यांत्रिक सहायक सामग्री

Estimated reading: 1 minute 106 views

श्रव्य सामग्री

(अ) रेडियो –

जॉर्ज वाटसन के शब्दों में “रेडियों शिक्षा का नवीन अंग नही हैं रेडियों शिक्षा से श्रेष्ठ मानी जाने वाली वस्तु नहीं है रेडियों स्वयं शिक्षा है।” सैयद अली जहीर के अनुसार “रेडियों ने शिक्षण तथा अधिगम की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की है और जैसे जैसे हमारे साधन बढते जायेंगे, वैसे ही हम प्रत्येक स्तर पर अध्यापक के लिये इस सहायक सामग्री की उपलब्ध बना देंगे। वस्तुतः रेडियों शिक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण साधन है! रेडियों पर शिक्षण शास्त्रियों एवं अन्य विद्धानों की वातयि एवं भाषण प्रसारित किये जाते है जिसका लाभ प्रायः सभी छात्र उठाते है आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले पाठों की सूची चूंकि बहुत पहले से ही प्रसारित कर दी जाती है, अतः विद्यालय के अल तथा विषय से सम्बन्धित अध्यापकों को आकाशवाणी के शैक्षिक कार्यक्रमों का पहले ही ज्ञान चाहियें।

ब ) टेपरिकॉर्डर –

टेपरिकॉर्डर की सहायता से रेडियों की सीमाओं को दूर किया जा सकता हैं रेडियों के कार्यक्रम तो लिखित समय पर आते है पर टेपरिकॉर्डर में विशिष्ट विचारों को टेप पर उनका उपयोग विभिन्न अवसरों पर किया जा सकता है। इसके माध्यम से हम छात्रों को आधुनिक विचारों एवं भाषा शैलियों से परिचित करा सकते है।

(स) अध्यापन यंत्र –

अध्यापन यन्त्र वस्तुतः एवं यांत्रिक या विदूयुत ि है जिसका संचालन एक छात्र करता है एक बार में उसे जो सामग्री प्रस्तुत की जाती है, उसे वह पढ़ता है, उसे स्वयं उत्तर देना होता है इसके साथ ही तुरन्त सही उत्तर जाता करा सशक्तिकरण किया जाता है अध्यापन यंत्र के विषय में कुछ विद्धानों की परिभाषाये इस प्रकार है –

अंशों में स्वचालित यं:क्तियों है जो प्रश्न या एक उद्दीपन को दूसरा उद्दीपन प्रस्तुत करते है, जवाब देने का साधन उपलब्ध कराने है जौर जवाब मिलने के तुरन्त बाद उसके सही होने की जानकारी उसे देते है।

2.दृश्य सामग्री

(अ) प्रोजेक्टर –

इसे मैजिक लैन्टर्न या स्लाइड प्रोजेक्टर भी कहा जाता है इससे स्लाइड की आकृति को बडा बनाकर प्रदर्शित किया जाता है यहां यह तथ्य स्मरणीय है कि शिक्षक जिस प्रकार से सम्बन्धित स्लाइड कक्षा में प्रदर्शित करे, वह उसी समय उसके संबंध में छात्रों को विस्तृत रूप से समझाये भी।

(ब) एपिडायस्कोप –

इस सामग्री के लिये स्लाइड बनाने की जरूरत नही होती है वस्तुतः शिक्षक अथवा छात्रों द्वारा तैयार किया गया चित्र किसी अपारदर्शी वस्तु को सीधा पर्दे पर लाया जा सकता है इस सामग्री की सहायता से भाषा के पाठों में वर्णित विशिष्ट घटना चित्रों को पात्रों के सम्मुख प्रदर्शित किया जा सकता है।

(स) फिल्म स्ट्प्स –

फिल्म स्ट्रिप से अभिप्राय उन फिल्म पट्टियों से है जिन पर एक निश्चित क्रम अथवा लड़ी के रूप में अनके फोटोग्राफ बने होते है यानि एक फिल्म स्ट्रिज पर जितने भी चित्र बने होते है उन्हें प्रोजेक्टर द्वारा क्रमबद्ध कर इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है जिससे कि संबंधित प्रक्रिया या घटना या विषय वस्तु की अनियोजित एव “क्रमबद्ध सूचना प्राप्त हो सके। हिन्दी भाषा के पाठों के अन्तर्गत विभिन्न महापुरुषों के हे चरित्र, कहानियां, नाटक, कविताएं आदि इसके माध्यम से प्रभावपूर्ण ढंग से चित्रित किये जा सकते ।

3.दृश्य-श्रव्य सामग्री

(अ) फिल्मस्‌ (चलचित्र):

चलचित्र के विषय में कई शिक्षाविद्‌-ं ने अपने विचार दिये है जैसे क्रो और क्रो के अनुसार चलचित्रों का शैक्षिक महत्व इसलिये है, क्योंकि वे गति को व्यक्त करते है, विचार और कार्य की निरन्तरता का विकास करते है, मानव क्षेत्र की सीमाओं की पूर्ति पूर्ति करते है और अपने प्रस्तुतीकरण में प्रारम्भ से अन्य तक एक से होते है जारोलीमेक को शब्दों में, चलचित्र के द्वारा बालक सुदूर अतीत का शताब्दियों से सम्बन्धित ज्ञान सहज हो प्राप्त कर सकता है, स्थान विशेष व्यक्तियों तथा प्रक्रियाओं का चित्र प्रस्तुत करने से वह जो ज्ञान प्राप्त करता है उसको किसी अन्य तरीके से प्राप्त करना उसके लिये असम्भव है।

आधुनिक वैज्ञानिक युग में चलचित्रों की उपयोगिता किसी से छिपी नहीं है शिक्षण में भी यह बहुत उपयोग है इसकी सहायता से शिक्षक को अत्यधिक सजीव व मुखर बनाया जा सकता है चलचित्र में छात्र घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने के साथ साथ उनके विषय में सुनता भी जाता है इसके माध्यम से प्राप्त ज्ञान का छात्रों पर स्थाई प्रभाव रहता है स्पष्ट है कि इसके द्वारा पाठ को अधिक रोचक व स्पष्ट बनाया जा सकता है इसके द्वारा छात्रों का कल्पना, निरीक्षण एवं विवेचन शक्ति का विकसित किया जा सकता है इसके माध्यम से छात्रों का विषय वस्तु पर ध्यान केद्धित कराने में विशेष सहायता प्राप्त होती है।

ब). दूरदर्शन –

घट व गेरबेरिच के शब्दों में – यह (दूरदर्शन) सबसे अधिक आशापूर्ण श्रव्य दृश्य उपकरण है, क्योंकि सन्देषवाहन के इस एक यन्त्र में रेडियों तथा चलचित्र के पु गुणों का सम्मिश्रण हैं वस्तुतः दर्शन उपकरण में बालक अपनी देखने व सुनने दोनो इन्द्रियों का प्रयोग करने के कारण किसी भी तथ्य को सरलतापूर्वक सीख जाता है आजकल भारत में सैटेलाइट की सहायता से कार्यक्रम दिखाये जाते है शिक्षा क्षेत्र मे “दूरदर्शन के द्वारा दूर दराज के क्षेत्रों में भी कार्यक्रम देखे जा सकते है।

Leave a Comment

CONTENTS