व बीछवाल (बीकानेर) में स्थापित है।
4.राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड(Rajasthan State Agriculture Marketing Board)         6-06-1974         किसानों को कृषि का उचित मूल्य दिलाने के उद्देश्य से कृषि उपज मंडियों की स्थापना, मंडी प्रांगणों व ग्रामीण सम्पर्क सड़कों का निर्माण व रखरखाव करना।
5.बेर अनुसंधान केन्द्र एवं खजूर अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर1978  ‘हिलावी’ खजूर की किस्म और ‘मेंजुल’ किस्म का छुआरा का उत्पादन।
6.राजस्थान राज्य बीज संस्था एवं जैविक उत्पादन  प्रमाणीकरण28-03-1978         विश्व बैंक की राष्ट्रीय बीज परियोजना के द्वितीय चरण में उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन, विधायन एवं विपणन करने के उद्देश्य से 28 मार्च, 1978 को राजस्थान राज्य बीज निगम के नाम से गठित। अब इसका नाम राजस्थान राज्य बीज एवं जैविक उत्पादन प्रमाणीकरण संस्था कर दिया गया है।
7.AFRI (Aried Forest Research Institute), जोधपुर1988  
8.राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र    2000    तबीजी (अजमेर) में स्थापित।
9.राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान संस्थान, सेवर, भरतपुर   20 Oct. 1993  
10.केन्द्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, दुर्गापुरा (जयपुर)        –      
11.राजस्थान उद्यानिकी एवं नर्सरी विकास समिति (राजहंस)         2006-07 राज्य में उद्यानिकी विकास को बढ़ावा देने हेतु उत्तम गुणवत्ता के पौधे के उत्पादन कार्य व आपूर्ति हेतु राज्य सरकार द्वारा गठित।
12. राज. राज्य सहकारी क्रय विक्रय संघ लिमिटेड (राजफेड) –1957 
13. राज. राज्य सहकारी स्पिनिंग व जिनिंग मिल्स फेडरेशन लि. (स्पिनफैड) 1992(1993 में कार्य प्रारम्भ) को स्पिनफैड की स्थापना गुलाबपुरा, हनुमानगढ़ व गंगापुर (भीलवाड़ा) की तीन मिलों मिलाकर की गई।  
14. तिलम संघ जुलाई, 1990तिलहन फसलों की पैदावर बढ़ाने सहकारी क्षेत्र में तिलहनों की खरीद की व्यवस्था करेगा।
15. राजस्थान उद्यानिकी व नर्सरी विकास समिति (राजहंस)2006-2007 
16. चौधरी चरणसिंह राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान -: जयपुर 1988 

विशिष्ट कृषि जिन्सों की मण्डियों की स्थापना : ‘उत्पादन वहाँ विपणन‘ के सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए राज्य में पहली बार निम्नलिखित विशिष्ट मण्डियाँ स्थापित की गई हैं-

क्र.सं. नाम मुख्य/गौण मण्डी जिन्स का नाम   क्र.सं. नाम मुख्य/गौण मण्डी जिन्स का नाम
1.      मेड़ता सिटी (नागौर)   जीरा   2.      जोधपुर जीरा
3.      भवानी मण्डी (झालावाड़)सन्तरा4.टोंक    मिर्च
5.      अलवरप्याज   6.      श्रीगंगानगर      किन्नू
7.      सवाई माधोपुर  अमरूद8.      रामगंज मण्डी (कोटा) धनिया
9.      अजमेरफूल    10.    पुष्कर-अजमेर फ.स.    फूल
11.    चौमूँ (जयपुर) आंवला12.    शाहपुरा-जयपुर फ.स.   टिण्डा
13.    बस्सी-जयपुर फ.स.     टमाटर14.    छीपाबड़ौद-छबड़ा (बारां)लहसुन
15.    सोजतसिटी-सोजत रोड़ (पाली)सोनामुखी16.    सोजतसिटी-सोजत रोड़(पाली)मेहन्दी
17.    भीनमाल (जालौर)     ईसबगोल18.    झालरापाटन(झालावाड़)अश्वगंधा
19.    बीकानेर (अनाज मंडी)मूंगफली   

कृषि विस्तार हेतु योजनाएँ एवं कार्यक्रम

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एन.एफ.एस.एम.)

  • केन्द्रीय सरकार द्वारा केन्द्र प्रवर्तित योजना के रुप में वर्ष 2007-08 से राज्य में गेहूं एवं दलहन पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन प्रारम्भ किया गया था। वर्तमान में इस मिशन मे 7 फसले शामिल है।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2015-16 के दौरान वित्त पोषण पैटर्न में परिवर्तन कर केन्द्रीय एवं राज्य के अंश का अनुपात 60:40 कर दिया है।
  • वर्ष 2015-16 में गेहूं एवं दलहन पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एन.एफ.एस.एम.) के अन्तर्गत प्रमाणित बीजों का वितरण, उन्नत उत्पादन तकनीक का प्रदर्शन, समेकित पोषण प्रबन्धन (आई.एन.एम.), जैविक खाद, सूक्ष्म तत्वों, जिप्सम, समन्वित कीट प्रबन्धन (आई.पी.एम.), कृषि यंत्रों, फव्वारा, पम्प सैट, सिंचाई जल हेतु पाइप लाईन, मोबाईल रेनगन एवं फसल तंत्र आधारित प्रशिक्षण आदि महत्वपूर्ण कार्यक्रम हैं।

राष्ट्रीय तिलहन एवं ऑयल पॉम मिशन (एन.एम.ओ.ओ.पी.)

  • राष्ट्रीय तिलहन एवं ऑयल पाम मिशन का मुख्य उद्देश्य तिलहन फसलों एवं वृक्ष जनित पौधों, खाद्यान्न की उत्पादकता में वृद्धि, गुणवत्ता में सुधार कर राज्य को खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर बनाना है।
  • राजस्थान में मिशन के अन्तर्गत दो सब मिनी मिशन (मिनी मिशन-I तिलहनी फसलों एवं मिनी मिशन-III वृक्ष जनित तिलहनी फसलों के लिए) क्रियान्वित किये जा रहे हैं।
  • इस मिशन की मुख्य गतिविधियाँ आधारभूत एवं प्रमाणित बीज का उत्पादन, प्रामाणित बीज का वितरण, फसल प्रदर्शन, समन्वित कीट प्रबन्धन, पौध संरक्षण उपकरण, जैव उर्वरक, जिप्सम, जल वितरण के लिए पाइन लाईन, कृषक प्रशिक्षण, कृषि सृधार, नवाचार, फव्वारा सेट तथा आधारभूत विकास आदि हैं।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2015-16 में वित्त पोषण पैटर्न में परिवर्तन कर केन्द्रीयांश एवं राज्यांश का अनुपात 60:40 कर दिया है।

राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं तकनीकी मिशन (एन.एम.ए.ई.टी.)

  • इस मिशन का उद्देश्य कृषि विस्तार का पुनर्गठन एवं सशक्तिकरण करना है, जिसके द्वारा किसानों को उचित तकनीक एवं कृषि विज्ञान की अच्छी आदतों का हस्तांतरण किया जा सके।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2015-16 में वित्त पोषण पैटर्न में परिवर्तन कर केन्द्रीयांश एवं राज्यांश का अनुपात 60:40 कर दिया है।

राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन (एन.एम.एस.ए.)

  • भारत सरकार द्वारा पूर्व में संचालित चार योजनाओं- राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन, राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना, राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता प्रबन्ध परियोजना तथा वर्षा आधारित क्षेत्र विकास कार्यक्रम का समावेश कर एक नया कार्यक्रम राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन, वर्ष 2014-15 से क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • वर्ष 2015-16 में इसके वित्त पोषण हेतु केन्द्रीयांश एवं राज्यांश का अनुपात 60:40 है।
  • राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन के अन्तर्गत तीन सब-मिशन सम्मिलित किए गए है :

   1. वर्षा आधारित क्षेत्र विकास (आर.ए.डी.)

   2. जलवायु परिवर्तन तथा टिकाऊ खेती

   3. मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन

    परम्परागत कृषि विकास योजना

  • जैविक खेती में पर्यावरण आधारित न्यूनतम लागत तकनीक के प्रयोग से रसायनों एवं कीटनाशकों का प्रयोग कम करते हुए कृषि उत्पादन किया जाता है। 2015-16 से क्रियान्वित।
  • राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन (एन.एम.एस.ए.) के अन्तर्गत मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन का ही विस्तार परम्परागत कृषि विकास योजना है।
  • परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत कलस्टर एवं प्रमाणन के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाता है।
  • भारत सरकार के द्वारा वित्त पोषण पैटर्न को 60 प्रतिशत केन्द्रीयांश एवं 40 प्रतिशत राज्यांश किया गया है।

प्रधामंत्री फसल बीमा योजना :-

  • राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित कृषि बीमा योजना (MNAIS) को रबी 2015-16 के बाद बंद कर किसानों को अधिक सुरक्षा देने के लिए 2016 से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) शुरू की जा रही है।
  • यह योजना प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 15 जनवरी, 2016 को जारी की है। 13 जनवरी, 2016 को इसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी।
  • इसमें सभी खरीफ फसलों पर 2% प्रीमियम, सभी रबी फसलों पर 1.5% प्रीमियम तथा वाणिज्यिक व बागवानी फसलों के लिए 5% प्रीमियम होगा। शेष प्रीमियम सरकार वहन करेगी।
  • यह नई बीमा योजना ‘एक राष्ट्र-एक योजना थीम (One Nation-One Scheme Theme) के अनुरूप है।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भारतीय कृषि बीमा कम्पनी लि. (AIC-Agriculture Insurance Company of India Ltd.) द्वारा संचालित की जा रही है।

राजस्थान में खाद्य सुरक्षा अधिनियम -: 02 अक्टुम्बर 2013

किसान क्रेडिट कार्ड योजना -: 29 जनवरी 1999

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना :

  • यह योजना वर्ष 2015-16 में आरम्भ हुई।
  • यह योजना 1 जुलाई, 2015 को शुरू की गई।
  • इसमें केन्द्र व राज्य का 60:40 का अंश है।
  • इसके अंतर्गत सुनिश्चित सिंचाई के लिए स्त्रोतों का सृजन करना।
  • हर बूँद के उपयोग से अधिक फसल हो तथा ‘जल संचय’ एवं ‘जल सिंचन’ के माध्यम से माइक्रो लेवल पर जल संचयन करने का लक्ष्य है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजनान्तर्गत वर्तमान में संचालित योजनाओं का समावेश किया गया है जैसे- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (ए.आई. बी.पी.), समन्वित जलग्रहण प्रबन्ध कार्यक्रम (आई. डबल्यू.एम.पी.) तथा ऑन फार्म जल प्रबन्ध (ओ.एफ.डबल्यू. एम.)आदि।
  • नारा – ‘हर खेत को पानी प्रति बूंद – अधिक फसल’

मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Care) :

  • यह योजना 19 फरवरी, 2015 को सूरतगढ़ (गंगानगर, राजस्थान) में प्रारंभ हुई।
  •  इस योजना का उद्देश्य देशभर में कृषि क्षेत्र में मिट्टी की सेहत पर ध्यान देकर मिट्टी को आवश्यक पोषण उपलब्ध कराना है। ताकि मिट्टी की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सके।
  • इस योजना के तहत् प्रत्येक किसान को कृषि भूमि की मिट्टी की जांच  हेतु कार्ड उपलब्ध कराये जायेंगे, जिसमें मिट्टी की उत्पादकता से जुड़ी जानकारियों के साथ भूमि में उर्वरकों के समुचित उपयोग संबंधी सलाह भी उपलब्ध करायी जायेगी। इस कार्ड का 3 वर्ष के अंतराल पर नवीनीकरण किया जा सकेगा।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-सूक्ष्म सिंचाई (PMKSY-M.I.)

  • फसल उत्पादकता बढ़ाने एवं पानी को बचाने के लिए लघु  सिंचाई पद्धति में ड्रिप एवं फव्वारा सिंचाई, प्रभावी जल प्रबंधन की व्यवस्था है।
  • भारत सरकार द्वारा इन पद्धतियों के समुचित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अन्तर्गत सूक्ष्म सिंचाई योजना प्रांरभ की गई है।
  • इसमें सभी श्रेणी  के कृषकों के लिए केन्द्रीय एवं राज्य सरकार का अनुपात 60 : 40 है।
  • दिसंबर,2016 तक 3748 हैक्टेयर क्षेत्र में फव्वारा सिंचाई एवं 6,235 हैक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप संयंत्रों  की स्थापना की गई है।

ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट (ग्राम)

  • ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट 9-11 नवम्बर, 2016 को जयपुर एग्जिबिशन एण्ड कन्वेंशन सेन्टर (जे.ई.सी.सी.), सीतापुरा, जयपुर में हुआ। इस आयोजन में कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में लगभग रु. 4400 करोड़ के निवेश के 38 एम.ओ.यू. हस्ताक्षरित किए गए।
  • इस सम्मेलन में इजराइल ने पार्टनर देश के रूप में भाग लिया, जबकि नीदरलैंड ईरान, कजाकिस्तान, पापुआन्यूगिनी, नाईजीरिया, एवं जापान आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में लगभग 58000 किसानों ने भाग लिया।

कृषि विपणन (Agriculture Marketing)

  • राज्य के कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने अच्छी विपणन की सुविधा उपलब्ध कराने तथा राज्य में मंडी नियामक एवं प्रबंधन को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु कृषि विपणन निदेशालय कार्यरत है।
  • राज्य में ‘सुपर‘, ‘अ‘ एवं ‘ब‘ श्रेणी की मंडियों में अपनी उपज विक्रय करने हेतु आने वाले कृषकों को सस्ती दर पर गुणवत्ता भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 2014 मे शुरु ‘किसान कलेवा योजना’ प्रांरभ की गई है।
  • 21 चयनित कृषि उपज मंडी समितियों में तेल परीक्षण प्रयोगशालाएं कार्य कर रही है।

राज्य में ‘महात्मा ज्योतिबा फुले मंडी श्रमिक कल्याण योजना -2015’ लागू की गयी है। इस योजना की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :-

1. प्रसूति सहायता :- महिला हम्माल एवं पल्लेदार को अधिकतम दो प्रसूतियों के लिए राज्य सरकार द्वारा अकुशल श्रमिक के रूप में  निर्धारित प्रचलित मजदूरी दर अनुसार 45 दिवस की मजदूरी के समतुल्य सहायता राशि का भुगतान किया जा रहा है।

  • पितृत्व अवकाश के रूप में निर्धारित प्रचलित मजदूरी दर अनुसार 15 दिन की मजदूरी के समतुल्य राशि का भुगतान किया जा रहा है।

2. विवाह के लिए सहायता :- महिला हम्मालों की पुत्रियों के विवाह के लिए राशि रू 20,000 की सहायता राशि का प्रावधान है। यह सहायता अधिकतम दो पुत्रियों के लिए ही देय है।

3. छात्रवृति/मेधावी छात्र पुरस्कार योजना :- ऐसे कर्मचारी जिसके पुत्र/पुत्री, जो 60 प्रतिशत एवं उससे अधिक अंक प्राप्त करता है, को इस योजना के अन्तर्गत छात्रवृति दी जा रही है।

4. चिकित्सा सहायता :- हम्माल को गंभीर बीमारी (केन्सर, हार्ट अटैक, लीवर, किडनी, आदि) होने की दशा में सरकारी अस्पताल में भर्ती रहने पर चिकित्सा व्यय हेतु अधिकतम रु. 20,000 की राशि का प्रावधान है।

Kismat -: Knowledge Intregrated Skill Modules For Agriculture, Horticulture, Animal Husbandary Training.

कृषि विशिष्ट तथ्य :

  1. बाणियाँ-कपास को राजथान में ग्रामीण भाषा में बाणियाँ कहते हैं।
  2. कांगणी-कांगणी दक्षिणी राजस्थान के गरीब व आदिवासी बाहुल्य शुष्क क्षेत्रों की फसल है। कांगणी सूखे की स्थिति में पशुओं के लिए चारा प्रदान करती है।
  3. चैती (दमिश्क) गुलाब-खमनौर (राजसमंद) एवं नाथद्वारा में इसकी खेती होती है। यह सर्वश्रेष्ठ किस्म का गुलाब है। यह किंवदन्ती है कि मेवाड़ के महाराणा रतनसिंह के शासनकाल में इसे मुगलों से मँगाकर यहां  लाया गया है।
  4. लीलोण-रेगिस्तानी क्षेत्रों (विशेषकर जैसलमेर) में पाई जाने वाली बहुपयोगी सेवण घास का स्थानीय नाम।
  5. घोड़ा जीरा-पश्चिमी राजस्थान (जालौर-बाड़मेर के क्षेत्र) में बहुतायत से उत्पादित ईसबगोल का स्थानीय नाम।
  6. पादप क्लीनिक-राज्य सरकार ने राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में मंडोर स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र में राज्य के पहले पादप क्लीनिक को खोलने की मंजूरी दी है। राज्य में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत एक करोड़ रुपये की लागत से पाँच स्थानों पर पादप क्लीनिक खोलना प्रस्तावित है।
  7. राजस्थान में कृषि जलवायु जोनों की संख्या-10 है। इनमें तीन नये जोन जालोर, श्री गंगानगर, सीकर है।
  8. राजस्थान में ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्) द्वारा नौ कृषि विज्ञान केन्द्र खोले जाने प्रस्तावित है।
  9. राजस्थान में संविदा खेती पहले चरण में केवल पांच जिंसों (फल, फूल, सब्जी, Medicinal Plant एवं सुगन्धित पौधों) के लिए लागू की गई है।
  10. राजस्थान में फूल मंडी पुष्कर में है। जबकि पुष्प पार्क (फ्लोरिकल्चर कॉम्प्लेक्स) खुशखेड़ा, भिवाड़ी, अलवर में है।
  11. सोयाबीन – तिलहनी और दलहनी गुणों से युक्त फसल है।
  12. होहोबा (जोजोबा) – पीला सोना नाम से प्रसिद्ध, का वानस्पतिक नाम Simmondesia Chinensis है। उत्पत्ति स्थान सोनारन मरूस्थल, मैक्सिको। जबकि भारत में यह इजरायल के सहयोग से सबसे पहले काजरी द्वारा  बोया गया। इसकी खेती को राजस्थान में बढ़ावा देने के लिए 1996-97 में एक प्रोजेक्ट एजोर्प (Association of the Rajasthan Zozoba Plantation & Research Project) द्वारा इजरायल की तकनीकी मदद से ढूंड (जयपुर) में 5.45 हैक्टेयर क्षेत्र एवं फतेहपुर (सीकर) 70 हैक्टेयर क्षेत्र में जोजोबा फार्म स्थापित किये गये हैं। तेल का क्वथंनाक व गलनांक अत्यधिक होता है।
  13. अफीम को काला सोना कहते हैं। इसका उत्पादन सर्वाधिक मध्यप्रदेश में होता है। राजस्थान में चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, कोटा, झालावाड़ में होता है।
  14. देश का 50% धनिया, 60% जीरा, 47% मेथी, 33% बाजरा, 29% जौ, 40% मोठ, 7% दलहन, 9% गेहूँ, 8.4% मक्का का उत्पादन राजस्थान में होता है।
  15. जैतून की पत्ती से चाय बनाने की फैक्ट्री बस्सी (जयपुर) में स्थापित की गई है। 
  16.  India Mix -: गेहूँ, मक्का व सोयाबीन के मिश्रण का आटा 

रोचक तथ्य :

1. राजस्थान में स्थानांतरित कृषि को “वालरा’ के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में पहाड़ी क्षेत्रों में की जाने वाली स्थानांतरित कृषि को “चिमाता’ एवं मैदानी क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि को “दजिया’ कहा जाता है।

2. संशोधित मौसम आधारित फसल बीमा योजना की शुरूआत 20 जून, 2018 काे की गई।

3. राजस्थान फसल ऋण माफी योजना 2018 की शुरूआत :- बाँसवाड़ा से।

4. मिश्रित कृषि :- कृषि एवं पशुपालन का साथ-साथ होना।

5. राजस्थान राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 49.53% क्षेत्र कृषि उपयोग में आता है।

6. राजस्थान में 62 प्रतिशत कामगार जीवनयापन के लिए कृषि एवं संबंद्ध क्षेत्र पर निर्भर हैं।

7. झालावाड़ में जैविक खेती के लिए सेन्टर ऑफ एक्सीलेस की स्थापना।

8. राज्य का प्रथम जैविक जिला :- डूंगरपुर। (प्रथम जैविक राज्य – सिक्किम)।

9. प्रथम ग्राम (ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट) का आयोजन 9-11 नवम्बर, 2016 को सीतापुरा (जयपुर) में किया गया।

10. भारत में कृषि गणना हर 5 वर्ष में कृषि एवं सहकारिता विभाग करता है।

11. प्रथम कृषि गणना :- 1970-71 दसवीं कृषि गणना :- 2015-16

12. राजस्थान में वानिकी के अन्तर्गत क्षेत्रफल :- 27.52 लाख हैक्टेयर (8.03%)

 राजस्थान में बंजर भूमि के अंतर्गत क्षेत्रफल :- 38.95 लाख हैक्टेयर (11.37%)

 राजस्थान में शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल :- 180.24 लाख हैक्टेयर (52.60%)

13. कृषि वर्ष :- जुलाई – जून।

14. राजस्थान में 2015-16 में कृषि जोतों का औसत आकार 2.73 हैक्टेयर है जो सन् 2010-11 में कृषि जोतों का औसत आकार 3.07 हैक्टेयर था। (11.07% की कमी)।

15. 2015-16 में राजस्थान में क्रियाशील कृषि जोतों की संख्या :- 76.55 लाख।

16. राजस्थान में सीमान्त जोत (40.12%), लघु जोत (21.90%), अर्द्ध मध्यम (18.50%), मध्यम (14.79%), बड़े आकार की जोत (4.69%) हैं।

17. राजस्थान में सर्वाधिक सिंचाई कुओं एवं नलकूपों से होती हैं। राज्य में कुओं एवं नलकूपों से सर्वाधिक सिंचाई जयपुर में तथा तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा में होती है।

18. राजस्थान में अनाज में गेहूँ का, तिलहन फसलों में राई व सरसों का तथा दालों में चने का सर्वाधिक उत्पादन होता है।

19. राजस्थान में कुल कृषित क्षेत्रफल सर्वाधिक बाड़मेर जिले में तथा न्यूनतम राजसमन्द जिले में है।

20. राजस्थान को 10 कृषि जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया गया हैं।

21. बेर के पेड़ पर लाख के कीड़े एवं शहतूत के पेड़ पर रेशम के कीड़े पाले जाते हैं।

22. राजस्थान का नागपुर :- झालावाड़ (संतरे के अधिक उत्पादन के कारण)

23. राज्य का पहला स्पाईस पार्क :- रामगंज मण्डी (कोटा)।

24. ICAR द्वारा केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र उद्यानिकी अनुसंधान केन्द्र बीछवाल (बीकानेर) में स्थापित किया गया है।

25. वाटर मैनेजमेन्ट पार्क :- पदमपुर (श्रीगंगानगर)।

26. किन्नू मण्डी :- श्रीगंगानगर

27. एशिया का सबसे बड़ा कृषि केन्द्र :- सूरतगढ़ में।

28. अन्तर्राष्ट्रीय उद्यानिकी नवाचार एवं प्रशिक्षण केन्द्र :- जयपुर में। इस केन्द्र की स्थापना नीदरलैंड के सहयोग से की जा रही है।

29. राजस्थान की प्रथम कृषि नीति :- 26 जून, 2013

30. राजस्थान राज्य भण्डारण निगम की स्थापना :- 30 दिसम्बर, 1957 को।

31. प्रथम कृषि विज्ञान केन्द्र :- फतेहपुर (सीकर) में 1976 में स्थापना।

32. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को की गई।

33. राष्ट्रीय महिला किसान दिवस :- 15 अक्टूबर।

34. विश्व खाद्य दिवस :- 16 अक्टूबर।

35. किसान दिवस :- 23 दिसम्बर।

36. ज्वार फसल को “ऊँट की फसल’ और “गरीब की रोटी’ कहा जाता है।

37. बाजरे का जन्म स्थान “अफ्रीका’ को माना जाता है।

38. धान के खेतों से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।

39. दलहनी फसलों में सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल :- मोठ।

40. राजस्थान का राजकोट :- लूणकरणसर (बीकानेर)। (मूंगफली उत्पादन के कारण)

41. गोचनी/बेझड़ :-  गेहूँ, चना एवं जौ का मिश्रण।

42. इण्डिया मिक्स :-  गेहूँ, मक्का व सोयाबीन के मिश्रण का आटा।

43. अंकुरित चने में विटामिन C पाया जाता है।

44. सरसों के तेल में तीखेपन का कारण :- इरुसिक अम्ल।

45. भारत में अनुमोदित पहली जी. एम. फसल :- कपास

46. गन्ना मूल रूप में भारतीय पौधा है।

47. ठण्डी खाद :- गाय एवं सुअर की खाद।

48. किसान खाद की उपमा :- कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (CAN)।

49. भूमि में मूंगफली बनने की क्रिया को “पेजिंग’ कहते है।

50. “गरीब का घी’ की उपमा :- तिल को।

51. रिले क्राॅपिंग :- एक वर्ष में एक ही खेत में चार फसलें बोना।

52. राजस्थान में सर्वप्रथम कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना :- उदयपुर में।

53. निजी क्षेत्र की पहली कृषि मण्डी :- कैथून (कोटा) में।

54. राजस्थान में पहला कृषि रेडियो स्टेशन भीलवाड़ा में स्थापित किया गया।

55. राजीव गाँधी कृषक साथी योजना :- 9 दिसम्बर, 2009 से।

56. छाछिया, झुलसा व उकटा जीरा फसल के प्रमुख रोग है।

57. किसान क्रेडिट कार्ड योजना :- 29 जनवरी 1999

58. राजस्थान की औसत शस्य गहनता :- 140-142%

59. राज्य में कुल 249 जोन है जिसमें 209 डार्क जोन घोषित किए जा चुके हैं।

60. पीसीकल्चर – मत्स्य पालन।

 सेरीकल्चर – रेशम उत्पादन।

 वर्मीकल्चर – केंचुआ उत्पादन।

 पोमोलॉजी – फल उत्पादन।

 हॉर्टीकल्चर – बागवानी उत्पादन।

61. भारत में राजस्थान का बाजरा, सरसों, धनिया, जीरा, मेथी, ग्वार, मोठ फसलों के उत्पादन में प्रथम स्थान है।

62. राजस्थान में सर्वाधिक बंजर भूमि :- जैसलमेर में।

63. रेडग्राम तथा पीजन पी की उपमा अरहर फसल को दी जाती है।

64. होहोबा (पीला सोना) के कृषि फार्म :- ढूंढ़ (जयपुर) व फतेहपुर (सीकर)

65. केमल क्रॉप :- ज्वार।

66. केन्द्रीय बेर अनुसंधान संस्थान :- बीकानेर।

 केन्द्रीय खजूर अनुसंधान संस्थान :- बीकानेर।

 केन्द्रीय ऊँट अनुसंधान संस्थान :- बीकानेर।

67. किसान कलेवा योजना :- जनवरी 2014 में शुरूआत।

68. महात्मा ज्योतिबा फूले मंडी श्रमिक कल्याण योजना :- 11 अप्रैल, 2015 को शुरूआत।

69. राजस्थान कृषि प्रसंस्करण व कृषि प्रोत्साहन नीति :- 20 अक्टूबर, 2015

70. राजस्थान किसान आयोग का गठन :- 26 नवम्बर, 2011 को। (अध्यक्ष + 8 सदस्य)

71. हॉर्टीकल्चर हब :- झालावाड़ में।

72. सर्वाधिक तेल अरण्डी के बीजों में पाया जाता है।

73. बजेड़ा :- पान का खेत।

74. राजस्थान में धनिया का सर्वाधिक उत्पादन :- झालावाड़ में।

75. चावर :- खेतों में जुताई के बाद भूमि को समतल करने के लिए फेरा जाने वाला मोटा पाट।

76. “हरी बाली’ रोग बाजरा फसल में होता है।

77. राजस्थान में दमश्क गुलाब (चैती गुलाब) की खेती खेमनौर (हल्दीघाटी) में की जाती है।

78. राजस्थान में सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक जिले :- कोटा-बारां।

79. हारी-भावरी कृषि का रूप गरासिया जनजाति में प्रचलित है।

80. राजस्थान में सर्वाधिक मसाले बारां जिले में उत्पादित होते हैं।

81. जलेबी पेड़ में गैसीय विषपान करने की क्षमता सबसे अधिक होती है।

82. राजस्थान में माल्टा का उत्पादन गंगानगर जिले में प्रमुखता में होता है।

83. राजस्थान में मूंग व उड़द फसल भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए उगाई जाती है।

84. “इसबगोल’ का सर्वाधिक उत्पादन राजस्थान के जालौर जिले में होता है।

85. पीपीपी मोड पर फ्लोरीकल्चर पार्क अलवर में बनेगा।

86. प्रदेश का पहला गर्ल्स एग्रीकल्चर कॉलेज :- बारां में।

87. राजस्थान की सबसे बड़ी फल मंडी :- मुहाना मंडी (जयपुर)।

88. एशिया का पहला ऑलिव ग्रीन टी संयंत्र :- बस्सी (जयपुर)।

89. देश की प्रथम जैतून रिफाइनरी :- लुणकरणसर (बीकानेर)।

90. अमरुद का सेंटर ऑफ एक्सीलेंेस टोंक जिले में बनाया जाएगा।

91. मुख्यमंत्री बीज स्वावलम्बन योजना :- जून 2017 में शुरूआत।

92. राजस्थान का पहला मेगो फेस्टिवल :- बाँसवाड़ा में।

93. प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना :- 23 अगस्त 2017 को शुरू (खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय द्वारा)।

94. ऊन मंडी खजूर अनुसंधान केन्द्र :- बीकानेर। (1978 में स्थापित)।

95. राजस्थान मसाला निर्यात प्रोत्साहन योजना :- 2015

96. जैतून के तेल का ब्रांड :- “राज ऑलिव ब्रांड’

97. राष्ट्रीय बागवानी मिशन :- 2005-06। राज्य के 24 जिलों में क्रियान्वित। इस योजना में केन्द्र एवं राज्य का वित्त में हिस्सा = 60:40

98. राज्य की पहली किसान कम्पनी बकानी (झालावाड़) में गठित की गई है।

99. 1 फरवरी, 2019 से प्रारम्भ मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना में सहकारी संघों की दुग्ध समितियों को दूध की आपूर्ति करने वाले 5 लाख पशुपालकों को 2 रुपये प्रति लीटर का अनुदान दिया जायेगा।

100. राजस्थान के कृषि मंत्री :- लालचंद कटारिया।

101. राजस्थान के राजस्व मंत्री :- हरीश चौधरी।

102. 19 फरवरी, 2015 को सूरतगढ़ (श्री गंगानगर) में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का शुभारम्भ किया गया।103. देश का पहला जैविक खेती अनुसंधान केन्द्र :- झालावाड़ में।

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