विद्यालयों में सामाजिक अध्ययन का महत्व

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समाज तथा व्यक्ति का चोली दामन का साथ है। प्राचीन काल में बच्चों को घर-परिवार में विभिन्न क्रियाओं द्वारा मानव तथा मानव के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों का ज्ञान प्राप्त हो जाता था जिससे उन्हें समाज तथा समुदाय की भी जानकारी प्राप्त हो जाती थी। वह अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करता था और समाज की आवश्यक जानकारी उसे अपने आस पास प्राप्त हो जाती थी।

समाज में परिवर्तन आया, विज्ञान तथा तकनीकी ने उन्नति की, मानव सभ्यता का विकास हुआ, समाज में जटिलताओं का बोलबाला होने लगा। विभिन्न सम्बन्धों की जानकारी जो बालक को घर परिवार या दैनिक क्रिया कलापों से संयुक्त परिवार में प्राप्त होती थी, का आभाव हो गया। यह सारा ज्ञान आज स्कूल को देना पड़ता है।

ऐसा करने के लिये स्कूल को ऐसी सामग्री का चयन करना पड़ेगा जो ऐसे कार्यक्रम का निमार्ण करे जिससे बच्चा अतीत की परम्पराओं का ज्ञान प्राप्त कर ले, वर्तमान काल में उस ज्ञान का उपयोग कर सके तथा अपनी दैनिक जीवन की समस्याओं को निपटाने के योग्य बन सके। यही कारण है कि आज ;3दद्व तीन आर की शिक्षा की अपेक्षा (411) चार ऐच की शिक्षा को महत्त्व दिया जाता हैं जो समाज की जटिलता और व्यक्ति के सम्बन्धों के स्पष्टीकरण के लिये आवश्यक हैं। यही कारण है कि शिक्षा शास्त्रायों ने सामाजिक अध्ययन की शिक्षा को आवश्यक ही नही अनिवार्य भी माना है।

सामाजिक अध्ययन का जन्म एक स्वतन्त्रा – क्षेत्र के रूप हुआ क्या>कि आज के बालक को भूतकाल की अपेक्षा अपने सामाजिक वातावरण तथा सम्बन्धों की अधिक जानकारी की आवश्यकता है। यह जानकारी उन्हें इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्रा, अर्थशास्त्रा, व समाज शास्त्रा आदि भिन्न-भिन्न विषयों द्वारा नही जा सकती। इतना ही नही विज्ञान एवं तकनीकी के विकास ने भी मानव समाज में महान्‌ परिवर्तन ला दिये है इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप मानवीय समाज तथा मानवीय सम्बन्धों कह जटिलता आ गई है जिसे जानना व समझना आवश्यक है। आज संसार सिमट कर छोटा हो गया हैं, विश्व शान्ति आवश्यक हैं।

ऐसे समय में सामाजिक अध्ययन एक अनिवार्य विषय के रूप में शिक्षा का अभिन्न अंग बन गया हैं। डा0 व धाकणणन्‌ ने कहा हैं कि हम भूतकाल को याद रखें, वर्तमान के प्रति सजग रहें तथा हृदय में साहस तथा आत्मविश्वास के साथ का निर्माण करे।” सामाजिक अध्ययन की आवश्यकता मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा शैक्षिक दृष्टिकोण से भी हैं। इसके लिये हम निम्नलिखित अनेक तर्क दे सकते हैं।

मुख्यतया सामाजिक अध्ययन के महत्व को हम दो भागों में विभक्त करते हैं:-

  1. व्यक्तिगत महत्व के कारण
  2. सामुदायिक महत्व के कारण

1.व्यक्तिगत महत्व के कारण

व्यक्तिगत कारणों में सामाजिक अध्ययन से हमारा तात्पर्य उन कारणों से हैं जिसमें मानव अपना चरित्र निर्माण करता हैं जो कि समाज के प्रति सहयोग, सहभागिता, व सामाजिक न्याय के प्रति वफादार होता हैं। मानव अपनी आदतों व कशलताओं का निर्माण करता हैं। अपनी मानसिक शक्तियों का निर्माण करता हैं। मनष्य समाज मे समस्याओं का सामाजिक तरीके से समाघान दूंढता हैं। इन सब कारणों की वजह से सामाजिक अध्ययन का बड़ा महत्व हैं।

व्यक्तिगत महत्व के कारणों को निम्नलिखित ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं।

(क) मनोवैज्ञानिक कारण

(ख) शैक्षिक कारण


(क) मनोवैज्ञानिक कारण

मनोवैज्ञानिक कारणों से हमारा तात्पर्य उन महत्वों से है जो मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करने में सर्वाधिक सहायक होते हैं। मनुष्य का व्यक्तित्व मनुष्य का सब कुछ निर्धारित करता हैं| उसका सामाजिक वातावरण उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता हैं | मानव अपने आसपास के वातावरण को समझकर उसके अनुरूप कार्य करने की कौशिश ही नहीं करता बल्कि उसे जानकर उसकी व्याख्या भी करना चाहता हैं | भूतकाल में मनुष्यों का व्यक्तित्व का विकास हु-ब-हु अपनी पहली पीढ़ी का प्रतिरूप होता था परन्तु आजकल मनुष्य के व्यक्तित्व को बाह्य तत्व भी प्रभावित करते हैं। अब जबकि हमारे घरेलू व सामाजिक प्रभाव बच्चों को उतना प्रभावित नही करते हैं और न ही हमारे पास ऐसी कोई व्यवस्था हैं कि बालकों का व्यक्तित्व निर्माण अपने आप हो, तो यह भार भी अब स्कूलों पर आ गया हैं कि वह मनुष्य के व्यक्तित्व विकास में अपना सहयोग दे। स्कूल के बाकि सभी विषयों में सामाजिक अध्ययन ही एक ऐसा विषय हैं जो कि मानव व उसके वातावरण का पूर्ण रूप से अध्ययन करता हैं।

हम ,सभी जानते हैं क्रि आज का य्रुग एक मनोवैज्ञानिक यरुभ है । आज एक व्यक्ति। का व्यवहार दूसरे के व्यवहार को प्रभावित करता-है | हम॑ सब जानते” हैं कि हम-अंपनी-सभी-समस्याओं का समाधान मन्ीवैज्ञानिक तसीके से कर सकते हैं तथा हमें यह विश्वास हैं कि हमें सबके लिए एक विशेष प्रकार के व्यवहार की आवश्यकता होती हैं | सामाजिक अध्ययन हमें वह सब सिखाता हैं जिससे हमारा मनोवैज्ञानिक आधार बनता हैं।

(ख) शैक्षिक कारण

शैक्षिक कारणों में हम अपने उन उद्देश्यों को लेते हैं जिसके लिए हम शिक्षा ग्रहण करते हैं! वैसे तो समाज की अलग-अलग विचारधाराओं के अलग-अलग विचार हैं| माता-पिता का दष्टिकोण यह है कि बच्चों की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उसके जीवन निर्वाह में सहायक हो! उनके दष्टिकोण से शिक्षा का व्यावसायिक महत्व ज्यादा हैं। कुछ अन्य शिक्षा के सांस्कतिक महत्व पर ज्यादा बल देते हैं। उनके अनुसार शिक्षा द्वारा मनुष्य की सभी शक्तियों का पूर्ण विकास होना चाहिये। परन्तु इससे मनुष्य का पूर्ण सामाजिक विकास नहीं हो पाता।

आज का वातावरण ऐसा भी नहीं है कि युवक-युवतियों को उनके माता-पिता व समाज पर ही छोड़ दिया जाए तो उन्हें अपनी व समाज की सभी समस्याओं की आवश्यक जानकारी भी हो जाए और यह मुमकिन नही कि समाज की अवहेलना करके हम अपने राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। हमारा प्रजातांत्रिक ढांचा कुछ ऐसा हैं कि राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक समस्याएं इतनी जटिल हैं जिनके बारे में हमारी जानकारी अतिआवश्यक हैं। यह हमारी सामाजिक शिक्षा के लिए अति आवश्यक हो जाता हैं कि बालक अपनी भौतिक व सामाजिक वातावरण को जाने व उसमें अपना समावेश कर सकें | सामाजिक जीवन व अच्छी नागरिकता के लिए यह आवश्यक हैं कि शिक्षा उनमें सत्य, ईमानदारी, सहनशीलता, व सहयोग के गुणों का विकास करें। नई-नई आवश्यकताओं के मध्य नजर पाठन सामग्री व पाठन विधियों में परिवर्तन किया जाना चाहिये। आधुनिक पाठन विधियों में, तारंबेतार, दब्य-श्रव्य साधन, चलचित्र, योजना विधि व क्रियाविधि का उपयोग उल्लेखनीय है। इन सभी आधुनिक विधियों के लिए एक सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का होना अति आवश्यक है। सामाजिक अध्ययन आज के विकासशील विश्व के साथ विकासशील बच्चों के सम्बन्धों के समन्वय का आधार है। इसलिए सामाजिक अध्ययन मनुष्य की शिक्षा का मुख्य आधार हैं।

2.सामुदायिक महत्व के कारण

(क) सामाजिक कारण

सामाजिक अध्ययन का उद्देश्य बच्चों के सामुहिक जीवन के बारे में जानकारी देना हैं तथा बच्चों को इस लायक बनाना है कि वे समाज में हो रहे व्यवहार में रुचि ले ताकि उनके सामाजिक चरित्र का विकास हो। बच्चों में सकारात्मक व्यवहार उत्पन्न करने में सामाजिक रुचि का होना अति आवश्यक हैं इससे उनमें यह भावना जागत होती हैं कि समाज की भलाई में ही उनकी अपनी भलाई हैं।

सामाजिक अध्ययन में हम समाज के ढांचे व उसके स्वरुप का अध्ययन करते हैं और यह जानने की कोशिश करते है कि यह स्वरुप उसे कैसे प्राप्त हुआ हैं। सामाजिक अध्ययन में यह भी देखा जाता हैं कि किस प्रकार मनुष्य अपने आप को उस भौतिक वातावरण में ढालता है जिसमें उसे अपना जीवन व्यतीत करना हैं या वह उस वातावरण को बदलने का प्रयास करता हैं और एक नई दिशा को जन्म देता हैं। अतः सामाजिक अध्ययन ऐसे नागरिक के निर्माण में सहायक है जो समाज को इस योग्य बनाता हैं कि वो अपनी समस्याओं का निदान करें या समस्या हल करने को हमेशा तत्पर रहें।

(ख) व्यावहारिक कारण

सामाजिक अध्ययन के व्यावहारिक महत्व के कारण से हमारा उन तत्वों से है जिसमें समाजिक अध्ययन से मानव में गुण तथा आदर्शो का विकास होता हैं और मनुष्य समाज के प्रति व्यवहार कुशल होता हैं। वही व्यक्ति जीवन में अधिक सफलता प्राप्त करता हैं जो अति व्यवहार कुशल होता है| आधुनिक काल में सामाजिक व्यवहार व चेतना का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया हैं | व्यवहारिक कारणों में निम्नलिखित बातें महत्वपूर्ण हैं:-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना
  2. यातायात तथा संचार (व्यवस्था म्रें प्रगति
  3. पारिवारिक जीवन में बदलाव
  4. नागरिक उत्तरदायित्व
  5. प्रजातांत्रिक उत्तरदायित्व
  6. औद्योगिक प्रगति
  7. विज्ञान तथा तकनीकी विकास

(i) अन्तर्राष्ट्रीय सदूभावना

गांधी जी के अनुसार, “यदि सत्य, प्रेम और अहिंसा की शिक्षा घर तथा स्कूल से होती हुई संसार के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक संगठनों तक नहीं पहुंचती तो हिंसा और घणा से भरा संसार कभी का नष्ट हो गया होता। यदि हम संसार को बदलना चाहते हैं तो बाहरी संसार के साथ-साथ मानव मन तथा भावनाओं के आंतरिक संसार को भी बदलना होगा।”

आज मनुष्य चारों तरफ के वातावरण के कारण अपने आपको सुरक्षित देखता हैं। वर्तमान समय में शिक्षा के लिए यह अहम चुनौती हैं कि किस प्रकार यह आपस में सहयोग, राष्ट्रो में सदूभावना, विभिन्‍न समूहों में उदारता तथा भौतिक व सांस्कतिक मेल-मिलाप को बनाए रखनें में अपना सहयोग दें।

आज परिस्थितियां इतनी जटिल हैं कि मनुष्य अपने उन आदर्शो को खो रहा है जो कि उसे विरासत में उन महान आत्माओं से मिले थे जिन्होंने एक आदर्श जीवन के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। सामाजिक अध्ययन उन सभी आदर्शो को जिन्दा रखने की कौशिश करता हैं तथा इन आदर्शो को एक आम आदमी तक पहुँचाने में अपना अहम रोल अदा करता हैं।

(ii)यातायात व संचार व्यवस्था में प्रगति

आज का युग संचार का युग हैं । आज दूरियां सिमट रही है। मनुष्य के जीवन में संचार तथा यातायात के साधनों ने एक तूफान ला दिया है। सभी प्रकार की प्राकतिक बाधाओं पर मनुष्य ने विजय पा ली हैं। बढ़ते यातायात के सरल साधन व संचार के माध्यम से एक दूसरे की सांस्कतिक भेद, साम्राज्यवादी व व्यापारिक होड़ को पीछे छोड़ा जा रहा हैं। इसलिए सामाजिक अध्ययन का महत्व और भी बढ़ जाता हैं जिससे कि हम दूसरों के सामाजिक जीवन का अध्ययन करके अपना तथा अपने समाज का नव निर्माण कर सकते हैं तथा विभिन्‍न समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।

(iii)पारिवारिक जीवन में बदलाव

आज के आधुनिक समय में परिवारों के परिदश्य बदल गए हैं। पहले संयुक्त परिवार प्रणाली हुआ करती थी जो आज काफी पीछे छूट गई हैं | संयुक्त परिवार प्रथा में मनुष्य का जीवन स्थायी व सुरक्षित रहता था। सभी सदस्य मिलजुल कर रहते तथा खेलते, कार्य करते और अपनी रुचि के अनुसार कार्य अपनाकर परिवार का भला करते थे। परन्तु आज की परिस्थितियां भिन्‍न होने के कारण बहुत सी नई सामाजिक समस्याओं का जन्म हुआ है। तेजी से शहरीकरण हो रहा हैं। लोग एकल परिवार को अधिक बढ़ावा दे रहे हैं जिसमें बच्चे का सामाजिक व सांस्कतिक विकास संभव नहीं हो पाता है। सामाजिक अध्ययन में इन सब समस्याओं का अध्ययन किया जाता हैं तथा इनका उपचार ढूंढने का प्रयास किया जाता है।

(iv)नागरिक उत्तरदायित्व

समाज में रहने के लिए समाज के कुछ उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना अति महत्वपूर्ण होता है। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद तथा प्रजातन्त्र को बनाए रखने के लिए इनका उद्देश्य आजकल स्कूलों पर आ गया हैं और स्कूलों में खासकर यह सामाजिक अध्ययन पर निर्भर करता हैं| अतः नागरिक उत्तरदायित्वों के पालन करनें के लिए बच्चों को उसी के अनुरूप तैयार करने में सामाजिक अध्ययन का बड़ा महत्व हैं।

(v)प्रजातान्त्रिक उत्तरदायित्व

आज का युग प्रजातंत्र का युग है। साम्राज्यवाद का अब बोलबाला नहीं रहा हैं। आज अधिकतर राष्ट्र प्रजातंत्र का पालन कर रहें हैं। इस कारण आम आदमी के अपने उत्तरदायित्वों में और वद्धि हुई हैं। प्रजातंत्र के कारण यह जानना हमारा दायित्व बनता हैं कि हमारा समाज के प्रति कैसा उत्तरदायित्व हैं और उमके सांथ हमारा कैसा संबंध है। बूसर सम्नाज-को भी व्यक्ति के प्रति अपने उत्तक्सयित्वों का पालत्त करना चाहिये।

आज विद्यालयों का यह कर्त्तव्य बनता हैं कि बच्चों को उनके प्रजातांत्रिक उत्तरदायित्वों के बारे में खुलकर अनुभव प्रदान करें ताकि वे अपनी जीवन पद्धति को उसी अनुसार ढाल सकें और यह कार्य सामाजिक अध्ययन के इलावा कोई भी विषय इतने प्रभावशाली ढंग से नही कर सकता। इसलिए इस विषय के अध्ययन की आवश्यकता और भी बढ़ जाती हैं।


(vi)औद्योगिक प्रगति

औधोगिक क्रांति के कारण आज जीवन में अनेक तरह की जटिलताएं घर कर गई हैं। विज्ञान ने सामाजिक जीवन में परिवर्तन किया हैं जिससे हमारे सरल समाज में कुछ जटिलताएं आ गई हैं। विज्ञान के असर से ग्रामीण परिवेश भी अछूता नहीं रह गया हैं और इसने हमारे ग्रामीणों को भी अन्तर्राष्ट्रीय संपर्क में ला दिया हैं।

गाँवों में आज बिजली, ट्यूबवैल, नई खादें, व नई प्रणाली का प्रयोग होने लगा है। आज का ग्रामीण सिर्फ अपने गाँव तक ही सीमित नहीं रहना चाहता वह अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का ज्ञानी भी होना चाहता है। वैज्ञानिक युग ने मनुष्य को ध्वंस की और धकेल दिया है और इसका उदाहरण दो विश्वयुद्ध आपके सामने हैं। विश्व को ध्वंस से बचाने के लिए सामाजिक शिक्षा का होना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि सामाजिक अध्ययन ही आपसी संबंध व लगावों का ज्ञान देता हैं।

(vii) विज्ञान तथा तकनीकी विकास

आज विज्ञान व तकनीकी का एक नया रूप उभरकर सामने आया हैं। पहले कषि विकास, फिर औधोगिक विकास उसके बाद वाणिज्य विकास हुआ। पर आज का समय ‘हाइटैक जमाना’ बन गया हैं जिसमें हमारें सामाजिक मूल्यों का बड़ी तेजी से हास हुआ हैं। उन्हीं सामाजिक मूल्यों को बचाने के लिए सामाजिक अध्ययन का बड़ा महत्व हैं क्योंकि एक अच्छी सामाजिक शिक्षा ही देश के नैतिक मूल्यों के पतन को रोककर एक सुसांस्कतिक, व्यवहार कुशल व सद्भावना युक्त समाज का निर्माण करती हैं।

इस तरह हम कह सकते हैं कि हमारे समाज में जागति हालांकि कई तत्व लेकर आई हैं। इसमें विज्ञान, उद्योग, यातायात, संचार इत्यादि तत्त्व मुख्य हैं परन्तु इनसे जो सामाजिक सद्भावना का जो ह्ास हुआ

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