बाबर के आक्रमण के पूर्व का भारत

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भारत में जब-जब केन्द्रीय शक्ति का हास हुआ और नए-नए स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की गई तब-तब विदेशी आक्रमणकारियों ने विभाजित परिस्थिति का लाभ उठाकर नए राज्य की स्थापना कर ली. तुर्क-अफगान शासन की स्थापना विभाजित परिस्थिति की ही उपज थी. मुग़ल-आक्रमण के समय भारतवर्ष की अवस्था लगभग वैसी ही थी जैसी तुर्क-अफगान शासन के समय थी. तुर्क-अफगान साम्राज्य मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासन के अंतिम दिनों में खोखला हो चुका था. विद्रोह एवं शासन की कमजोरी का लाभ उठाकर अनेक स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की जा चुकी थी. तैमूर के आक्रमण ने दिल्‍ली सल्तनत की रही-सही प्रतिष्ठा नष्ट कर दी और विशाल तुर्क साम्राज्य पहले की तुलना में छायामात्र रह गया था.

तुगलक वंश के बाद सय्यद और लोदी वंश के शासकों ने दिल्‍ली पर अपना आधिपत्य कायम किया, किन्तु वे बड़े जागीरदार की तरह थे और उनके साम्राज्य की सीमा दिल्‍ली, आगरा, दोआब, जौनपुर और बिहार तक सीमित रह गई थी. सिकंदर ने खोये हुए तुर्क साम्राज्य की प्रतिष्ठा को लौटाने के लिए असफल प्रयास किया पर आपसी मतभेद के कारण उसे केवल निराशा हाथ लगी. पूरे देश में लूट और अत्याचार का बोलबाला था. मुट्ठी भर सामंत जनता का शोषण कर रहे थे.

राजनीतिक स्थिति

उत्तर भारत

दिल्ली – दिल्‍ली सल्तनत की अवस्था दयनीय थी. बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली में लोदी वंश का राज्य था. लोदी-राज्य की सीमा केवल दिल्ली, आगरा, दोआब, वियाना और चंदेरी का ही क्षेत्र था. लोदी वंश का शासक इब्राहिम लोदी था. इब्राहिम लोदी घमंडी स्वभाव का था. वह अयोग्य और प्रतिभाहीन शासक था.

पंजाब – पंजाब पहले दिल्ली सल्तनत का एक अंग था. इब्राहिम लोदी के अपमानजनक व्यवहार से क्षुब्द होकर तातार खां का पुत्र दौलत खां लोदी 1524 ई. में पंजाब में एक स्वतंत्र शासक बन गया था. पंजाब में ही इब्राहिम लोदी का चाचा आलम खां भी रहता था जो आगरा पर अधिकार करने के उद्देश्य से इब्राहिम लोदी का विरोध कर रहा था.

सिंध – भारत की पश्चिमी सीमा पर सिंध का राज्य था. मुहम्म-बिन-तुगलक के समय ही सिंध में सुमर॒ नामक (50071 6/71959) एक नए राजवंश की स्थापना की जा चुकी थी. सुमरा वंश का राज्य अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सका.

कश्मीर – पंजाब के उत्तर-पश्चिम में कश्मीर का राज्य था. 1339 ई. में शाहमिर्जा ने कश्मीर में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की. शाहमिर्जा के वंशजों में जैनुल अब्दीन कश्मीर का सर्वश्रेष्ठ शासक था.

पश्चिमी भारत

गुजरात – गुजरात में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1401 ई. में जफ़र खां ने की थी. जफ़र खान दिल्‍ली सल्तनत का गवर्नर था. वह राजपूत था पर कालांतर में उसने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर और फिर मुजफ्फर शाह की उपाधि धारण किया.

राजपूताना – तुर्क सल्तनत के भग्नावशेष पर स्वतंत्र राज्य की स्थापना करनेवालों में राजपूताना के राजपूत सरदार अग्रगण्य थे. राजपूताना में अनेक छोटे-बड़े राज्यों की स्थापना की गई थी जिसमें मेवाड़ का राज्य सर्वाधिक शक्तिशाली था. राणा सांगा मेवाड़ का शासक था.

खानदेश – 1388 ई में खानदेश में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना फारुकी ने की थी. खानदेश और गुजरात दोनों के शासक एक-दूसरे के शत्रु थे. खानदेश ताप्ती नदी के तट पर एक समृद्धशाली राज्य था.

मालवा – खानदेश के उत्तर में मालवा का राज्य था. 1398 ई. में मालवा को एक स्वतंत्र राज्य घोषित करने का श्रेय दिलावर खां गोरी को दिया जाता है. तैमूर के आक्रमण के बाद अराजक स्थिति का लाभ उठाकर उसने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी.

जौनपुर – पूर्वी भारत में दिल्‍ली सल्तनत का अधिकार नाम मात्र के लिए रह गया था. जौनपुर में शिर्की सुल्तानों ने स्वतंत्र राज्य कायम कर लिया था. जौनपुर दिल्ली सल्तनत का एक प्रतिद्वंद्वी राज्य था. जौनपुर का शासक नसीर खां इब्राहिम लोदी का शत्रु था और वह दिल्ली पर अधिकार करने के लिए अनुकूल परिस्थिति का इन्तजार कर रहा था.

पूर्वी भारत

बिहार – बिहार में दरिया खां लोहानी ने एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली थी.

बंगाल – बंगाल फिरोज तुगलक के समय ही स्वतंत्र राज्य बन चुका था. बंगाल में हुसैनीवंश का शासन था.

उड़ीसा – उडीसा में स्वतंत्र हिंदू राज्य की स्थापना हो चुकी थी. उड़ीसा के शासक भारतीय राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं लेते थे. इस प्रकार उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूरब में अनेक राज्यों की स्थापना हो चुकी थी जो मुसलमान शासकों की संप्रभुता को अस्वीकार कर चुके थे.

दक्षिणी भारत : बहमनी और विजयनगर

उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत के राज्य भी आपसी संघर्ष के शिकार बन चुके थे. दक्षिण भारत में दो अलग साम्राज्य की स्थापना हुई थी. एक का नाम बहमनी साम्राज्य और दूसरे का विजयनगर साम्राज्य था. बहमनी साम्राज्य की स्थापना 1347 ई. में हुई थी. शुरुआत में बहमनी साम्राज्य दक्षिण भारत का एक प्रमुख राज्य था पर 1481 ई. में महमूद गवाँ की मृत्यु के बाद बहमनी साम्राज्य की हालत पतली हो गई. विजयनगर के हिंदू शाशकों के गत प्रहार से बहमनी साम्राज्य शक्ति क्षीण हो गयी और विशाल साम्राज्य विघटित होकर पाँच खंडों में बँट गया.

  1. बरार में इमादशाही राजवंश
  2. अहमदनगर का निजामशाही वंश
  3. वीजापुर का आदिलशाही राजवंश
  4. गोलकुंडा का कृतुबशाही राजवंश
  5. बीदर का वरीदशाह राजवंश

इन राज्यों के बीच पारस्परिक शत्रुता थी और वे एक-दूसरे के राज्य में लूट-पाट करते रहते थे. मुसलामानों के आपसी मतभेद ने दक्षिण भारत में उनके विस्तार के काम को ठप्प कर दिया था और उनकी विश्रृंखलता का लाभ उठाकर विजयनगर अपनी शक्ति का विस्तार करने में सफल हो गया था. विजयनगर एक हिंदू राज्य था. इस साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में हरिहर और बुक्का नामक भाइयों ने की थी

कृष्णदेव राय के बाद विजानगर साम्राज्य का पतन होना शुरू हो गया था और बहमनी राज्य के साथ सतत संघर्ष ने उसे खोखला बना दिया था.

सामजिक अवस्था

तुर्क-अफगान के शासनकाल में भारतीय समाज में अनेक परिवर्तन हुए थे. शुरुआत में आक्रमणकारियों का व्यवहार हिंदु के प्रति असहिष्णु था. धीरे-धीरे कई सदियों तक साथ-साथ रहने के कारण धार्मिक कट्टरता का स्थान धार्मिक सहिष्णुता ने ले ली. हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए सूफियों, दार्शनिकों, संतों और फकीरों ने प्रयास प्रारम्भ कर दिया. कबीर, नानक, रामानंद आदि सन्तों ने हिंदुओं और मुसलामानों के बीच भिन्नता की खाई को पाटने की चेष्टा की.

आर्थिक अवस्था

भारत एक समृद्ध देश था. मार्को पोलो, इकबाल [ता और महुआन जैसे विदेशी यात्रियों ने भारतवर्ष की सम्पन्नता की पुष्टि अपने यात्रा-वृत्तांत में की है. बंगाल गुजरात और मेवाड़ समृद्धशाली क्षेत्र थे. संभवतः भारत की समृद्धि ने ही बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया था.

सैनिक संगठन

भारत का सैनिक संगठन पुराने ढंग का था. भारतीय सैनिक वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे पर उनके युद्ध का सामान पुराना था. आधुनिक अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग भारतीय युद्ध में नहीं करते थे. यूरोप में सैनिक तोप और बारूद का प्रयोग करने लगे थे. यूरोपीय युद्ध पद्धति को मुसलामानों ने भी अंगीकृत कर लिया था. भारत की नाजुक परिस्थिति का लाभ उठाकर बाबर ने भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना कर दी.

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