गुर्जर प्रतिहार वंश

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  • प्रतिहार शब्द वास्तव में पदनाम है जिसका अर्थ द्वारपाल है।
  • अभिलेखिक रूप से गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में हुआ है।
  • उत्तर-पश्चिम भारत में गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन छठी से बारहवीं शताब्दी तक रहा।
  • इतिहासकार रमेशचन्द्र मजूमदार ने गुर्जर प्रतिहाराें को छठी से बारहवीं शताब्दी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम करने वाला बताया है।
  • गुर्जरात्रा (गुर्जर प्रदेश) के स्वामी होने के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा गया है।
  • नीलगुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करहाड़ के अभिलेखों में इन्हें गुर्जर कहा गया।
  • मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्‌ट को राम का प्रतिहार तथा विशुद्ध क्षत्रिय कहा गया है।
  • अरब यात्रियों ने इनके लिए ‘जुर्ज’ शब्द का प्रयोग किया है। अलमसूदी ने गुर्जर प्रतिहारों को ‘अल गुजर’ तथा राजा को ‘बोरा’ कहा है।
  • राजशेखर ने अपने ग्रंथ ‘विद्वशालभंजिका’ में प्रतिहार महेन्द्रपाल को रघुकुल तिलक (सूर्यवंशी) लिखा है।
  • मुहणोत नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का उल्लेख किया है।
  • चीनी यात्री ह्ववेनसांग ने अपने ग्रंथ ‘सियूकी’ में गुर्जर राज्य को ‘कु-चे-लो’(गुर्जर)तथा इसकी राजधानी ‘पीलोमोलो’ (भीनमाल) बताया है।
  • कवि पम्प ने अपने ग्रंथ ‘पम्पभारत’ में कन्नौज शासक महीपाल को गुर्जर राजा बताया है।
  • कैनेडी ने प्रतिहारों को ईरानी मूल का बताया है।
  • उद्योतन सूरी ने अपने ग्रंथ ‘कुवलयमाला’ में गुर्जर शब्द का प्रयोग एक जाति विशेष के रूप में किया है।
  • डॉ. भंडारकर ने प्रतिहाराें को विदेशी गुर्जर जाति की संतान माना है।

मण्डोर के प्रतिहार

  • गुर्जर प्रतिहारों की 26 शाखाओं में से सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्राचीन मण्डोर के प्रतिहार थे।
  • मण्डोर के प्रतिहार स्वयं को ‘हरिश्चन्द्र नामक ब्राह्मण’ (राेहिलद्धि)का वंशज बताते हैं।    
  • हरिश्चन्द्र के दो पत्नियां थी- एक ब्राह्मणी और दूसरी क्षत्राणी भद्रा।
  • उसकी ब्राह्मणी पत्नी से उत्पन्न संतान प्रतिहार ब्राह्मण तथा क्षत्राणी भद्रा से उत्पन्न संतान क्षत्रिय प्रतिहार कहलाये।
  • हरिश्चन्द्र की रानी भद्रा से चार पुत्र- भोगभट्‌ट, कदक, रज्जिल और दद्द उत्पन्न हुए।
  • इन चारों ने मिलकर मण्डोर को जीता तथा यहाँ गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की।
  • मण्डोर के प्रतिहारों की वंशावली हरिश्चन्द्र के तीसरे पुत्र रज्जिल से प्रारंभ होती है।

रज्जिल :-

  • हरिश्चन्द्र के चार पुत्रों में से रज्जिल मण्डोर का शासक बना।

नागभट्‌ट प्रथम :-

  • यह रज्जिल का पौत्र था। इसने मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया।

शीलुक :- 

  • शीलुक ने वल्ल मण्डल के शासक भाटी देवराज को हराकर अपने राज्य की सीमा का वल्ल तक विस्तार किया।

कक्क :-  

  • यह शीलुक का पौत्र था। इसने मुंगेर के युद्ध में पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया।
  • इसके दो पुत्र थे- बाउक तथा कक्कुक। 

बाउक :-   

  • बाउक एक प्रतापी शासक था जिसने अपने शत्रु नन्दवल्लभ को मारकर भूअकूप पर अधिकार कर लिया।
  • इसका 837 ई. का ‘मण्डोर (जोधपुर) का शिलालेख’ प्राप्त हुआ है जिसमें बाउक ने अपने वंश का वर्णन अंकित करवाया।
  • बाउक ने मयूर नामक राजा को पराजित किया था।

कक्कुक :-

  • बाउक के बाद उसका भाई कक्कुक मण्डोर का शासक बना।
  • घटियाला से प्राप्त दाेनों शिलालेख कक्कुक के समय के हैं।
  • इसने रोहिंसकूप (घटियाला) के निकट गावों में बाजार बनवाये तथा व्यापार में वृद्धि की।
  • कक्कुक के द्वारा घटियाला तथा मण्डोर में जयस्तम्भ भी स्थापित करवाये गये।  
  • कालान्तर में मण्डोर के आस-पास के क्षेत्र पर चौहानों का अधिकार हो गया लेकिन मण्डाेर प्रतिहारों की इन्दा शाखा के अधीन रहा।
  • इन्दा प्रतिहारों ने राठौड़ चूँड़ा के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर मण्डोर का क्षेत्र राठौड़ों को दहेज में दे दिया।
  • इस घटना के साथ ही मण्डोर प्रतिहारों का राजनीतिक इतिहास समाप्त हो गया।      

भड़ोंच के गुर्जर प्रतिहार

दद्द प्रथम :-

  • भड़ोंच के गुर्जर राज्य का संस्थापक हरिश्चन्द्र का पुत्र दद्द प्रथम था।
  • इस शाखा के 629 ई. से 641 ई. के कुछ दानपत्र मिले हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि नान्दीपुर इन गुर्जर प्रतिहारों की राजधानी थी।
  • दद्द प्रथम ने नागवंशियों तथा वनवासी राजा निरिहुलक के राज्य पर अधिकार किया था।

जयभट्‌ट प्रथम :-

  • जयभट्‌ट प्रथम दद्द प्रथम का पुत्र था। इसकी उपाधि ‘वीतराग’ थी।
  • जयभट्‌ट प्रथम हर्षवर्धन के समकालीन था।
  • संखेड़ा दानपत्रों से उसकी विजयों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
  • उमेता, ललुआ तथा बेगुमरा शिलालेखों के अनुसार जयभट्‌ट प्रथम ने वल्मी की सेना को काठियावाड़ प्रान्त में पराजित किया था। इसने कलचुरियों को भी पराजित किया था।

दद्द द्वितीय  :-

  • जयभट्‌ट प्रथम के बाद उसका पुत्र दद्द द्वितीय शासक बना, जिसकी उपाधि ‘महाराजा प्रशांतराग’ थी।
  • बड़ौदा के संखेड़ा नामक स्थान से दद्द द्वितीय के दानपत्र प्राप्त हुए हैं जिनकी भाषा संस्कृत तथा लिपि ब्राह्मी है।
  • दद्द द्वितीय के समय हर्षवर्धन ने वल्लभी के शासक ध्रुवसेन द्वितीय को पराजित किया।
  • इस समय ध्रुवसेन द्वितीय ने दद्द द्वितीय के दरबार में शरण ली, जिसके बाद दद्द द्वितीय ने हर्षवर्धन से उसका राज्य वापस दिला दिया। 
  • इसका राज्य विस्तार उत्तर में माही से दक्षिण में कीम तक तथा पूर्व में मालवा व खानदेश से पश्चिम में समुद्र तक था।

जयभट्‌ट द्वितीय :-

  • दद्द द्वितीय के बाद उसका पुत्र जयभट्‌ट द्वितीय शासक बना।
  • यह चालुक्यों का सामन्त था।

दद्द तृतीय :-

  • यह जयभट्‌ट द्वितीय का पुत्र था, जिसने पंचमहाशब्द तथा बहुसहाय नामक उपाधियाँ धारण की।
  • इसने वल्मी के शासक शीलादित्य द्वितीय को पराजित किया था।

जयभट्‌ट चतुर्थ :- 

  • यह इस वंश का अन्तिम शासक था।
  • इसने अरब आक्रमणकारियों को पराजित किया था।
  • इस शाखा के गुर्जर प्रतिहारों के लिए सामंत या महासामंत शब्दों का प्रयोग मिलता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि इन शासकों की स्वतंत्र सत्ता नहीं थी।

राजोगढ़ के गुर्जर प्रतिहार

  • अलवर के राजोगढ़ से 960 ई. का शिलालेख प्राप्त हुआ है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यहाँ पर प्रतिहार गोत्र का गुर्जर महाराजाधिराज सावट का पुत्र मथनदेव राज्य करता था। 
  • राजोगढ़ शिलालेख से बहलोल लोदी के समय तक बड़गूजरों का राजाेगढ़ में निवास होना सिद्ध होता है।

भीनमाल के गुर्जर (चावड़ा वंश)

  • भीनमाल का गुर्जर राज्य दक्षिण के चालुक्यों तथा हर्षवर्धन के समकालीन था।
  • इस चावड़ा गुर्जर राज्य की राजधानी भीनमाल थी।
  • 641 ई. में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी, इसने राज्य का नाम कु-चे-लो तथा इसकी राजधानी पीलोमोलो (भीनमाल) बताया।
  • भीनमाल के संस्कृत विद्वान महाकवि माघ ने ‘शिशुपाल वध’ नामक ग्रंथ लिखा। माघ ने सुप्रभदेव को यहाँ का शासक बताया था। 
  • यहाँ के ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त ने 628 ई. में ‘ब्रहस्फुट सिद्धांत’ की रचना की। ब्रह्मगुप्त ने गणित पर खंडखाद्यक नामक ग्रंथ भीनमाल में ही लिखा था।

जालौर, उज्जैन व कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार

  • इन्हंे रघुवंशी प्रतिहार भी कहा जाता है। इन्होंने चावड़ों से भीनमाल का राज्य छीन लिया।

नागभट्‌ट प्रथम :- 

  • इस गुर्जर प्रतिहार शाखा का संस्थापक नागभट्‌ट प्रथम था।
  • यह एक प्रतापी शासक था जिसके दरबार को ‘नागावलोक का दरबार’ कहा गया।
  • इसे राजा भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में ‘नारायण’ तथा ‘मलेच्छों का नाशक’ कहा गया है।
  • नागभट्‌ट प्रथम ने अरब सेना को सिंधु नदी के पश्चिम में खदेड़ने का कार्य किया, जिस कारण उसे नारायण का अवतार माना गया।
  • नागभट्‌ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया और इसलिए इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं।
  • नागभट्‌ट प्रथम ने उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया।

Note :- दशरथ शर्मा नागभट्‌ट की राजधानी जालौर मानते हैं। 

  • दक्षिण में राजा दन्तिदुर्ग, उत्तर में ललितादित्य तथा उत्तर-पूर्व में यशोवर्मन आदि नागभट्‌ट के समकालीन थे।
  • नागभट्‌ट प्रथम को अपने समकालीन दक्षिण भारत के राष्ट्रकूटों से भी युद्ध करना पड़ा था।
  • नागभट्‌ट प्रथम ने भड़ोंच पर अपना अधिकार कर लिया था।

ककुस्थ :-

  • नागभट्‌ट प्रथम के बाद उसका भतीजा ककुस्थ शासक बना जिसे कक्कुक भी कहते हैं।
  • इसके समय गुर्जर राज्य की सीमाएँ यथावत बनी रही।  

देवराज :-

  • ककुस्थ के बाद उसका भाई देवराज शासक बना।
  • वराह अभिलेख में इसे देवशक्ति भी कहा गया है।
  • यह वैष्णव धर्मावलम्बी था।

वत्सराज :-

  • वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
  • कन्नौज पर अधिकार करने के लिए भारतीय इतिहास में जो त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ उसकी शुरूआत वत्सराज ने ही की थी।
  • इस संघर्ष में वत्सराज ने पाल शासक धर्मपाल काे पराजित किया।
  • राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वत्सराज तथा धर्मपाल दोनों को पराजित किया था।
  • इसने कन्नौज के शासक इन्द्रायुध को परास्त कर अपना सामंत बना लिया था।
  • ग्वालियर अभिलेख से जानकारी मिलती है कि वत्सराज ने भण्डी जाति को पराजित करके उनका राज्य छीन लिया। इस जाति का उल्लेख जोधपुर अभिलेख में हुआ है।
  • इसके समय इनके दरबारी कवि उद्योतन सूरी ने कुवलयमाला ग्रंथ की रचना की।
  • वत्सराज को ‘रणहस्तिन’ भी कहा गया है।

नागभट्‌ट द्वितीय :-

  • वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्‌ट द्वितीय शासक बना। इसकी माता का नाम सुंदर देवी था।
  • नागभट्‌ट द्वितीय ने परमभट्‌टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।    
  • नागभट्‌ट द्वितीय ने बंगाल के राजा धर्मपाल के सामंत चक्रायुद्ध को युद्ध में पराजित किया तथा कन्नौज पर अधिकार कर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
  • नागभट्‌ट द्वितीय की विजय का उल्लेख ग्वालियर अभिलेख में मिलता है।
  • नागभट्‌ट द्वितीय ने पाल शासक धर्मपाल को पराजित किया था।
  • राष्ट्रकूट शासक गाेविन्द तृतीय ने उत्तरी-भारत पर आक्रमण कर नागभट्‌ट द्वितीय को पराजित किया। इसके बाद गोविन्द तृतीय ने धर्मपाल को भी पराजित किया।  

रामभद्र :-

  • नागभट्‌ट द्वितीय के पश्चात उसका पुत्र रामभद्र शासक बना। इसने केवल 3 वर्ष तक शासन किया।
  • यह एक निर्बल शासक था जिसके समय प्रतिहार साम्राज्य में अनेक अंग स्वतंत्र हो गए।
  • ग्वालियर अभिलेख के अनुसार रामभद्र सूर्य भक्त था, इसने अपने पुत्र का नाम मिहिर(सूर्य) भोज  रखा था।

मिहिरभोज प्रथम (836-885 ई.) :-

  • मिहिरभोज इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इसके पिता का नाम रामभद्र तथा माता का नाम अप्पा देवी था।
  • ग्वालियर अभिलेख में मिहिरभोज की उपाधि ‘आदिवराह’ तथा दौलतपुर अभिलेख में उपाधि ‘प्रभास’ मिलती है।
  • कश्मीरी कवि कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ में मिहिरभोज की उपलब्धियों का वर्णन किया है।
  • मिहिरभोज ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की तथा कन्नौज को अपनी स्थायी राजधानी बनाया।
  • मुस्लिम यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज के समय भारत की यात्रा की तथा मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया।
  • मिहिरभोज के समय के ‘श्रीमदादिवराह’ अंकित चाँदी तथा तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
  • मिहिरभोज ने चन्देल शासक जयशक्ति को पराजित कर कालिंजर पर अधिकार किया था।

महेन्द्रपाल प्रथम :-

  • मिहिरभोज के पश्चात उसका पुत्र महेन्द्रपाल शासक बना।
  • संस्कृत का विद्वान राजशेखर इसका राजकवि था। जिसने ‘कर्पूरमंजरी’, ‘काव्यमीमांसा’, ‘विद्वशालभंजिका’, ‘बालभारत’, ‘बालरामायण’, ‘भुवनकोश’ तथा ‘हरविलास’ आदि ग्रंथों की रचना   की।
  • राजशेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को रघुकुल चूड़ामणि, निर्भयराज तथा निर्भयनरेन्द्र आदि उपाधियों से संबोधित किया है।   
  • महेन्द्रपाल प्रथम ने परमभट्‌टारक, महाराजाधिराज, परमभागवत तथा परमेश्वर आदि उपाधियां धारण की।
  • इसके समय प्रतिहार पाल संघर्ष चलता रहा। मगध से इसके रामगया, गुनेरिया, इटखोरी अभिलेख तथा बंगाल से पहाड़पुर अभिलेख प्राप्त हुए हैं।     
  • इतिहासकार बी.एन.पाठक ने अपने ग्रंथ ‘उत्तरी-भारत का राजनैतिक इतिहास’ में प्रतिहार राजा महेन्द्रपाल प्रथम को हिन्दू भारत का अंतिम महान ‘हिन्दू सम्राट’ स्वीकार किया है।

भोज द्वितीय :-

  • भोज द्वितीय का उल्लेख एशियाटिक सोसायटी ताम्रपत्र में मिलता है, जिसमें उसे महेन्द्रपाल तथा देहनागादेवी का पुत्र बताया गया है।
  • भोज द्वितीय ने लगभग 910 ई. से 913 ई. तक शासन किया।

महीपाल प्रथम :-

  • राजशेखर महीपाल प्रथम का भी राजकवि था।
  • राजशेखर ने महीपाल प्रथम को ‘रघुकुलमुकुटमणि’ तथा ‘आर्यावर्त का महाराजाधिराज’ कहा है।
  • राजशेखर ने अपने ग्रंथ ‘प्रचण्डपाण्डव’ में महीपाल की उपलब्धियों का वर्णन किया है।
  • मुस्लिम यात्री अलमसूदी ने महीपाल प्रथम के समय भारत की यात्रा की थी।  
  • इसके समकालीन राष्ट्रकूट वंश का शासक इन्द्र तृतीय था, जिसने उज्जैन पर अधिकार कर लिया तथा कन्नौज को हानि पहुँचायी थी।
  • डाॅ. मजूमदार के अनुसार इन्द्र तृतीय के लौटने के पश्चात महीपाल प्रथम ने कन्नौज पर पुन: अधिकार कर लिया।
  • कहला अभिलेख के अनुसार गौरखपुर का शासक कलचुरि वंश का भीमदेव महीपाल के अधीन था।
  • अलमसूदी के अनुसार पंजाब व सिंध के प्रदेश महीपाल के अधीन थे।
  • महीपाल प्रथम के बाद महेन्द्रपाल द्वितीय, देवपाल, विनायकपाल द्वितीय तथा उसके बाद महीपाल द्वितीय शासक बने।
  • विजयपाल के समय यह साम्राज्य विखण्डित होने लगा तथा इनके अधीन वंशों ने अपने-अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करना प्रारम्भ कर दिया।   

राज्यपाल :-

  • विजयपाल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राज्यपाल शासक बना।
  • 1018 ई. में महमूद गजनवी ने राज्यपाल पर आक्रमण किया तथा कन्नौज के असंख्य मंदिरों को नष्ट कर दिया था। 
  • महमूद गजनवी के वापस लौटते ही चन्देल वंशीय शासक विद्याधर ने राज्यपाल पर आक्रमण कर दिया क्योंकि राज्यपाल ने गजनवी से युद्ध नहीं किया था। इस युद्ध में राज्यपाल मारा गया।

त्रिलोचनपाल :-

  • इसके समय महमूद गजनवी ने पुन: आक्रमण किया तथा त्रिलोचनपाल को पराजित किया।
  • अलबरूनी के अनुसार इस समय प्रतिहारों की राजधानी कन्नौज नहीं थी बल्कि ‘बारी’ थी।

यशपाल :-

  • यशपाल गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था।
  • 1093 ई. के आसपास चन्द्रदेव गहड़वाल ने प्रतिहाराें से कन्नौज छीन लिया।

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