पशु सम्पदा

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पशुधन

  • पशुपालन, डेयरी व मत्स्यपालन राज्य सूची का विषय है। 
  • राजस्थान में पशु गणना का कार्य अजमेर स्थित ‘राजस्व मण्डल‘ द्वारा किया जाता है। वर्ष 2003 में 17वीं पशु गणना की गई।
  • 15 सितम्बर, 2012 से 15 अक्टूबर 2012 तक 19वीं पशुगणना का कार्य सम्पन्न हुआ है।
  • भारत में पशुगणना 1919 में प्रारम्भ हुई थी।
  • पशु गणना का कार्य हर 5वें वर्ष होता है।
  • वर्ष 2007 में की गई पशुगणना 18वीं पशु गणना थी। इसे शिक्षकों द्वारा नस्लवार की गई।
  • पशु गणना बारह प्रकार के पशुओं की जाती है।
  • 2003-04 में जो पशु गणना हुई थी उसमें 491.36 लाख पशु थे।
  • पशुओं की प्रतिशत में वृद्धि 15.32 प्रतिशत हुई। 255.16 लाख पशु 
  • स्वतंत्र राजस्थान में 1951 में प्रथम पशु संगणना की गई।
  • 1951 में पशु – 255.16 लाख।
  • वर्ष 2007 की पशुगणना के अनुसार राज्य में कुल पशुधन 566.63 लाख था।
  • 2007 में पशुधन घनत्व 166 था तथा प्रदेश में प्रति हजार जनसंख्या (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) पर पशुओं की संख्या 826 थी।
  • राज्य में 19वीं पशुगणना 2012 में की गई, जिसके अनुसार कुल पशुधन 577.32 लाख हैं। यह देश के कुल पशुधन का 11.27% हैं।
  • राज्य का पशु घनत्व :- 169 प्रति वर्ग किमी.।
  • राज्य में सर्वाधिक पशु घनत्व दौसा व राजसमन्द (292) एवं न्यूनतम जैसलमेर (83) में हैं।
  • 19वीं पशुगणना (राजस्थान) :-
पशु2012 में (लाख में)राज्य के कुल पशुधन का प्रतिशत2007 में (लाख में)परिवर्तन % (2007-12)भारत में स्थान
गौवंश133.2423.08%121.199.94%5वाॅ
भैंस129.7622.48%110.9216.99%दूसरा
भेड़90.8015.73%111.90-18.86%तीसरा
बकरी216.6637.53%215.030.76%पहला
घोड़ा0.380.07%0.2548.5%चौथा
गधा0.810.14%1.02-20.23%पहला
ऊँट3.260.56%4.22– 22.79%पहला
खच्चर0.030.009280.93%11वॉ
सुअर2.380.41%2.0913.96%17वॉ
कुल पशुधन577.32566.631.89%दूसरा
कुक्कुट80.2449.9460.69%
  • 19वीं पशुगणना में पशु सम्पदा में राजस्थान में सर्वाधिक वृद्धि खच्चर (280.93%) व कुक्कुट (60.69%) में हुई।
  • सर्वाधिक कमी :- ऊँट (-22.79%)
  • राज्य में सर्वाधिक संख्या वाला पशु :- बकरी (216.66 लाख)
  • यहाँ पर पशुधन घनत्व 169 प्रति वर्ग किलोमीटर है। वर्तमान में प्रदेश में प्रति हजार जनसंख्या पर पशुओं की संख्या 842 हो गई है।
  • राजस्थान में देश का 6.98% गौवंश, 11.94% भैंस वंश, 16.03% बकरी वंश, 13.95% भेड़ वंश तथा 81% ऊँट वंश उपलब्ध है।
  • वर्ष 2012 में वर्ष 2007 की तुलना में राज्य की पशु-सम्पदा में 10.69 लाख (1.89%) की वृद्धि हुई है।
  • 2012 की पशुगणना के अनुसार राज्य में सर्वाधिक पशु बकरियाँ (37.53%) है।

1.  गौवंश

  • राजस्थान राज्य गौ सेवा आयोग का गठन 23 मार्च, 1995 को किया गया।
  • भारत की समस्त गायों का लगभग 6.98 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है (देश में 5वाँ स्थान)।
  • 2012 में 133.24 लाख गौवंश है जो 2007 की तुलना में 9.94% अधिक है। राज्य के कुल पशु धन का 23.08% है। 
  • सर्वाधिक उदयपुर में तथा न्यूनतम धौलपुर में।

1. थारपारकर – पश्चिमी

  • मूल उत्पत्ति स्थल – मालाणी गांव, गुढ़ा के पास (बाड़मेर)।
  • जिले- जैसलमेर, बाड़मेर में मुख्यतः तथा जोधपुर व बीकानेर के कुछ भागों में।
  • द्विकाजी नस्ल- गायें अच्छा दूध देती है व बैल अच्छा कार्य करती है।
  • पूँछ सर्वाधिक लम्बी होती है आखरी सिरे पर बाल कम होते हैं। अधिक दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध।

2. राठी –

  • गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर व चुरु। लालसिंधी व साहीवाल के संकरण से राठी नस्ल की उत्पत्ति हुई। उ. प. राजस्थान
  • द्विकाजी नस्ल है। दूध- सर्वोत्तम, राजस्थान की कामधेनू कहते हैं।

3. हरियाणवी –

  • चूरू, हनुमानगढ़, सीकर, झुन्झुनूं, जयपुर, अलवर (बहरोड़) आदि जिलों में।
  • कान सबसे छोटे होते हैं। मस्तक पर एक छोटी हड्डी उभरी रहती है।
  • पिछला भाग, अगले भाग से ऊँचा होता है। अगले स्तन पिछले स्तनों से बड़े होते हैं।

4. नागौरी :

  • उत्पत्ति स्थल-नागौर का सुहालक प्रदेश (नागौर के 12 गांवों में)।
  • इसका बैल सर्वोत्तम होता है। दोड़ने में तेज, भारवहन, कृषि कार्यो में उत्तम।
  • रंग सफेद सुर्ख होता है, ज्वार (प्रोटीन बहुलता) के चारे के कारण अधिक ताकतवर होते हैं।

5. मेवाती (कोठी) –

  • अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली।
  • शांत स्वभाव का बैल, गर्दन झालरदार (लटकी) हुई होती है।
  • इस गौवंश का क्षेत्र रथ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

6. कांकरेज – उत्पति स्थल-: कच्छ का रन (गुजराज)

  • मुख्यतः जालौर के नेहड़ क्षेत्र में, पाली, सिरोही आदि में।
  • द्विकाजी प्रकार की नस्ल। भारवहन व दूग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध 

7. अजमेरा, गिर, रेंडा (द. प. राजस्थान)

  • मूल उत्पत्ति स्थल – गिर-गुजरात, पाली, अजमेर,किशनगढ़, भीलवाड़ा, राजसमंद । यह चकत्तेदार होती है। गायें-अच्छी। अधिक दूध के लिए प्रसिद्ध।

8. छोटी/बड़ी मालवी (द. पू. मध्यवर्ती )

  • झालावाड़ का आस-पास – छोटी मालवी, शेष क्षेत्र में बड़ी मालवी।
  • गायों की छोटी टांगें होती है। बैल भार वहन में अच्छे होते हैं।

9. सांचौरी –

  • जालौर की सांचौर तहसील में मिलती है।
  • विदेशी नस्ले : जर्सी – अमेरिका (कम उम्र में दूध), हॉलस्टीन- हॉलैण्ड/नीदरलैण्ड (सर्वाधिक दूध), रेड डेन – डेनमार्क (दूध में दूसरे स्थान पर)।

10. मालवी -: झालावाड़, डूगरपुर, बांसवाड़ा, कोटा, व उदयपुर। 

2. भेड़

  • 10 नस्ले उपलब्ध हैं- नाली, मगरा, पूगल, चोखला, जैसलमेरी, मारवाड़ी, सोनाड़ी, देशी या खेरी, मालपुरी तथा बागड़ी भारवाठी ‘नाल’ । सर्वाधिक – बाड़मेर, जैसलमेर। न्यूनतम- बांसवाड़ा।

1. नाली –

  • गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू जिलों में। ऊन- मध्यम श्रेणी की सबसे लम्बी ऊन (12-14 cm) अधिक ऊन के लिए प्रसिद्ध। गलीचे के लिए प्रयोग की जाती है।

2. पूगल –

  • बीकानेर, जैसलमेर व नागौर जिले में। मध्यम मोटी ऊन गलीचे के लिए प्रयुक्त होती है।

3. मगरा –

  • इसे चकरी व बीकानेरी चौकला भी कहते हैं। जिले- बीकानेर, नागौर, चूरू। ऊन- मध्यम मोटी।

4. जैसलमेरी –

  • इसकी नाक को रोमन नाक कहते हैं। प्रति भेड़ सर्वाधिक ऊन यह देती है। 3-4 kg/भेड़। इनका चेहरा गहरा भूरा होता है।

5. मारवाड़ी –

  • जोधपुर संभाग में पाई जाती है। सर्वाधिक संख्या में यही भेड़ पाई जाती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता सर्वाधिक अतः लम्बी दूरी तक चल सकती है।
  • घुमक्कड़ रेवड़ों में होती है। राजस्थान में सर्वाधिक ऊन इसी भेड़ से प्राप्त होती है।

6. चोकला –

  • इसे छापर भी कहते हैं। शेखावाटी क्षेत्र में मिलती है। इस नस्ल को भारतीय मेरिनो कहा जाता है। झुंझुनू, सीकर, बीकानेर, चुरु व जयपुर।
  • सर्वोत्तम ऊन यही होती है क्योंकि यह मुलायम है।

7. बागड़ी

  • अलवर, भरतपुर। मुँह काला व शेष शरीर सफेद होता है। इसका रेशा सबसे छोटा होता है।

8. देशी/खेरी –

  • पाली, अजमेर, नागौर।

9. मालपुरी –

  • टोंक, दौसा, जयपुर, सवाई माधोपुर बूंदी, भीलवाड़ा में। इसे माँस के लिए काम लेते हैं। ऊन छोटी होती है। गलीचों के लिए उपयुक्त ‘देशी नाल’

10. सोनाड़ी (चनोथर)

  • उदयपुर, कोटा संभाग, डूंगरपुर, चितौड़, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा। कान व पूंछ लम्बे। कान चरते समय जमीन को छूते हैं। ऊन साधारण।
  • विदेशी नस्लें : रूसी मेरिनो (रूस), डोसेंट (डेनमार्ग), रेम्बुले (फ्रांस)।

3. भैंस

  • राज. में सर्वाधिक भैस पशुधन जयपुर, अलवर में तथा न्यूनतम जैसलमेंर में है।
  • भैंसों की दृष्टि से राजस्थान का भारत के राज्यों में दूसरा स्थान है। सर्वाधिक भैंसे उत्तर प्रदेश में है।
  • मुर्राह, मेहसाना, सूरती, जाफराबादी, नागपुरी, भदावरी हैं।

1. मुर्राह (खुंडी)

  • राजस्थान में सर्वाधिक पाई जाने वाली भैंस। मूल उत्पत्ति स्थल- मांटगुमरी जिला (पंजाब-पाकिस्तान)। दूध देने में सर्वोत्तम।
  • जयपुर, उदयपुर, अलवर, गगांनगर, भरतपुर

2. मेहसाना

  • जालौर, सिरोही, मूलतः गुजरात की।

3. सूरती

  • सिरोही, उदयपुर, मूलतः गुजरात की।

4. जाफराबादी

  • डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, मूलतः गुजरात का काठियावाड़

5. नागपुरी

  • सींग पतले व लम्बे होते हैं। कोटा, बारां, झालावाड़ में।

6. भदावरी

  • मूलतः भदोही (उत्तर प्रदेश) की। भरतपुर, धौलपुर में, टांगें छोटी होती है।
  • नागौर के एक गांव ‘बासनी‘ का ‘नूर मोहम्मद मारवाड़ी‘ मुम्बई में भैंसो के लिए प्रसिद्ध है। इसे अभी पुरस्कृत किया गया है।

4.  बकरी

  • बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजना जो स्विट्जरलैण्ड सरकार के वित्तीय सहयोग से राजस्थान में 1981-82 में प्रारम्भ की गई।
  • बकरी सर्वाधिक -: बाड़मेर, जोधपुर। न्यूनतम-: धौलपुर। 
  • बकरी को गरीब की गाय कहा जाता है।
  • बीतल बकरी की नस्ल हैं।

1. अलवरी –

  • मूलतः उत्पत्ति गांव-झखराणा (बहरोड़-नारनौल मार्ग पर) है। झखराणा गांव पहलवानों के लिए प्रसिद्ध है। आकार में बड़ी व काले रंग।
  • विशेषताएँ- दूध के लिए प्रसिद्ध, कान बहुत लम्बे, जन्म के डेढ़ माह बाद काट देते हैं।

2. परबतसरी –

  • बकरी प्रजनन एवं चारा अनुसंधान केन्द्र रामसर (अजमेर) में स्विटजरलैण्ड की नस्ल बीटल व भारतीय नस्ल सिरोही के संकरण से इसे उत्पन्न किया गया है। दूध के लिए अच्छी है।

3. मारवाड़ी (लोही) –

  • सबसे अधिक क्षेत्र में सर्वाधिक संख्या में पाई जाती है। यह मांस व दूध दोनों के लिए उपयुक्त है। जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, पाली इत्यादि जिलों में पाई जाती है।

4. सिरोही –

  • सिरोही व उदयपुर में उपस्थित। मांस के लिए उपयुक्त।
  • आकार – मध्यम व शरीर गठीला।

5. जमनापरी –

  • साधारण नस्ल।
  • कोटा, बूंदी, झालावाड़। मांस व अधिक दूग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध।

6. बरबरी –

  • भरतपुर संभाग, दूध के लिए उपयुक्त।

7. शेखावाटी –

  • CAZRI के द्वारा विकसित। बिना सींग की नस्ल। दूध अच्छा देती है।
  • नागौर का ‘वरूण‘ गांव बकरियों के लिए प्रसिद्ध।
  • बकरी के मांस को चेवण कहते हैं।
  • सीकर जिले का बलेखण गांव भी बकरियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • बकरी के बालों से बनायी जाने वाली रस्सी (जेवड़ी) को जटपट्टी कहा जाता है। जो जसोल, बाड़मेर की प्रसिद्ध है।

5.  ऊँट

  • सर्वाधिक – जैसलमेर। न्यूनतम – प्रतापगढ़।
  • 19 सितम्बर 2014 को राज्य पशु घोषित।

1. जैसलमेरी : सवारी के लिए प्रसिद्ध।

2. बीकानेरी : भार वहन के लिए प्रसिद्ध। 

3. अलवरी : कद छोटा होता है।

4. कच्छी : साधारण।

  • नाचना गांव (जैसलमेर) – सवारी व दौड़ के लिए प्रसिद्ध।
  • गोमठ गांव (फलौदी) जोधपुर- सवारी, भार वहन के लिए प्रसिद्ध।
  • गुरहा ऊँट की नाल है।

6.  घोड़ा

  • बीकानेर स्थित केन्द्रीय अश्व उत्पादन परिसर में ‘चेतक घोड़े‘ के वंशज तैयार किये जायेगें। सर्वाधिक – बीकानेर न्यूनतम – डूंगरपुर।

1. मालाणी –

  • मूल उत्पत्ति स्थल – मालाणी गांव (बाड़मेर)।
  • एक रंग का घोड़ा अच्छा नहीं माना जाता है।
  • कुमेत (लाल) रंग का घोड़ा सबसे अच्छा माना जाता है जो पंचकल्याण (पांच धब्बे) होता है। चार पैरों पर व एक माथे पर।
  • आलम जी का धौरा, गुढामलानी के पास बाड़मेर धौरीमन्ना के पास में है। इस स्थान को घोड़ों का तीर्थ स्थल कहते हैं।
  • यहां गर्भवती घोड़ियों की जात दिलाते हैं। अरबी लोग इसे राड़धरा कहते थे।
  • यह स्थान तुगलक काल से प्रसिद्ध है।

2. मारवाड़ी –

  • दौड़ के लिए उपयुक्त।

3. काठियावाड़ी –

  • साधारण नस्ल। घुड़सवारी के लिए सबसे अच्छी नस्ल।

मत्स्य : पालन- यह विभाग पृथक रूप से 1982 में खोला गया।

  • उदयपुर में मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय स्थित है।
  • 2 राष्ट्रीय मत्स्य बीज उत्पादन फार्म कासिमपुरा (कोटा) तथा भीमपुरा (बांसवाड़ा) में कार्यरत है।
  • महाशीर मत्स्य प्रजातियों को संरक्षण देने के लिए उदयपुर के बड़ी तालाब को प्रदेश का पहला मत्स्य अभ्यारण्य बनाया जायेगा।

पशु प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र

केन्द्र सरकार :

  • पशुमाता उन्मूलन योजना – पशुओं मे संक्रामक रोकथाम हेतु 1958-59 में यह योजना राजस्थान में शुरू की गई।
  • केद्रीय पशु प्रजनन फार्म – सूरतगढ़ (गंगानगर) -1956 में।
  • केन्द्रीय भेड़ प्रजनन व ऊन अनुसंधान केन्द्र – अविकानगर (टोंक)। इसका एक उपकेन्द्र है मरू क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र बीछवाल, बीकानेर।
  • केन्द्रीय ऊंट प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र – जोडबीर, शिवबाड़ी-बीकानेर। इसकी स्थापना 5 जुलाई, 1984 को हुई।
  • पश्चिम क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र – अविकानगर (टोंक)। स्थापना – 1986 में।
  • भारतीय पशुपालन विकास एवं अनुसंधान लि. 2010 में बनीपार्क, जयपुर में स्थापित किया गया।
  • केन्द्रीय अश्व प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र – जोडबीर, शिवबाड़ी-बीकानेर।

राज्य सरकार :

  • राज्य सरकार का पहला पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर में खोला गया।

पशुपालन विभाग के द्वारा स्थापित अनुसंधान केन्द्र :

  • बकरी प्रजनन एवं चारा उत्पादन (अनुसंधान) केन्द्र – रामसर (अजमेर), स्थापना – 1981 में स्विट्जरलैण्ड के सहयोग से। यहां स्विट्जरलैण्ड के एल्पाइन व टोगनबर्ग नस्लों के बकरों से सिरोही नस्ल की बकरियों का क्रॉस प्रजनन करा कर के नयी नस्ल परबतसरी विकसित की गयी।
  • सूकर प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र – अलवर में। दूसरा नया प्रस्तावित अजमेर में।
  • अश्व प्रजनन फार्म – राजस्थान में दस फार्म है। गांधीनगर (जयपुर), बिलाड़ा (जोधपुर), बाली (पाली), सिवाणा (बाड़मेर), जालौर, सिरोही, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ तथा बीकानेर, मनोहरथाना (झालावाड़)।
  • नीजि क्षेत्र का पहला अश्व प्रजनन फार्म – मारवाड़ अश्व प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान केरू, जोधपुर में खोला गया।
  • गौवंश प्रजनन फार्म – कुम्हेर-हरियाणवी गाय/मुर्राह भैंस, नागौर-नागौरी गौवंश, डग-झालवाड़ (मालवी नस्ल)।

राजस्थान राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ (Rajasthan Co-operation Dairy Fedration -RCDF) – द्वारा खाले गये केन्द : 1977 में स्थापना  

  • गौसंवर्द्धन फार्म – बस्सी-सीमन बैंक (हिमीकृत वीर्य बैंक) – बस्सी (जयपुर) व नारवा खिंचियान (जोधपुर)।
  • स्वामी केशवानन्द कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर – द्वारा खोले गये अनुसंधान केन्द्र :

     (i) गोवत्स परिपालन केन्द्र – नोहर (हनुमानगढ़) – राठी नस्ल के लिए।

     (ii) Bull Mother फार्म – चाँदन गांव (जैसलमेर)।

महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय (उदयपुर) के द्वारा स्थापित केन्द्र :

  • भैंस प्रजनन एवं अनुसंधान केन्द्र – वल्लभनगर (उदयपुर)।
  • भेड़ व ऊन विभाग (पशुपालन विभाग – 1957) : भेड़ व ऊन विभाग अलग से 1963 में खोला गया तथा 2000-01 में इसका विलय पशुपालन विभाग में कर दिया गया।

भेड़ व ऊन विभाग ने 4 फार्म खोले थे :

      1. फतेहपुर (सीकर) 2. बांकलिया 3. जयपुर 4. चित्तौड़गढ़।

  • भेड़ व प्रजनन फार्म बांकलिया (नागौर) की इकाई फतेहपुर (सीकर) में स्थानान्तरित कर खोली गई।
  • 2001 में जयपुर व चित्तौड़गढ़ दोनों बंद किये गये।
  • भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर (1963) :
  • एशिया की सबसे बड़ी ऊन मण्डी – बीकानेर में।
  • केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड – जोधपुर (1987) में।
  • केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला – बीकानेर में।
  • राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड (Rajasthan Livestock Development Board-RLDB) – जयपुर। इसकी स्थापना 25 मार्च, 1998 में की गई।
  • राजस्थान पशुपालक विकास बोर्ड (जयपुर) 13 अप्रेल, 2005।
  • राजस्थान की सबसे बड़ी गौशाला – पथमेड़ा (सांचौर-जालौर)।
  • राजस्थान गौशाला संघ का मुख्यालय – पिंजरापौल गौशाला, सांगानेर-जयपुर।
  • गौसदन नामक दो गौशालाएं – दौसा व कोड़मदेसर में।
  • पशु पोषाहार संस्थान – जामडोली (जयपुर)।
  • पशु पोषाहार संयंत्र – RCDF द्वारा जोधपुर, लालगढ़ (बीकानेर), नदबई (भरतपुर), तबीजी (अजमेर) में स्थापित।
  • राजफेड (राजस्थान राज्य सरकारी क्रय-विक्रय संघ) द्वारा झोटवाड़ा (जयपुर) में स्थापित।
  • वृहद चारा बीज उत्पादन फार्म – केन्द्र सरकार द्वारा मोहनगढ़ (जैसलमेर) में स्थापित।

पशु मेले

  • मल्लीनाथ पशु मेला- तिलवाड़ा (बाड़मेर) में वि.सं. 1431 को प्रारम्भ। सबसे प्राचीन मेला, राजस्थान सरकार के पशु पालन विभाग द्वारा पहली बार 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा। यह चैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ला 11 तक।
  • बलदेव पशु मेला- बलदेव राम मिर्धा की स्मृति में। मेड़ता सिटी (नागौर) में 1947 से प्रारम्भ। राज्य सरकार द्वारा 1957 से। यह चैत्र शुक्ला प्रतिपाद से चैत्र पूर्णिमा (15 दिन) तक।
  • गोमती सागर पशुमेला – झालरापाटन में, 1959 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। यह वैशाख शुक्ला 13 से ज्येष्ठ कृष्ण 5 तक (8 दिन)।
  • तेजाजी पशु मेला- आय की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा मेला। परबतसर (नागौर) में वि.सं. 1791 में महाराजा अजीत सिंह द्वारा प्रारम्भ। 1957 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। यह श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा (1 माह) तक।
  • गोगाजी पशु मेला- गोगामेड़ी (नोहर) हनुमानगढ़ में 1959 से प्रारम्भ और यह श्रावण पूर्णिमा से भाद्र पूर्णिमा (1 माह) तक।
  • जसवंत पशु प्रदर्शिनी- भरतपुर में 1958 से प्रारम्भ। आश्विन शुक्ला 5 से आश्विन शुक्ला 14 तक।
  • पुष्कर पशु मेला (कार्तिक पशु मेला) – अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का मेला। अजमेर में 1963 से प्रारम्भ। यह कार्तिक शुक्ला 8 से मार्ग शीर्ष कृष्णा द्वितीया तक (नवम्बर में)।
  • चन्द्रभागा पशु मेला- झालरापाटन में 1958 से प्रारम्भ। कार्तिक शुक्ला 11 से मार्ग शीर्ष कृष्णा 5 तक।
  • रामदेव पशु मेला- महाराजा उम्मेद सिंह ने 1958 में प्रारम्भ किया। यह नागौर (मानासरगांव) में माघ शुक्ला 1 से माघ पूर्णिमा (15 दिन) तक।
  • महाशिव रात्रि पशु मेला (माल मेला) – करौली में 1959 से प्रारम्भ यह फाल्गुन कृष्ण 5 से फाल्गुन कृष्णा 14 तक लगता है।
  • भावगढ़ बन्ध्या (खलकानी माता का मेला) – गधों का सबसे बड़ा (रियासत कालीन मेला)। यह लुणियावास, सांगानेर (जयपुर) में 1993 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। आ.शु. 7 से 11 तक।

पशु विकास से सम्बन्धित योजनाएँ :

  • गोपाल योजना- पशु नस्ल सुधार के लिए 2 अक्टूबर, 1990 से 10 जिलों में प्रारम्भ की थी। राज. के द.पू. जिलो में संचालित। 
  • चयनित ग्रामीण युवक जो दसवीं पास हो गोपाल कहलाता है।
  • कामधेनु योजना- गौशालाओं के उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध कराने के लिए व कृत्रिम गर्भाधान के लिए। यह 1997-98 में, सभी गौशालाओं में प्रारम्भ।
  • राष्ट्रीय गाय-भैंस परियोजना- गाय-भैंस में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार के लिए। यह 2001 में प्रारम्भ। पहले 20 जिलों में अब सभी जिलों में चल रही है। दस साल के लिए चलाई गई है।
  • वेटनरी कॉलेज- पहला सरकारी वेटनरी कॉलेज 1954 में बीकानेर में खोला गया तथा निजी क्षेत्र का पहला वेटनरी कॉलेज अपोलो कॉलेज जयपुर में 2002 में प्रारम्भ।

दुग्ध उत्पादन (डेयरी) :

  • 1970-71 में डेयरी कार्यक्रम वर्गीज कुरियन आणन्द [आनन्द (गुजरात)] नामक स्थान पर अमूल (Amul) डेयरी की स्थापना से प्रारम्भ किया गया।
  • इसे श्वेत क्रांति की शुरूआत कहा जाता है। वर्गीज कुरियन को श्वेत क्रांति का जनक कहा जाता है।
  • इस कार्यक्रम की सफलता को देखकर राजस्थान सहित 10 राज्यों में ’Operation Flood’ शुरू किया गया। इसके तीन चरण थे- (i) 1971 से 1978 तक (ii) 1978 से 1986 तक (iii) 1986 से 1994 तक।
  • वर्तमान में डेयरी विकास कार्यक्रम का संस्थागत ढांचा त्रिस्तरीय है।

1. शीर्ष स्तर पर (RCDF) राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन, स्थापना-1977, मुख्यालय जयपुर।

2. जिला स्तर पर – जिला दुग्ध उत्पादक संघ (वर्तमान में 21) जिला डेयरी संघ – 19 (16 + 3 + 2)। नागौर, बांसवाड़ा तथा बाड़मेर + टोंक, चित्तौड़गढ़।

3. प्राथमिक स्तर – वर्तमान में 11,421 दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां ग्राम स्तर पर पंजीकृत हैं।

  • भारत विश्व में दुग्ध उत्पादन में प्रथम है।
  • भारत में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले तीन राज्य – उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब।
  • राजस्थान में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन वाले तीन जिले – जयपुर, अलवर तथा श्रीगंगानगर।
  • राजस्थान में सबसे पहले 1975 में राजस्थान डेयरी विकास निगम की स्थापना की गई फिर इसे 1977 में RCDF में बदल दिया गया।
  • यह त्रिस्तरीय व्यवस्था के आधार पर दुग्ध उत्पादन करती है- RCDF शीर्ष संस्था तथा
  • दो नये डेयरी संघ प्रस्तावित – टोंक व चित्तौड़गढ़।

दुग्ध उत्पादन सहकारी समितियाँ :

  • पहली महिला डेयरी भोजूसर (बीकानेर) में 1992 में स्थापित। वर्तमान में राजस्थान के 20 जिलों में महिला डेयरी परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • राजस्थान की सबसे पुरानी डेयरी – पद्मा डेयरी, अजमेर।
  • वर्तमान की चार प्रमुख डेयरी – सरस (जयपुर), उरमूल (बीकानेर), वरमूल (जोधपुर) तथा गंगमूल (श्रीगंगानगर) में।
  • सबसे बड़ी डेयरी – रानीवाड़ा (जालौर) में 1986 में स्थापित।
  • प्रस्तावित पहली मेट्रो डेयरी जिसमें 1 लाख लीटर/दिन की उत्पादन क्षमता होगी – बस्सी, (जयपुर)।
  • सात दुग्ध पाउडर संयंत्र – हनुमानगढ़, बीकानेर, जयपुर, अलवर, अजमेर, रानीवाड़ा (जालौर) तथा जोधपुर में।
  • बतख-चूजा उत्पादन केन्द्र- बांसवाड़ा में।
  • 2009-10 में दुग्ध संकलन 15.50 लाख लीटर प्रतिदिन रहा।
  • विपणन – 14.98 लाख लीटर प्रतिदिन रहा। शेष का दुग्ध पाऊडर बनाया गया।
  • सघन डेयरी विकास परियोजना केन्द्र सरकार के द्वारा 9 जिलों में प्रस्तावित है। इसका प्रारम्भ झालावाड़ से प्रस्तावित है।
  • देव नारायण योजना – राज्य के पांच जिलों में सवाई माधोपुर, करौली, धोलपुर, अलवर, झालावाड़ में आर्थिक विकास हेतु डेयरी परियोजना चलायी जा रही है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य 

– गध व खच्चर सर्वाधिक बाड़मेर में तथा न्यूनतम टोंक में पाये जाते हैं।

– सुअर सर्वाधिक भरतपुर में तथा न्यूनतम डूंगरपुर में। लार्ज व्हाइट यार्कशायर सुअर की प्रमुख नस्ल है।

– कुक्कुट सर्वाधिक अजमेर में तथा न्यूनतम बाड़मेर में पाये जाते हैं। असील, वरसा, टेनी कुक्कुट की प्रमुख नस्लें हैं। देशी नस्ल की सर्वाधिक मुर्गियां बाँसवाड़ा जिले में हैं।

– राज्य में सर्वाधिक भैंसे मुर्रा नस्ल की हैं। मुर्रा दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से श्रेष्ठ भैंस नस्ल है।

– गाय की विदेशी नस्लें :- जर्सी, हॉलिस्टिन एवं रेडडेन।

– नागौर जिले का सुहालक प्रदेश बैलों के लिए प्रसिद्ध है।

– हीफर परियोजना :- 1997-98। गौवंश से सम्बन्धित परियोजना।

 हीफर परियोजना डूंगरपुर जिले में संचालित है।

– नीलगाय :- एंटीलोप प्रजाति का पशु। स्थानीय नाम :- रोजड़ा।

– रेवड़ :- भेड़ों का झुण्ड।

– अविकापाल जीवन रक्षक योजना :- 2004-05 में भेड़पालकों के लिए।

– राजस्थान का ऊन उत्पादन में भारत में पहला स्थान है।

 सर्वाधिक ऊन उत्पादक जिला :- (1) जोधपुर, (2) बीकानेर।

 न्यूनतम ऊन उत्पादक जिला :- (1) झालावाड़।

– राजस्थान का पहला गौ-अभयारण्य :- बीकानेर।

– उष्ट्र प्रजनन प्रोत्साहन योजना :- 02 अक्टूबर, 2016।

– देश की पहली गौमूत्र रिफाइनरी :- पथमेड़ा (सांचौर, जालौर)

– राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र :- जोहड़बीड़ (बीकानेर) स्थापना :- 5 जुलाई, 1984

– पश्चिमी क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र :- अविकानगर (टोंक)

– राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय :- बीकानेर

– स्विस स्कीम का सम्बन्ध भेड़ प्रजाति से है। जोधपुर-नागौर में संचालित स्कीम।

– वर्ष 2017 में प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा राजस्थान कृषि प्रतिस्पर्धात्मक परिेयोजना के तहत 7 पशुहाट खोलने की घोषणा की गई।

– भेड़ प्रजनन फार्म :- फतेहपुर (सीकर)

– केन्द्रीय भेड़ व ऊन अनुसंधान संस्थान :- अविकानगर (टोंक) 1962 में स्थापित।

– राजस्थान का पहला मत्स्य अभयारण्य :- बड़ी तालाब (उदयपुर)।

– बीसलपुर बाँध (टोंक) पर रंगीन मछलियों का ब्रीडिंग सेंटर व एक्वेरियम बनाया जा रहा है।

– आदिवासी मछुआरों के उत्थान हेतु महत्वाकांक्षी आजीविका मॉडल योजना राज्य के तीन जलाशयों जयसमन्द (उदयपुर), माही बजाज सागर (बाँसवाड़ा), कडाना बैक वाटर (डूंगरपुर) में प्रारम्भ की गई है।

– सुअर विकास फार्म :- अलवर में।

– राष्ट्रीय गोकुल मिशन :- दिसम्बर 2014 में प्रारम्भ।

– नकुल स्वास्थ्य पत्र का सम्बन्ध पशु स्वास्थ्य से है।

– राष्ट्रीय बोवाइन उत्पादकता मिशन परियोजना :- दिसम्बर 2016 में शुरू।

– राष्ट्रीय पशुधन नीति :- अप्रैल 2013

– बरसीम :- रबी में बोई जाने वाली दलहनी चारा फसल।

– एशिया की ऊन की सबसे बड़ी मंडी :- बीकानेर।

– ऊँट पालक जाति :- रेबारी (राइका) ऊँटों के देवता :- पाबुजी।

– गधों का मेला :- लुणियावास (जयपुर)

– कड़कनाथ योजना :- कुक्कुट पालन से सम्बन्धित बाँसवाड़ा में संचालित योजना।

– गरिमा :- विश्व की प्रथम क्लोन्ड भैंस (25 जनवरी, 2013)

– पोर्क :- सुअर का माँस।

– ऊँट के गले का आभूषण :- गोरबन्द।

– राज्य में ऊँट प्रजनन का कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा किया जाता है।

– गोपाल योजना :- 1990 से राज्य के 10 दक्षिणी-पूर्वी जिलों में संचालित योजना। उद्देश्य – कृत्रिम गर्भाधान द्वारा पशु नस्ल संवर्धन।

– थारपारकर वंशावली चयन परियोजना :- जोधपुर व जैसलमेर।

– राजस्थान में भेड़-ऊन प्रशिक्षण संस्थान :- जयपुर में।

– राजस्थान की अण्डे की टोकरी की उपमा :- अजमेर को

– शेखावटी नस्ल की बकरी के सींग नहीं होते हैं। काजरी वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नस्ल।

– बकरी की विष्ट को मींगणी कहा जाता है।

– पशुपालन विभाग की स्थापना :- 1957 में।

– राजस्थान राज्य सहकारी भेड़ व ऊन विपणन संघ लिमिटेड :- 1977 में स्थापित।

– नाचना (जैसलमेर) नामक स्थल ऊंटों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है।

– गोपालन निदेशालय :- 22 जुलाई, 2013

– गोपालन विभाग :- 13 मार्च, 2014

– भामाशाह पशुधन बीमा योजना :- 23 जुलाई, 2016

– राजस्थान गौ संरक्षण एवं संवर्धन निधि नियम :- 22 नवम्बर, 2016

– मुख्यमंत्री पशुधन नि:शुल्क दवा योजना :- 15 अगस्त, 2012

– कैमल मिल्क प्लान्ट :- जयपुर में

– ट्रेटापैक दुग्ध संयंत्र :- जयपुर में

– हिमीकृत वीर्य बैंक :- बस्सी जयपुर में 14 अगस्त, 2007 को स्थापित

– रामसर (अजमेर) :- चारा उत्पादन केन्द्र, बकरी प्रजनन व शोध केन्द्र।

– आनन्द वन :- पथमेड़ा (जालौर) में स्थित राज्य की सबसे बड़ी गौशाला।

– राज्य का पहला सीमन बैंक :- बस्सी (जयपुर)।

– बगरू (नागौर) :- बकरियों हेतु देशभर में प्रसिद्ध।

– बतख चूजा उत्पादन केन्द्र :- बाँसवाड़ा।

– राष्ट्रीय मत्स्य बीज उत्पादन फार्म :- कासिमपुरा (कोटा)।

– राजस्थान राज्य गौ सेवा आयोग :- 23 मार्च, 1995

डेयरी विकास

– राजस्थान में दुग्ध उत्पादन :- 18.5 मिलियन टन (देश का 11.9%)

– भारत के सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक राज्य :- (1) उत्तर प्रदेश, (2) राजस्थान, (3) गुजरात, (4) मध्य प्रदेश

– राजस्थान में 2015-16 में प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता :- 704 ग्राम प्रतिदिन।

– प्रदेश के दुग्ध उत्पादक जिले :- (1) जयपुर, (2) श्रीगंगानगर, (3) अलवर

– प्रदेश में न्यूनतम दुग्ध उत्पादन बाँसवाड़ा में होता है।

– राज्य का एकमात्र डेयरी व फुड साइंस महाविद्यालय उदयपुर में है।

– राष्ट्रीय दुग्ध दिवस :- 26 नवम्बर।

– राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान केन्द्र :- करनाल (हरियाणा में)।

– राजस्थान का पहला आइसक्रीम प्लान्ट :- भीलवाड़ा में (2015 में)।

– सहकारी डेयरी फैडरेशन (RCDF) :- 1977 में स्थापित।

– पद्‌मा डेयरी :- अजमेर स्थित राजस्थान की सबसे पुरानी डेयरी।

– ऊंटनी के दूध में विटामिन C की मात्रा अधिक होती है।

– राज सरस सुरक्षा कवच बीमा योजना :- 1 जनवरी, 2017

– मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक संबल योजना :- बजट 2019-20 में घोषणा।

 1 फरवरी, 2019 से योजना शुरू हुई जिसमें सहकारी संघों की दुग्ध समितियों को दूध की आपूर्ति करने वाले 5 लाख पशुपालकों को 2 रुपये प्रति लीटर का अनुदान देने की योजना है।

– राजस्थान ऊँट (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रवजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम 2015 :- 23 मार्च, 2015

– भारत की पहली कैमल मिल्क डेयरी :- जोहड़बीड़ (बीकानेर)

– अविका कवच बीमा योजना :- भेड़ पालकों के लिए। इसके तहत SC/ST/BPL किसानों द्वारा भेड़ों का बीमा करवाने पर प्रीमियम राशि का 80% तथा अन्य वर्ग के पशुपालकों के लिए 70% प्रीमियम व्यय सरकार द्वारा किया जायेगा।

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