जैसलमेर का भाटी वंश

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  • जैसलमेर के शासकों की उत्पत्ति चन्द्रवंशीय यादवों की भाटी शाखा से मानी जाती है।
  • जैसलमेर का राजवंश स्वयं को श्रीकृष्ण का वंशज मानता है।
  • जैसलमेर के भाटी वंश का प्रादुर्भाव भाटी (भट्‌टी) से माना जाता है।
  • भट्‌टी के वंशज ही भाटी कहलाने लगे।
  • भट्‌टी के पुत्र भूपत ने 285 ई. के आसपास भटनेर दुर्ग का निर्माण करवाकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
  • मांडन राव ने मारोठ नगर तथा मारोठ के किले का निर्माण आरंभ करवाया तथा राव सूरसेन ने मारोठ को अपनी राजधानी बनाया।
  • 787 ई. के लगभग इनके वंशज तणु ने तनोट दुर्ग का निर्माण करवाया तथा तनोट को अपनी राजधानी बनाया। इसी ने तनोट देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।
  • यहाँ का शासक विजयराज ‘विजयराज चूड़ाला’ के नाम से जाना जाता था।

रावल देवराज 

  • योगी रतनू ने देवराज काे रावल की उपाधि प्रदान की।
  • देवराज ने लोद्रवा के पंवार शासकों को पराजित किया तथा लोद्रवा को अपनी राजधानी बनाया। 
  • देवराज तथा इसके वंशज ‘रावल’ उपाधि का प्रयोग करने लगे।

रावल जैसल

  • रावज जैसल ने लोद्रवा को असुरक्षित मानते हुए 1155 ई. में जैसलमेर दुर्ग की नींव रखी तथा जैसलमेर नगर की स्थापना कर इसे अपनी राजधानी बनाया।
  • इसके वंशज रावल करण के समय जैन आचार्य जिन प्रबोध सूरि ने जैसलमेर की यात्रा की।

रावल जैतसिंह

  • इनके शासनकाल में 1308 ई. में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में सेना भेजी लेकिन इसे सफलता प्राप्त नहीं हुई।
  • इसके बाद मलिक कपूर के नेतृत्व में सेना भेजी लेकिन यह भी जैसलमेर दुर्ग पर अधिकार नहीं कर पाया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने पुन: कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में सेना भेजी। इसी समय रावल जैतसिंह का देहांत हो गया।

रावल मूलराज प्रथम

  • रावल जैतसिंह के देहांत के बाद इनका पुत्र मूलराज प्रथम शासक बना।
  • इसके समय दुर्ग में खाद्य सामग्री की कमी होने के कारण दुर्ग के द्वार खोल दिये गए तथा मूलराज अपने वीर सैनिकों के साथ युद्ध में मारे गये एवं वीरांगनाओं ने जाैहर किया।
  • लगभग 1312-13 ई. में अलाउद्दीन खिलजी का जैसलमेर दुर्ग पर अधिकार हो गया।
  • यह जैसलमेर का प्रथम साका माना जाता है।

रावल दूदा

  • कुछ समय पश्चात रावल दूदा ने जैसलमेर दुर्ग पर अधिकार किया।
  • इसके समय दिल्ली सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने जैसलमेर दुर्ग पर आक्रमण किया। इस युद्ध में रावल दूदा, त्रिलोकसी तथा अपने अन्य भाटी सरदारों के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए तथा वीरांगनाओं ने जौहर किया।
  • यह जैसलमेर का दूसरा साका माना जाता है।

रावल घड़सी

  • रावल घड़सी रावल मूलराज के भाई रतनसिंह का पुत्र था।
  • इसने 1343 ई. के आसपास जैसलमेर दुर्ग पर अधिकार किया।
  • रावल घड़सी ने जैसलमेर में ‘घड़सीसर’ तालाब का निर्माण करवाया।

रावल लक्ष्मण सिंह

  • लक्ष्मणसिंह ने जैसलमेर दुर्ग में लक्ष्मीनाथ (विष्णु) भगवान का मंदिर बनवाया तथा लक्ष्मीनाथ भगवान को मुख्य शासक मानकर स्वयं को उनका प्रतिनिधि मानकर शासन किया।

रावल बैरसिंह

  • इन्होंने 1441 ई. में रत्नेश्वर महादेव के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया।
  • ऐसा माना जाता है कि राव रणमल की िचत्तौड़ में हत्या होने के बाद उनके पुत्र राव जोधा को बैरसिंह ने राज्य में शरण दी थी।

रावल जैतसिंह II

  • इसके समय बीकानेर के शासक लूणकरण ने आक्रमण किया था।
  • रावल जैतसिंह II ने शांतिनाथ जैन मंदिर का निर्माण करवाया।

रावल लूणकरण (1528-1550 ई.)

  • रावल जैतसिंह द्वितीय के पश्चात लूणकरण जैसलमेर का शासक बना।
  • इसने अपनी पुत्री उम्मादे का विवाह जोधपुर शासक मालदेव के साथ किया जो इतिहास में ‘रूठी रानी’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • कंधार के अमीरअली खाँ को लूणकरण ने अपने यहाँ शरण दी थी लेकिन अमीरअली खाँ ने अचानक दुर्ग पर आक्रमण कर दिया जिस कारण लूणकरण युद्ध में शहीद हुआ।
  • इस समय केसरिया तो हुआ लेकिन जौहर का अनुष्ठान नहीं हो पाया इस कारण इसे अर्द्धसाका कहा गया।
  • इस युद्ध में लूणकरण के पुत्र मालदेव ने अमीर अली खाँ की हत्या कर दुर्ग को अपने अधीन बनाए रखा।

रावल हरराज :- (1561-1577 ई.)

  • रावल मालदेव के पश्चात राव हरराज शासक बना।
  • रावल हरराज ने नागौर दरबार (1570 ई.) में अकबर की अधीनता स्वीकार की तथा अपने पुत्र सुल्तानसिंह कोे मुगल सेवा में भेजा।
  • इन्होंने अपने राज्य में सामंत प्रणाली को भी लागू किया।
  • इनके काल में कुशललाभ ने ‘पिंगल शिरोमणि’ नामक ग्रंथ की रचना की। 

रावल भीम (1577-1613 ई.) 

  • रावल हरराज के बाद उसका पुत्र रावल भीम जैसलमेर का शासक बना।
  • इनकी अवयस्कता के कारण शासन कार्य इनके भाई खेतसिंह ने संभाला।
  • इन्होंने जैसलमेर दुर्ग के द्वार पर गणेश पोल तथा सूर्यपोल का निर्माण करवाया तथा इनकी रानी ने घड़सीसर तालाब के किनारे नीलकंठ महादेव का मंदिर बनवाया।
  • तुजुक-ए-जहाँगीरी में रावल भीम का उल्लेख मिलता है। इन्होंने मुगलों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किये।

महारावल कल्याण (1613-1627 ई.)

  • जैसलमेर में स्थित सेठ थारूशाह के देरासर में स्थित स्तंभ लेख में रावल कल्याण की उपाधि ‘महारावल’ मिली है। इस ‘महारावल’ उपाधि का जैसलमेर के शासकों के लिए प्रयोग का यह प्रथम साक्ष्य है।

महारावल मनोहरदास (1627-1650 ई.)

  • जैसलमेर दुर्ग की 99 बुर्जों से युक्त प्राचीर का अंतिम रूप से निर्माण मनोहरदास द्वारा करवाया गया।

महारावल सबल सिंह (1650-1660 ई.)

  • इनके द्वारा जैसलमेर राज्य में 1659 ई. में तांबे की मुद्रा ‘डोडिया’ का प्रचलन किया गया।

महारावल अमरसिंह (1660-1701 ई.)

  • यह औरंगजेब के समकालीन थे।
  • इन्होंने अमरसागर झील का निर्माण करवाया।  
  • इनके द्वारा राज्य में मुद्रा का टंकन तथा मापतौल के निर्धारण हेतु नियम बनाए गये।
  • इनके बाद महारावल सवाईसिंह शासक बने।

महारावल अखैसिंह (1722-1761 ई.)

  • महारावल सवाईसिंह के बाद अखैसिंह जैसलमेर के शासक बने।
  • अखैसिंह ने जैसलमेर दुर्ग में रणछोड़ जी के मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण करवाया ।
  • इन्होंने दुर्ग में ‘अखैविलास’ महल का निर्माण करवाया।
  • 1756 ई. में अखैसिंह ने जैसलमेर में स्वतंत्र टकसाल की स्थापना की।
  • इनके समय ढाले गए सिक्कों को मुहम्मदशाही तथा अखैशाही कहा गया।

महारावल मूलराज II (1761-1819 ई.)

  • इनका विवाह किशनगढ़ की राजकुमारी रूपकंवर से हुआ जो वैष्णव धर्म के वल्लभ सम्प्रदाय की अनुयायी थी।
  • मुलराज II का भी इस धर्म की ओर रूझान हुआ तथा इनके समय पुष्टिमार्गीय वैष्णव धर्म राज्य का राजधर्म बना।
  • 1779 ई. में मूलराज- II ने राजपरिवार सहित नाथद्वारा की यात्रा की।
  • मूलराज II के समय ही 1818 ई. में जैसलमेर राज्य की ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि सम्पन्न हुई।
  • इनके काल में ‘मूलनिवास’ तथा ‘लक्ष्मी कीर्ति संवाद’ आदि ग्रंथों की रचना की गई।

महारावल गजसिंह (1820-1846 ई.)

  • महारावल गजसिंह का राज्याभिषेक 1820 ई. में हुआ।
  • इनके समय सालिम सिंह को दीवान पद पर नियुक्त किया गया।
  • इनके काल में बासणपीर के युद्ध में जैसलमेर की सेना ने बीकानेर की सेना को पराजित किया।
  • इन्होंने जैसलमेर दुर्ग में ‘गजविलास’ तथा ‘सर्वाेत्तम विलास’ महलों का निर्माण करवाया।

महारावल रणजीतसिंह  (1846-1864 ई.)

  • रणजीतसिंह की अवयस्कता के कारण ठाकुर केसरीसिंह को इनका संरक्षक नियुक्त किया।
  • 1857 के विद्रोह के समय रणजीत सिंह जैसलमेर के शासक थे। इन्होंने इस विद्रोह में अंग्रेजों का साथ दिया।
  • इनके समय जैसलमेर की पाषाण शिल्प कला को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।
  • इनके काल में ही 1857 ई. में जोधपुर से जैसलमेर होते हुए सिंध तक डाक मार्ग की स्थापना हुई।
  • रणजीत सिंह के समय यहाँ के चांदी के सिक्कों पर महारानी विक्टोरिया का नाम अंकित किया गया।
  • इन्होंने विक्रम संवत को राजकीय संवत घोषित किया ।
  • इनके समय गोकुलनाथ भट्‌ट ने ‘रणजीत रत्नमाला’ ग्रंथ की रचना की।

महारावल बैरीशाल (1864-1891 ई.)

  • इनके समय सौराष्ट्र के मेहता जगजीवन को दीवान नियुक्त किया गया। जैसलमेर के इतिहास में पहली बार राज्य के बाहर के व्यक्ति को दीवान बनाया गया।
  • इनके साथ अंग्रेजों द्वारा नमक समझौता कर ‘बाप’ नामक स्थान पर बनने वाले नमक के संबंध में राज्य के अधिकार को सीमित किया गया।
  • महारानी विक्टोरिया के साम्रज्ञी बनने के अवसर पर 1877 ई. में दिल्ली दरबार को आयोजन किया गया। इसी दरबार द्वारा जैसलमेर को शाही ध्वज प्रदान किया गया।
  • इनके समय चांदी के ‘नजराना सिक्के’ ढलवाये गए जिन पर एक ओर महारानी विक्टोरिया तथा दूसरी ओर महारावल बैरीशाल नाम अंकित करवाया गया।
  • इन्हीं के काल में 1888 ई. में जैसलमेर में प्रथम ब्रिटिश डाकखाना प्रारंभ किया गया।
  • इन्होंने रतनू शिवदान को ‘कविराजा’ की उपाधि प्रदान की।

महारावल शालिवाहन II (1891-1915 ई.)

  • महारावल बैरीशाल की नि:संतान मृत्यु होने पर इनके भाई कुशालसिंह के पुत्र श्यामसिंह को शालिवाहन II के नाम से शासक बनाया गया।
  • हरविलास शारदा को महारावल का संरक्षक एवं शिक्षक नियुक्त किया गया।
  • इनके समय ‘महकमा खास’ तथा ‘सेक्रेटेरियट’ नामक विभाग बनाए गए।
  • इनके समय जैसलमेर में अखिल भारतीय श्वेताम्बर जैन महासभा का आयोजन हुआ।

महारावल जवाहर सिंह (1914-49 ई.)

  • शालिवाहन II की नि:संतान मृत्यु होने पर ठाकुर सरदारसिंह के पुत्र जवाहरसिंह को शासक बनाया गया।
  • इन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की आर्थिक सहायता की। युद्ध समाप्ति पर आभार व्यक्त करने वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड स्वयं जैसलमेर आये।
  • जवाहर सिंह ने राज्य में पशुओं की पीठ पर दागने की प्रथा शुरू की।
  • इनके समय वर्ष 1939 में राज्य में प्रथम बिजली घर की स्थापना हुई।
  • इन्होंने राजस्थान के अंतिम दुर्ग ‘मोहनगढ़’ का निर्माण करवाया।
  • वर्ष 1933 में जैसलमेर में ‘जवाहर प्रिटिंग प्रेस’ की स्थापना की गई।
  • जवाहरसिंह के शासनकाल में वर्ष 1946 में यहाँ के स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा को जिंदा जला दिया गया जिस कारण 4 अप्रैल, 1946 को उनकी मृत्यु हो गई।

महारावल गिरधरसिंह (1949-50)

  • इनके समय 30 मार्च, 1949 को जैसलमेर का राजस्थान में विलय कर दिया गया।

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