भूगर्भिक संरचना

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– किसी भी प्रदेश की भूगर्भिक संरचना का संबंध वहाँ पाई जाने वाली शैलों (चट्‌टानों) की संरचना व उद्‌भव से होता है तथा उच्चावच का संबंध उस क्षेत्र की भूमि पर विद्यमान विविध-भूस्वरुपों से होता हैं। ये दोनों पृथक-पृथक न होकर एक-दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। भू संरचना ही उस क्षेत्र के उच्चावच का निर्धारण करती है।

– राजस्थान की भू-गर्भिक संरचना की प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ आर्कियन तथा प्री-कैम्ब्रियन युग की संरचना साथ-साथ दृष्टिगत होती हैं।

– अरावली पर्वतमाला का निर्माण प्री-कैम्ब्रियन काल में हुआ था। अरावली शृंखला के मध्य में विद्यमान विशाल समभिनति में पूर्व कैम्ब्रियन काल की अरावली महासमूह एवं दिल्ली (देहली) महासमूह की चट्‌टानें पायी जाती हैं।

– बुंदेलखण्ड नीस के शैल दुश्यांश बेराच घाटी में चित्तौड़ और भीलवाड़ा के मध्य लगभग 110 किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में फैले हैं। बुन्देलखण्ड नीस में मध्यम आकार के क्रिस्टलों वाले अपत्रित, अपार्फिरिटिक गुलाबी ग्रेनाइट सम्मिलित हैं।

– राज्य के पहाड़ी भागों में अरावली महासमूह की फाइलाइट एवं क्वार्टजाइट शैल समूहों की चट्टानें पायी जाती हैं।

– अजमेर एवं पश्चिमी मेवाड़ में देहली, महासमूह के शैल अरावली पर्वतमाला की सुन्दर पहाड़ियों का निर्माण करते हैं। देहली महासमूह में रायलो, अलवर एवं अजबगढ़ शैल समूह शामिल हैं।

– झाडोल समूह तथा उदयपुर समूह अरावली महासमूह में शामिल हैं।

– रायलो समूह में मुख्यत: चूने का पत्थर, संगमरमर, क्वार्ट्‌जाइटस एवं संगुटिकाश्म शैल समूह वर्गीकृत हैं।

– अजबगढ़ समूह के आधारीय शैल मुख्यत: बायोटाइट सिस्ट हैं, जिनमें कि पेगमेटाइट एवं एपेलाइट आग्नेय शैल अन्तर्वेधी है।

– पुराजीवी महाकल्प के विन्ध्य समूह के शैल मुख्यत: पूर्वी राजस्थान में विन्ध्यन बेसिन में निच्छेदित है। यह बेसिन उत्तर-पूर्व में करौली-धौलपुर से लेकर दक्षिण-पश्चिम में निम्बाहेड़ा एवं सुकेत तक विस्तृत हैं।

 पश्चिमी राजस्थान में विन्ध्य महासमूह के समकालीन शैलों का विच्छेदन नागौर एवं बिरमानिया बेसिन में हुआ।

– विन्ध्यन महासमूह के शैल अधिक्षेप द्वारा प्रभावित हैं।

– बिरमानिया बेसिन जैसलमेर के दक्षिण में एक छोटा बेसिन हैं। बिरमानिया शैल संस्तर समभित वलन से प्रभावित है, जिनमें अक्षांश रेखा की स्ट्राइक उ. उ. पू. से द. द. प. दिशा में है, जिनका डिप 35° से 80° तक हैं।

– मारवाड़ महासमूह :- नागौर बेसिन एवं बिरमानिया बेसिन।

– पुराजीवी महाकल्प के अन्तिम चरण पर्मियन व कार्बोनिफेरस काल में कुछ शैल बैंड (बाप बोल्डर बैंड, भादुरा बालुकाश्म) का अवसादन हुआ।

– बाप बोल्डर बैंड :- जोधपुर के बाप क्षेत्र में विस्तृत गोलाकार संस्तर। तालचीर बोल्डर बैंड के समकालीन। हिम-वाहित।

– भादुरा बालुकाश्म :- सामुद्रिक अवस्था में निर्माण। यह मुख्य रूप से भादुरा के उत्तर-पश्चिम से लेकर हरबंस तक फैले हुए हैं। जीवाश्मयुक्त बालुकाश्म।

– मध्यजीवी महाकल्प में राजस्थान के जैसलमेर तथा बाड़मेर जिलों के शैल समूहों का अवसादन हुआ, जो मालानी आग्नेयक्रम पर अध्यारोपित हैं। इसमें प्रधानत: जैसलमेर के जुरैसिक कालीन शैल समूह हैं। इस महाकल्प में यहाँ केवल जुरैसिक एवं क्रिटेशियस युग के शैल ही अवसादित हुए।

– क्रिटेशियस युग के शैल समूह आबुर, परवार, फतेहगढ़ श्रेणियों के हैं जिनमें बालुकाश्म, फास्फेटिक बालुकाश्म तथा चूने के पत्थर एवं क्ले की चट्‌टानें विद्यमान हैं।

– जुरैसिक काल के शैलों में बेडेसर श्रेणी, बैशाख श्रेणी, जैसलमेर श्रेणी एवं लाठी श्रेणी हैं, जिनमें चूने के पत्थर बालुकाश्म, चूर्णिय जीवाश्म युक्त बालुकाश्म एवं संगुटिकाश्म बालुकाश्म मिलते हैं। जैसलमेर के आकलवुड फॉसिल पार्क में पायी जाने वाली जीवाश्म लकड़ी जुरसिक काल की उदाहरण है।

– नवजीवी महाकल्प को तृतीयक एवं चतुर्थक नामक दो कल्पों में विभाजित किया गया हैं।

– तृतीयक कल्प के शैल-समूह मुख्यत: नागौर, बीकानेर, जैसलमेर एवं बाड़मेर जिले में नरम बालुकाश्म, जीवाश्म युक्त चूने का पत्थर, बेन्टोनिटिक, मृदिकाएँ, मुल्तानी मिट्‌टी एवं लिग्नाइट आदि के रूप में विद्यमान हैं।

– राजस्थान की भू-संरचना अत्यधिक जटिल है। इसके फलस्वरूप यहाँ विभिन्न शैल समूहों का निर्माण हुआ है, जो भीलवाड़ा सुपर समूह, अरावली सिस्टम, देहली महासमूह, विन्ध्य श्रेणी, मालानी श्रेणी एवं पलानी श्रेणी है।

– भीलवाड़ा महासमूह के अन्तर्गत बुन्देलखंड नीस व पटि्टत नीस सम्मिश्रण सम्मिलित हैं। यह प्राचीनतम शैलों में पाये जाते हैं। पूर्वी राजस्थान में लगभग 610 किमी. की लम्बाई एवं 210 किमी. की चौड़ाई में उत्तर से दक्षिण तक फैला है, जो प्राचीन आर्कियन युग से सम्बन्धित है। यह शैल शुद्ध न होकर मिश्रित समूह में मिलती हैं।

– अरावली सिस्टम में कायान्तरित प्राचीन शैलों से युक्त चट्टानें पाई जाती हैं जिसमें भृष्मय चट्‌टानों की प्रधानता हैं। इसके अन्तर्गत क्वार्टजाइट, ग्रिटस, फाइलाइट्स, लाइमस्टोन, मिश्रित नीस प्रमुखता से मिलती है। सवाईमाधोपुर में पाया जाने वाला बलुआ पत्थर अरावली सिस्टम से सम्बन्धित हैं।

– देहली महासमूह में रायलो समूह, अलवर समूह, अजबगढ़ समूह में मुख्यत: केल्साइट, क्वार्ट्‌जाइट, ग्रिट, शिष्ट चट्‌टानें मिलती हैं।

– विन्ध्यन श्रेणी में बलुआ पत्थर, चूना पत्थर शैलों की अधिकता है। इस प्रकार की शैलों का विस्तार पश्चिमी राजस्थान में अधिक है। लावा उद्‌भूत ग्रेनाइट जालौर, सीवाना, मोकलसर व जोधपुर में पाया जाता है। करौली, धौलपुर, निम्बाहेड़ा, सुकेत, बूँदी, सवाईमाधाेपुर क्षेत्रों में उपलब्ध शैल विन्ध्यन श्रेणी के हैं।

– मालानी श्रेणी की चट्‌टानें रायोलाइटिक लावा समूह से बनी हैं, जो अरावली शिष्ट पर टिकी हुई हैं। इन सभी आग्नेय समूह की चट्टानों के जमावों को मालाणी स्थान के नाम के आधार पर मालाणी श्रेणी कहा जाता है। जालौर ग्रेनाइट, सिवाना और एरिनपुरा ग्रेनाइट मालानी श्रेणी से सम्बन्धित हैं।

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