सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य

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सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं; –

1.व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास

सामाजिक अध्ययन विषय का उद्देश्य बच्चों का सर्वागीण विकास करना है। मानव ने इस सृष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, उसका भौतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक वातावरण क्या था। इसका ज्ञान बालकों को देना आवश्यक है, क्योंकि तभी उन्हें अपने अस्तित्व की जानकारी प्राप्त होगी। बच्चों को यह जानकारी देनी आवश्यक है कि भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्थाओं का जन्म कैसे हुआ।

2.वांछित अभिवतियों का विकास

ज्ञान के साथ-साथ उचित अभिवतियों का विकास भी आवश्यक हैं। उचित अभिवतियाँ अच्छे व्यवहार का आधार है। यह अभिवतियाँ बौद्धिक तथा भावनात्मक दोनों प्रकार की होती है। बालक का व्यवहार इन्हीं अभिवतियों पर निर्मर करता है| भावनात्मक अभिवतियाँ पूर्वाग्रह, ईर्ष्या तथा आलस्य के आधार पर निर्मित होती हैं जबकि बौद्धिक अभिवतियाँ तथ्यों को अधिक महत्व देती हैं। सामाजिक अध्ययन के अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह बालकों में बौद्धिक अभिवतियाँ का विकास करे | उनके अन्दर कुछ सामाजिक गुण जैसे आत्मसंयम, धैर्य, सहानुभूति तथा आत्म सम्मान को विकसित करें।

3.ज्ञान प्रदान करना

स्कूल बालकों को अच्छा नागरिक बनाना चाहता हैं तो उन्हें ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है। ज्ञान स्पष्ट चिन्तन व उचित निर्णय के लिए बहुत आवश्यक है। छात्रों को समाज के अनेक रीति रिवाजों, रहन-सहन, संस्कति, सभ्यता तथा नियम आदि से परिचित कराना बहुत आवश्यक हैं । इस प्रकार के ज्ञान से छात्र अपने भविष्य के जीवन को सफल बना सकता हैं।

4.अच्छी नागरिकता का विकास

प्रजातन्त्र की सफलता के लिये नागरिकों में नागरिकता के गुणों का विकसित करना आवश्यक हैं | औद्योगिक क्रान्ति के कारण सामाजिक संगठन पर भी प्रभाव पड़ा हैं। इसने परिवार, धर्म, समुदाय को छिन्‍न-भिन्‍न करके रख दिया है। नगरों मे अनेक व्यवसाय पनपने लगे हैं, गाँव में सीमित भूमि होने के कारण और जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण लोगों ने घरों को छोड़कर नगरों में रहना आरम्भ कर दिया हैं। जिससे नगरों में भी आवास की समस्या हो गई हैं। तनाव बढ़ रहे है। इसलिये सामाजिक अध्ययन में अच्छी नागरिकता की शिक्षा देने का महत्त्व बढ़ गया हैं।

5.मानव समाज की व्याख्या करना

मानव समाज जटिलताओं से भरा हुआ हैं। इसमें पूर्वाग्रह, ईर्ष्या, द्वेष, अपनत्व की भावत्ता के कारण पारस्परिक संघर्ष सरैष्टि के प्रारम्भ से चुले आ रहे हैं-इसलिंए ब॑च्चों/को यह जानकारी प्रदाच; करनी आवश्यक हैं कि जिस वातावरण में वह रहते हैं वह अस्तित्व में कैसे आग्रा | व्यक्ति एवं समोज एक दूमरे कौ 4किस यीमा।तक प्रभाबित करते हैं। संसार की विभिन्‍न संस्थाओं का विकास कैसे हुआ। समय के साथ बदलती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सामाजिक संस्थाएँ कैसे विकसित हुई तथा उनमें परिवर्तन कैसे आया।

6.मानवीय जीवन का विकास

सामाजिक अध्ययन शिक्षण का विशिष्ट उद्देश्य मानवीय समाज की व्याख्या करना हैं मानव ने इस सष्टि पर जीवन कैसे आरम्भ किया, आदि मानव से आज के मानव मे जो परिवर्तन आयें, उनका रहन सहन, खान पान, भाषा, व्यवहार, सभ्यता एवं सस्कति में आये बदलाव की कहानी कितनी पुरानी हैं। मानवीय व्यवहार से मानवीय प्रवतियों में सांमजस्य की स्थापना की आवश्यकता ने कैसे अविष्कारों को जन्म दिया। मानव को ड्स आघनिक रुप की जानकारी होना आवश्यक हैं क्‍योंकि यही जानकारी उन्हें ‘वसुधैवकुटुम्बकम’ के सिद्धान्त को मानने के लिये तैयार करेगी जिससे मानव को युद्ध के विनाश से बचाया जा सकेगा।

7.विद्यार्थियों का सामाजीकरण

सामाजिक अध्ययन बच्चो में सामाजिक आदतों का विकास करता हैं | उनमें सहयोग, सहकारिता, सहनशीलता, सहानुभूति, सहिष्णुता जैसे गुणों को विकसित किया जाता हैं। उनमें विश्लेषण एवं निष्कर्ष, निरूपण जैसे गुणों को विकसित किया जाता हैं। विद्यार्थी तथ्य संग्रह करना सीखते हैं। सार्थक रूप से लिखना, पढ़ना सीखते हैं। समूह तथा समुदाय के प्रति उत्तरदायित्व निभाना सीखते हैं। इस प्रकार अनेक सामाजिक गुण सामाजिक अध्ययन द्वारा ही सीखे जाते हैं जिससे उनका सामाजिक जीवन सुखी बन सकता हैं।

8.परस्पर निर्भरता की भावना का विकास

स्वस्थ एवं सन्तुलित सामाजिक जीवन के लिए मनुष्य को मानवीय प्रकति तथा भौतिक वातावरण को समझना पड़ता हैं | यन्त्रीकरण, श्रम के विभाजन और बड़े पैमाने पर उद्योगों के कारण आज की सामाजिक व्यवस्था अत्यन्त जटिल हो गई है। आज हर मानव एक दूसरे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। व्यक्ति ही नहीं, विश्व के सभी राष्ट्र एक दूसरे पर निर्भर हैं। यह निर्मरता, आर्थिक, सामाजिक, एवं राजनैतिक समी क्षेत्रों में है। इसलिये सामाजिक अध्ययन का उद्देश्य छात्रों में परस्पर निर्भरता की भावना का विकास करना भी हैं।

9.तर्क तथा चिन्तन शक्ति को विकसित करना

सामाजिक अध्ययन छात्रों के सामने अनेक ठोस तथ्यों को प्रस्तुत करता हैं। इन तथ्यों से प्रेरित होकर छात्र उन तथ्यों के सम्बन्ध में चिन्तन तथा मनन करते हैं जिससे उनकी चिन्तन शक्ति बढ़ती हैं जो कि उनके भावी जीवन में भी काम आती हैं | आगे चलकर ये जीवन से सम्बन्धित हर समस्या पर सोच-विचार एवं चिन्तन करके उसका समाधान करने की कोशिश करते हैं।

10. अन्तर्राष्ट्रीय विवेक का विकास

वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के कारण आधुनिक युग एक कुदटुम्ब के रूप में विकसित हो रहा हैं । आज कोई भी देश दूसरे देशों से अलग नहीं रह सकता है। सभी देश किसी न किसी रूप में एक दूसरे पर निर्भर हैं। इसके साथ-साथ सभी देशों पर तीसरे विश्वयुद्ध की तलवार भी लटक रही हैं। सभी दार्शनिक विचारक तथा वैज्ञानिक बार-बार इस बात पर बल दे रहें हैं कि विश्वयुद्ध से बचने के लिए विद्यार्थियों में अन्तर्राष्ट्रीय विवेक जागत करना अत्यन्त आवश्यक हैं। सामाजिक अध्ययन इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता हैं।

11.सामाजिक एव भौत्तिक वातावरण का अध्ययन

सामाजिक एवं भौतिक वातावरण का ज्ञान भी सामाजिक अध्ययन द्वारा मिलता हैं। व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए वातावरण का ज्ञान आवश्यक हैं। उसके चारों तरफ का वातावरण कैसा हैं, उसमें और सुधार करें जिससे वह अधिक उत्तम बन सके। वातावरण का उचित ज्ञान होने पर ही विधार्थी अपने आपकों बदलते हुए समाज के अनुकूल समायोजित करके उपयोगी नागरिक बन सकता हैं।

12.अच्छी आदतों तथा कौशलों का विकास

सामाजिक अध्ययन में आदतों तथा कौशलों का भी महत्वपूर्ण स्थान हैं। आदत किसी कार्य को करने की सामान्य प्रवति हैं। कौशल साधारण आदतों की उच्च अवस्था का नाम हैं। सामाजिक अध्ययन में हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों में अध्य॑यंन्न सम्बन्धी उचित,आदतों का-निर्माण भावनाओं पर/नियंत्रफ़; परिश्रम-करने की आद्रतों का निर्माण करना हैं। ईंसी प्रकार सामाजिक अध्ययन विद्यार्थियों को, कुछ उपयुक्त कौशलों का प्रशिक्षण भी दि सकते हैं जैस़ें रूप रेखाएँ, चार्ट, ग्राफ तथा मॉडल आदि का निर्माण।

13.प्रजातान्त्रिक गुणों को विकसित करना

आज हम लोकततन्त्र में सांस ले रहे हैं। लोकतन्त्र द्वारा प्रदत्त चिन्तन एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को कोई भी व्यक्ति खोना नहीं चाहता | प्रजातन्त्र की सफलता के लिए कुशल तथा जागरूक नागरिकों का होना आवश्यक है। सामाजिक अध्ययन का उद्देश्य शूरु से बच्चों मे उन सब गुणों को विकसित करना हैं जो प्रजातन्त्र के लिये आवश्यक हैं। सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों में प्रेम, भाईचारा, त्याग, सहनशीलता जैसे गुणों को विकसित करके उन्हें उत्तरदायी नागरिक बनाया जाता है। सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों को जनतन्त्र के आदर्शो व मूल्यों की जानकारी दी जाती हैं, जिससें प्रजातान्त्रिक नागरिकता का विकास हो सके और प्रजातन्त्र सुदढ़ बन सके।

14.बच्चुत्व की भावना का विकास

भारतवर्ष में अधिकांश लोगों का जीवन असन्तोष से भरा हुआ है जिसके अनेक कारण हैं जैसे आर्थिक, सामाजिक, भावनात्मक, देश में गरीबी और बेरोजगारी | रूढ़िवादिता अभी भी देशभर में व्याप्त हैं | तोड़-फोड़, मारपीट, दंगे फसाद चारों ओर व्याप्त हैं । आगजनी, घेराव, तालेबन्दी, हड़ताल, रास्ता रोकों, बन्द नित्य का काम बन गया हैं। ऐसे समय में बच्चों में अपनत्व की भावना विकसित करना आवश्यक हैं। मानवीय सम्बन्धों की विस्तत जानकारी, तथ्यों की सही व्याख्या, मनुष्य की एक दूसरे पर निर्भरता की जानकारी देकर इस भावना को विकसित किया जा सकता हैं और यही भावना अन्तर्राष्ट्रीय सदूभावना को विकसित करती हैं।

15. ठीक आचरण का प्रशिक्षण

प्राचीन काल से घर तथा धार्मिक संस्थाएँ बालक को आचरण का प्रशिक्षण देती थी। परन्तु वर्तमानकाल में इन दोनों का महत्व कम हो गया हैं। संयुक्त परिवार प्रथा समाप्त होती जा रही हैं | धर्म में विश्वास कम होता जा रहा हैं । ठीक आचरण की शिक्षा, शिक्षा द्वारा ही सम्भव है और शिक्षा में भी यह कार्य सामाजिक अध्ययन द्वारा ही सम्भव हैं।

16.सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों का विकास

आज चारों ओर सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों में निरन्तर गिरावट आ रही हैं। भ्रष्टाचार व चोर बाजारी का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र रूप से विचार करने, निर्भरता बढ़ाने की जानकारी देने, सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास करने तथा व्यक्तिगत एवं सामाजिक चेतना का विकास करके नैतिक मूल्यों को विकसित किया जाता है। उन्हें दिन प्रतिदिन की घटनाओं से अवगत कराया जाता है तथा उनके सामाजिक व भौतिक मूल्यों का विकास किया जाता हैं।

17. समन्वित ज्ञान प्राप्त करना

ज्ञान अखण्ड है। ज्ञान एक ईश्वर हैं। सामाजिक अध्ययन विभिन्‍न विषयों नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास भूगोल का समन्वित विषय हैं। सामाजिक अध्ययन द्वारा बच्चों को सभी विषयों के समन्वित रूप से सरल एवं स्पष्ट ज्ञान दिया जाता हैं।

18.आघुनिकीकरण का विकास

सामाजिक अध्ययन का उद्देश्य छात्रों का आधुनिकीकरण करना हैं। जिसका अर्थ हैं व्यक्तियों के सोचने एवं कार्य करने के ढंग में परिवर्तन करना | सामाजिक अध्ययन की शिक्षा द्वारा छात्रों में जिज्ञासा की उत्पत्ति की जाती हैं, उनमे उचित रुचियों के प्रति आकर्षण का विकास किया जाता हैं तथा छात्रों में स्वतन्त्र चिन्तन तथा निर्णय लेने की योग्यता का भी विकास किया जाता हैं।

19.अवकाश काल का सदुपयोग

चैज्ञानिक उन्‍नति के| कारण आज मनुष्य को पर्याप्त अवकाश काल मिलने लगा हैं। व्यक्ति में अवकाश काल का न ग करने का कौशल द्विकसित करना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं और सामाजिक अध्ययन|इस ए॑द्विश्ये कीं मैं महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता हैं। सामाजिक अध्ययन व्यक्ति में ऐतिहासिक, साहित्यंक, भौगोलिक, दार्शनिक भ्रमाणात्मक रूचियों को विकसित करता हैं। यही रूचियाँ उसे अवकाश काल के सदुपयोग में सहायक सिद्ध होती हैं | अतः सामाजिक अध्ययन शिक्षण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी रुचियाँ विकसित करना भी है जो उसे अवकाश काल में सहायक सिद्ध हो।

आर० सी० एडविन ने सामाजिक अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं :-

  1. बच्चों को सामाजिक एवं भौतिक वातावरण से परिचित कराना। छू .
  2. व्यक्ति व समाज के सम्बन्ध तथा राज्यों व राष्ट्र सम्बन्धी समस्याओं को समझाना।
  3. बच्चों को आदिकाल से लेकर वर्तमान युग तक की सामाजिक प्रगति, संस्कति व परम्पराओं से परिचित कराना।
  4. जागरूक एवं उत्तरदायी नागरिकों का निर्माण करना।
  5. प्रजातान्त्रिक सिद्धान्तों तथा मूल्यों के अनुसार कार्य करने की क्षमता उत्पन्न करना।
  6. देश भक्ति, साहस, सहयोग तथा सहनशीलता की आदत डालना।
  7. बालकों को अन्य लोगों के दष्टिकोणों को समझने में सहायता देना।
  8. बालकों में कौशलों का विकास करना जो सामाजिक जीवन में प्रभावपूर्ण योगदान के लिए आवश्यक हैं।
  9. विद्यार्थियों में तर्कपूर्ण चिन्तनशक्ति का विकास करना।
  10. भौगोलिक परिस्थितियों एवं व्यवसायिक क्रियाओं को समझने में सहायता करना।

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