व्याख्यान विधि

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व्याख्यान विधि

शिक्षा के क्षेत्र में हुए अनेक नवीन अन्वेषणों और प्रयोगों के कारण बालकेन्द्रित शिक्षा का विचार प्रबल हो गया है। बालक की रूचि, क्षमता और मानसिक स्तर के आधार पर अलग- अलग शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग किया जा है। इन प्रमुख प्रविधियाँ में से व्याख्यान विधि की चर्चा यहाँ की गयी है |

व्याख्यान विधि

व्याख्यान विधि

इसमें लिखित या माँखिक भाषा के द्वारा सूचनायें प्रदान की जाती है या यु कहिए कि किसी विचार का शाब्दिक चित्र प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए इसको अक्सर चाक और वार्ता विधि कहा जाता हैं इसमें हर चीज शब्दों में वक्‍त की जाती है। वक्‍ता बोलता है और सुनने वाले निष्क्रिय होकर सुनते हैं। विचारों का प्रवाह एक तरफा होता है शिक्षक अपने विषयवस्तु पर पहले से वार्ता तैयार करके लाता है और छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करता है। छात्र शान्त होकर सुनते हैं और उसके विचारों को समझने का प्रयत्न करते हैं और कहीं कहीं अपनी कॉपी पर नोट करते रहते है।

गणित शिक्षण में इसका सम्पूर्ण रूप से उपयोग करना सम्भव नहीं फिर भी इसे उन स्थितियों में उपयोगी पाया गया है :-

  1. नये विषय वस्तु की प्रस्तावना में
  2. अमूर्त अवधारणाओं की व्याख्या में
  3. वाद विवाद का आरम्भ करने में
  4. अवधारणाओं के संक्षेपीकरण एवं पुनर्वालोकन ([७५७७/) करें में
  5. व्याख्या करने, प्रमैय सिद्ध करने ल्था लम्बी समस्या के हल करने मैं।

व्याख्यान विधि के गुण

व्याख्यान विधि के गुण

  1. बडी संख्या वाले छात्रों कीं कक्षा में इसका कोई विकल्प नहीं हैं कक्षा के दूर कोनें तक छात्र शिक्षक की वार्ता सुनते है और सभी को सुनने और सीखने का समान अवसर मित्रता है। इस प्रकार यह विधि आर्थिक और समय की दृष्टि से काफी किफायती भी है।
  2. शिक्षक के लिए सुविधाजनक हैं क्योकि
    • (अ) उसमें उसको छात्रों को व्यक्तिगत सहायता नहीं देनी पडती।
    • (ब) वह अपनी गति से शिक्षण कर के भारी पाठ्यक्रम को भी जल्दी पूरा कर सकता है, क्योंकि उसको छात्रों को सीखने की गति से समायोजित नहीं करना पड़ता,
  3. ये सूचनाओं को प्रदान करने की काफी पुरानी विधि है
  4. इसमें योजनाबद्ध तरीके से विचारों को उनके स्वाभाविक क्रम में रख सकता है, जैसे लाभ-हानि का प्रकरण प्रढ़ाते समय वह अपनी विषय वस्त्र को इस क्रम में रख सकता है क्रय मूल्य (0) की अवधारणा विक्रय मूल्य (5) की अवधारणा लाभ हानि को 5 – 0 के रूप में रख कर उसकी अवधारणा को स्पष्ट करना। यह अवधारणा की लाभ-हानि सदैव क्रय मूल्य पर लगाई जाती है।
  5. छात्रों को भावनात्मक रूप से विषय वस्तुत से जोडने की यह लाजवाब विधि है, शिक्षक अपनी वार्ता से गणित या विषय वस्तु की जीवन में उपयोगिता बताकर/अच्छे उदाहरण देकर काफी रोचक और प्रेरणादायक बना सकता है। इसी प्रकार प्रस्तावना में यह काफी प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
  6. इस विधि से अधिक विषय वस्तु को कम समय में पढाया जा सकता है।
  7. अपने प्रभावशाली शैली से छात्रों को मंत्रमुग्ध करके, वह अपने निरीक्षकों को काफी प्रभावित कर सकता है
  8. इस विधि दवारा प्रतिआषाली विंदुयार्थी अधिक ल्लाभान्वित्त होलें हैं | व्याख्यान विधि की कमियां |

व्याख्यान विधि की कमियां

  1. गणित का प्रमुख उद्धेश्य ताकिक्र। चिंन्‍्तन का; विकास करना हैं और यहं तार्किक चिन्तन छात्रों को बिना स्वयं चिन्तन करके, विषय वस्तु को शिक्षक से वाद विवाद करके अर्थात्‌ स्वयं शिक्षण प्रक्रिया में भागीदार होकर नहीं प्राप्त किया जा सकता। लैक्चर विधि में एक तरह से हर चीज ऊपर से लादी जाती है चम्मच से ज्ञान की घुट्टी पिलाई जाती है, जिसमें छात्रों को तथ्यों का स्वयं अवलोंकन करने, उस पर चिन्तन करने और विकास करने का कोई अवसर नहीं मित्रता या बहुत कम मिलता है।
  2. आजकल छात्र केन्द्रित शिक्षा पर बहुत अधिक जोर दिया जा रहा है जिसका आशय यह है कि शिक्षण, छात्रों की आवश्यकताओं, क्षमताओं, सीमाओं के अनुसार उनकी स्वयं की भागीदारी के साथ होना चाहिए। लेक्चर विधि में, शिक्षक बिना छात्रों की आवश्यकताओ, क्षमताओं को ध्यान में रख कर जैसा वह अपने तरफ से ठीक समझता है, पढाता है। छात्रों को स्वयं करके सीखने, स्वयं प्रयोग करने तथा सक्रिय रूप से शिक्षण में भागीदार होनें का अवसर नहीं प्रदान करता।
  3. इस विधि में छात्र निष्क्रिय रहले हैं, इसलिए लेक़्चरः के समय जो शिक्षक कक्षा में पढ़ा रहा है उस पर से उसका ध्यान हट भी सकता हैं, जिससे हाँ सकता हैं कि शिक्षक की बातों का कोई महत्वपूर्ण भाग उससे छूट जाय। गणित शिक्षण में यह स्थिति काफी हानिकारक हो सकती है, क्योंकि गणित शिक्षण में एक स्तरीकृत तार्किक श्रृंखला होती है। यदि कोई कड़ी छूट गई तो आगे की कड़ी को समझना बहुत कठिन हो जायेगा।
  4. इस विधि में शिक्षकों तथा छात्रों में निकटतम सम्बन्ध बनानें की बहुत ही कम सम्भावना होती हैं शिक्षक अपनी वार्ता देकर सन्तुष्ट हो जाता है, वह छात्रों की कठिनाइयों को समझ कर अधिकतर उन्हें व्यक्तिगत परामर्श नहीं देता।
  5. यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है।
  6. गणित की यह व्याख्यान विधि अधिगम सिद्धान्तों के अनुकूल नहीं है।
  7. यह विधि मन्द बुद्धि बालको के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
  8. इस विधि से शिक्षण करने पर बालकों में गणित के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है और उन्हें गणित कठिन विषय लगने लगता है।
  9. यह विधि एक तरुफा है जिसमें अध्यापक सक्रिय और विदयार्थी निष्क्रिय हो जाते है जौ उचित्न नहीं हैं। शिक्षण सिंद्धान्तों को प्राल्नन इस विधि में नहीं होता।

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