सामाजिक अध्ययन शिक्षण के मूल्य

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सामाजिक अध्ययन शिक्षण के मूल्य
1.अनुभवों द्वारा ज्ञान

सामाजिक अध्ययन ज्ञान के साथ साथ अनुभव भी प्रदान करता हैं। क्रियाओं द्वारा ‘अधिगम’ के लिए स्थितियों का निर्माण किया जाता हैं। बालकों को केवल पुस्तकी ज्ञान प्रदान नहीं किया जाता, क्योंकि इस प्रकार के ज्ञान को पाकर भी वे वास्तविक सत्य को समझ नहीं पाते। इसलिए वास्तविक परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं ताकि बालक क्रिया तथा से ज्ञान प्राप्त करे। उदाहरण के लिए यदि विद्यार्थियों को सफाई के बारे में ज्ञान देना हैं, तो यह ज्ञान उन्हें दो प्रकार सेदिया जा सकता हैं।

a.भाषण देकर या पुस्तक में से पढ़ने के लिए कहकर।
b.विद्यार्थियों को स्कूल या उसके समीप के कुछ क्षेत्रों का अवलोकन और सफाई के लिए कहा जाये। दूसरी विधि अधिक अच्छी हैं, क्योंकि इसमें क्रिया द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं।

2.बौद्धिक विकास

बच्चे अध्ययन के लिए सामग्री स्वयं ही एकत्रित करते हैं, इसलिए उनका बौद्धिक विकास होता हैं। यहाँ विद्यार्थियों को सभी प्रश्नों के बने बनाए उत्तर नहीं दिये जाते बल्कि नई समस्याओं के प्रति एकाग्रता से मन लगाकर उनके समाधान को ढूंढने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता हैं।

3. सहकारिता की भावना का विकास

सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों को व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कक्षा के अन्दर या बाहर मिल जुलकर कार्य करने का प्रशिक्षण दिया जाता हैं | छात्रों में सहयोग, सहानुभूति, सहनशीलता तथा सहकारी भावना का विकास करके सामाजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जाता हैं | छात्रों को सिखाया जाता हैं कि मिल जुलकर काम करना कितना आवश्यक हैं।

4.समायोजन की भावना का विकास

वर्तमान समय में समाज का ढाँचा काफी जटिल होता जा रहा हैं। परिवार टूट रहे हैं। तनाव बढ रहा हैं। छात्र अपने आपको इस वातावरण के साथ व्यवस्थित करने में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं | सामाजिक अध्ययन द्वारा बच्चों को स्कूलों में सामाजिक व भौतिक वातावरण से परिचित कराया जाता हैं, जिससे वे भावी जीवन में अपने आपको हर प्रकार समाज से समायोजित कर सकें ।

5.समाजोपयोगी नागरिक गुणों का विकास

सामाजिक अध्ययन द्वारा सभी नागरिकों में गुणों का विकास करके ऐसे व्यक्तित्व का विकास किया जाता जो हर दष्टिकोण से समाजोपयोगी होगा | ऐसे व्यक्तित्व वाला छात्र परिवार, समाज, देश तथा राष्ट्र सभी के लिए हैं

6.अध्यापक तथा बच्चों के बीच नए संबंध

उपलब्धियाँ क्रियाओं के द्वारा होती हैं, इसलिए अध्यापक और विद्यार्थियों में एक नए प्रकार का सम्बन्ध स्थापित होता हैं। दोनों इकठ॒ठें काम की योजना बनाते हैं| क्रियाओं का आयोजन अनौपचारिक ढंग से किया जाता हैं। विद्यार्थी को बिना किसी रूकावट के हर बात पर विचार-विमर्श करने की स्वतन्त्रता हैं।

7.विस्तत दष्टिकोण का विकास

सामाजिक अध्ययन द्वारा ‘वसुघैव कुटुम्बकम’ की भावना विकसित करके व्यापक दृष्टिकोण का निर्माण किया जाता हैं। छात्र सारे विश्व को अपना परिवार समझेंगे | संकुचित विचारों को छोड़कर व्यापक दष्टिकोण अपनाएंगे। वे समझ जायेंगे कि विश्व के अन्य राष्ट्र हमारे दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं तथा अन्य देशों की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक अवस्था का हमारे लिए क्या महत्त्व है। इस प्रकार सम्पूर्ण मानव जाति के प्रति उचित व विशाल दष्टिकोण विकसित करेंगे।

8.उचित अभिवत्तियों का विकास

सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों में उचित अभिवत्तियों का विकास किया जाता हैं | छात्रों में विभिन्‍न घटनाओं, विचारों तथा व्यक्तियों के प्रति वैज्ञानिक दष्टिकोण की भावन्ना विकसित करके कर्त्तव्य परायणता व आदर्शवादिता की भावना विकसित क्री जाती हैं।

9.अच्छी आदतों का विकास

सामाजिक अध्ययन के द्वारा छात्रों में अच्छी व स्वस्थ आदतों का विकास किया जाता हैं। छात्रों को बड़ो का आदर करना, छोटों से प्यार करना, स्वास्थ्य नियमों का पालन करना, नियम कानून व रीति रिवाज के अनुसार आचरण रखना आदि अच्छी आदतों का विकास किया जाता हैं, जो सुयोग्य नागरिक बनाने में सहायक हैं।

10.निर्णय व विश्लेषण शक्ति का विकास

किशोर बालक के लिए वर्तमान समाज की जटिलता का समझना काफी कठिन है। वे यह नहीं समझ पाते कि क्या करें, क्या न करें। इसी मानसिक तनाव में उलझें रहने के कारण उनका व्यक्तित्व विकसित नहीं हो पाता। सामाजिक अध्ययन द्वारा छात्रों को घटना विशेष का विश्लेषण करना व निर्णय शक्ति पर पहुँचना सिखाया जाता हैं जिससे वे भावी जीवन की समस्याओं का विश्लेषण करके उचित निष्कर्ष पर पहुँच सकें।

11.व्यक्तिगत एवं सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास

सामाजिक अध्ययन द्वारा व्यक्तिगत एवं सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास किया जाता हैं। आधुनिक समाज में बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढ़ालने के लिए वर्तमान समाज के ढाँचे तथा उसके प्रति उत्तदायित्व को समझना आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तो होती ही हे।, समाज को ऊँचा उठाने में व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेवारी भी बहुत होती हैं।

12.पिछड़े हुए बालकों के लिए सहायक

मन्दबुद्धि व पिछड़े बालक सामान्य बच्चों के मुकाबले में पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों में पीछे होते हैं। पुराने तरीकों से एकत्रित समुचित ज्ञान ऐसे विद्यार्थियों की समझ से बाहर होता हैं | सामाजिक अध्ययन में अध्यापक समय समय पर विभिन्‍न प्रकार की सहायक सामग्री का प्रयोग करके ऐसे विद्यार्थियों के लिए ज्ञान को सरल बना देता हैं। जिससे वे आसानी से अपनी रूचि तथा कुशलता के आधार पर ज्ञान प्राप्त कर सकें।

13.चयन कुशलता

सामाजिक अध्ययन अध्यापक तथा विद्यार्थी दोनों को बुद्धिमतापूर्ण चुनाव करने का अवसर देता है | वैज्ञानिक प्रगति के कारण वर्तमान समाज का ढाँचा अत्यन्त जटिल बनता जा रहा हैं। आज के व्यस्त जीवन में अनेक प्रकार की वस्तुओं व परिस्थितियों में से बुद्धिमतापूर्ण चुनाव करने की योग्यता आवश्यक हैं | अध्यापक यह निर्णय करता है कि पाठ्यक्रम में कौन से विषय पहले पढ़ाने है, कौन से बाद में। इसी प्रकार विभिन्‍न विधियों व साधनों मे से विद्यार्थी समयानुकूल चुनाव करना सीखते हैं, यह प्रशिक्षण उनके भावी जीवन मे काम आता हैं।

14.मिलजुल कर काम करने का प्रशिक्षण

स्कूल हो या समुदाय, हर स्थान पर व्यक्तिवादी दष्टिकोण देखने को मिलता हैं। स्कूल में बालक स्कूल के कार्य को मिल-जुलकर नहीं करते और समुदाय में हर व्यक्ति केवल अपने ही लाभ के लिए सोचता है। किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा दष्टिकोण बड़ा खतरनाक हैं। इसलिए सामाजिक अध्ययन द्वारा कक्षा के कमरे के भीतर और बाहर सहयोगपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न करके मिल-जुलकर काम करने का प्रशिक्षण दिया जाता हैं।

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