सिख धर्म का संक्षिप्त इतिहास और व्यापक जानकारी

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सिख धर्म के लोग गुरुनानक देव के पा हैं. गुरुनानक देव का कालखंड 1469-1539 ई. है. सिख धर्म के लोग मुख्यतया पंजाब में रहते हैं. वे सभी धर्मों में निहित आधारभूत सत्य में विश्वास रखते हैं और उनका दृष्टिकोण धार्मिक अथवा साम्प्रदायिक पक्षपात से रहित और उदार है. 1538 ई. में गुरु नानक की पक्के बाद सिखों का मुखिया गुरु कहलाने लगा. सिख धर्म का इतिहास बलिदानों का इतिहास है. आज हम इस में सिख धर्म के दस गुरुओं और सिख धर्म के गौरवपूर्ण इतिहास को आपके सामने रखेंगे. सिख धर्म के इतिहास में गुरुओं की लिस्ट कुछ इस तरह है –

  1. गुरुनानक देव (1469-1539)
  2. अंगद (1539-1552)
  3. अमरदास (1552-1574)
  4. रामदास (1574-1581)
  5. अर्जुन (1581-1606)
  6. हरगोविन्द (1606-1645)
  7. हरराय (1645-1661)
  8. हरकिशन (1661-1664)
  9. तेग बहादुर (1664-1675)
  10. गुरु गोविन्द सिंह (1675-1708)

गुरु नानक

गुरु नानक के सिख धर्म के प्रवर्तक थे. 1469 ई. में लाहौर के निकट तलवंडी अथवा आधुनिक ननकाना साहिब में खत्री परिवार में वे उत्पन्न हुए. वे साधु स्वभाव के धर्म-प्रचारक थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दू और इस्लाम धर्म की उन अच्छी बातों के प्रचार में लगाया जो समस्त मानव समाज के लिए कल्याणकारी है. गुरुनानक ने अत्यधिक तपस्या और अत्यधिक सांसारिक भोगविलास, अहंभाव और आउम्बर, स्वार्थपरता और अस॒त्य बोलने से दूर रहने की शिक्षा दी. उन्होंने सभी को अपने धर्म का उपदेश दिया, फलतः हिन्दू और मुसलामान, दोनों ही उनके अनुयायी हो गए. उनके स्वचरित पवित्र पद तथा शिक्षाएँ (बानियाँ) सिखों के धर्मग्रन्थ “ग्रन्थ साहिब” में संकलित हैं. नानक देव की मृत्यु 1539 में हुई.

गुरु अंगद

गुरु अंगद सिखों के दूसरे गुरु हुए. इनको गुरु नानक देव ने ही इस पद के लिए मनोनीत किया था. नानक इनको अपने शिष्यों में सबसे अधिक मानते थे और अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्होंने अंगद को ही अपना उत्तराधिकारी चुना. गुरु अंगद श्रेष्ठ चरित्रवान व्यक्ति और सिखों के उच्चकोटि के नेता थे जिन्होंने अनुयायियों का 14 वर्ष तक नेतृत्व किया.

गुरु अमरदास

गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे. वे चरित्रवान और सदाचारी थे. उन्होंने सिख धर्म का व्यापक ढंग से प्रचार किया.

गुरु रामदास

चौथे गुरु रामदास अत्यंत साधु प्रकृति के व्यक्ति थे. उन्होंने अमृतसर में एक जलाशय से युक्त भू- भाग दान दिया, जिसपर आगे चलकर स्वर्ण मंदिर का निर्माण हुआ.

गुरु अर्जुन

सिख धर्म के इतिहास में गुर रु अर्जुन का महत्त्वपूर्ण स्थान है. पाँचवें गुरु अर्जुन ने सिखों के “आदि ग्रन्थ” नामक धर्म ग्रन्थ का संकलन किया, जिसमें उनके पूर्व के चारों गुरुओं और कुछ हिन्दू और मुसलमान संतों की वाणी संकलित है. उन्होंने खालसा पंथ की आर्थिक स्थिति को हृढ़ता प्रदान करने के लिए प्रत्येक सिख से धार्मिक चंदा वसूल (धार्मिक कर) करने की प्रथा चलाई. जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन का इस कारण वध कर दिया गया कि गुरु अर्जुन ने जहाँगीर के विद्रोही बेटे शहजादा छुस्रे को दयापूर्वक शरण दिया था.

गुरु हरगोविंद

गुरु अर्जुन के पुत्र गुरु हरगोविंद ने सिखों का सैनिक संगठन किया. उन्होंने एक छोटी-सी सिखों की सेना एकत्र की. गुरु अर्जुन ने शाहजहाँ के विरुद्ध विद्रोह करके एक युद्ध में शाही सेना को हरा भी दिया. किन्तु बाद में उनको कश्मीर के पर्वतीय प्रदेश में शरण लेनी पड़ी. गुरु हरराय और गुरु किशन

गुरु हरराय और गुरु किशन के काल में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं घटी. उन्होंने गुरु अर्जुन द्वारा प्रचलित धार्मिक चंदे की प्रथा और उनके पुत्र हर गोविन्द की की सैनिक-संगठन की नीति का अनुसरण करके खालसा पंथ को और भी शक्तिशाली बनाया.

तेग बहादुर

नवें गुरु तेग बहादुर कोऔरंगजेब की दुष्ट प्रकृति का सामना करना पड़ा. उसने गुरु तेग बहादुर को बंदी बनाकर उनके सामने प्रस्ताव रखा कि या तो इस्लाम धर्म स्वीकार करो अथवा प्राण देने को तैयार हो जाओ. बाद में उनका सिर दुष्ट औरंगजेब ने काट डाला. उनकी शहादत का समस्त सिख सम्प्रदाय, उनके पुत्र और अगले गुरु गोविन्द सिंह पर गंभीर प्रभाव पड़ा.

गुरु गोविन्द सिंह

गुरु गोविन्द सिंह ने भली-भांति विचार करके शांतिप्रिय सिख सम्प्रदाय को सैनिक संगठन का रूप दिया जो हृढ़तापूर्वक मुसलामानों के अतिक्रमण और अत्याचारों का सामना कर सके. साथ ही उन्होंने सिखों में ऐसी अनुशासन की भावना भरी कि वे लड़ाकू शक्ति बन गए. उन्होंने अपने पंथ का नाम खालसा (पवित्र) रखा. साथ ही समस्त सिख समुदाय को एकता-सूत्र में बाँध कर के विचार से सिखों के केश कच्छ कड़ा कृपाण और कंघा- पाँच वस्तुओं को आवश्यक रूप में धारण करने का आदेश दिया. उन्होंने पाहुल प्रथा का शुभारम्भ किया जिसके अनुसार सभी सिख समूह में जात-बंधन तोड़ने के उद्देश्य से एक ही कटेरे में प्रसाद ग्रहण करते थे.

गुरु गोविन्द सिंह ने स्थानीय मुगल हाकिमों से कई युद्ध किये, जिनमें उनके दो बालक पुत्र मारे भी गए. पर इससे वे हतोत्साहित नहीं हुए. अपनी मृत्यु तक सिखों का संगठन करते रहे. 1708 ई. में एक अफगान ने उनकी हत्या कर दी.

आगे चलकर गुरु गोविन्द सिंह की रचनाएँ भी संकलित हुई और यह संकलन “गुरु ग्रन्थ साहब” का परिशिष्ट बना. समस्त सिख समुदाय उनका इतना आदर करता था कि उनकी मृत्यु के बाद गुरु पद ही समाप्त कर दिया गया. वैसे उनके मृत्यु के बाद ही बंदा वीर ने सिखों का नेतृत्व भार संभाल लिया. वीर वंदा के नेतृत्व में 1708 ई. से लेकर 1716 ई. तक सिख निरंतर मुगलों से लोहा लेते रहे, पर 1716 ई. में बंदा वीर बंदी बना लिया गया और बादशाह फर्रुखशियर (1713-1719ई.) की आज्ञा से हाथियों से रौंदवादकर उसकी निर्मम हत्या कर दी गई.

सिख धर्म पर प्रहार – काला इतिहास

सैकड़ों सिखों को घोर यातनाएँ दी गयीं फिर भी इन अत्याचारों से खासला पंथ की सैनिक शक्ति को दबाया नहीं जा सका. गुरु के अभाव में, व्यक्तिगत नेतृत्व के स्थान पर, संगठन का भार कई व्यक्तियों के एक समूह पर आ पड़ा, जिन्होंने अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार अपने सहधर्मियों का संगठन किया.

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