चैतन्य महाप्रभु के विषय में जानकारी

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चैतन्य महाप्रभु की जीवनी

  1. उनका जन्म 18 फरवरी, 1486 ई. को हुआ था.
  2. उनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र और माता का नाम शची देवी था.
  3. चैतन्य प्रभु ने अपने सुधारवादी आन्दोलन से बंगाल और उड़ीसा में एक नवीन चेतना जागृत की. जीवन के प्रारम्भ में से ही उन्होंने उच्चकोटि की साहित्यिक प्रतिभा का परिचय दिया.
  4. चौबीस वर्ष की अवस्था में वे संसार त्यागकर साधू हो गए.
  5. उन्होंने अपना शेष जीवन भक्ति और प्रेम के सन्देश प्रसार में व्यतीत किया.
  6. उन्होंने कृष्ण को अपना आराध्य देव माना.

चैतन्य प्रभु

  1. प्रारम्भिक सूफियों की तरह ही उन्होंने संगीत मंडलियाँ जोड़ी और कीर्तन को आध्यात्मिक अनुभूति के लिए प्रयोग किया, जिनमें (कीर्तन में) नाम लेने से बाह्य संसार का ध्यान नहीं रहता.
  2. वे बहुत समय तक वृन्दावन भी रहे लेकिन अपना अधिकांश समय लगभग सारे भारत का भ्रमण करने और भक्ति प्रचार में व्यतीत किया.
  3. उनका प्रभाव व्यापक था. उनके कीर्तनों में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही जाते थे.
  4. इनमें निम्न जाति के लोग भी थे.
  5. चैतन्य ने वैदिक धार्मिक ग्रन्थों और मूर्तिपूजा का विरोध नहीं किया लेकिन उन्हें परम्परावादी नहीं कहा जा सकता क्योंकि जाति प्रथा और वर्णव्यस्था को चैतन्य महाप्रभु ने नहीं माना.
  6. वे सांप्रदायिक नहीं थे, उनके विचारों में सगुण भक्ति का स्वर प्रधान था.

चैतन्य प्रभु के उपदेश

चैतन्य के उपदेशों का सारांश सक्षेप में यह है कि, “यदि कोई व्यक्ति कृष्ण की उपासना करता है और गुरु की सेवा करता है तो वह माया के जाल से मुक्त हो जाता है और ईश्वर से एकीकृत हो जाता है”. महाप्रभु ने ब्राह्मणवाद और कर्मकांडों की निंदा की. उनका मुख्य उद्देश्य सामजिक असमानता को दूर कर पददलित वर्ग को ऊँचा उठाना था. वे हिन्दू-मुस्लिम के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण पैदा करना चाहते थे. वह मानववादी थे और दलित वर्ग की दुर्दशा पर उन्हें बहुत दुःख होता था

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