सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र

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सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा भी विस्तृत तथा व्यापक है। इसकी विषय वस्तु का निर्माण विभिन्न सामाजिक विज्ञान करते हैं जिसमें भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्रा, राजनीति शास्त्रा समाज शास्त्रा, दर्शन शास्त्र, नीति शास्त्रा आदि हैं। इन सभी विषयों के आधारभूत तत्व मिलकर सामाजिक अध्ययन का पाठ्यक्रम निर्धारित करते हैं। यह मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक को स्पर्श करता है।इस प्रकार सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा विशाल तथा व्यापक है।

इसमें विविधता है जो मानव को अनुभव ग्रहण करने में मदद करता है। माइकल्स के शब्दों में,”सामाजिक अध्ययन का कार्यक्रम इतना विशाल होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के अनुभव मिल सके व उनका ज्ञान विस्तृत हो सके।”

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा सम्पूर्ण मानव जीवन के भौतिक एवं सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित है, इसीलिये यह विस्तृत हैं। इसे दो प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

“वसुधैव कुटमबक्म्‌’ के सिद्धान्त के अनुसार मानव परिवार से विश्व परिवार का सदस्य है, इसीलिए मनुष्य का मनुष्य के सा
थ गहरा सम्बन्ध है।

मानवीय जीवन के वह सभी पहलू या पक्ष जो मानव के विकास के लिए आवश्यक है सामाजिक अध्ययन की विषयवस्तु के अन्तर्गत आते हैं। इन पहलूओं से सम्बन्धित विषयों की जानकारी हम सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत करते हैं। इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रा, अर्थशास्त्रा, समाजशास्त्रा आदि सभी विषय इसके क्षेत्रा की सीमा में आते हैं क्योकि यह सभी विषय भूत, वर्तमान तथा भविष्य के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते हैं:-

  • सामाजिक अध्ययन / सामाजिक अध्ययन की अवधारणा एवं प्रकृति

1.समाज का अध्ययन

सामाजिक अध्ययन समाज से सम्बन्धित क्रियाओं का अध्ययन हैं, इसमें सम्पूर्ण समाज का अध्ययन किया जाता है। मानव का समाज मैं रहकर योगदान, समाज का निर्माण, मानव के लिये समाज की उपयोगिता आदि सभी पहलुओं को आरम्भ से लेकर वर्तमान तक स्पर्श किया जाता हैं। इसके अन्तर्गत प्रारम्भिक मनुष्यों कै रीति रिवाजों से लेकर वर्तमान समय तक के सामाजिक रीतिरिवाजों तथा सभ्यता को सम्मिलित किया जाता हैं।

2. सामयिक घटनाओं का अध्ययन

सामाजिक अध्ययन से देश विदेश में होने वाली तत्कालीन घटनाओं का अध्ययन किया जता है। आज की इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी मै ये घटनाएँ वर्तमान तथा भूतकाल को समझने मैं सहायता करती है। हर नई घटना का आधार भूतकाल होता है। इन घटनाओं का पूर्ण अध्ययन सामाजिक अध्ययन में किया जाता हैं। आज के नागरिक के लिये दैनिक घटनाओं से परिचित होना आवश्यक हैँ वह चाहे देश की हो या विदेश की।

3.मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन

मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन सामाजिक अध्ययन का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। मानव एक सामाजिक प्राणी है व ह समाज के बिना जिन्दा नहीं रह सकता। उसका सम्पर्क स्थानीय समुदाय से आगे राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच गया है। आज मानव आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक रूप से आत्म निर्भर होकर भी दूसरों पर निर्भर करता हैं। अकेले जीवनयापन करना मानव के लिये असम्भ्व है। अत: मानवीय सम्बन्धों को बनाये रखने के लिए सामाजिक अध्ययन को पदना-पढ़ाना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी हो गया हैं।

4.कला तथा प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन

यद्यपि सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञान दोनों अलग- अलग विषय हैं लेकिन यह आपस मं सम्बन्धित है। विज्ञान तथा तकनीकी की उन्‍नति ने मानव जीवन को प्रभावित किया है। आज संसार संचार के नवीन साधनों से बहुत निकट आ गया है। इसलिये देश विदेश की सभ्यता तथा संस्कृ ति का अध्ययन करना जरूरी हैं। ड्राईग, नृत्य, रेखाचित्रा, नाट्यकला आदि ऐसी ललित कलाएँ हैं जो उसके भावी जीव न मैं काम आती हैं। सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान, शरीर विज्ञान, तथा भौतिक विज्ञान, का व्यवहारिक अध्ययन किया जाता हैं। सामाजिक अध्ययन तथा प्राकृतिक विज्ञान में गहरा सम्बन्ध हैं। विज्ञान तथा तकनीकी ने दुनिया के रंग- रूप को ही बदल दिया हैं। औषधि विज्ञान, वास्तुकला, गणित तथा नक्षत्रों व ग्रहों के क्षेत्रा में हुए आविष्कारों का सामा जिक अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान हैं।

5.सामाजिक वातावरण का अध्ययन

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके लिए सामाजिक वातावरण का ज्ञान आवश्यक है, अत: सामाजिक अध्ययन में वे सभी विषय आते हैं जिनसे सामाजिक वातावरण को समझने में सहायता मिलती हैं तथा विद्यार्थी के सामाजिक चरित्रा का विकास होता हैं। सामूहिक जीवनयापन की उसे जानकारी प्राप्त होती हैं सामूहिक आदर्शों को वह समझ स॒ कता है। इस प्रकार वह एक अच्छा नागरिक बन सकता हैं।

6.भौतिक वातावरण का अध्ययन

मानव के लिये समाज में रहकर अपने आस पास के परिवेश की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक हैं, क्योंकि भौतिक परिवेश सामाजिक परिवेश का निर्माण करता हैं और अपने टैनिक जीवन से बालक जो अनभ्नव प्राप्त करता हैं उससे वह शीघ्र सीख जाता है। यह ज्ञान स्थाई तथा प्रभावशाली समझा जाता हैं। भौतिक वातावरण देश की भूमि, ज लवायु, मिट्टी, वर्ष तथा फसल आदि से सम्बन्धित होता हैं यह सभी सामाजिक अध्ययन की विषय वस्तु हैं।

7.अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास

सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा विशाल हैं इसमें न केवल मनुष्य तथा समाज का अध्ययन किया जाता हैं अपितु सम्पूर्ण विश्व की जानकारी प्रदान की जाती है। वैज्ञानिक उन्‍नति ने समय व स्थान की द्री को समाप्त कर दिया है। एक देश की समस्या दूसरे देश के हितों को प्रभावित करती है, इसलिये आज का मानव अपने या अपने से सम्बन्धित राष्ट्रहित को नहीं देखता, अपितु वह पूरे विश्व के हितों को ध्यान मैं रखता है। इसके अध्ययन से विश्वबंधुता के भावों को प्रोत्साहित किया जाता है तथा राष्ट्रों के स्वरूप, संस्कृति, दर्शन, रीतिरिवाज के बारे मैं जानकारी देकर अन्तर्राष्ट्रीय सदूभावना को बढ़ाया जाता है।

8.उचित इष्टिकोण का विकास

सामाजिक अध्ययन सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए छात्रों को सामाजिक अनुभव देता है, इन्हीं अनुभवों के आधार पर विद्यार्थी सामाजिक कौशलता प्राप्त करके सामाजिक ज़ान की वृद्धि करते हैं। इसी ज्ञान के आधार पर बच्चों में उचित अभिवृतियों का विकास किया जाता है। ये अभिवृतियाँ बौद्धिक व भावात्मक दोनों प्रकार की हो सकती हैं जैसे प्रेम, भाईचारा, सहयोग, सहनशीलता, सत्य, दूसरों का आदर करना आदि। इससे सफल प्रजातां ब्रिक नागरिकों का निर्माण किया जाता है।

9.व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना

सामाजिक अध्ययन में अन्य साधनों जैसे चरित्रा.निर्माण, राजनैतिक अधिकार, सामाजिक व्यवहार, सांस्कृतिक का क्रम, सामुदायिक साधनों का प्रयोग, समाज सेवा कार्य आदि की भी शिक्षा दी जाती है। समय- समय पर बच्चों को ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक स्थानों पर ले जाकर भी उन्हें व्यावहा रिक एवं वास्तविक ज़ान प्रदान करवाया जा सकता है।

10.स्रोतों की व्यावहारिक जानकारी

सामाजिक अध्ययन पढ़ाने के लिए अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों को सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, महत्त्व के स्थानों पर भ्रमण करवाये जाते हैं। यहां विद्यार्थी कलात्मक वस्तुओं, मुद्राओं, भवनों, सामाजिक संस्थानों, पुस्तकालयों, रैलवे स्टेशनों, बस स्टैंड आदि विभिन्‍न सूत्रों को देखकर नवीन अनुभव सामाजिक अध्ययन का क्षैत्रा अ सीम तथा व्यापक है। सामाजिक अध्ययन का विषय सामाजिक विज्ञानों तक ही सीमित नहीं है, अपितु इसमें साहि त्य, भौतिक विज्ञान, धर्म, कला, मनोवैज्ञानिक तथा दर्शनशास्त्रा सभी से व्यावहारिक ज्ञान लिया गया है। सामाजिक अध्ययन का शिक्षण इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रा आदि अलग- अलग वेषयो के शेक्षा की अपैक्षा आंधेक उपयोगी एवं महत्वपूणे है।

प्रो० वी०आर0 तनेजा ने ठीक कहा है कि वे लोग गलती पर हैं जो इतिहास के किसी टुकड़े, भूगोल के किसी हिस्से, नाग रिक शास्त्रा की कुछ बातें तथा अर्थशास्त्रा से सम्बन्धित कुछ सामाजिक सन्दर्भों को केवल एकत्रित कर देने को सामाजिक अ ध्ययन मानते हैं, परन्तु वास्तव में इन विषयों का शिक्षण अलग-अलग करते हैं।” सामाजिक अध्ययन का क्षेत्रा व्यापक और विशाल है लेकिन यह सीमाओं से बंधा हुआ है। इसमें सम्पूर्ण मानव जाति के वर्तमान सामाजिक जीवन का अध्ययन किया जाता है जो सभी विषयों की व्यावहारिक तथा आवश्यक ज्ञान की सीमाओं से 10 आ है। सभी विषयों से उतनी ही विषय- वस्तु ली जाती है जिनका बच्चों के जीवन में व्यावहारिक महत्त्व है।

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