विधानसभा का संगठन और कार्य

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भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक विधानमंडल (Legislature) का प्रावधान किया गया है. किसी राज्य में एक सदन और किसी में दो का प्रावधान है. 2017 तक केवल सात राज्यों में विधान मंडल और विधान परिषद्‌ दोनों का प्रावधान है, वे राज्य हैं – > आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और जम्मू और कश्मीर में दो सदनों का प्रावधान है. शेष राज्यों में एक ही सदन है. दो सदन वाले विधानमंडल का उच्च सदन विधान परिषद्‌ और निम्न सदन विधानसभा कहलाता है. जैसे केंद्र में लोकसभा का महत्त्व राज्यसभा से अधिक है, वैसे ही प्रांत में विधानसभा का महत्त्व विधान परिषद्‌ से अधिक है. भारतीय संसद यह अधिकार दिया गया है कि वह विधि-निर्माण करके किसी भी राज्य की विधान परिषद्‌ को समाप्त कर सकती है. अथवा जिस राज्य में विधान परिषद्‌ नहीं है वहाँ उसका निर्माण कर सकती है.

विधानसभा का संगठन (Composition)

राज्यों की विधानसभाओं का निर्वाचन मताधिकार द्वारा होता है. विधानसभा के सदस्यों की संख्या प्रत्येक राज्य के लिए भिन्न-भिन्न है. अनुसूचित जन-जातियों के लिए लिए कुछ स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं.

सदस्यों की योग्यता

कोई भी भारतीय नागरिक, जिसका नाम मतदाता सूची में हो और वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो, राज्य की का चुनाव लड़ सकता है. परन्तु उसे पागल या दिवालिया नहीं होना चाहिए और राज्य या केंद्र सरकार के किसी लाभदायक पद पर (कर्मचारी) नहीं होना चाहिए.

विधानसभा की कालावधि

भारतीय संविधान के अनुसार विधानसभा की अवधि 5 वर्ष नियत की गई है. 5 वर्ष के बाद पुनः आम चुनाव होता है. राज्य के राज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी असाधारण स्थिति में राष्ट्रपति को विधानसभा के विघटन की सलाह दे दे और अन्ततः का विघटन कर दिया जाए. भारतीय संसद को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह आपातकाल में विधानसभा के जीवनकाल को एक समय में एक वर्ष के लिए बढ़ा सकती है परन्तु आपातकालीन स्थिति की समाप्ति के बाद 6 महीने के अन्दर उसका विघटन अवश्य हो जाना चाहिए.

विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

विधानसभा के कार्य को भली प्रकार से संचालित करने के लिए एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का प्रावधान संविधान में है. Legislative Assembly का स्पीकर या अध्यक्ष विधानसभा के निर्माण के बाद होने वाले उसके प्रथम सत्र में ही Legislative Assembly के सदस्यों द्वारा चुना जा सकता है. अध्यक्ष के अतिरिक्त Legislative Assembly के सदस्य उपाध्यक्ष का चुनाव भी करते हैं. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का कार्यभार संभालता है.

विधानसभा का अध्यक्ष लगभग वही कार्य Legislative Assemblyमें करता है जो कार्य लोकसभा का अध्यक्ष करता
है. उसके कार्यों में मुख्य हैं :

  1. सदन में अनुशासन बनाए रखना
  2. सदन की कार्यवाही का सुचारू रूप से संचालित करना
  3. सदस्यों को बोलने की अनुमति प्रदान करना
  4. पक्ष और विपक्ष में सामान मत आने पर निर्णायक मत प्रदान करना

अधिवेशन, मतदान और गणपूर्ति

राज्य की विधानसभा का एक वर्ष में कम से कम दो अधिवेशन अवश्य होने चाहिए. इस प्रकार का नियम रखा गया है कि प्रथम सत्र के अंतिम अधिवेशन की तिथि और दूसरे सत्र की प्रथम तिथि में 6 महीने से ऊपर का अंतर नहीं होना चाहिए परन्तु इन नियमों का पालन नहीं किया जाना सा न का उल्लंघन नहीं है. राज्य के राज्यपाल को Legislative Assembly का अधिवेशन बुलाने का अधिकार होता है और वह यह कार्य मुख्यमंत्री की सलाह से करता है. विधानसभा Legislative Assembly में कोई भी निर्णय सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाता है. गणपूर्ति के लिए कुल सदस्यों का 1/10 भाग सदन में होना आवश्यक है.

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