न्यायालय द्वारा जारी रिट के प्रकार

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संवैधानिक उपचारों सम्बन्धी मूलाधिकार का प्रावधान अनुच्छेद 32-35 तक किया गया है. संविधान के भाग तीन में मूल अधिकारों का वर्णन है. यदि मूल अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में और अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल करने अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है. संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख है –

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण
  • परमादेश रिट
  • प्रतिषेध रिट
  • उत्प्रेषण लेख
  • अधिकार पृच्छा

बंदी प्रत्यक्षीकरण

यह रिट उस अधिकारी के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर रखता है. इस रिट को जारी करके कैद करने वाले अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करे. इस रिट का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए “दैहिक स्वतंत्रता के कट के अधिकार” का अनुपालन करना है. यह रिट अवैध बंदीकरण के विरुद्ध प्रभावी कानूनी राहत प्रदान करता है.

परमादेश रिट

यह रिट न्यायालय द्वारा उस समय जारी किया जाता है जब कोई लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहण से इनकार करे और जिसके लिए कोई अन्य विधिक उपचार (कोई कानूनी रास्ता न हो) प्राप्त न हो. इस रिट के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्य का पालन सुनिश्चित करे.

प्रतिषेध रिट

यह रिट किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है. इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपनी अधिकारिता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है. इस रिट के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को किसी मामले में तुरंत कार्रवाई करने तथा की गई कार्रवाई की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है.

उत्प्रेषण लेख

यह रिट भी अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी किया जाता है. इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास संचित मुकदमे के निर्णय लेने के लिए उस मुकदमे को वरिष्ठ न्यायालय अथवा उच्चतर न्यायालय को भेजें. उत्प्रेषण लेख का मतलब उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे किसी मुक़दमे के प्रलेख की समीक्षा मात्र है, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो.

अधिकार पृच्छा

इस रिट को उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है. इस रिट द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है. यदि उसका दावा निराधार है तो वह उसे पद से निष्कासन कर देता है. इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है.

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