जाट वंश

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भरतपुर का जाटवंश

  • राजस्थान के पूर्वी भाग भरतपुर, धौलपुर पर जाट वंश का शासन था।
  • भरतपुर के जाटवंश के कुलदेवता भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण है।
  • औरंगजेब के विरूद्ध सबसे पहला संगठित किसान विद्रोह भरतपुर तथा दिल्ली के जाटों द्वारा किया गया।
  • 1669 ई. में मथुरा के जाटों ने पहला हिन्दू विद्रोह स्थानीय जाट जमींदार गोकुल जाट के नेतृत्व में किया जिसे मुगल फौजदार हसन अली खाँ ने दबा दिया तथा तिलपत की लड़ाई में गोकुल जाट मारा गया।
  • 1685 ई. में दूसरा जाट विद्रोह राजाराम जाट के नेतृत्व में हुआ। इन्होंने छापामार हमलों के साथ लूटमार की नीति अपनाई।
  • राजाराम के नेतृत्व में जाट विद्रोहियों ने सिकंदरा (आगरा) स्थित अकबर के मकबरे को लूटा था।
  • 1688 ई. में बीदर बक्श तथा आमेर के बिशनसिंह ने राजाराम को परास्त किया।

चूड़ामन जाट (1695-1721 ई.)

  • चूड़ामन जाट ने भरतपुर में जाठ राज्य की स्थापना की।
  • राजाराम की मृत्यु के बाद चूड़ामन जाट ने विद्रोह की कमान संभाली।
  • इसने अपनी शक्ति का विस्तार करते हुए थून के किले का निर्माण करवाया।
  • मुगल शासक मुहम्मदशाह के आदेश पर सवाई जयसिंह ने चूड़ामन को हराकर थून के किले पर अधिकार कर लिया।
  • इसके बाद चूड़ामन ने आत्महत्या कर ली।

बदनसिंह (1723-1755 ई.)

  • चूड़ामन के बाद बदनसिंह जाट विद्रोहियों का नेता बना।
  • जयपुर शासक सवाई जयसिंह ने बदनसिंह को डीग की जागीर दी तथा ‘ब्रजराज’ की उपाधि से सम्मानित किया।
  • बदनसिंह ने अपना राज्य विस्तार आगरा तथा भरतपुर तक कर लिया।
  • बदनसिंह ने भरतपुर का शासक बनने के बाद डीग के किले में कुछ महल तथा वृंदावन में मंदिर का निर्माण करवाया।
  • बदनसिंह ने अपने शासनकाल में ही अपने पुत्र सूरजमल को शासन सौंप दिया था।

महाराजा सूरजमल (1755-1764 ई.)

  • सूरजमल के समय भरतपुर, मथुरा, आगरा, मेरठ तथा अलीगढ़ आदि जागीरें इसके अधीन थी।
  • बुद्धिमता तथा राजनैतिक कुशलता के कारण सूरजमल को ‘जाट जाति का अफलातुन’ कहा जाता है।
  • इसने अपने राज्य को उस समय भी समृद्ध बनाए रखा जब अन्य राज्य अवनति की ओर अग्रसर थे।
  • सूरजमल ने जयपुर के सवाई ईश्वरी सिंह को राज सिंहासन प्राप्त करने में सहायता प्रदान की थी।
  • 1754 ई. में मराठा सरदार होल्कर ने कुम्हेर पर आक्रमण किया लेकिन सूरजमल ने उसके आक्रमण को विफल कर दिया।
  • सूरजमल ने अहमदशाह अब्दाली के विरूद्ध मराठों को सैनिक सहायता दी लेकिन इस युद्ध में मराठाओं के हारने के बावजूद भी मराठों को अपने राज्य में शरण दी तथा उन्हें अहमदशाह अब्दाली को सौंपने से मना कर दिया।
  • सूरजमल ने 1761 ई. में आगरा के किले पर अधिकार कर लिया था।
  • सूरजमल ने लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया जिसे भारत की स्वतंत्रता तक कोई भी शत्रु जीत नहीं सका।
  • भरतपुर के डीग के जल महलों का निर्माण सुरजमल ने करवाया। ये महल अपनी विशालता, मुगलशैली के उद्यान तथा फव्वारों के लिए प्रसिद्ध है।
  • सूरजमल नजीबुदौला के विरूद्ध युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।

महाराजा जवाहर सिंह (1764-1768 ई.)

  • सूरजमल के देहांत के बाद उनके पुत्र जवाहरसिंह शासक बने।
  • इन्हें मराठों, रूहेलों तथा राजपूतों से संघर्ष करना पड़ा तथा इसके समय जाट राज्य की शक्ति कमजोर होने लगी।
  • इसने नजीबुदौला के विरूद्ध दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिल्ली की घेराबंदी की लेकिन इसे सफलता नहीं मिली।
  • जयपुर के सवाई माधोसिंह प्रथम ने जवाहरसिंह को पराजित कर कामा परगने पर अधिकार कर लिया।
  • जवाहर सिंह के बाद अल्पकाल के लिए रतनसिंह शासक बने।

महाराजा केसरी सिंह (1769-1777 ई.)

  • रतनसिंह के बाद जवाहरसिंह के पुत्र केसरी सिंह शासक बने।
  • इनके समय इनके चाचा रणजीत सिंह ने मराठों की सहायता से भरतपुर पर आक्रमण किया तथा अंत में मराठों को धन देकर युद्ध समाप्त किया गया।
  • महाराजा सूरजमल की विधवा किशोरी देवी के आग्रह पर नफज खाँ ने भरतपुर राज्य के पुनर्गठन की जिम्मेदारी ली।
  • नफज खाँ ने रणजीतसिंह को केसरी सिंह का दीवान नियुक्त किया।

महाराजा रणजीत सिंह (1777-1805 ई.)

  • महाराजा केसरी सिंह के बाद उनके चाचा रणजीत सिंह शासक बने।
  • इस समय डीग तथा आगरा पर मुगलों का अधिकार था। इस समय मुगल बादशाह शाहआलम ने डीग का किला रणजीत सिंह को सौंप दिया।
  • अंग्रेजी सेना ने लॉर्ड लेक के नेतृत्व में जब मराठा सरदार होल्कर पर आक्रमण किया तब होल्कर ने रणजीत सिंह के यहाँ शरण ली।
  • इस कारण 1804 ई. में लॉर्ड लेक ने भरतपुर पर आक्रमण किया लेकिन वह दुर्ग को नहीं जीत सका।

महाराजा रणधीर सिंह (1805-1823 ई.)

  • महाराजा रणजीत सिंह के देहांत के पश्चात इनका पुत्र रणधीर सिंह शासक बना।
  • 1818 ई. की संधि के तहत अंग्रेज सरकार ने भरतपुर रियासत का ‘खिराज’ माफ कर दिया था।  
  • 1823 ई. में इनका देहांत हो गया।
  • रणधीर सिंह के बाद क्रमश: बलदेव सिंह तथा दुर्जनशाल कुछ समय के लिए शासक बने।

महाराजा बलवंत सिंह (1826-1853 ई.)

  • दुर्जनशाल सिंह ने कुंवर बलवंत सिंह को कैद कर लिया था लेकिन अंग्रेज सेनापति केम्बरमेयर ने भरतपुर पर आक्रमण कर दुर्जनशाल को गिरफ्तार कर कुंवर बलवंत सिंह को शासक बनाया।
  • इनके अवयस्क होने के कारण शासन कार्य देखने के लिए पॉलिटिकल एजेंट की नियुक्ति की गई।
  • इनके समय पॉलिटिकल एजेंट की रिपॉर्ट पर राजमाता तथा दीवान बैजनाथ को राज्य की अव्यवस्था के आरोप में राज्य से निष्कासित कर दिया गया था।

महाराजा जसवंत सिंह (1853-1893 ई.)

  • महाराजा बलवंत सिंह के देहांत के बाद जसवंत सिंह भरतपुर के शासक बने।
  • 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम के समय भरतपुर के शासक जसवंत सिंह थे।
  • इनके पश्चात रामसिंह कुछ समय के लिए भरतपुर के शासक बने।

किशनसिंह (1900-1929 ई.)

  • अंग्रेज सरकार ने 1900 ई. में रामसिंह को सिंहासन से हटाकर उनके पुत्र किशनसिंह को शासक बनाया।
  • इन्होंने उर्दू के स्थान पर हिन्दी को राजभाषा बनाया।
  • वर्ष 1927 में इनके समय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया।
  • वर्ष 1928 में किशनसिंह पर अपव्यय का आरोप लगाकर अंग्रेज सरकार ने डी. जी. मैकेजी को भरतपुर का प्रशासक नियुक्त किया।

बृजेन्द्र सिंह (1929-1948 ई.)

  • किशनसिंह के देहांत के बाद अप्रैल, 1929 में बृजेन्द्रसिंह शासक बने।
  • इनके समय 1938 में भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गई।
  • 18 मार्च, 1948 को भरतपुर का मत्स्य संघ में विलय हो गया।

धौलपुर का जाटवंश

  • राजस्थान में जाट शासकों के अधीन भरतपुर के अलावा दूसरी रियासत धौलपुर थी।
  • इस जाटवंश के किसी पूर्वज को बाजीराव पेशवा ने गोहद नामक गाँव का हाकिम बनाया था।
  • इसी के वंशज लोकेन्द्रसिंह ने गोहद को भरतपुर राज्य से स्वतंत्र कर लिया था।
  • महादजी सिंधिया ने ग्वालियर एवं गोहद को अपने अधीन कर लोकेंद्र सिंह को कैद कर लिया।
  • 1804 ई. में अंग्रेज सरकार ने महादजी सिंधिया से ग्वालियर एवं गोहद छीन लिया तथा लोकेंद्र सिंह के पुत्र कीर्तिसिंह को गोहद को शासक बना दिया तथा इसे धौलपुर, बाड़ी, राजाखेड़ा के परगने दिए गए।
  • 1804 ई. में अंग्रेज सरकार ने धौलपुर को एक नई रियासत बनाया।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय धौलपुर के शासक भगवंत सिंह थे। इनके समय क्रांतिकारियों ने धौलपुर दुर्ग पर अधिकार कर इसे लूटा था।
  • वर्ष 1930 में प्रथम गोलमेज सम्मेलन में उदयभानसिंह ने हिस्सा लिया था।
  • 18 मार्च, 1948 को धौलपुर का मत्स्य संघ में विलय किया गया तथा उदयभान सिंह को इस संघ का राजप्रमुख बनाया गया।

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