भारतीय संविधान की मूलभूत संरचना से संबंधित

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गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य सरकार (1967)

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य, जिसे संक्षेप में गोलकनाथ केस भी कहते हैं, का फैसला Supreme Court द्वारा 1967 में किया गया था. इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि संविधान में वर्णित मूल अधिकारों में संसद द्वारा कोई परिवतन नहीं हो सकता है.

केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य (1973)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने नीचे लिखे हुए तत्वों को संविधान के मूल ढाँचे का हिस्सा बताया –

  1. संविधान की सर्वोच्चता
  2. सरकार का “लोकतांत्रिक” और ““गणतांत्रिक” ढाँचा
  3. संविधान का “धर्मनिरपेक्ष” स्वरूप
  4. संविधान की “संघात्मक” प्रकृति
  5. विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच “शक्तियों का बँटवारा”
  6. देश की सम्प्रभुता

इंदिरा नेहरु गांधी बनाम राज नारायण (1975)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित तत्वों को संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा बताया –

  1. स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर आधारित लोकतंत्र
  2. विधि का शासन
  3. न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति

मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)

  1. इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निम्नलिखित तत्व संविधान के आधारभूत ढाँचे में शामिल हैं – संसद की संविधान संशोधन करने की “सीमित” शक्ति
  2. मूल अधिकारों तथा राज्य के नीति-निदेशक तत्वों में संतुलन
  3. न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति (कुछ मामलों को छोड़कर)
  4. कुछ परिस्थितियों में मूल अधिकार

एस.पी. गुप्ता बनाम राष्ट्रपति (1982)

न्यायाधीशों के स्थानान्तरण के नाम से प्रसिद्ध “एस.पी. गुप्ता और अन्य बनाम रा ू (1982) मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 32 के अंतर्गत “सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र” संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा है.

एस.आर. बम्बई बनाम भारत संघ (1994)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने “धर्मनिरपेक्षता” के अर्थ में सम्यक्‌ व्याख्या करते हुए घोषित किया गया कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के आधारभूत ढाँचे का अंग है.

एल.चन्द्र कुमार बनाम भारत संघ (1997)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा कि “न्यायिक पुनर्विलोकन” संविधान के आधारभूत ढाँचे में शामिल हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक नीचे लिखे हुए तत्वों को संविधान के आधारभूत ढाँचे में शामिल किया गया है

  1. संविधान की सर्वोच्चता
  2. विधि का शासन
  3. शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत
  4. संविधान का संघात्मक ढाँचा
  5. देश की संप्रुभता
  6. संसदीय प्रणाली की सरकार
  7. स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव पर आधारित लोकतंत्र प्रणाली
  8. राज्यव्यवस्था का गणतंत्रात्मक ढाँचा
  9. मूल अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों के बीच संतुलन
  10. मूल अधिकारों का सार (हालाँकि मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है)
  11. न्यापालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार.
  12. संसद की संविधान में संशोधन करने की “सीमित” शक्ति
  13. सामाजिक व आर्थिक न्याय का उद्देश्य तथा राज्य का लोक कल्याणकारी स्वरूप
  14. धर्मनिरपेक्षता

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