परमार वंश

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अर्थ और उत्पति

  • परमार(अर्थ)- शत्रुओं को मारने वाला।
  • प्रारम्भिक राज्य- आबू के आस-पास का क्षेत्र।
  • प्रतिहारों के पतन के बाद मारवाड़, गुजरात, सिंध, वागड़, मालवा, आदि स्थानों पर परमारों के राज्य स्थापित हुए।

आबू के परमार

  • राजधानी- चन्द्रावती।
  • आबू के परमारों का कुल पुरूष धूमराज था।
  • परमारों की वंशावली का प्रारम्भ उत्पलराज से होता है।
  • प्रारम्भिक परमारों को सोलंकी शासकों से संघर्ष करना पड़ा था जिसकी जानकारी राष्ट्रकूट शासक धवल के 977 ई. के शिलालेख से मिलती है।
  • इस वंश के अन्य शासकों में महीपाल, धंधुक, कृष्णदेव, विक्रमसिंह, आदि प्रमुख थे।
  • इस काल में आबू के दण्डपति विमलशाह ने 1031 ई. में आदिनाथ का भव्य मंदिर (जैन मंदिर) बनवाया था।
  • परमार विक्रमसिंह का प्रपोत्र धारावर्ष आबू के परमारों में  पराक्रमी था।
  • धारावर्ष के काल में सोलंकियों से अच्छे संबंध पुन: स्थापित हुए।
  • 1106 ई. में कुतुबूद्दीन ऐबक के अन्हिलवाड़ा पर आक्रमण के दौरान धारावर्ष गुजरात के सोलंकियों की सेना के प्रमुख सेनापतियों में से प्रमुख था। इस घटना की जानकारी ताज-उल-मआसिर से मिलती है।
  • सोलंकी शासक भीमदेव के अल्पवयस्क होने के कारण उसके कई सामंत स्वतंत्र हो गये। धारावर्ष भी उनमें से एक था।
  • धारावर्ष के चौहान शासकों से भी अच्छे संबंध थे।
  • पटनारायण के मंदिर के वि.सं. 1344 (1287 ई.) के शिलालेख से धारावर्ष की वीरता की जानकारी मिलती है।
  • प्रहलादनदेव (धारावर्ष का छोटा भाई) की वीरता और विद्वता की जानकारी सोमेश्वर की “कीर्ति कौमुदी” तथा लेवणशाही मंदिर की प्रशस्ति से मिलती है।
  • प्रहलादनदेव द्वारा रचित नाटक – “पार्थ पराक्रम व्यायोग”।
  • सोमसिंह (धारावर्ष का पुत्र)- गुजरात के सोलंकी शासक भीमदेव द्वितीय का सांमत था।
  • इसके काल में लुणवशाही नामक नेमीनाथ का मंदिर बनवाया गया था।
  • परमार शासक प्रतापसिंह ने मेवाड़ शासक जैत्रकर्ण को पराजित कर चन्द्रवती पर अधिकार कर लिया था
  • प्रतापसिंह के बाद विक्रमसिंह आबू का परमार शासक बना।
  • इसके काल में रावल और महारावल आबू के परमारों की उपाधि/विरुद थी। जो कि मेवाड़ के शासकों की उपाधि थी।
  • विक्रमसिंह के काल में जालौर के चौहान शासको ने आबू के पश्चिमी भाग पर अधिकार कर लिया था।
  • 1311 ई. में चौहान राव लूम्बा ने परमारों की राजधानी चन्द्रावती पर अधिकार करके परमारों के शासन समाप्त कर चौहान राज्य की नींव डाली।

जालौर के परमार

  • जालौर के परमार आबू के परमारों की एक छोटी शाखा मानी जाती है।
  • जालौर के परमार धवणीवराह (आबू के परमार) के वंशज माने जाते है।
  • 1087 ई. के शिलालेख (जालौर से प्राप्त) से परमारों के 7 नाम वाक्पतिराज, चन्दन, देवराज, अपराजित, विज्जल, धारावर्ष और विसल आदि का उल्लेख मिलता है।
  • जालौर के परमारों का प्रथम शासक वाक्पतिराज(960-985 ई.) था।

किराडू के परमार

  • किराडू के परमार शासकों  की जानकारी किराडू के शिवालय के 1661 ई. के एक लेख से मिलती है।
  • किराडू के परमार भी गुजरात के सोलंकियों के सामंत थे।
  • इस राज्य की राजधानी किराडू थी।
  • 1161 ई. में सोमेश्वर परमार ने तनौट (जैसलमेर राज्य) और नौसर (जोधपुर राज्य) के किलो पर अधिकार कर लिया था। उसने चालुक्य शासक कुमारपाल की अधीनता स्वीकार की थी।

मालवा के परमार

  • मालवा के परमारों की उत्पत्ति का मूल स्थान आबू था।
  • मालवा के परमार वीर साहसी,  विद्या और धन से सम्पन्न थे, जिसकी जानकारी “नवसांहसांक चरित्र” से मिलती है।
  • राजधानी- उज्जैन या धारानगरी।
  • इनका राज्य विस्तार राजस्थान के कई भागों में फैला हुआ था।
  • राजस्थान में इनका राज्य कोटा राज्य के दक्षिणी भाग में, झालावाड़, प्रतापगढ़ तथा बागड़ के पूर्वी भागों में विस्तृत था।
  • इस शाखा का परमार मुंज पराक्रमी शासक था।
  • उसने केरल, चोल, हैहयवंशीय, मेवाड़ (शक्तिकुमार), चित्तौड़, मालवा आदि राज्यों पर विजय प्राप्त की थी।
  • चालुक्य शासक तैलप पर आक्रमण के दौरान वह बन्दी बनाया गया तथा मारा गया।
  • मुंज के बाद भोज प्रसिद्ध परमार शासक हुआ। वह विद्या प्रेमी व विजेता था।
  • भोज परमार के ग्रंथ- सरस्वती कण्ठाभरण, राजमृगांक, विद्वज्जनमण्डल, समरांगण, श्रृंगारमंजरी कथा, कूर्मशातक आदि।
  • सरस्वती कण्ठाभरण-  भोज परमार द्वारा निर्मित पाठशाला।
  • भोज के दरबारी विद्वान- सुबन्धु, वररुचि, मेरुतुंग, बल्लभ, मानतुंग, धनपाल, माघ, राजशेखर, अमर आदि।
  • उसके द्वारा चित्तौड़ में निर्मित त्रिभुवननारायण के शिवमन्दिर का 1429 ई. में महाराणा मोकल ने जीर्णोद्धार करवाया था।
  • जयसिंह (भोज परमार का पुत्र) मालवा के परमारों का पराक्रमी शासक था।
  • इसके काल से मालवा के परमारों की शक्ति का पतन प्रारम्भ होता है।
  • 13वीं सदी के निकटवर्ती समय में अर्जुन वर्मा परमार ने मालवा की शक्ति को पुन: स्थापित किया।
  • खिलजियों के आक्रमण से मालवा के परमारों का शासन समाप्त हो गया तथा वे अजमेर में छोटे सांमतों के रूप में रहने लगे।

वागड के परमार

  • उत्पत्ति- मालवा के परमार शासक कृष्णराज के दूसरे पुत्र डम्बरसिंह के वंश से वागड़ के परमारो की उत्पत्ति मानी जाती है।
  • राजधानी- उत्थूणक।
  • राज्य क्षेत्र – डूंगरपुर और बांसवाड़ा का भू-भाग, जिसे वागड़ कहा जाता है।
  • इस वंश के मण्डलीक परमार ने मण्डलेश्वर मंदिर 1059 ई. में पाणाहेड़ा में बनवाया।
  • मण्डलीक के पुत्र चामुण्डाराज ने अर्थूणा में मण्डलेश्वर का मंदिर (1089 ई.) बनवाया।
  • विजयराज परमार के 1108 ई. और 1109 ई. की शिलालेखों से जानकारी मिलती है कि वह वागड के परमारों का अन्तिम शासक  था।
  • 1179 ई. में गुहिल शासक सामन्तसिंह के मेवाड़ छोड़कर वागड़ आगमन पर यहाँ पर गुहिल शाखा का राज्य स्थापित हुआ तथा परमारों का शासन समाप्त हो गया।
  • वागड़ के परमारों की राजधानी उत्थूणक आज भी ध्वंसावशेष के रूप में विध्यमान है। अर्थूणा वागड के परमारों की कला संस्कृति और स्थापत्य का प्रमुख केन्द्र था।

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