ब्लूम के अनुदेशनात्मक उद्देश्यों का वर्गीकरण

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शैक्षिक प्रणाली का लक्ष्य विद्यार्थी का सर्वागीण विकास करना हैं। कक्षा अध्यापक के लिये व्यावहारिक रुप में इन लक्ष्यों की हूँ प्राप्ति लगभग असम्भव सी हैं यदि वह इन लक्ष्यों का विश्लेषण नहीं कर लेता।अध्यापक के लिये यह जानना आवश्यक कि उद्देश्यों में क्या विशेषताएं होती हैं, वह कितनी प्रकार की हैं?

उद्देश्य की तीन विशेषताएं होती हैं।

  1. किसी अन्तिम लक्ष्य के लिये की जाने वाली क्रिया को यह दिशा प्रदान करते हैं।
  2. किसी क्रिया द्वारा नियोजित परिवर्तन लाया जाता है।
  3. इनकी सहायता से क्रियाओं की व्यवस्था की जाती हैं।

हॉसटन के अनुसार, “व्यावहारिक रुप से शैक्षिक उद्देश्य वह योग्यता या कौशल हैं जिसे छात्रा द्वारा सन्‍्तोषजनक शिक्षण-अद्यिगम | में ग्रहण तथा विकसित किया गया हों।

शैक्षिक लक्ष्य सामान्य कथन होते हैं। इनकी प्रकृति दार्शनिक होती हैं, अतः इनका स्वरुप अधिक व्यापक होता है। यह शिक्षण को दिशा प्रदान नहीं करते। शिक्षण उद्देश्यों की प्रकृति मनोवैज्ञानिक होती है। की | तथा व्यूह रचना के लिये इनका अधिक महत्व होता हैं। बी0एस0 ब्लूम की निम्नलिखित परिभाषा से शैक्षिक | का अर्थ अधिक स्पष्ट रुप में समझा जा सकता हैं।

“शैक्षिक उद्देश्यों की सहायता से केवल पाठ्यक्रम की रचना और अनुदेशन के लिये निर्देशन ही नहीं दिया जाता अपितु ये मूल्यांकन की प्रविधियों के विशिष्टीकरण में भी सहायक होते हैं।”

उद्देश्य दो प्रकार के होते हैं: –

  1. शैक्षिक उद्देश्य
  2. शिक्षण उद्देश्य

शैक्षिक उद्देश्य अधिक व्यापक होते हैं यह पूर्णता की उस स्थिति का बोध कराते हैं जिस तक नो हँचना संभव भी हो सकता हैं और असम्भव भी। इसके विपरीत शिक्षण या अधिगम उद्देश्य संकुचित व विशिष्ट होते है। ये पूर्व निर्धारित होते हैं और इनका निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि निश्चित अवधि वाले एक निर्धारित कालांश में सामान्य कक्षा शिक्षण सम्पन्न करते समय आसानी से प्राप्त किये जा सकें। इसीलिये यह अनुदेशनात्मक उद्देश्य कहलाते हैं।

ब्लूम के अनुदेशनात्मक उद्देश्यों का वर्गीकरण

‘टैक्सोनोमी’ शब्द से हमारा अभिप्राय ऐसी प्रणाली से हैं जिसमें वर्गीकरण किया जाता है। यद्यपि विभिन्‍न शिक्षावि दों एवं विद्वानों दवारा शैक्षिक उद्देश्यों का अलग अलग वर्गीकरण किया गया हैं परन्तु जो सबसे अधिक प्रचलन में आता है वे बैंजाभिन एस0 ब्लूम” एवं उसके सहयोगी हैं।

1949 मैं अमेरिकन काऊंलेजों तथा विश्वविद्यालयों के परीक्षकों ने एक टैक्सोनोमी ग्रुप को संगठित किया तथा चार वर्षो तक विभिन्‍न दृष्टिकोण लेकर संगोष्ठियां आयोजित की तथा फिर शैक्षिक उद्देश्यों का एक विस्तृत वर्गीकरण किया। इसी वर्गीकरण को ‘शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण” के नाम से जाना गया। यह वर्गीकरण ‘मूल्यांकन’ प्रतिमा न का अभिन्न अंग हैं। टैक्सोनोमी के अन्तर्गत समस्त उद्देश्यों का मानकीकरण कर दिया गया हैं जिसके फलस्वरु पविश्व के सभी देशों में इसको मान्यता मिली। इस सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त एवं सराहनीय कार्य प्रोफे सर ब्लूम एवं उसके सहयोगियों ने किया। उन्होंने उददैश्यों को व्यवहार के संदर्भ में निर्मित करके इनकी उपयोगिता पर बल दिया तथा अनेक विद्वान मेगर लिण्डवाल, क्राथव्होल, गैगने तथा दोपहम ने, इन वर्गीकरणों को बढ़ावा दिया ।

इस टैक्सोनोमी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है:-

ब्लूम्‌ के शैक्षिक उद्देश्यों को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं। सीखने का उद्देश्य मुख्य रुप से छात्रों के व्य वहार मैं होने वाले परिवर्तन से हैं और व्यवहार परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं:-

  1. ज्ञानात्मक पक्ष
  2. भावात्मक पक्ष
  3. क्रियात्मक या मनोपेशीय पक्ष

ब्लूम के अनुसार सीखने के उददेश्य भी तीन प्रकार के होते हैं।

1.ज्ञानात्मक उद्देश्य, 2. भावात्मक उद्देश्य, 3. क्रियात्मक या मनोपेशीय उद्देश्य।

ब्लूम्‌ तथा उनके सहयोगियों ने शिकागों विश्वविद्यालय में इन तीन पक्षों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया हैं। ज्ञानात्मक पक्ष को ब्लूम ने (1956) भावात्मक पक्ष का ब्लूम क्राथव्हील तथा मसीआ ने (1964) तथा क्रियात्मक या मनोपेशीय पक्ष का सिम्पसन ने ;19695द्व में वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। इस वर्गीकरण की सहायता से अध्यापक अपने शिक्षण तथा सीखने के उद्देश्यों का निर्धारण आसानी से कर सकता हैं। ब्लूम ने स्वयं इस वर्गीकरण का उपयोग परीक्षण की रचना में यह जानने के लिए किया है कि विशिष्ट उद्देश्यो 5की प्राप्ति के लिए प्रश्न का स्वरुप क्या होना चाहिये: टट उसने परीक्षण को उद्देश्य केन्द्रित बनाने का प्रयास किया हैं।

ज्ञानात्मक पक्ष के शैक्षिक उद्देश्य

ब्लूम्‌ ने अपनी पुस्तक ”ज़ञानात्मक शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण“ मं> ज्ञानात्मक पक्ष को छः वर्गों में विभाजित कि या है। इन्हें मानसिक प्रक्रिया की जटिलता तथा पदानुक्रमिता के अनुसार विकसित किया गया हैं। यह प्रणाली सरल से जटिल तथा मूर्त से अमूर्त है। ज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत शैक्षिक उद्देश्यों को छः वर्गों में बांटा गया हैं। ये व ग॑ निम्नलिखित हैं:-

1.ज्ञान

ज्ञान में हम विशिष्टताओं का ज्ञान, शब्दावली का ज्ञान, विशिष्ट तथ्यों का ज्ञान, परम्पराओं का ज्ञान, प्रचलन तथा तारतम्य का ज्ञान, पद्धति, सार्वभौतिकता, तथ्यों तथा सामान्यीकरण, सिद्धान्तों तथा संरचनाओं का ज्ञान लेते हैं।

2.बोध

बोध में हम अनुवाद, अर्थापन एवं बर्हिवेशन को लेते हैं।

3.प्रयोग

वास्तविक परिस्थितियों में प्रत्ययों, तथ्यों एवं सामान्‍्यीकरण का प्रयोग करना।

4.विश्लेषण

इसमें तत्वों का विश्लेषण, सम्बन्धों का विश्लेषण, तथा व्यवस्थित सिद्धान्तों का विश्लेषण आता हैं।

5.संश्लेषण

इसमें विशिष्ट उददैश्य के लिए संदर्भ सामग्री का मूल्य निर्धारण करते हैं। इसमे आंतरिक प्रमाण के संदर्भ मैं निर्णय तथा वाह्य प्रमाण के संदर्भ में निर्णय लिया जाता हैं।

6.मूल्यांकन

इसमें विशिष्ट उददैश्य के लिए संदर्भ सामग्री का मूल्य निर्धारण करते हैं। इसमे आंतरिक प्रमाण के संदर्भ मैं निर्णय तथा वाह्य प्रमाण के संदर्भ में निर्णय लिया जाता हैं।

भावात्मक पक्ष के शैक्षिक उद्देश्य ;

भावात्मक पक्ष के शैक्षिक उददेश्यों के वर्गीकरण में मुख्य योगदान ब्लूम, क्रांथव्होल एवं सहयोगियों का है भावात्मक पक्ष को निम्न रुप में प्रस्तुत करते हैं:-

1.आग्रहण

भावात्मक इष्टि से सबसे पहले मूल्यों की अनुभूति करानी होती है। यह वर्ग अधिगम कर्ता की उपलब्ध पे्‌ररकांे कै प्र तिसंवेदनशीत्रता को प्रदर्शित करता हैं। इसके अन्तर्गत संवैंदना ग्रहण करने की इच्छा तथा नियंत्रित तथा चयनित ध्यान सम्मलित हैं। भावात्मक पक्ष का यह निम्नतम्‌ स्तर हैं।

2.अनुक्रिया या प्रतिक्रिया

यह दूसरे स्तर का प्रतिनिधित्व करता हैं। इसके लिए ध्यान का आकर्षण होना जरररी हैं। विदयार्थियों में जब विभिन्‍न मानवीय मूल्यों को ग्रहण करने की इच्छा जागृत होती हैं तभी वे संबन्धित शैक्षिक, गतिविधियों मैं भाग ले ना शुरु करते हैं तथा तभी उनमें अनुक्रिया करने की इच्छा जागृत होती हैं इसके अन्तर्गत स्वीकार, इच्छा तथा संतोष निहित हैं।

3.आकलन

प्रत्यैक़ व्यक्ति के व्यवहार को व्यक्तिगत तथा सामाजिक मूल्य प्रभावित करते हैं| इस वर्ग के लिए उपर्युक्त दोनों ही वर्ग आग्रहण और अनुक्रिया आधार का कार्य करती हैं। इसमें अनुक्रिया विचार बहुत मूल्यवान होते हैं, जिनसे वह आ पने प्रयोजन की पूर्ति का साधन बनाता हैं। इस वर्ग में मूल्यों की स्वीकृति, प्राथमिकता एवं मूल्यव्यवस्था का संगठन आता हैं।

4.संगठन या व्यवस्थापन

इस वर्ग मैं मूल्यों का व्यवस्थीकरण उसमें आपसी सम्बन्धों का निश्चयीकरण तथा मूल्यों की प्रमुखता का निर्धारण आवश्यक होता हैं। कोई भी व्यक्ति किसी विचार या मूल्य की तरफ आकर्षित होकर उसके प्रति अनुक्रिया व्यक्त कर ता हैं। इसी तरह व्यक्ति तथा सामाजिक मूल्यों की प्राप्ति होती हैं मूल्यों के आपसी टकराव को रोकने के लिए इन मू ल्यों के स्वरुप तथा संप्रत्यय का ज्ञान होना अति आवश्यक हैं।

5.मूल्य प्रणाली का चरित्रकरण

भावात्मक पक्ष के इस वर्ग के लिए पूर्व वर्णित चारों वर्ग आधार का कार्य करते हैं यह भावात्मक पक्ष का उच्चतम स्तर हैं। इस स्तर पर अधिगम कर्ता के व्यक्तिगत एवं सामाजिक मूल्यों के समन्वय से एक मूल्यप्रणाली कानिर्माण हो चुका होता हैं तथा यह स्तर अपेक्षाकृत स्थायी एवं वैयक्तिक होता हैं। इसके माध्यम से छात्रा मंे एक विशिष्टजीवन शैली, विश्वास, अभिरुचियों, एवं रुचियों का संगठन होता हैं। इस प्रकार से शिक्षा में बालक के व्यवहार के भावात्मक पक्ष विकास करने के लिए इन सभी स्तरों के क्रमिक ढंग से गुजरना पड़ता है।

क्रियात्मक या मनोपेशीय पक्ष के शैक्षिक उद्देश्य

क्रियात्मक पक्ष में वे शैक्षिक उद्देश्य सम्मिलित होते हैं जिनका संबंध शारीरिक तथा क्रियात्मक कौशलों से रहता हैं। ब्लूम तथा क्राथव्होल की परिपाटी पर सिंपसन (1966) हैरो (1972), तथा किवलर (1970) ने इस पक्ष के उद्देश्यों को व्यवस्थित ढंग से वर्गीकरण करने का प्रयास किया था। यह टैक्सोनोमी विभिन्‍न पेशीय क्रियाओं के मध्य सामंजस्य पर आधारित हैं। ब्लूम और अनेक सहयोगियों द्वारा दिए गए इस पक्ष के उद्देश्यों का व गीकरण निम्नलिखित हैं:-

1.प्रत्यक्षीकरण

प्रत्यक्षीकरण ज़ानैन्द्रियों दूवारा वाहय वस्तुओं के सम्बन्ध में रुचि तथा प्ररेणा के आधार पर जागरुक होने की प्रक्रिया है। प्रत्यक्षीकरण एक मानसिक प्रक्रिया हैं जिसमें कार्यों की श्रृंखला शामिल होती हैं। इसके तीन स्तर होते हैं।

  1. वर्णनात्मक
  2. संक्रमण काल की स्थिति
  3. व्याख्यात्मक

2. व्यवस्था

प्रारम्भिक समायोजन में विशिष्ट प्रकार की क्रियाओं तथा अनुभवों को लिया जाता है जो कि व्याख्या से सम्बन्धित होता हैं। इसके प्रमुख तत्व शारीरिक, मानसिक व संवेंगात्मक होते हैं।

3.निर्देशात्मक अनुक्रिया

निर्देशात्मक अनुक्रिया क्रियात्मक कौशल के विकास में प्रथम चरण हैं। निर्देशात्मक अनुक्रिया दवारा जटिल कौशलों के भाव वाली योग्यताओं पर बल दिया जाता हैं।

4.कार्य प्रणात्री

यह वह स्तर हैं जिस पर किसी छात्रा मैं कार्य करने मैं एक निश्चित आत्मविश्वास और कौशल की मात्रा उत्पन्न हो जाती हैं।

5.जटिल प्रत्यक्ष अनुक्रिया

यह क्रियात्मक पक्ष का उच्चतम स्तर होता हैं। इस स्तर पर छात्रा मैं इतनी कुशलता एवं कौशलों का विकास हो जाता हैं कि वह जटिल से जटिल कार्य को कम समय व तथा कम शक्ति बगैर पूर्ण कर सकता हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि ब्लूम तथा सहयोगियों द्वारा दिए गए अनुदेशनात्मक तथा शैक्षिक उद्देश्यों को हम तीन भागों मैं वर्गीकृत करते हैं जो कि शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करनें में छात्रा तथा शिक्षक दोनों की सहायता करता हैं।

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