भारतीय नागरिकता और संविधान में संशोधन

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नागरिकता मनुष्य की उस स्थिति का नाम है, जिसमें मनुष्य को नागरिक का स्तर प्राप्त होता है और नागरिक केवल ऐसे ही व्यक्तियों को कहा जा सकता है जिन्हें राज्य की ओर से सभी राजनीतिक और नागरिक अधिकार पदान किए गए हों, और जो उस राज्य के प्रति विशेष भक्ति रखते हों.

भारतीय नागरिकता के कुछ विशेष लक्षण

भारतीय संविधान द्वारा नागरिकता के सम्बन्ध में जो व्यवस्था की गई है, उसके कुछ विशेष लक्ष्ण इस प्रकार हैं :

इकहरी नागरिकता

सामान्यतया संघात्मक शासन-व्यवस्था में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था की जाती है:

  • संघ की नागरिकता
  • राज्य की नागरिकता

भारतीय संविधान द्वारा भारत में संघात्मक शासन की व्यवस्था की गई है किन्तु अमरीका आदि अन्य संघ राज्यों की तरह भारत में दोहरी नागरिकता की नहीं वरन्‌ एक ही नागरिकता/ (भारतीय नागरिकता) की व्यवस्था की गई है. भारत में कोई व्यक्ति भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास करता हो, वह केवल भारत का नागरिक होगा. कहने का मतलब यह है कि हमारे यहाँ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों की कला की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. भारत में इकहरी नागरिकता की यह व्यवस्था राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से गई है.

नागरिकता संघीय विषय

भारतीय संविधान के अनुसार नागरिकता एक संघीय विषय है और राज्य सरकारों को इस सम्बन्ध में कार्य करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है. नागरिकता के सम्बन्ध में नियम बनाने और उन्हें संव्हालित करने का अधिकार केन्द्रीय संसद को ही प्राप्त है

नागरिकता के सम्बन्ध में अपेक्षाकृत उदार दृष्टिकोण

साधारणतया अन्य देशों में नागरिकता प्रदान करने के सम्बन्ध में या तो जन्म के सिद्धांत को अपनाया जाता है अथवा वंश या रक्त के सिद्धांत को. किन्तु भारतीय संविधान के अंतर्गत नागरिकता प्रदान करने के सम्बन्ध में जन्म के सिद्धांत और वंश के सिद्धांत दोनों को ही अपनाया गया था. 1985 तक व्यवस्था यह थी कि 26 जनवरी, 1950 के बाद जो व्यक्ति भारत भूमि पर उत्पन्न हुआ हो या जो व्यक्ति चाहे भारत के बाहर जन्म हो, किन्तु जिसके माता-पिता भारत के नागरिक हों, भारत का नागरिक समझा जायेगा. यह सोचा जा रहा था कि नागरिकता सम्बन्धी इन उदार प्रावधानों का दुरूपयोग किया जा सकता है. अतः “नागरिकता संशोधन अधिनियम 1986″ के आधार पर अब यह व्यवस्था की गई है कि इस देश में जन्म लेने वाले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता तभी प्राप्त होगी, जब उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक होगा.

इस मजा शब नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान पहले की तुलना में कम उदार हो गए हैं, लेकिन अब भी ये अपेक्षाकृत उदार ही हैं.

संविधान लागू होने के समय नागरिकता की व्यवस्था

भारतीय संविधान के 5 से 11 तक के अनुच्छेदों में नागरिकता सम्बन्धी व्यवस्था की गई है. संविधान निम्न श्रेणी के व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करता है :-

जन्मजात नागरिक

संविधान लागू होने के समय (26 जनवरी, 1950 ई) निम्न तीन श्रेणियों के व्यक्ति भारत के जन्मजात नागरिक माने गए

  1. प्रथम श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो भारत भूमि में पैदा हुए हों.
  2. कमी में वे व्यक्ति आते हैं जिनके माता-पिता या इन दोनों में से कोई एक भारत की भूमि में पैदा हुएऔर
  3. तृतीय श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो भारतीय संविधान के घोषित होने के पूर्व कम-से-कम 5 वर्ष से भारतभूमि पर निवास कर रहे हों.

शरणार्थी नागरिक

संविधान में उन व्यक्तियों की नागरिकता का भी विवेचन किया गया है जो पकिस्तान से भारत आये हैं. संविधान के अनुसार वे व्यक्ति जो 19 जुलाई, 1948 ई. के पूर्व पाकिस्तान से भारत आये हैं, भारत के नागरिक समझे जायेंगे. जो व्यक्ति 19 जुलाई, 1948 के बाद पकिस्तान से भारत आये और जिन्होंने भारत में कम-से-कम 6 महीने रहने के बाद उचित अधिकारी के समक्ष नागरिक बनने के लिए प्रार्थना-पत्र देकर संविधान लागू होने के पूर्व अपना नाम रजिस्टर्ड करा लिया, उन्हें भी नागरिकता का अधिकार प्रदान कर दिया गया.

1 मार्च, 1947 के बाद जो व्यक्ति भारत से पाकिस्तान चले गए हैं, सामान्यतया उन्हें भारतीय नागरिकता से वंचित कर दिया गया है, लेकिन इनमें से भी उन लोगों को, जो भारत में स्थाई निवास का परमिट लेकर पाकिस्तान से भारत में चले आये 6 महीने भारत में रहने के बाद प्रार्थना-पत्र देकर रजिस्ट्रेशन करवा लेने पर भारत की नागरिकता मिल सकती है.

विदेशों में रहने वाले भारतीय

विदेशों में जो भारतीय रहते हैं, यदि वे निम्न दो शर्तें पूरी करते हों तो भारतीय नागरिक बन सकते हैं –

  1. उनका या उनके माता-पिता या उनके दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो
  2. उन्होंने विदेश में स्थित भारतीय राजदूत के पास भारत का नागरिक बनने के लिए आवेदन-पत्र देकर अपना नाम रजिस्टर में लिखा लिया हो.

संविधान लागू होने के बाद नागरिकता की व्यवस्था

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955

हमारे संविधान ने संसद को यह अधिकार दिया है कि वह भारतीय नागरिकता से सम्बन्धित सभी विषयों के सम्बन्ध में व्यवस्था करे. अतः संसद ने 1955 ई. में “भारतीय नागरिकता अधिनियम” पारित किया. इस अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि भारतीय नागरिकता की प्राप्ति किस प्रकार होगी और किन परिस्थतियों में भारतीय नागरिकता का अंत हो जायेगा.

नागरिकता की प्राप्ति

उपर्युक्त अधिनियम के अनुसार निम्न में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है –

जन्म से

कोई व्यक्ति जो 25 जनवरी, 1950 या उसके बाद भारत में पैदा हुए हैं, भारत के नागरिक माने जायेंगे. परन्तु विदेशी दाता से जुड़े व्यक्तियों (जो भारत में अन्य देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं) के बच्चे भारत के नागरिक नहीं माने जायेंगे.

रक्त सम्बन्ध या वंशाधिकार से

इस अधिनियम के अनुसार वे व्यक्ति भी, जो 26 जनवरी, 1950 या उसके बाद भारत के बाहर पैदा हों, भारत के नागरिक माने जायेंगे, यदि उसके पिता या माता उसके जन्म के समय भारत के नागरिक रहे हों.

पंजीकरण द्वारा

निम्न श्रेणी के व्यक्ति पंजीकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं:

  1. ऐसे व्यक्ति जो 26 जुलाई, 1947 के बाद पाकिस्तान से आये हैं, उस दशा में भारतीय नागरिक माने जायेंगे, जब वे आवेदन-पत्र देकर अपना नाम “भारतीय नियुक्ति अधिकारी” के पास नागरिकता के रजिस्टर में दर्ज करा लें. परन्तु ऐसे लोगों के लिए शर्त यह होगी कि आवेदन-पत्र देने के पूर्व कम-से-कम 6 माह से भारत में रहते हों और उनका या उनके माता-पिता अथवा दादा-दादी का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो.
  2. ऐसे भारतीय जो विदेशों में जाकर बस गए हैं, भारतीय दूतावासों में आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे.
  3. विदेशी स्त्रियाँ, जिन्होंने भारतीय नागरिक से विवाह कर लिया हो, आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी.
  4. राष्ट्रमंडल देशों के नागरिक, यदि वे भारत में ही रहते हों या भारत सरकार की नौकरी कर रहे हों, आवेदन- पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं.

देशीकरण द्वारा

विदेशी नागरिक भी निम्नलिखित शर्तों को पूरा करने पर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं :-

  1. वह आवेदन-पत्र देने से पूर्व कम-से-कम 5 वर्षों तक भारत में रह चुका हो या भारत सरकार की नौकरी में रह चुका हो अथवा दोनों मिलाकर 7 वर्ष हो, पर किसी हालत में 4 वर्ष से कम समय न हो.
  2. उसका आचरण अच्छा हो.
  3. वह भारत की किसी प्रादेशिक भाषा या राज भाषा का अच्छा जानकार हो.
  4. नागरिकता का प्रमाण-पत्र मिलने पर वह भारत में रहने का या भारत सरकार की नौकरी करने का अथवा किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था में जिसका सदस्य भारत भी हो, काम करने का इच्छुक हो.

भूमि विस्तार द्वारा

यदि किसी नवीन क्षेत्र को भारत में शामिल किया जाए तो वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी. जैसे 1961 ई. में गोआ को भारत में शामिल किये जाने पर वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो गई.

भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनयम, 1986

भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 द्वारा जो व्यवस्था की गई थी, वह बहुत उदार थी और जम्मू-कश्मीर और असम जैसे राज्यों में विदेशियों ने अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर इसका अनुचित लाभ भी उठाया. अतः “नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986” के आधार पर “नागरिकता अधिनियम, 1955” में संशोधन कर नागरिकता प्राप्त करने की शर्तों में परिवर्तन किया गया है. संशोधन इस प्रकार हैं –

  1. अब भारत में जन्मे केवल उस व्यक्ति को ही नागरिकता प्रदान की जाएगी, जिसके माता-पिता में से कम- से-कम एक भारत का नागरिक हो.
  2. जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अब भारत में कम-से- कम पांच वर्ष निवास करना होगा. पहले यह अवधि 6 माह थी.
  3. देशीकरण द्वारा नागरिकता तभी प्रदान की जाएगी, जबकि सम्बन्धित व्यक्ति कम-से-कम 10 वर्ष तक भारत में रह चुका हो. पहले यह अवधि 5 वर्ष थी.

“नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986″ जम्मू-कश्मीर और असम सहित भारत के सभी राज्यों पर लागू होगा.

नागरिकता कानून में संशोधन, 1992

1992 में संसद ने सर्वसम्मति से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया, जिसके अंतर्गत व्यवस्था की गई है कि भारत से बाहर पैदा होने वाले बच्चे को, यदि उसकी माँ भारत की नागरिक है, तो उसे भारत की नागरिकता प्राप्त होगी. इससे पूर्व उसी द्शा में भारत की नागरिकता प्राप्त होती थी, यदि उसका पिता भारत का नागरिक हो. इस प्रकार अब नागरिकता के प्रसंग में बच्चे की “माता को पिता के समक्ष स्थिति” प्रदान कर दी गई है.

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