42nd संवैधानिक संशोधन

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भूमिका

1971 के लोकसभा चुनावों के बाद से ही तत्कालीन शासन दल के एक वर्ग द्वारा इस बात का प्रतिपादन किया जा रहा था कि देश की सामजिक-आर्थिक प्रगति के लिए संविधान में व्यापक परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता है. इस पृष्ठभूमि में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के द्वारा 26 फरवरी, 1976 को संविधान संशोधन के प्रश्न पर विचार करने के लिए सरदार स्वर्णसिंह की अध्यक्षता में एक समिति की स्थापना की गई. समिति की रिपोर्ट पर विचार के आधार पर एक विधेयक तैयार कर लोकसभा में प्रस्तावित किया गया और उसे 42वें संविधान संशोधन विधेयक का नाम दिया गया. 42वें संवैधानिक संशोधन में कुल 59 प्रावधान थे. इस संवैधानिक संशोधन द्वरा संविधान के विभिन्न प्रावधानों में निम्न प्रकार से संशोधन किया गया है

संविधान में संशोधन

प्रस्तावना

इसके द्वारा संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्दजोड़े गए और राज्य की एकता के साथ “और अखंडता” शब्दजोड़े गए.

मूल कर्तव्यों की व्यवस्था

इसके द्वरा अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की व्यवस्था करते हुए नागरिकों के 10 मूल कर्तव्य निश्चित किए गए. नीति निर्देशक तत्त्वों में डछ नवीन तत्व जोड़े गए जैसे – बच्चों को स्वस्थ रूप में विकास के लिए अवसर और सुविधाएँ प्रदान करना, समाज के कमजोर वर्गों के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्थापित करना, औद्योगिक संस्थानों के प्रबंधों में कर्मचारियों को भागीदार बनाना व देश के पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार.

आपातकालीन उपबंध

यह व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल समस्त देश में लागू किया जा सकता है या देश के किसी एक या कुछ भागों के लिए.

केंद्र-राज्य सम्बन्ध

इसके द्वारा शिक्षा, नाप, तौल, वन और जंगली जानवर और पक्षियों की रक्षा – ये विश्व राज्य सूची से निकालकर समवर्ती ३ में रख दिए गए. इसके अतिरिक्त प्रशासन से विभिन्न क्षेत्रों में यायाधिकरण की स्थापना की गई. न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को सीमित करने का प्रयत्न किया गया.

42ND संवैधानिक संशोधन की समीक्षा

तत्कालीन शासक वर्ग के द्वारा इस संवैधानिक संशोधन के चाहे जो भी लक्ष्य और उद्देश्य बतलाये गए हों, वस्तुतः इस संवैधानिक संशोधन का व्यवाहार में सर्वप्रमुख उद्देश्य प्रधानमंत्री और कार्यपालिका के हाथ में सत्ता का अधिकाधिक केंद्रीकरण ही था. छठी लोक सभा के चुनाव के समय जनता पार्टी के द्वारा जो चुनाव घोषणा-पत्र प्रकाशित किया गया, उसके राजनीतिक कार्यक्रम के अंतर्गत एक प्रमुख बात 42वें संविधानिक संशोधन को रद्द करने की कही गई थी. लेकिन सत्ता प्राप्त करने के बाद के सभी प्रावधानों को रद्द करने के बजाय इस सम्बन्ध में गुनावगुण के आधार पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया गया.संवैधानिक संशोधन की अनेक बातों को रद्द करने के लिए 43वें और 44वें संवैधानिक संशोधन किए गए.

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