घाधरा का युद्ध 1529

Estimated reading: 1 minute 121 views

यह युद्ध 1529 ई. में बाबर और अफगानों के बीच लड़ा गया था. यह युद्ध पानीपत युद्ध (1526) और खनवा के युद्ध (1527) के ठीक बाद लड़ा गया. घाघरा बिहार में है जिसका नाम बिहार में बहने वाली नदी घाघरा के नाम पर पड़ा है.

खनवा के युद्ध में राजपूतों पर अपना प्रभाव स्थापित करने के बाद बाबर ने फिर से अफगान विद्रोहियों की तरफ ध्यान दिया. फर्मुली और नूहानी सरदार अभी भी बाबर की सत्ता को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया था. वे हमेशा कुछ न कुछ विद्रोह करते रहते थे.जिस समय बाबर चंदेरी अभियान में व्यस्त था, अफगानों ने अवध में विद्रोह कर दिया. शमसाबाद और कन्नौज पर अधिकार कर वे बिहार के अफगान शासक की सहायता से आगरा विजय की योजना बना रहे थे. अफगान विद्रोहियों को बंगाल का सुलतान नुसरतशाह भी सहायता पहुँचा रहा था. इससे अफगानों के हौसले बड़े हुए थे. बाबर अब अफगानों को और अधिक मौका देना नहीं चाहता था. अतः चंदेरी विजय के पश्चात उसने अफगानों पर अपना ध्यान केद्धित किया.

घाघरा का युद्ध

चंदेरी से बाबर अवध की तरफ बढ़ा. उसके आने की खबर सुनते ही अफगान नेता बिब्बन बंगाल भाग लिया. बाबर ने लखनऊ पर अधिकार कर लिया. इधर बिहार में अफगान महमूद लोदी के नेतृत्व में अपने आप को संगठित कर रहे थे. बंगाल के अलतान से भी उन्हें सहायता मिल रही थी. अफगानों ने बनारस से आगे बढ़ते हुए चुनार का दुर्ग घेर लिया. इन घटना: की सूचना पाकर बाबर तेजी से बिहार हार की तरफ बढ़ा. उसके आने का समाचार सुनकर अफगान डर कर चुनार का घेरा छोड़कर भाग गए. बाबर ने महमूद लोदी को शरण नहीं देने का निर्देश दिया पर नुसरतशाह द्वारा उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया गया. फलतः, 6 मई, 1529 को घाघरा के निकट बाबर और अफगानों की मुठभेड़ हुई. अफगान इस युद्ध में बुरी तरह हार गए. महमूद लोदी ने भागकर बंगाल में शरण ली. शाह शाह ने बाबर से संधि कर ली. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं करने और एक-दूसरे के शत्रुओं को शरण नहीं देने का वचन दिया. महमूद लोदी को बंगाल में ही एक जागीर दे दी गई. शेर खां के प्रयासों से बाबर ने बिहार के शासक जलालुद्दीन के राज्य के कुछ भागों को लेकर और उससे अपनी अधीनता स्वीकार करवा कर उसे प्रशासक के रूप में बना रहने दिया. इस प्रकार, घाघरा के युद्ध के बाद अफगानों की शक्ति पर थोड़े समय के लिए पूर्णतः अंकुश लग गया.

अंतिम युद्ध

घाघरा का युद्ध भारत में बाबर का अंतिम युद्ध था. भारत में लड़े गए युद्धों के परिणामस्वरूप बाबर एक बड़े राज्य का स्वामी बन गया. उसका राज्य सिन्धु से बिहार और हिमालय से ग्वालियर और चंदेरी तक फैला हुआ था. उसने भारत में मुगलों की सत्ता स्थापित कर दी थी. भारत में बाबर का अधिकांश समय युद्ध कर के ही बीता. इसलिए वह कभी भी प्रशासनिक व्यवस्था की तरफ ध्यान नहीं दे सका. अंतिम समय में वह काबुल जाना चाहता था. वह लाहौर तक गया भी, पर हुमा: यूँ की बीमारी के कारण उसे आगरा वापस आना पड़ा. खुद बाबर का स्वास्थ्य भी लगातार ख़राब हो रहा था. महल में भी षड्यंत्र हो रहे थे. ऐसी स्थिति में 23 दिसम्बर, 1530 को बाबर ने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया. 26 दिसम्बर, 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई.

Leave a Comment

CONTENTS