राजस्थानी हस्तकला

Estimated reading: 1 minute 93 views

अर्थ – हाथों द्वारा आकर्षक व कलात्मक वस्तुएँ बनाना हस्तकला या हस्तशिल्प कहलाता हैं।

महत्त्व –

  • हस्तकला द्वारा रोजगार के अवसर सृजित किए जाते हैं।
  • विदेशी मुद्रा अर्जित करने का महत्त्वपूर्ण स्रोत।
  • स्थानीय लोगों को हस्तकला के क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाकर अन्यत्र पलायन करने से रोकना

राजस्थान की प्रमुख हस्तकलाएँ

हाथी दाँत की वस्तुएँ –

  • राजस्थान में राजपूत समाज की महिलाओं द्वारा विवाह के समय हाथी दाँत से बना चूड़ा पहनाया जाने की प्रथा हैं।
  • हाथी दाँत के विभिन्न प्रकार के आभूषण (मणिए, पहॅुंचियाँ, अंगूठिया, कर्णाभूषण) जोधपुर मे बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं।
  • पर्यटकों की हाथी दाँत की वस्तुओं की मांग को देखते हुए भरतपुर, मेड़ता, उदयपुर, जयपुर और पाली में भी यह कार्य किया जाता हैं।

मीनाकारी –

  • मीनाकारी का कार्य राजस्थान मे प्रमुखतया जयपुर में किया जाता हैं।
  • प्रतापगढ़ की मीनाकारी (थेवाकला) के अन्तर्गत सोने के आभूषणों पर हरे रंग को आधार बनाकर मीनाकारी का कार्य किया जाता हैं।
  • मीनाकारी का कार्य मूल्यवान अथवा सोने से निर्मित हल्के आभूषणों पर किया जाता हैं।
  • मीनाकारी में प्राकृतिक पशु-पक्षियों का अंकन प्राय: किया जाता हैं।
  • पक्की व कच्ची दोनों प्रकार की मीनाकारी की जाती हैं।

मूल्यवान रत्नों की कटाई –

  • जयपुर में मूल्यवान व अर्द्धमूल्यवान पत्थरों की कटाई से युक्त विभिन्न प्रकार की आकृतियों से निर्मित आभूषण अपनी जड़ाई, कटाई तथा डिजाईन के कारण विश्व विख्यात हैं।
  • प्राकृतिक व कृत्रिम रत्नों की कलात्मक कटाई व पॉलिश का कार्य वर्तमान में ज्यादा प्रचलित हैं।

लाख एवं काँच से निर्मित –

  • लाख से बनाई जाने वाली बहुरंगी चुड़ियों के काँच पर अलग-अलग प्रकार के हीरे चिपकाए जाते हैं।
  • राज्य में जयपुर व जोधपुर लाख से निर्मित वस्तुओं के प्रमुख केन्द्र हैं। लाख से बनी चुड़ियों का काम जयपुर, करौली, व हिण्डौन में होता हैं।
  • मोकड़ी – लाख से बनी चुड़ियाँ।

संगमरमर की मूर्तियाँ –

  • राज्य में संगमरमर की मूर्तियों का प्रमुख केन्द्र जयपुर हैं। इसके अलावा अलवर के निकट किशोरी ग्राम में भी संगमरमर की मूर्तियाँ व अन्य वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
  • ये मूर्तियाँ पौराणिक व धार्मिक विषयवस्तु से संबंधित होती हैं।

पीतल की मीनाकारी –

  • प्रमुख केन्द्र – जयपुर और अलवर। यहाँ पर पीतल की मीनाकारी की अनेक सजावटी वस्तुए बनाई जाती हैं।
  • प्रमुख वस्तुएँ – पशु-पक्षी, कलात्मक फूलदान, फलदान, गुलदस्ते, लेम्प स्टैण्ड, दीपदान।
  • बादला – जोधपुर में पानी को ठण्डा रखने हेतु कलात्मक रूप से सजाकर बनाए जाने वाले पानी के बर्तन।

रंगाई, छपाई व बन्धेज के वस्त्र –

  • राज्य में ये कार्य नीलगरों अथवा रंगरेजों द्वारा किया जाता हैं।
  • प्रमुख केन्द्र – पाली, सांगानेर, बाड़मेर, बीकानेर।
  • अजरक प्रिन्ट – बाड़मेर।
  • जाजमछपाई – चितौड़गढ़
  • सांगानेरी छपाई – जयपुर
  • लहरिया व मोण्डे – बीकानेर
  • रूपहली व सुनहरी छपाई – चितौड़गढ़, किशनगढ़ व कोटा।
  • बन्धेज – राज्य का बंधेज या मोठड़ा विश्वविख्यात हैं। इसमें शेखावटी व मारवाड़ का बंधेज प्रसिद्ध हैं। जयपुर का लहरिया व पोमचा प्रसिद्ध हैं। अकोला – चितौड़गढ़ की बंधेज व दाबू प्रिन्ट कला।
  • रवड्ढी की छपाई – जयपुर और उदयपुर में लाल रंग की ओढ़नियों पर गोंद मिश्रित की छपाई के बाद लकड़ी के छापों द्वारा सोने-चाँदी के तवक की छपाई।
  • टुकड़ी – मारवाड़ के देशी कपड़ों में सर्वोंत्तम, निर्माण केन्द्र – जालौर व मारोठ (नागौर)।
  • गोटे का कार्य – जयपुर, बातिक का कार्य खण्डेला में किया जाता हैं।

कशीदाकारी –

  • कशीदाकारी के प्रमुख प्रतीक – मोर, कमल, हाथी तथा ऊँट
  • प्रमुख केन्द्र – जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा,
  • मसूरिया मलमल, कोटा डोरिया साड़ियाँ – कोटा।

चमड़े पर हस्तशिल्प –

  • राज्य में जयपुर व जोधपुर की नागरी व मौजड़याँ, जूतियाँ अपनी कशीदाकारी के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • प्रमुख केन्द्र – भीनमाल और जालौर की कशीदाकारी वाली जूतियाँ पूरे मारवाड़ में प्रसिद्ध हैं।
  • बडू नागौर – यहा बनने वाली कशीदायुक्त जूतियाँ संयुक्त राष्ट्र संघ की एक परियोजना के तहत, “संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम” के तहत चलाई जा रही हैं।

खिलौने व कटपुतलियाँ –

  • राज्य में काट (लकड़ी) से बनी हुई कलात्मक चित्रांकन से युक्त कटपुतलियाँ परम्परागत हस्तशिल्प का अभिन्न अंग हैं।
  • प्रमुख केन्द्र – उदयपुर, बस्सी गाँव (चितौड़गढ़), नागौर, जयपुर।
  • रमकड़ा – सोपस्टोन को तराश कर बनाए गए खिलौनों का काम रमकड़ा उद्योग कहलाता हैं। प्रमुख केन्द्र – गलियाकोट (डूंगरपुर)।

लकड़ी पर नक्काशी –

  • प्रमुख केन्द्र – बीकानेर, उदयपुर, सवाई माधोपुर व शेखावटी क्षेत्र।
  • लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे – बीकानेर और शेखावटी

कागज बनाने की कला –

  • प्रमुख केन्द्र – सांगानेर व सवाई माधोपुर में हाथ से निर्मित कागज

दरी व कालीन –

  • प्रमुख केन्द्र – जयपुर, अजमेर, बीकानेर, सालावास (जोधपुर), जालौर, टांकला (नागौर), बाड़मेर, जैसलमेर आदि।
  • बीकानेर में वियना तथा फरसी डिजायनर के गलीचे बनाये जाते हैं।

पॉटरी –

  • जयपुर में चीनी व मिट्टी के सफेद व नीले रंग के तथा फुल, पत्तियों के डिजायनदार बर्तन व खिलौनें बनाये जाते हैं।
  • सुनहरी पेंटिंग पॉटरी – बीकानेर।
  • कागजी  – अलवर की डबल कट वर्क की पॉटरी
  • ब्लेक पॉटरी – कोटा की ब्लेक पॉटरी, फुलदानों, प्लेटों व मटकों के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • ब्ल्यू पॉटरी – जयपुर की ब्ल्यू पॉटरी विश्वप्रसिद्ध हैं। यह चीनी के बर्तनों पर रंगीन व आकर्षक चित्रकारी हैं।

लोक चित्रांकन –

  • फड़ या पड़ – यह राजस्थान में चित्रों के माध्यम से कथा कहने की एक विद्या हैं। यह चित्रण कपड़े या केनवास पर किया जाता हैं।
  • फड़ का वाचन ‘भोपा’ समुदाय द्वारा किया जाता हैं।
  • पिछवई – भगवान कृष्ण की लीला से संबंधित चित्र कृष्ण की मूर्ति के पीछे दीवारों पर लगाये जाने के कारण पिछवई कहलाये जाने लगे। नाथद्वारा की पिछवई प्रसिद्ध हैं।

थेवा कला –

  • यह काँच पर सोने की सुक्ष्म चित्रांकन कला हैं।
  • प्रतापगढ़ की थेवा कला विश्वप्रसिद्ध हैं।
  • इसमें रंगीन बैल्जियम काँच का प्रयोग किया जाता हैं।

काष्ठ कला –

  • प्रमुख केन्द्र – जेठाना (डूंगरपुर)
  • जालौर – प्राचीन व मध्यकालीन काष्ठ कला हेतु प्रसिद्ध।
  • बस्सी (चित्तौड़गढ़) गाँव काष्ठ कला के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं।

मथैरण कला –

  • प्रमुख केन्द्र – बीकानेर।
  • इस कला के साधक धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर आधारित देवी-देवताओं के भित्ति चित्र तथा गणगौर, तोरण, ईसर आदि का निर्माण कर इनकों रंगों से सजाने का कार्य करते हैं।

टेराकोटा –

  • प्रमुख केन्द्र – मोलेला गाँव (नाथद्वारा, राजसमन्द), बू-नरावता (नागौर)
  • यह मिट्टी की मूर्तियों को बनाने की हस्तकला हैं।

उस्त कला –

  • प्रमुख केन्द्र –  बीकानेर।
  • बीकानेर में ऊँट की खाल पर स्वर्णिम नक्काशी जिसे उस्त कला कहते हैं, विश्वप्रसिद्ध हैं।
  • प्रमुख कलाकार – हिस्सामुद्दीन।

बुनाई उद्योग –

प्रमुख केन्द्र –

  • मांगरोल – मसूरिया के लिए प्रसिद्ध।
  • कैथून – सूत और सिल्क की बुनाई के लिए प्रसिद्ध ।
  • तनसुख और मथानिया – मलमल के लिए प्रसिद्ध।
  • बीकानेर और जैसलमेर – ऊन के लिए प्रसिद्ध।
  • नापासर – लोई के लिए प्रसिद्ध।

राजस्थान में हस्तशिल्प विकास हेतु सरकारी प्रयास

राजस्थान लघु उद्योग निगम (राजसिको)

  • यह केन्द्र राज्य में विलुप्त होती हस्तकलाओं के लिए नवीन प्रौद्योगिकी ज्ञान उपलब्ध करवाकर विभिन्न प्रकार की संस्थाओं के माध्यम से हस्तशिल्पकारों व उद्यमियों का संरक्षण करना हैं।
  • गलीचा प्रशिक्षण केन्द्र – राजसिको द्वारा संचालित तथा अनुसूचित जाति विकास निगम द्वारा वित्त पोषित यह केन्द्र राज्य के विभिन्न जिलों में कार्यरत हैं।
  • राजसिको कमाण्ड एरिया योजना के अन्तर्गत राज्य में विभिन्न स्थानों पर कार्यरत हैं।
  • राजसिको द्वारा ‘राजस्थली एम्पोरियम’ द्वारा राज्य में हस्तशिल्प की वस्तुओं का विपणन किया जा रहा हैं।
  • 1983 में स्थापित भारत सरकार के राष्ट्रीय उद्यम विकास बोर्ड और राष्ट्रीय उद्यमशीलता व लघु व्यापार विकास संस्थान लघु उद्योगो से संबंधित हैं।
  • लघु उद्योग विकास निगम राज्य में लघु उद्योगों को तकनीकी व आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाता हैं।
  • सांगानेर (जयपुर) में हस्तशिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम व खादी ग्रामोद्योग आयोग के संयुक्त प्रयासों से की गई हैं।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

– फड़ पेन्टिंग :- शाहपुरा।

– लकड़ी के खिलौने :- डूंगरपुर व उदयपुर।

– मसूरिया-डोरिया की साड़ियाँ – कैथून (कोटा)।

– संगमरमर पर मीनाकारी का काम जयपुर में होता है।

– कागज जैसे पतले पत्थर पर मीनाकारी के लिए बीकानेर के मीनाकार प्रसिद्ध हैं।

– वस्त्रों में टुकड़ी बनाने के लिए जालौर व नागौर का मारोठ गाँव प्रसिद्ध है।

– ब्लू पॉटरी का जन्मदाता पर्शिया (ईरान) को माना जाता है।

– थेवा कला का कार्य प्रतापगढ़ के राजसोनी परिवार द्वारा किया जाता है।

– राजसिको की स्थापना :- 1969 में।

Leave a Comment

CONTENTS