मरु विकास एवं बंजर भूमि कार्यक्रम

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 भौतिक दृष्टि से राजस्थान को अरावली पर्वत शृंखला ने दो भागों में विभक्त कर दिया हैं।

– राजस्थान के उत्तरी पश्चिमी भाग में स्थित 13 जिलों में से 12 जिले मरुस्थलीय हैं जिनका विस्तार उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर लगभग 640 किमी. तथा पश्चिम से पूर्व की ओर लगभग 300 किमी. भू-भाग पर है। इसका क्षेत्रफल लगभग 1,75,000 वर्ग किमी. हैं जिसमें राज्य की लगभग 40% जनता निवास करती हैं। राज्य के गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, जैसलमेर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर तथा जालौर इस मरु क्षेत्र में आते हैं। राजस्थान का मरु प्रदेश वर्षा की अल्प मात्रा के कारण प्राय: सूखा एवं अकाल से पीड़ित रहता हैं। धूल भरी आँधियों के फलस्वरूप स्थान-स्थान पर रेत के ऊँचे टीले अर्थात धोरे दिखाई देते हैं, जो अपने स्थान तेज हवाओं व आँधियों के कारण बदलते रहते हैं। 1962 के भू-सर्वेक्षण के अनुसार वैज्ञानिकों का मानना हैं कि यह मरु क्षेत्र गंगा-सिंधु के उपजाऊ मैदान का ही एक भाग हैं। स्वतंत्रता के पश्चात से ही मरु प्रदेश को विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं जिसमें निम्नलिखित कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं :-

(i) इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना :- 31 मार्च, 1958 को परियोजना का शिलान्यास। मरु क्षेत्र विकास की दृष्टि से यह योजना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

(ii) मरु विकास कार्यक्रम :- 1977-78 ई. में केन्द्र सरकार की 100% सहायता से प्रारम्भ किया गया कार्यक्रम। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मरुस्थल के विस्तार को रोकना तथा मरु क्षेत्र का आर्थिक विकास करना है।

 इस कार्यक्रम हेतु 1 अप्रैल, 1999 से कोष आवंटन का तरीका बदलकर 75% केन्द्र सरकार व 25% राज्य सरकार द्वारा देय कर दी गई हैं। वर्तमान में यह कार्यक्रम 16 मरुस्थलीय जिलों के 85 विकास खण्डों में क्रियान्वित किया जा रहा है।

 इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भूमि एवं जल संरक्षण भू-जल अन्वेषण एवं दोहन, चरागाह विकास, वन विकास, सिंचाई, डेयरी विकास, पशु स्वास्थ्य, सिल्वी पास्टोरल रोपण स्थली, टीलों का स्थिरीकरण आदि क्षेत्रों को प्रोत्साहन दिया गया।

(iii) मरुकरण संघाती परियोजना :- 1999-2000 से क्रियान्वित। 10 मरुस्थली जिलों में संचालित।

(iv) मरुस्थल वृक्षारोपण शोध केन्द्र :- 1952 में जोधपुर में।

(v) केन्द्रीय मरु क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) :- 1959 में जोधपुर में स्थापना। काजरी मरुस्थल के प्रसार को रोकने तथा वहाँ कृषि की उपज में वृद्धि से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करने के लिए शोध कार्य सम्पन्न करता है।

(vi) मरु प्रसार रोकथाम कार्यक्रम :- 1999-2000 से संचालित भारत सरकार की 75% भागीदारी से राजस्थान के 10 मरुस्थलीय जिलों में टीबा स्थिरीकरण हेतु।

(vii) मरुगोचर योजना :- राजस्थान के मरुस्थलीय जिलों में पारम्परिक जल स्रोतों की बहाली तथा प्रभावी सूखा रक्षण के अन्य उपाय करने हेतु 2003-04 से राज्य के 10 जिलों में प्रारम्भ योजना।

– राष्ट्रीय परती भूमि विकास बोर्ड ने परती भूमि को 13 वर्गों में विभाजित किया हैं।

– राज्य में सर्वाधिक परती भूमि :- चूरू जिला।

– राज्य में न्यूनतम परती भूमि वाला जिला :- भरतपुर।

– लवणीय भूमि का सर्वाधिक क्षेत्र :- पाली में।

– राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड की स्थापना :- 1960 में।

– राजस्थान में बंजर भूमि विकास कार्यक्रम को क्रियान्वित करने का उत्तरदायित्व ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज विभाग का हैं।

– समेकित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम (IBDP):- 1989-90 में शुरू।

 इस कार्यक्रम के अंतर्गत राजस्थान के 10 जिलों में 1992-93 से व्यर्थ भूमि विकास कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।

– समन्वित व्यर्थ भूमि विकास कार्यक्रम (IWDP) :- 1992-93 में शुरू।

 इस कार्यक्रम का उद्देश्य गैर वन क्षेत्र में जलाने के लिए लकड़ी, इमारती लकड़ी, चारा एवं घास पैदा करना है जिससे ग्रामीण समुदाय की आवश्यकता की पूर्ति की जा सके। राज्य के 18 जिलों में संचालित।

– जलग्रहण विकास कार्यक्रम :- 1995 में शुरू।

– राष्ट्रीय बंजर भूमि अद्यतनीकरण मिशन (N.W.U. M.) की शुरूआत वर्ष 2003 में की गई।

– राजस्थान में बंजर भूमि :- 38.95 लाख हैक्टेयर (11.37%)

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